कवि सेनापति का जीवन परिचय

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कवि सेनापति का जीवन परिचय रीतिकालीन कवि हिन्दी साहित्य Kavi Senapati in hindi kavi Senapati ka jivan parichay in hindi kavi Senapati ka jivan parichay

कवि सेनापति का जीवन परिचय


वि सेनापति का जीवन परिचय रीतिकालीन कवि हिन्दी साहित्य Kavi Senapati in hindi kavi Senapati ka jivan parichay in hindi kavi Senapati ka jivan parichay kavi Senapati biography Biography of kavi Senapati kavi Senapati biography in hindi - सेनापति भक्तिकाल के प्रमुख कवि थे। कविवर सेनापति का जन्म १५८४ अथवा १५८८ में माना जाता है।  इस प्रकार कवि भक्तिकाल के अंतिम चरण में तथा रीतिकाल के प्रारम्भिक चरण में पड़ता है।  सेनापति के काव्य में शायद इसीलिए भक्ति तथा रीति की प्रवृत्तियां एक साथ दिखायी पड़ती है।  अन्य मध्यकालीन कवियों की तरह सेनापति के जीवन के विषय में भी विशेष जानकारी नहीं मिलती है। सेनापति की मुख्य रचना कवित्त रत्नाकर में उनका संक्षिप्त जीवन परिचय मिलता है।
 
कवि सेनापति का जीवन परिचय
कवित्त रत्नाकर में कवि ने अपने वंश का परिचय दिया है।उनके पिता का नाम गंगाधर तथा पितामह का नाम परशुराम दीक्षित था।सेनापति की शिक्षा - दीक्षा हीरामणि दीक्षित के अंतर्गत संपन्न हुई।सेनापति कवि का वास्तविक नाम प्रतीत नहीं होता है ,यह उनका उपनाम रहा होगा।आप के वंशज गंगा के किनारे अनुपम बस्ती के रहने वाले थे। कुछ विद्वानों का यह भी अनुमान है कि उनका सम्बन्ध मुसलमानी दरबार से था। रामरसायन के एक छंद से यह कथन की पुष्टि होती है।सेनापति किस मुसलमान शासक के यहाँ नौकर थे यह स्पष्ट नहीं है।  जहाँगीर के शासन काल में बुलंदशहर के अधिकाँश बडगुजर राजाओं ने मुसलमान धर्म स्वीकार कर लिया था।  छतारी , दानापुर ,धरमपुर आदि के शासक इन्ही बडगुजरों के संतान थे।  संभवतः सेनापति इन्ही रियासतों में से किसी एक दरबार में थे।  

सेनापति जी को अपने काव्य पर अभिमान था और वे अपने काव्य को सुरक्षित रखने के लिए चिंतित रहते थे।  वे कहते हैं कि लोग केवल दूसरे कवियों से भाव ही नहीं चुराते हैं बल्कि पूरे का पूरा कवित्त ही उड़ा देते हैं।उन्होंने कवित्त रत्नाकर जिस कवि को समर्पित किया उससे भी यह प्रार्थना की थी कि वह उनके काव्य को सुरक्षित रखे।  सेनापति स्वयं भी इस बात के लिए सचेत रहते थे कि किसी कवि का भाव न चुराएँ और न ही किसी की नक़ल करें। अपने समकालीन कवियों के विषय में प्रायः उन्हें कोई बात नहीं कही है। उनका स्वाभिमान उनकी भक्तिपरक रचनाओं में भी झलकता है।  एक स्थान पर वे अपने आराध्य देव से कहते हैं कि यदि तुम यह कहो कि मैं अपने कर्मों द्वारा ही इस भवसागर से पार हो सकूँगा तो फिर मैं ही ब्रह्मा हूँ , तुम्हे सृष्टिकर्ता मानना व्यर्थ है।  

सेनापति की भक्ति भावना

सेनापति मुख्यतः रामभक्त कवि थे। यद्यपि उनकी रचनाओं में कृष्ण तथा शिव सम्बन्धी छंद भी है।  शिव सिंह सरोज में लिखा है कि "इन महाराज ने वृंदावन में क्षेत्र सन्यास लेकर सारी व्यस व्यतीत की है।"सेनापति किसी संप्रदाय विशेष में दीक्षित नहीं थे और उन के काव्य में विभिन्न देवी देवताओं और अवतारों की स्तुति मिलती है।  

जिस प्रकार सेनापति के प्रारम्भिक जीवन के विषय में कुछ पता नहीं चलता उसी प्रकार उनकी मृत्यु तिथि के विषय में कोई बात निश्चित रूप से पता नहीं चलता है। "कवित्त रत्नाकर " में इनका देहांत १६४९ लिखा गया है।  कवि की अंतिम रचनाओं से यह स्पष्ट होता है कि वे बहुत वृद्ध हो चुके हैं।  सेनापति का काव्य भक्तिकाल और रीतिकाल की संधि रेखा का काव्य है इसीलिए इसमें दोनों कालों की प्रवृत्तियों का मिलन दिखाई पड़ता है।  

सेनापति की रचनाएँ

सेनापति रचित दो रचनाओं का उल्लेख किया जाता है - 
  • काव्य कल्पद्रुम 
  • कवित्त रत्नाकर 
काव्य कल्पद्रुम अप्राय है इसीलिए उस में कैसी कविता थी इसका पता नहीं चल सका है।कवित्त रत्नाकर उनका प्रसिद्ध ग्रन्थ है।यह एक संग्रह ग्रन्थ है। इसमें पांच तरंगे अथवा खंड है।पुनरावृत्ति वाले छंदों को छोड़ देने पर कवित्त रत्नाकर में कुल मिलाकर ३८४ छंद है। कवित्त रत्नाकर एक संग्रह ग्रन्थ है इसीलिए इसमें संगृहीत रचनाओं में श्रृंगार , वीर , रौद्र ,भयानक तथा शांत रस सम्बन्धी रचनाएं पायी जाती है।  स्वभावतः अन्य रसों की अपेक्षा श्रृंगार रस का अधिक विस्तार है। श्रृंगार रस के आलंबन विभाव नायक - नायिका है। कवित्त रत्नाकर में स्वाभाविक वर्णन के जो थोड़े से अंश है वे सुन्दर बन पड़े हैं।  कवि का सौन्दर्य उत्तम तथा मौलिक है।  

सेनापति की भाषा शैली 

काव्य विषय की दृष्टि से भले ही सेनापति को भक्त कवियों के निकट रखा जा सके परन्तु काव्य शिल्प की दृष्टि से वे निश्चय ही रीतिकालीन कवियों के निकट पड़ते थे। अन्य श्रृंगारी कवियों की तरह सेनापति के काव्य में भी भाषा की सजावट का अतिरिक्त आग्रह दिखाई पड़ता है। उनकी भाषा का सौन्दर्य भावों की तन्मयता के फलस्वरूप न होकर अलंकारों की तड़क - भड़क के ही कारण है।  सेनापति ब्रजभाषा लिखने में दक्ष थे।उनके शिल्ष्ट कवित्तों पर विचार करते समय यह स्पष्ट हो जाता है कि साधारण शब्दों से वे सुन्दर रचना कर पाते थे।उनकी भाषा में संस्कृतनिष्ठ भाषा के नमूने भी मिल जाते हैं और उर्दू फ़ारसी मिश्रित भाषा के नमूने भी। सेनापति की भाषा में प्रसाद तथा ओज गुण प्रधानता से पाए जाते हैं। ओजपूर्ण भाषा लिखने में आप प्रयाप्त निपुण हैं।  आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी के शब्दों में - "इनकी कविता बहुत मर्मस्पर्शी और रचना बहुत ही प्रौढ़ और प्रांजल है। जैसे एक ओर इनमें पूरी भावुकता थी वैसे ही दूसरी ओर चमत्कार लाने की बड़ी निपुणता भी। "


विडियो के रूप में देखें - 


                                                                                                                                                     

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