हिंदी पत्रकारिता का उद्भव एवं विकास

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हिंदी पत्रकारिता का उद्भव एवं विकास Hindi patra-patrika ka ubhdav or Vikas हिंदी पत्र-पत्रिकाओं का उद्भव और विकास ugc net mass communication uptet pre

हिंदी पत्रकारिता का उद्भव एवं विकास


हिंदी पत्रकारिता का उद्भव एवं विकास Hindi patra-patrika ka ubhdav or Vikas हिंदी पत्र-पत्रिकाओं का उद्भव और विकास हिंदी पत्रकारिता का उद्भव और विकास history of indian journalism first newspaper in hindi newspapers before 1947 ugc net mass communication uptet preparation हिंदी पत्र-पत्रिकाएं - हिंदी पत्रिकारिता का जन्म कब से और किस पत्र से माना जाए ,यह एक जटिल प्रश्न है ,फिर भी श्री राजनाथ शर्मा ने लिखा है कि हिंदी पत्र पत्रिकाओं के क्रमिक विकास का इतिहास प्रस्तुत करने का सर्वप्रथम श्रेय बाबू राधाकृष्ण दास को है। उन्होंने हिंदी के सामाजिक पत्रों का इतिहास नामक पुस्तक लिखकर इस दिशा में सर्वप्रथम पग उठाया था। इसके उपरान्त बाबू बालमुकुन्द गुप्त के विभिन्न लेखों के संग्रहित रूप गुप्त निबंधावली द्वारा इस विषय पर पर्याप्त प्रकाश पड़ा। आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने श्री जुगुल किशोर द्वारा ३० मई ,१८२६ ई. को सम्पादित पत्र उदन्त मार्तंड को हिंदी का सर्वप्रथम समाचार पत्र माना है। हिंदी के अधिकाँश विद्वानों ने भी इसे ही माना है ,किन्तु हिंदी के कतिपय विद्वानों ने इस पर आपत्ति करते हुए राजा शिवप्रसाद 'सितारे हिन्द' द्वारा सम्पादित बनारस अखबार (१८४५ ई.) को हिंदी का सर्वप्रथम समाचार पत्र माना है ,किन्तु विविध कसौटियों पर जाँचने परखने अथवा विवेचन व विश्लेषण करने के पश्चात निष्कर्षतः उदन्त मार्तंड ही हिंदी का सर्वप्रथम समाचार पत्र माना गया है। उदन्त मार्तंड से लेकर अद्यतन तक हिंदी पत्रकारिता का इतिहासिक विकास यात्रा बहुत लम्बी है। फिर भी अध्ययन की सुविधा की दृष्टि से हिंदी पत्रकारिता की यात्रा को निम्न पाँच भागों में विभाजित किया जा सकता है - 

  1. पूर्व भारतेंदु युग ( सन १८२६ से सन १८७२ ई.तक )
  2. भारतेंदु युग (सन १८७३ से सन १९०० ई.तक )
  3. द्विवेदी युग ( सन १९०१ से सन १९२० ई.तक )
  4. छायावाद युग या स्वतंत्रतापूर्व युग ( सन १९२१ से सन १९४७ ई.तक )
  5. स्वातंत्र्योत्तर युग ( सन १९४७ से अद्यावधि )

पूर्व भारतेंदु युग ( सन १८२६ से सन १८७२ तक ) 

हिंदी पत्रकारिता का उद्भव एवं विकास
इस युग में हिंदी का प्रथम मौलिक समाचार पत्र उदन्त मार्तंड ३० मई १८२६ ई. को प्रकाशित हुआ। इसके संपादक पं.जुगुल किशोर शुक्ल थे। यह एक साप्ताहिक पत्र था। इस पत्र ने स्वनामानुसार हिंदी साहित्य को एक अभिनव आलोक से आलोकित किया। इस समाचार पत्र में हिंदी पत्रकारिता की प्रगति हेतु संघर्ष और स्वाभिमान की झलक परिलक्षित होने के कारण इसे अंग्रेज शासकों का कोपभाजन बनना पड़ा एवं आर्थक अभाव के कारण मात्र पचास अंकों के बाद ही ४ सितम्बर ,१८२६ ई को यह बंद हो गया। इस बाद उल्लेखनीय बहुभाषी पत्र हिन्दू हेराल्ड भी कलकत्ता से प्रकाशित हुआ ,बाद में यह बंगदूत नाम से प्रसिद्ध हुआ। इसके प्रकाशक राजा राममोहन राय एवं संपादक नीलरत्न हालदार थे। राजा शिवप्रसाद सितारे हिन्द की प्रेरणा से सन १८४५ ई में बनारस अखबार प्रकाशित हुआ। सन १८४६ में मौलवी नसीरुद्दीन ने मार्तंड नामक साप्ताहिक पत्र निकाला। 

भारतेंदु युग ( सन १८७३ से सन १९०० तक ) 

पत्रकारिता के सम्पूर्ण इतिहास में भारतेंदु युग का अप्रतिम स्थान है। इस युग के पुरोधा भारतेंदु हरिश्चंद जी थे। इस युग को हिंदी पत्रकारिता के आधारयुग या निर्माण युग के नाम से जाना जाता है। १५ अगस्त ,सन १८६७ ई. में भारतेंदु जी ने काशी से कविवचन सुधा नामक मासिक पत्रिका प्रकाशित कर हिंदी पत्रकारिता को एक अभिनव आयाम प्रदान किया था। यह अंततः परिवर्तित होकर क्रमशः पाक्षिक और साप्ताहिक रूप में सामने आई। 

द्विवेदी युग ( सन १९०१ से सन १९२० तक ) 

नागरी प्रचारिणी सभा ने सरस्वती जैसी युगांतकारी पत्रिका का प्रकाशन सन १९०० ई. में भले ही भारतेंदु युग में कर दिया हो ,परन्तु इसे सही दिशा एवं गति उस समय मिली जब द्विवेदी युग में ,सन १९०३ में इसका कार्यभार महावीर प्रसाद द्विवेदी के हाथ में आया। इसमें मैथिलीशरण गुप्त , जयशंकर प्रसाद ,निराला ,प्रेमचंद ,रायकृष्ण दास ,गणेश शंकर विद्यार्थी जैसी साहित्यकार - पत्रकार अपना गुरु गंभीर्य सहयोग प्रदान कर रहे थे। 

छायावाद युग ( सन १९२१ से सन १९४७ तक )

साहित्यिक दृष्टि से छायावाद कहा जाने वाला यह युग राजनितिक दृष्टि से गाँधी युग था। इस युग में स्वतंत्रता संग्राम अपने चरम पर था। इस नवचेतना और स्वाधीनता की भावना इस युग के साहित्य एवं पत्र पत्रिकाओं पर भी पड़ा। सरस्वती और मर्यादा मासिक पत्रिकाएँ इस युग में भी अनवरत स्तरीय ,जनोपयोगी साहित्य प्रस्तुत प्रकाशित करती रहीं। 

स्वातंत्र्योत्तर युग (सन १९४७ से अद्यावधि)

इस युग से पूर्व अर्थात द्विवेदी युग व छायावाद युग की हिंदी पत्रकारिता का एक लक्ष्य था - स्वतंत्रता की प्राप्ति। उस स्वतंत्रता पूर्व युग की पत्रकारिता की जो महानतम भावना था ,वह स्वतंत्रता के पश्चात भी विभिन्न आदर्श उद्देश्य लेकर निरंतर आगे बढती रही। परिणामस्वरुप देश के विभिन्न कोणों भागों से नाना प्रकार की पत्र - पत्रिकायें निकलने लगी। आज साहित्य समाज ,धर्म ,राजनीति ,संस्कृति ,शिक्षा ,खेलकूद ,बैंकिंग ,कानून ,पशु - पालन ,कृषि ,ज्योतिष ,स्वास्थ्य ,विज्ञान ,उद्द्योग ,मनोरंजन ,जासूसी ,जातीय ,बालोपयोगी ,महिलाउपयोगी ,आदि विषयों से सम्बंधित अनेकानेक पत्र - पत्रिकाएँ बहुश्रुत व बहुचर्चित हो गयी है। जैसे - धर्मयुग ,साप्ताहिक हिंदुस्तान ,दस्तावेज़ ,कादम्बिनी ,नवनीत ,निकष ,आजकल ,सरिता ,ज्ञानोदय ,चम्पक ,गृहशोभा ,बालजगत ,नंदन ,मनोहर कहानियाँ ,खेल खिलाड़ी ,चमकते सितारे ,दिनमान ,रविवार ,सुषमा ,चंदामामा ,पराग ,विज्ञान प्रगति नन्ही दुनिया ,मेरी सहेली ,प्रतियोगिता दर्पण ,इण्डिया टुडे ,वामा ,माधुरी ,सारिका आदि है।


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