अपने साथ घटित कोई मजेदार घटना बताओ सबसे मजेदार घटना पर हिन्दी में निबंध Essay on The Funny Incident Short Essay on The Funny Incident The Funny Incide
सबसे मजेदार घटना पर हिन्दी में निबंध
अपने साथ घटित कोई मजेदार घटना बताओ सबसे मजेदार घटना पर हिन्दी में निबंध Essay on The Funny Incident Short Essay on The Funny Incident The Funny Incident in life essay अपने बचपन की मनमोहक घटना - मानव जीवन सुख दुःख ,हानि-लाभ ,यश -अपयश आदि से पूर्ण हैं। जन्म से मृत्यु तक संघर्षपूर्ण इस मानव जीवन में अनेक घटनाएँ घटित होती रहती है। ये दुखद और सुखद दोनों प्रकार की होती है। अधिकतर घटनाओं को मानव भूल जाता है ,किन्तु कुछ घटनाएँ ऐसी होती हैं ,जिन्हें समय की आँधी और तूफ़ान भी भूला नहीं पाते हैं। इस प्रकार दुखद घटनाएँ यदि विषाद और निराशा की सृष्टि करती हैं ,तो सुखद घटनाएँ मन को एक अद्भूत आह्लाद से भर देती है। ऐसी एक घटना का वर्णन में मैं यहाँ कर रहा हूँ।
जन्मदिन पर निमंत्रण
घटना आज से लगभग २ वर्ष पुरानी है। मार्च का अंतिम दिन था। विद्यालय का अवकाश था। मैं कुछ उदास स्थिति में घर में बैठा था। अचानक डाकिया मेरे नाम का एक पत्र द्वार पर लगी पत्र पेटिका में दाल गया। उत्सुकतावश ,पेटिका से बाहर निकालकर पढ़ा। दूसरे दिन जन्म दिवस समारोह का निमंत्रण था। आग्रह कुछ अधिक ही था और दूसरे दिन शाम का समय खाली था। अतः कार्यक्रम बनाकर शाम के समय एक बड़ा -सा उपहार लेकर हम उनके घर पहुंचे। यहाँ सब कुछ सामान्य सा ही दिखाई दिया। अब पहुँच तो गए ही थे। विचार किया कि जो होगा देखा जाएगा। उत्सुकता दबाये इंतज़ार करने लगे। परिवार के सभी सदस्य अचानक मेरे आगमन से कुछ आश्चर्यचकित थे ,क्योंकि अनेक बार आग्रह किये जाने पर भी मैं वहाँ नहीं जाता था। औपचारिकता के बाद भी जब मुझे जन्म दिवस मनाये जाने पर भी मैं वहाँ नहीं जाता था। तो मैंने पूछा कि आज किसी के जन्म दिवस मनाये जाने की सूचना मिली थी। जिसके कोई लक्षण अथवा तैयारी नहीं है। तब जाकर बात खुली। उसी समय सम्बन्धी की पुत्री चाय के साथ मिठाई और नमकीन आदि लेकर आई। मेरे आग्रह पर उस बालिका के पिताजी भी शामिल हो गए। मैंने ध्यान दिया कि वे कुछ अधिक कृत्रिम गंभीरता का आवरण लगाकर आचरण कर रहे थे। उनकी माँ के लिए कहा गया कि वे किसी सहेली से मिलने गयी है। मुझे यह कुछ बनावटी तो मालूम हुआ किन्तु मैं शांत रहा।
अप्रैल फूल बनाया तो उनको गुस्सा आया
चाय का पहला घूँट लेते ही मन कड़वाहट और कैसैलेपन से भर गया। वे पिता पुत्री मेरे चेहरे के भाव बड़े ध्यान से पढ़ रहे थे। कप रखकर मैंने बिस्कुट उठाया , किन्तु यह क्या ? वह पत्थर के समान कठोर। अब तक मैं भी सब कुछ समझकर नासमझ बनने का अभिनय कर रहा था। अंत में मैंने विदा माँगी। मैंने उपहार उस बालिका को भेंट किया और चलने वाला था कि बालिका की माताजी मुस्कराती हुई सामने आई। जब उन्हें ज्ञात हुआ कि मुझे किस प्रकार मूर्ख बनाया गया है ,तो वे बच्चों तथा उनके पापा को बिगड़ी। तभी उपहार का पैकेट खोलने पर उसमें असीमित तहों के बाद पुर्जा था -
अप्रैल फूल बनाया तो उनको गुस्सा आया।
तो मेरा क्या कसूर जमाने का कसूर जिसने दस्तूर बनाया।
अब पासा पलट गया। मुझे मूर्ख बनाने वाले स्वयं मूर्ख बन गए। बाद में अच्छे नास्ते और गप्पों के बाद वापस लौटा। मैं यह घटना आज भी नहीं भुला पाता हूँ।
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