श्रीकृष्ण की नगरी वृंदावन

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श्रीकृष्ण की नगरी वृंदावन वृंदावन भगवान कृष्ण की बचपन की साक्षी और प्रणय स्थली अवश्य रही मथुरा की जन्म स्थली और वृंदावन के कई घाट और के स्थल को खोजने

श्रीकृष्ण की नगरी वृंदावन


वृंदावन भगवान कृष्ण की बचपन की साक्षी और प्रणय स्थली अवश्य रही ।  इसी प्रेम में पगकर, 1502 विक्रम संवत में  नदिया, पश्चिम बंगाल से चैतन्य महाप्रभु और अन्य अन्य स्थानों से भक्तगण जैसे मीरा ,रसखान ,सूरदास आदि यहां आकर रम गये।अगर किसी ने दूरवर्ती इलाके से भक्ति  जारी रखी, वह  अंडाल भगिनी ही कही जा सकती है।

श्रीकृष्ण की नगरी वृंदावन
यमुना के किनारे जो कदम्ब वृक्षों की माला थी और जो तत्कालीन वन थे और जो एफ एस ग्रोस मथुरा गजटियर में  दिए हुए है, का इस शहर का वर्णन मिलता है ,उस  से इस बात  की पुष्टि होती है। 5 वन मशहूर थे ,निधिवन के संबंध में कई बातों की पुष्टि नहीं हो पाती है ।

कारण सर्वविदित है कि मुगल शासकों ने इस शहर की आर्किटेक्चर को नष्ट कर दिया ।तत्कालीन हिंदू राजा भी इस को संभाल नहीं पाए ।और ब्रज जिसको आज जिस  सीमितक्षेत्र में जाना जाता है वह कभी भरतपुर  डींग रियासत से लेकर बल्लभगढ़ तक  फैला हुआ था।अष्टछाप के कवियों से लेकर  6 गोस्वामियों की भक्ति भावना से प्रसन्न होकर ,और भक्तमाल से लेकर अनेक बाल लीला श्री कृष्ण के यहां  प्रचलित है।

श्रीकृष्ण की बाल लीला

सूर , रत्नाकर, रसखान, बिहारी आदि कवियों ने उनकी बाल  प्रमाण लीलाओं का वर्णन किया है, वह अन्य अन्यत्र साहित्य में नहीं मिलता ।श्री कृष्ण की यह अद्भुत द्वैत और अद्वैत को ,साकार और निराकार में प्रतिबंधित करने की ठानी, कि  उन्होंने उद्धव जैसे प्रकांड पंडित को गोपियों के समझाने के लिए भेजा, जो कि उद्धव जैसी स्कॉलर ना थी पर  अपनी बात कहने  और उसे  उद्धव से मनवाने में  सक्षम रही।

यमुना जी  ,जब हरियाणा से आगे बहती हैं , आगे तक एक सर्पिल आकार में चलती है । घाट पर  सदैव मेला ही सा लगा रहता  है और  इसके किनारे प्राचीन मंदिरों में राम मंदिर ,गोविंद घाट मंदिर, मदन मोहन मंदिर प्रसिद्ध है।श्री कृष्ण की  दिव्य और भव्य मूर्ति की वह जो  छवि आकर्षित करती रही , पुजारियो और  त्समय के सेवायतियों ने  बहुत मुश्किल से आगरा ग्वालियर मार्ग पर सरोवर में छुपाया, काफी वर्षों बाद चुपके से अंधेरे में नाथद्वारा जाकर स्थापित किया   ।यद्यपि यह कामबहुत ही जोखिम भरा था।

मथुरा की जन्म स्थली और वृंदावन के कई घाट और के स्थल को खोजने का श्रेय चैतन्य महाप्रभु को जाता है यद्यपि वे यहां कुछ दिन रहने के बाद जगन्चनाथ  धाम लौट गए थे। उद्देश्य भारत की सांस्कृतिक एकता को सुदृढ़ करना था । विभिन्न भषा भाषियों, रीति रिवाज वाले सभी हिंदुओं को एकत्र करना था।

परिस्थितियों को देखते हुए यह स्पष्ट हो जाता है जो क्षेत्र मथुरा शहर में थे उनके क्षत्रप असरदार थे, और छोटे उपनगरों जैसे गोकुल,बरसाना,नंदगांव के क्षत्रप भी अति शक्तिशाली थे  और उनमें वृषभानु जी महाराज की गिनती शक्तिशाली क्षत्रप के  रूप में की जा सकती है। 




- क्षेत्रपाल शर्मा
19/17 शांतिपुरम, सासनी गेट, आगरा रोड, अलीगढ़

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