जैसा कर्म करोगे वैसा फल मिलेगा पर निबंध

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जैसा कर्म वैसा फल जैसा कर्म करोगे वैसा फल मिलेगा जैसा कर्म करोगे वैसा फल भोगना पड़ता है Shrimad Bhagwat Geeta aadhyatmik story बोया पेड़ बबूल का आम कहा

जैसा कर्म वैसा फल


जैसा कर्म वैसा फल जैसा कर्म करोगे वैसा फल मिलेगा जैसा कर्म करोगे वैसा फल भोगना पड़ता है Shrimad Bhagwat Geeta aadhyatmik story - मनुष्य को अपना कर्म करना चाहिए। फल देना तो ईश्वर का काम है। जो कर्म दूसरों की भलाई के लिए किये जाते हैं वे सत्कर्म कहलाते हैं। ऐसे कर्म करने वाला व्यक्ति सदैव सुखी रहता है। दूसरों को कष्ट पहुँचाने वाले कर्मों को असत कर्म कहते हैं। हम जैसे भी कर्म करते हैं हमें वैसा ही फल मिलता है। हम जैसा भी कार्य कर्म करते हैं हमें उसका वैसा ही फल मिलता है। प्रत्येक मनुष्य कर्म करने के लिए स्वतंत्र है परन्तु उन कर्मों का फल तो ईश्वर देता है और प्रत्येक व्यक्ति को अपने कर्मों को जो भी फल हो भोगना ही पड़ता है। 

जैसा कर्म करोगे वैसा फल मिलेगा पर निबंध
प्रायः कर्म करते समय मनुष्य यह भूल जाता है कि अच्छे और बुरे जैसे भी कर्म कर रहा है। उन कर्मों का फल तो ईश्वर देता है और प्रत्येक व्यक्ति को अपने कर्मों का जो भी फल हो भोगना ही पड़ता है। प्रायः कर्म करते समय मनुष्य यह भूल जाता है कि अच्छे और बुरे जैसे भी कर्म कर रहा है। उन कर्मों का फल उसे अवश्य ही भोगना पड़ता है। प्रत्येक मनुष्य को उसके कर्म के अनुसार फल अवश्य मिलता है। इस सम्बन्ध में निम्न उदाहरण देखने को मिलते हैं। हम बीज बो कर अर्थात कर्म करके भूल जाते हैं किन्तु बीज उगना नहीं भूलता है। 

भीष्म पितामह ने दुमही को तीर की नोंक से उठाकर बेरिया के पेड़ पर पटक दिया जहाँ उसे छ महीने तड़पना पड़ा। वही फल शर -शय्या पर सोकर उन्हें भोगना पड़ा। राजा दशरथ ने श्रवण को तीर मारा। उनके माता -पिता ने पुत्र वियोग में प्राण त्याग दिए ,उसी प्रकार पुत्र वियोग ने राजा दशरथ को प्राण त्यागने पड़े। दुर्योधन ने पांडवों को राज्य प्राप्ति की इच्छा से नाना प्रकार के कष्ट दिए तो अंत में उसका फल उन्हें पराजय और नाश के रूप में भोगना पड़ा। आज भी लोग दुर्योधन से घृणा और युधिष्ठिर का सम्मान करते हैं। इन सभी उदाहरणों से स्पष्ट होता है कि जो जैसा कर्म करते हैं ,उन्हें उसका परिणाम अवश्य मिलता है। 

विद्यार्थी जीवन में परिश्रम का महत्व

विद्यार्थी जीवन में तो कर्म का विशेष महत्व है। क्योंकि विद्या रूपी धन को बिना परिश्रम के कोई भी प्राप्त नहीं कर सकता है। जो विद्यार्थी परिश्रम एवं लगन से पढ़ाई करते हैं ,वे हमेशा अच्छे अंकों से उत्तीर्ण होकर अपना अपने माता -पिता का एवं विद्यालय का नाम रोशन करते हैं। इसके विपरीत जो विद्यार्थी अपना समय खेल में व्यर्थ बिताते हैं वे अक्सर परीक्षा में अनुतीर्ण होकर जीवन की दौड़ में पीछे रह जाते हैं तथा अपने माता -पिता और शिक्षकों के कोप का भाजन बनते हैं। 

तुलसीदास ,कबीरदास ,गुरुनानक ,चंद्रशेखर आज़ाद ,राजा हरीशचंद्र ,राजा राममोहन राय ,महात्मा गांधी ,आदि महापुरषों ने अपने कर्मों से यह सिद्ध कर दिया है कि जो जैसी करनी करता है उसका फल उसे वैसा ही मिलता है। दूसरों को सुख पहुँचाने वाला सुखी और दूसरों को दुःख पहुँचाने वाला हमेशा दुखी ही रहता है। कहा भी गया है कि जैसा बोओगे ,वैसा काटना पड़ेगा - अपने द्वारा किये गए कर्म के फल से कोई भी बच नहीं सकता है तुलसीदास जी ने कहा भी है कि - 

कर्म प्रधान विश्व करि राखा। 
जो जस करई सो तस फल चाखा। 

इतिहास ऐसे असंख्य उदाहरणों से भरा पड़ा है कि जिससे सिद्ध होता है कि जो व्यक्ति अपने जीवन का उद्देश्य ऊँचा प्रयास करते हैं और ऊँचाईयों पर पहुँच जाते हैं। यदि हमारे कर्म ही अच्छे न हों तो हमें अच्छे फल की भी आशा नहीं करनी चाहिए। कहावत भी है - 

बोया पेड़ बबूल का ,आम कहाँ से होय। 

अंगुलिमाल जब तक हिंसा के कर्मों में लगे रहे तब तक उन्हें शान्ति नहीं मिली। हिंसा छोड़कर ही उन्हें सुख शान्ति का अनुभव हुआ। 

परोपकार ही मानव धर्म 

अतः कहने का तात्पर्य यह है कि हमें सदैव अच्छे कर्म करने चाहिए। यदि हमारे कर्म ही अच्छे न होंगे तो उनका फल कैसे अच्छा होगा। जो व्यक्ति दूसरों को कष्ट पहुँचाता है उसे स्वयं भी कष्ट उठाने पड़ते हैं। हमें सदैव दूसरों का उपकार करना चाहिए और उस कर्म के फल की आशा नहीं करनी चाहिए। क्योंकि फल तो एक न एक  दिन अवश्य मिलेगा। केवल  सत्कर्म करना ही मनुष्य का उद्देश्य होना चाहिए। 

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