मानसिक संतुलन कैसे बनाए रखें ?

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अपना मानसिक संतुलन कैसे बनाएं? Apna Mansik Santulan Kaise Banaye निराशा अथवा घोर अवसाद डिप्रेसन होने पर ही मनुष्य, आत्महत्या की सोचता है इंसान जिंद

मानसिक संतुलन


जीवन में कभी-कभी इतने दुख भरे क्षण  आते हैं कि व्यक्ति इतना निराश हो जाता है कि वह खुद ही खुदकुशी की सोचने लगता है और कभी-कभी तो पीड़ा देने  वाले  की  हत्या   तक भी कर देता है, प्रत्यक्ष  और  परोक्ष में  जोर जबरिया, धोखा, अन्याय आदि क ई  कारक  होते हैं l

वह   मशहूर  इतना  हो गया,
तखल्लुस बदल बदल  के ll
(इशारा   कथा सम्राट  मुंशी  प्रेमचंद  से  है)

निराशा अथवा घोर अवसाद   ( डिप्रेसन)होने पर  ही  मनुष्य, आत्महत्या की सोचता है lपर मैं ऐसा सोचता हूं सुख-दुख जैसा रामचरितमानस की चौपाई में कहा गया है कि ज्ञानी काटे ज्ञान से ,मूर्ख काटे रोय । परमपिता-परमात्मा ने इस सृष्टि में लगभग हर चीज का जोड़ा बनाया है ,जैसे रात-दिन, खट्टा-मिठा, छोटा-बड़ा, ठंडा-गर्म, पतला-मोटा, रोगी-निरोगी, जीवन-मृत्यु, आदि-अन्त, पूर्व-पश्चिम, उत्तर-दक्षिण, धूप-छांव, मान-अपमान शामिल हैं। इसी प्रकार मानव जीवन में सुख दु:ख की भी अहम् भूमिका है। ये दोनों अवस्थाएं इंसान की जिंदगी में चलती-फिरती छाया की तरह हैं। कोई भी आदमी सारी जिंदगी सुखी नहीं रह सकता और न ही वह सारा जीवन दुख में काटता है। गोस्वामी तुलसीदास ने भी कहा है कि - 

तुलसी इस संसार में सुख-दुख सबको होय। 
ज्ञानी काटे ज्ञान से मूरख  काटे रोय।

किसी को गरीबी का दुख है तो किसी को अधिक धन में भी सुख नहीं है। किसी को बीमारी का दुख है तो किसी को किसी और चीज का दुखहै lआशय  यह  है  कि   आप धीरज, अच्छे मित्रों से  परामर्श  और उकसाए  जाने पर  भी  यदि  मानसिक संतुलन  बनाए रखते हैं , तो  आसन्न संकट  से  पार  पा  सकते हैं l

मनुष्य को अपना जीवन सुन्दर बनाने के लिए निम्नलिखित बातों की तरफ ध्यान देना चाहिए - 

असुन्दर या जीवन मे तनाव आने के कारण
  •  फिल्म और  फैशन  का  अंधानुकरण । 
  •  तामसिक खानपान । 
  • अस्वास्थ्यकर   पर्यावरण व परिवेश । 
  • आचार, विचार और  व्यवहार  में आपस  में  सम्मान व विश्वास की कमी । 
  • एक  का  दूसरे पर  ज्ञान, धन, बल, वर्ण, रंग  आदि  के  चलते  प्रभुत्व रखने की मंशा । 
  • अपने  व्यक्ति गत  दुर्गुणों को  त्यागने  की  जगह  उनको लगातार  ढके  चले  जाना । 

तनाव दूर करने के लिए निम्नलिखित उपाय करें - 

  • क्रोध  पर  इस तरह  अभ्यास करके  नियंत्रण करें । 
  • अनावश्यक  बहस में न उलझें । 
  • सच्चे  सरल  व ज्ञानी   प्रबुद्ध जनों  के संग रहें । 
  • मन  निर्मल  रखें । 
  • सामर्थ्य नुसार   परमार्थ व परिश्रम करें । 
  • तनाव जहाँ  उभरे,  वहाँ  से  तरह  देकर  बाहर  जाए । 
  • तनाव  घरेलू हो  तो  माला  टूटने न दें, बल्कि ठंडा  पानी  पी कर  बात  समझाएँ  व सुलझाएं । 
  • ज्ञात  अपराधी, पापी, और  धूर्त   से  दूरी  बनाएं । 
  • सुनी - सुनाई बातों पर भरोसा न करें , इससे बैर भाव बढ़ता है । 


मानसिक संतुलन कैसे बनाए रखें ?
मुंशी प्रेमचंद   ने  बचपन  में  गरीबी का  दंश  झेला lआखिर मुंशी कैसे बने, उनका नाम भी प्रेमचंद नहीं था इससे पहले उन्होंने कम से कम दो-तीन  अल्ल और भी रखे   जिनमें नवाबराय,  उनका असली नाम धनपत राय   श्री वास्तव था उर्दू अखबार में वह किसी और नाम से लिखते थे।     बकलम    डा   जगदीश  व्योम  ( अभिव्यक्ति में)'नबावराय' नाम से वे उर्दू में लिखते थे। उनकी 'सोज़े वतन' (१९०९, ज़माना प्रेस, कानपुर) कहानी-संग्रह की सभी प्रतियाँ तत्कालीन अंग्रेजी सरकार ने ज़ब्त कर ली थीं। सरकारी कोप से बचने के लिए उर्दू अखबार "ज़माना" के संपादक मुंशी दया नारायण निगम ने नबाव राय के स्थान पर 'प्रेमचंद' उपनाम सुझाया। यह नाम उन्हें इतना पसंद आया कि 'नबाव राय' के स्थान पर वे 'प्रेमचंद' हो गए।

अपेक्षा कृत गरीबी में  पले  बढे धनपत राय  को  कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद के नाम से भी जाना जाता है,   कलम का सिपाही में अपने उस मामा की आपबीती बताई है कि किस तरह वह उनका शोषण करते थे आखिरकार एक दिन वह सारी पीड़ा एक कागज पर लिखी और   उसे  एक  जगह   इसी  अभिप्राय  से  रख  दिया  , अनजाने में उसी मामा ने   उस  कागज  को पढ़ा तब उस पीड़ा का एहसास हुआ और वह वहां से चले गए   l पहली बार प्रेमचंद ने यह महसूस किया जब मेरे लिखने में  इतनी  शक्ति है   , अगर मैंने अंग्रेजों की गुलामी के खिलाफ लिखना शुरू किया   , तो अंग्रेज भी भाग सकते हैं , ऐसा उन्होंने अपने एक आत्मकथ्य में कहा  है l

प्रेमचंद और कभी टी एस इलियट ,  करीब  7 साल   के अंतराल में एक ही समय जन्मे थे  (1880 से 1887 ),अर्थात कह सकते हैं कि दोनों समकालीन थे,   टी एस इलियट ने आलोचना में  हैमलेट विशेष उलझन थी कि टू बी और नॉट टू बी  दैट इज द क्वेश्चन से आगे जाकर जब यह बताया कि    किस तरह उन्होंने बाग में उसी सदृश्य पर हैमलेट ने एक ड्रामा स्टेज किया इस तरह उनके पिता को कान में जहर देकर मारा गया था ताकि वास्तविक अपराधी गिल्टी फील कर सके,  इसे  "ऑब्जेक्टिव को- रिलेटिव "  टर्म, नाम दिया गया था,  और करीब-करीब यही काम प्रेमचंद ने अपने मामाजी के साथ किया था, घटनाओं का  इस तरह सादृश्य देखिए l



संपर्क  - क्षेत्रपाल शर्मा
म.सं 19/17  शांतिपुरम, सासनी गेट ,आगरा रोड अलीगढ 202001
मो  9411858774    ( kpsharma05@gmail.com )

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