ईमानदारी का महत्व | हिंदी कहानी

SHARE:

ईमानदारी का महत्व अग्रज क़िराने की दुकान पर जाने के लिये निकला। उसे शक्कर लेनी थी। जैसे ही चाय बनाने के लिये उसने शक्कर के डिब्बे की तरफ़ हाथ बढ़ाया,

ईमानदारी का महत्व


ग्रज क़िराने की दुकान पर जाने के लिये निकला। उसे शक्कर लेनी थी। जैसे ही चाय बनाने के लिये उसने शक्कर के डिब्बे की तरफ़ हाथ बढ़ाया, तो देखा, उसमें शक्कर नहीं थी।

"शिट्!" उसके मुँह-से निकला और उसने इस बात के लिये ख़ुद को कोसा, कि उसने पिछली रात को ही शक्कर ख़रीदकर क्यों नहीं रख ली थी? पर उसे याद आया, पिछली रात उसने आख़िरी बार ग्यारह बजे ही चाय बनायी थी और उसने शक्कर लेने को कल पर छोड़ दिया था; हालाँकि उसे ये भी याद आया, वो शक्कर ख़त्म होने के थोड़ा पहले भी दुकान जा कर ले सकता था, पर अपने आलस की वजह से गया नहीं।

ये ही सब सोचते-सोचते वो बैग्, पर्स् और घर की चाबी उठाकर पास की क़िराने की दुकान जाने के लिये निकला। दुकान पहुँचकर उसने कहा,-"अँकल्, एक किलो शक्कर दे दीजिए।"

दुकानवाले ने शक्कर पैक् करके दे दी। अग्रज ने पर्स् निकालते हुये पूछा,-"कितने हुए, अँकल्?"

दुकानवाले ने अपने व्यंग्यात्मक अन्दाज़ में जवाब दिया,-"वोइ! तुम जानते तो होऽ!"

"मैं भूल गया।" अग्रज थोड़ा शर्मिन्दा होकर मुस्कुराते हुये बोला।

"इक्तालीस रुपए।" उसने बताया। 

अग्रज ने पर्स् से पचास का नोट् निकालकर उसे दे दिया।

तभी दुकान में सात-आठ साल का एक ग़रीब बच्चा आया। उसने कहा,-"एक्रुपय बाली टाफ़ी देना।"

दुकानवाले ने अग्रज को दस का नोट् थमाते हुये टॉफ़ीज़् के डिब्बे की तरफ़ हाथ बढ़ाया और बच्चे से पूछा,-"कित्ती चइए?"

"दोऽऽ।" बच्चे ने कहा।

इस बीच अग्रज ने दस के नोट् को थोड़ी उलझन के साथ देखा; फिर उसने दुकानवाले की तरफ़ देखा, जो कि बच्चे को उसकी पसन्द की टॉफ़ीज़् देने में व्यस्त था। 

ईमानदारी का महत्व | हिंदी कहानी
वो अपने पर्स् से एक रुपये का सिक्का निकालकर दुकानवाले को देते हुये बोला,-"अँकल्, आपने मुझे एक रुपए ज़्यादा दे दिए! ये लीजिए एक रुपए वापिस!"

दुकानवाले ने हल्के-से चौंककर उसको देखा, वो बच्चा भी उसको देखने लगा। दुकानवाले ने अपनी ग़लती महसूस की और बग़ैर कुछ कहे सिक्के को अपने ड्रॉअर् में डाल लिया। वो अग्रज की आदत को जानता था और इसके लिये मन-ही-मन उसका सम्मान भी करता था।

इसके बाद अग्रज शक्कर लेकर चला गया। दुकानवाला भी उस बच्चे को टॉफ़ीज़् देकर फ़ुर्सत हुआ और ताना मारते हुये बोला,-"देखा? इसे कहते हैं ईमानदारी! ईमानदार बनो, ईमानदाऽर!"

वो बच्चा कुछ नहीं बोला। बस दुकानवाले को देखता रहा और चुपचाप-से उसे दो रुपये देकर चला गया।

साल बीते। वो बच्चा अब एक सत्रह-अट्ठारह साल का लड़का बन चुका था और अपनी पान की दुकान चलाता था। इस लड़के का नाम कमल था।

एक रात बारिश के समय अग्रज कमल की दुकान पर आया। अग्रज जल्दी में था और अपनी ही सोचों में मशग़ूल था। उसने कमल से कहा,-"भैया, एक दस रुपए वाली सिगरैट् देना।"

"सर्, कौन-सी?" कमल ने पूछा।

"कोई-सी-भी दे दो। जो मुझे चाहिए, वो तो मिल ही नहीं रही है और सारी दुकानें भी बन्द हो गई हैं। अच्छा हुआ जो आपकी दुकान खुली है! थैञ्क् यू!"

कमल ने औपचारिक मुस्कान के साथ उसे सिगरैट् निकालकर दे दी। अग्रज ने पर्स् निकालकर सौ का नोट् काउण्टर् पर रखा और कुछ सोचते हुये अपनी पीठ पर टँगा बैग् उतारा और सिगरैट् उठाकर बैग् के 
पॉकिट् की चेन् खोलकर उसमें डाल दी; फिर उसने बैग् अपनी पीठ पर टाँगा, चाबी निकाली और जाने लगा।

"सर्?"

यकायक पीछे-से कमल ने आवाज़ लगायी। 

अग्रज ने पलटकर देखा। कमल ने हाथ में नब्बे रुपये पकड़े हुये थे। उसने विनम्रतापूर्वक कहा,-"सर्, पैसे तो ले जाइए!"

अग्रज ने उलझन-भरे स्वर में पूछा,-"मैंने आपको सौ रुपए दिए थे क्या?"

"हाँ, सर्!"

"ओह-ह-ह, सॉरी!" अग्रज शरमाहट-भरी मुस्कुराहट के साथ बोला,-"मुझे लगा मैंने आपको दस का नोट् दिया था! थैञ्क् यू!" और इसके साथ ही उसने जल्दी-से ये भी कह दिया,-"आप बहुत ईमानदार हैं!"

कमल ने सौम्यतापूर्वक कहा,-"सर्, आपइ से सीखा है, सर्!"

"मुझसे?" अग्रज ने चौंकते हुये पूछा।

"हाँ, सर्!"

अग्रज के चेहरे पर नासमझी के भाव थे। उसके मुँह-से बस इतना ही निकला,-"अऽऽऽऽऽ"

तब कमल ने कहा,-"सर्, एक बार याद है
वो दीपक किराना के यहाँ आप कुछ सामान खरीदने आए थे और मैं भी तब उसके यहाँ कुछ सामान लेने आया था?! कई साल पहले की बात है, सर्!?"

अग्रज ने याद करने की कोशिश की, मग़र उसे कुछ याद नहीं आया। उसने बस इतना ही कहा,-"आप वहींऽ दीपक किराना के पास ही रहते हैं क्या?"

"हाँ, सर्! आप शायद पहचान नहीं पा रहे होंगे! तब मैं बहुत छोटा था! तो उस दिन वो दुकानवाले अँकल् ने आपको एक रुपए ज्यादा वापस कर दिए थे तो आपने उनको वो लौटा दिए थे!" कमल ने अपनी बात पूरी की।

"हाँऽऽऽऽऽऽऽ अबऽऽऽ हो सकता है। मुझे तो याद नहीं।" अग्रज ने दिमाग़ पर ज़ोर डालते हुये कहा।

"बस आपकी वोइ बात दिल को छू गई, सर्! उसके बाद मैं भी जित्ता हो सके अपनी लाइफ़् में ईमानदार बनने की कोशिश करता हूँ आपइ के जैसे!" कमल चहकते हुये बोला।

"ओह-ह-ह! अच्छा-ह-ह!" अग्रज ने आश्चर्यमिश्रित मुस्कान के साथ कहा।

उसे लगा, उसे कुछ और भी कहना चाहिये। वो बोला,-"अच्छा है, अच्छा है! मुझे खुशी है कि मेरे कारण आपको कुछ अच्छा सीखने को मिला!"

इसके बाद अग्रज कमल से अपने पैसे लेकर चला गया।

शिक्षा: इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है, कि हमें जीवन में ईमानदारी-से व्यवहार करना चाहिये; क्योंकि हम नहीं जानते, कि अपने व्यवहार से हम किसे प्रेरित कर रहे हों?



- मयूर चौबे, 
7987379787

COMMENTS

Leave a Reply

You may also like this -

Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy बिषय - तालिका