सुभान खाँ कहानी का सारांश उद्देश्य प्रश्न उत्तर

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सुभान खाँ कहानी - रामवृक्ष बेनीपुरी


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सुभान खाँ कहानी का सारांश

रामवृक्ष बेनीपुरी बहुमुखी प्रतिभासंपन्न साहित्यकार रहे हैं। उन्होंने कहानी ,नाटक ,उपन्यास ,संस्मरण ,निबंध आदि अनेक गद्य विधाओं में रचनाएँ की हैं। सुभान खां कहानी के माध्यम से लेखक ने यह बताने का प्रयास किया है कि मानवता ही सब धर्मों में श्रेष्ठ है ,मानवता की रक्षा करना ही सबसे बड़ा धर्म है जो इसकी रक्षा करता है ,वही सबसे बड़ा धर्मात्मा है।

सुभान खाँ  नामक पाठ में एक बच्चे के भोले भाले स्वभाव का बड़ा मर्मस्पर्शी चित्रण हुआ है। बच्चा धार्मिक संकीर्णताओं से परे सुभान दादा की प्यार भरी बातों को ह्रदय में संजोये रखता है। सुभान दादा और बच्चा आपस में अपनी खुशियाँ बाँटते हैं और एक दूसरे के त्योहारों को मिलकर मनाते हैं। ईद - बकरीद को न सुभान दादा उन्हें भूलते हैं और न ही होली दिवाली को लेखक उन्हें भूलता हैं। पूरी कहानी में सच्चाई ,ईमानदारी ,परिश्रम ,कर्तव्यपालन ,प्रेम और विश्वास को महत्व दिया गया है और यह बताने का भी सफल प्रयास किया गया है कि मानव के उपयुक्त गुण ही मानव जीवन को सरस व सार्थक बनाते हैं। सभी धर्म समान हैं और सभी धर्म मानवता के विकास के साधन होते हैं। 

सुभान खाँ कहानी का सारांश उद्देश्य प्रश्न उत्तर
बच्चा सुभान दादा से ईश्वर सम्बन्धी प्रश्न पूछता है और वह बड़ी कुशलता से उसकी जिज्ञासा शांत करते हैं। वह हज पर जाना चाहते हैं तो बच्चा उनसे छुहारे लाने के लिए कहता है। लेखक अब बड़ा हो गया है। सुभान दादा हज करके आ गए हैं लेकिन छुहारे वाली बात नहीं भूलते हैं। जब वह लेखक की सौगात लेकर उसके घर पहुँचे तो उस समय उनमें अपार आनंद छलक रहा था ,लेकिन लेखक अनुभाव करता है कि बड़े होने पर उसमें बचपन की वह मासूमियत और पवित्रता नहीं रह गयी थी। 

पाठ के अंत में पाठक सोचने को विवश हो जाता है कि बड़े होकर उसमें वह मानवीय गुण ,कोमलता व पवित्रता क्यों नहीं रह जाती है ? क्यों हम धार्मिक संकीर्णता में बंधकर एक दूसरे के धर्म के प्रति आदरभाव नहीं रखते हैं। इस कहानी में लेखक ने उस समय का बड़ा मार्मिक चित्रण किया है। जब कुछ धार्मिक कट्टरपंथीयों की हिन्दुओं और मुसलामानों को तोड़ने की कोशिश बेकार हो जाती है। सुभान खान के प्रयास से वे पुनः आत्मीयता के बंधन में बंध जाते हैं।  

बेनीपुरी जी की शैली प्रवाहमयी है। कहानी की भाषा सरल व ओजपूर्ण हैं। उनकी चित्रात्मकता के गुण ने उनकी भावाभिव्यक्ति को जीवंत और सरस बना दिया है। सम्पूर्ण कहानी सुभान खान के इर्द -गिर्द घूमती है। कथोपकथन प्रभावी है तथा इसका कथानक सशक्त है जिसका सन्देश उदात्त है। कहानी साम्प्रदायिक बंधुत्व की भावना को जगाने में पूर्णतः सक्षम है। सुभान खान का चरित्र पाठकों के मन पर एक अमिट छाप छोड़ देता है। 

सुभान खाँ कहानी का उद्देश्य

सुभान खाँ  कहानी एक साम्प्रदायिक सद्भावना को जागृत करने वाली सफल कहानी है। सुभान खा के चरित्र के द्वारा लेखक ने बताया है कि मनुष्यता सबसे बड़ा धर्म है ,मानवता की सब धर्मों का मूल है। अपने अपने धर्म की दुहाई देते रहना ,उसका ढ़ोल पीटते रहना सब व्यर्थ है। यदि कोई मानवीय मूल्यों की रक्षा करता है ,मनुष्यता के गुणों का आदर करता है वही सच्चा धार्मिक कहलाता है। ईमानदारी ,सच्चाई ,परिश्रम ,कर्तव्य - पालन ,प्रेम और एक दूसरे के धर्म के प्रति आस्था आदि गुण जीवन को सरस व सार्थक बना देते हैं। मनुष्य को धर्म के नाम पर न लड़कर आपस में आत्मीय सम्बन्ध रखने चाहिए। यही इस पाठ का उद्देश्य है और सुभान खान के चरित्र द्वारा लेखक अपने उद्देश्य की पूर्ति में सफल रहा है।

कहानी के प्रमुख पात्र सुभान खान के माध्यम से लेखक ने एक आदर्श धार्मिक व्यक्तित्व को दर्शाया है। वह मुसलमान होते हुए भी हिन्दू बालक के साथ मिलकर उसके धार्मिक त्योहारों को उत्साह से मनाते हैं। दादा जी जब हज पर जाते हैं तो उसके लिए सौगात लेकर आते हैं और बालक उसकी प्रतीक्षा करता रहता है। बालक भी दादा के गाँव जाकर उनके त्योहारों में सम्मिलित होता है। सुभान खान एक अच्छे राजमिस्त्री हैं। पहले वह गाँव में मामा के मंदिर का निर्माण करते हैं तत्पश्चात मस्जिद बनवाते हैं। उनके मन में दूसरे धर्म के लिए कोई दुर्भावना नहीं है। वह हिन्दू मुस्लिम दंगों को रोकने के लिए अपनी क़ुरबानी भी देने के को तैयार हो जाते हैं। इस प्रकार लेखक इस कहानी के माध्यम से साम्प्रदायिक एकता व सद्भाव को दर्शाने में सफल हुआ है। 

सुभान खाँ कहानी शीर्षक की सार्थकता 

रामवृक्ष बेनीपुरी की सुभान खाँ  एक श्रेष्ठ कहानी है ,जिसमें लेखक ने ओजपूर्ण ,प्रवाहमयी शैली का प्रयोग करते हुए अपनी भावाभिव्यक्ति की है। इस कहानी का नाम सुभान खान एकदम सार्थक व सटीक है। सुभान खान का प्रमुख पात्र है जो प्रारम्भ से लेकर अंत तक कहानी में छाया हुआ है। प्रारंभ में ही देखते हैं कि वह बालक के कई जटिल प्रश्नों का आसानी से समाधान कर देता है और बालक के ह्रदय में स्थान बना लेता है। सुभान खान ही इस कहानी का केंद्रबिंदु भी है। लेखक अपनी इस कहानी के द्वारा हिन्दू मुसलमान साम्प्रदायिक एकता को दिखाना चाहता है। सुभान खान नामक पात्र इस चरित्र का निर्वाह करता है। वह एक हिन्दू बालक को ईश्वर की सर्वव्यापकता के बारे में बताता है। उसके साथ रहकर बालक हिन्दू व मुसलामानों के त्योहारों को एक समान भाव से मनाता है। सुभान खान स्वयं भी दोनों धर्मों के त्योहारों को एक समान भाव से मनाता है। उसके मन में किसी एक धर्म के लिए प्रेम व दूसरे के लिए घृणा नहीं है। 

कहानी के अंत में सुभान खान की जीत होती है ,उनके आदर्शों की जीत होती है। अतः उनके नाम पर इस पाठ का नाम एकदम सार्थक है। शीर्षक कहीं से भी थोपा हुआ नहीं लगता है ,पाठक उसके चरित्र में ही डूबकर रह जाता है। 


सुभान खाँ का चरित्र चित्रण 

सुभान खाँ  कहानी में प्रमुख पात्र हैं। आपके भीतर मनुष्यता का गुण कूट - कूट कर भरा हुआ है। सुभान खान राजमित्री का काम करते हैं। वे अपनी ईमानदारी के कारण इलाके भर में प्रसिद्ध थे। एक बुजुर्ग की हैसियत से उनका बड़ा मान था। बड़े बड़े झगड़ों की पंचायतों में हिन्दू मुसलमान उन्हें मुकर्रर करते। उनकी ईमानदारी की कुछ ऐसी ही धाक थी। उनमें आदर्श गुण थे। जब वह आर्थिक रूप से संपन्न हो गए तब भी उनमें वही विनम्रता व सज्जनता थी। वह शिष्टाचार निभाना जानते थे। उन्हें मेहमाननवाजी आता था। जब मस्जिद का उद्घाटन हुआ तो हिन्दू मुसलमान दोनों ने ही उनकी मेहमाननवाजी को बहुत सराहा। उन्होंने अपने जीवन में सदैव कर्तव्यनिष्ठा ,परिश्रम ,प्रेम ,भाईचारे की भावना ,सहृदयता को स्थान दिया था। यही पाठ उन्होंने लोगों को दिया है। इन्ही गुणों के कारण उनकी बुगुर्जों में इज्जत थी। कहानी में गाँव में हिन्दू मुसलमान का दंगा भड़कने वाला है। मुसलमान सुभान खान की मस्जिद में गाय की क़ुरबानी देने वाले हैं। जब सुभान खान को इस बात का पता चलता है तो वे कहते हैं कि - नहीं ,वह ऐसा कदापि नहीं होने देंगे। " वह सबको चेतावनी देते हैं यदि कोई क़ुरबानी के लिए भीतर जाएगा तो उसे मेरी लाश पर से गुजरना होगा और वह दरवाजे पर ही बैठ जाते हैं। उनके हाथ में माला और होंठों पर बुदबुदाहट है। उनकी आँखों से लगातार अश्रु धारा बह रही है। वह साक्षात देवता बने बैठे दिखाई दे रहे हैं। संगमरमर की मूर्ति के समान उनकी देह बड़ी तेजमयी प्रतीत हो रही है। उन्ही के कारण हिन्दुओं और मुसलामानों में दंगा करवाने की हर चेष्टा व्यर्थ हो जाती है। लोग आत्मीयता के बंधन में बंध जाते हैं।


सुभान खाँ पाठ के प्रश्न उत्तर

प्र. सुभान दादा कर्ज के पैसे से क्यों नहीं जाना चाहते थे? 
उत्तर: इस्लाम और कुरान के अनुसार कर्ज गुनाह है। कर्ज लेने और देने वालों को सबाब (पुण्य) नहीं मिलता है। सुभान खाँ जियारत पर जाना चाहते हैं, वहाँ जाने का मूल उद्देश्य ही पुण्य लाभ प्राप्त करना है। लेकिन कर्ज लेकर जियारत पर जाना अल्लाह की नजर में पाप ही होगा, अतः वे कर्ज लेकर जियारत पर नहीं जाना चाहते हैं। जियारत उनके लिए मात्र शौक नहीं, जिसे किसी भी तरह पूरी की जाए, यह तो उनके लिए ईश्वर के प्रति सच्ची श्रद्धा है, जिसे समस्त नैतिक आदर्शों को मानते हुए ही करना है।
 
प्र. सुभान दादा की शारीरिक संरचना कैसी है? 
उत्तर : शारीरिक रूप से सुभान दादा काफी हृष्ट-पुष्ट और सुगठित शरीर के मालिक हैं। कद में उनका शरीर लंबा और आकार में चौड़ा है। मेहनत-मशक्कत द्वारा ही उनके शरीर का यह रूप आकार प्राप्त किया है। उनकी ललाट चौड़ी है, जिसके ऊपर घनी, बड़ी और उभरी हुई भौहें हैं। आँखों के कोनों में लाली और पुतलियों में नीलापन है। उनकी नाक नुकीली है और चेहरे पर लंबी घनी दाढ़ी, जो उनके छाती तक को स्पर्श करती है। कुल मिलाकर उनका सुंदर शरीर और आकर्षक नाक-नक्श उनके व्यक्तित्व को भव्य बनाता है।

प्र. बचपन में मुहर्रम के दिन लेखक को क्या-क्या करना पड़ता था? 
उत्तर : लेखक को बालक के रूप में प्राप्त करने के लिए उनकी माँ ने बहुत से देवी-देवताओं से मन्नत माँगी थी, पूरा करने जिनमें से एक मन्नत हुसैन साहब से भी की थी। लेखक के जन्म के बाद उस मन्नत के कर्मकाण्ड को के लिए लेखक को प्रति वर्ष मुहर्रम के दिन मुसलमान बच्चों की तरह ताजिये के चारों ओर रंगीन छड़ी लेकर कूदना पड़ता था। वह सुभान दादा के साथ उनके घर जाता। उसे नये कपड़े पहनाये जाते, गले में बद्धी पहनाई जाती, कमर में घंटी बाँधी जाती और हाथों में रंगीन छड़ी दी जाती थी। अन्य बच्चों के साथ कूदते हुए वह भी करबला तक जाता था। उछल-कूद कर तमाशे के आनंद के बाद मिठाइयाँ खाता और घर लौट आता था।
 
प्र. सुभान दादा का क्या अरमान था? वह कैसे पूर्ण हुआ? 
उत्तर : सुभान दादा का अरमान गाँव में एक मस्जिद बनाने की थी। लेकिन आर्थिक तंगी के कारण वे मस्जिद बनाने के अपने अरमान को पूरा करने में असमर्थ थे। इसके बावजूद जीवन में मेहनत और पुण्य कर्म से वे कभी पीछे नहीं रहे। यही कारण था कि धीरे-धीरे घर की आर्थिक स्थिति में सुधार आया। इसके अलावा उन्होंने अपने बेटों को भी सही शिक्षा और ज्ञान दिया था, जिसके कारण उन्होंने भी खूब मेहनत किया और परिवार के आर्थिक हालात को मजबूत किया। इस प्रकार सुभान दादा के मेहनत और पुण्य कर्म ने मस्जिद बनाने के उनके अरमान को पूरा किया। इसके साथ ही अपने अच्छे व्यवहार और नेक चरित्र के कारण मस्जिद के लिए इमारती लकड़ी लेखक के मामा के घर से प्राप्त हो गई। 

प्र. सुभान दादा ने हिंदुओं का सत्कार कैसे किया? 
उत्तर : सुभान दादा ने मस्जिद के उद्घाटन के समय किसी भी प्रकार का भेदभाव न रखते हुए हिन्दुओं को भी इस समारोह में प्रेम से आमंत्रित किया। आयोजन में बुलाये गये हिन्दुओं के लिए उन्होंने अलग से हलवाई रखकर तरह-तरह की मिठाइयाँ बनवाई थी। सभी को बहुत ही भाईचारे के साथ मिठाइयाँ परोसी गई। इसके अलावा उन्होंने पान-इलाइची का भी प्रबंध किया था। उनकी मेहमानबाजी इतनी दमदार थी कि लोग उसे भूल नहीं पाये । 

प्र. इस पाठ की किन घटनाओं से साम्प्रदायिक एकता का पता चलता है? 
उत्तर : सुभान दादा और लेखक का परिवार अलग-अलग धर्मों से जुड़े थे। इसके बावजूद दोनों परिवार की घनिष्ठता ही सांप्रदायिक एकता का सबसे बड़ा उदाहरण है। सुभान दादा जब हज पर जाते हैं तो वर्षों बाद भी लेखक से किये अपने वादे को नहीं भूलते और उसके लिए छुआरे लाते हैं। लेखक के जन्म के लिए हुसैन से मन्नत माँगना या मन्नत पूरी होने पर प्रति वर्ष लेखक का अन्य बच्चों के साथ मुहर्रम के दिन रंगीन छड़ी लेकर ताजिये के चारों ओर घूमना धार्मिक एकता का नमूना है। इसके अलावा सुभान दादा का मस्जिद के उद्घाटन समय सभी हिंदुओं को आमंत्रित कर उनका स्वागत-सत्कार करना भी सांप्रदायिक सद्भाव को दर्शाता है। लेखक का परिवार होली-दीवाली में एवं सुभान खाँ ईद-बकरीद में एक-दूसरे को आमंत्रित करते थे ।
 
प्र. सुभान दादा का चरित्र-चित्रण संक्षेप में कीजिए । 
उत्तर : सुभान दादा का चरित्र मानवीय आदर्श का उत्कृष्ट उदाहरण है। सुभान दादा एक मेहनतकश मजदूर है। मेहनत को वे अपना एक पुण्य कर्म मानते हैं। अल्लाह के प्रति उसकी गहरी आस्था है और अल्लाह को स्मरण करना ही उनका पवित्र कर्तव्य है। वे इस्लाम के वसूलों पर पूर्ण विश्वास रखते हैं, जिसके कारण वे कर्ज को अपराध मानते हैं। वे सांप्रदायिक एकता और सामंजस्य के पुजारी हैं। अतः वे सभी धर्म के लोगों का आदर करते हैं। उनके भीतर दया और प्रेम का सागर है। बच्चों से उनका अतिशय लगाव है। लेखक का धर्म उनके धर्म से अलग है। लेकिन प्रेम के कारण ही वर्षों बाद भी हज से लौटते वक्त लेखक के लिए छुआरे लाना नहीं भूलते हैं। कुल मिलाकर श्रम-निष्ठा, कर्म-निष्ठा, धर्म निष्ठा, प्रेम, दया, ईमानदारी, सामाजिक जुड़ाव, धार्मिक सद्भाव आदि सुभान खाँ के मूल चारित्रिक गुण हैं।
 
प्र. “ख्वाहिश हुई, आज फिर मैं बच्चा हो पाता।” का भाव स्पष्ट करें। 
उत्तर : लेखक सुभान दादा से बचपन में बहुत ही मासूमियत और अपनेपन के साथ मिलता था, वह उनके कंधे पर चढ़कर खेलता और अपने मासूम सवालों से सुभान खाँ का दिल जीत लेता था। उसी समय सुभान खाँ ने अरब से उसके लिए छुआरे का सौगात लाने का वादा किया था। वर्षों बाद सुभान खाँ को हज पर जाने का मौका मिला और लौटते वक्त लेखक के लिए छुआरे लेते आये । यद्यपि समय बदल चुका था, लेकिन जिस आत्मीयता के साथ छुआरे की सौगात दी, लेखक का मन प्रेम और आनंद से भर गया। उसका मन तड़पता है कि उसके अंदर फिर से बचपन की वह मासूमियत आ जाए और चिल्लाकर अपने भीतर की खुशी को बयान कर दे, लेकिन नैतिक जीवन के शिष्टाचार के कारण वह चुप रहा। केवल आँसू के बूँदों को दादा के चरणों पर समर्पित कर अपनी मासूमियत को जता दिया ।

प्र. काम और अल्लाह-ये ही दो चीजें संसार में उनके लिए सबसे प्यारी हैं” का भावार्थ स्पष्ट करें। 
उत्तर : सुभान खाँ आदर्श मानव चरित्र के उत्कृष्ट उदाहरण थे। उनके लिए दो ही कार्य सबसे महत्त्वपूर्ण थे-अपना काम और अल्लाह की इबादत । वे इस्लाम के पक्के अनुयायी थे, जिसके अनुसार वे अपने कर्तव्य के प्रति एकनिष्ठ थे। पेशे से सुभान खाँ राजमिस्त्री थे और अपने काम में जरा भी कोताही नहीं बरतते थे । वे काम को अपना पवित्र कर्तव्य मानते थे। इसी के साथ अल्लाह के प्रति उनकी गहरी आस्था थी और वे पूरे नियम से अल्लाह की इबादत करते थे। अपनी श्रद्धा-भक्ति के कारण ही उनके जीवन की दो इच्छाएँ थीं-हज की यात्रा और गाँव में मस्जिद का निर्माण। अपने मेहनत और आस्था के बल पर उन्होंने अपनी दोनों पावन इच्छाएँ पूरी कीं। 

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