स्नेह निर्झर बह गया है कविता का भावार्थ सारांश प्रश्न उत्तर

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स्नेह निर्झर बह गया है निराला कविता का सारांश मूल भाव प्रश्न उत्तर sneh nirjhar bah gya hai nirala स्नेह निर्झर बह गया है कविता का भावार्थ व्याख्या

स्नेह निर्झर बह गया है कविता निराला


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स्नेह निर्झर बह गया है कविता का भावार्थ व्याख्या 


स्नेह-निर्झर बह गया है !
रेत ज्यों तन रह गया है ।
आम की यह डाल जो सूखी दिखी,
कह रही है-"अब यहाँ पिक या शिखी
नहीं आते; पंक्ति मैं वह हूँ लिखी
नहीं जिसका अर्थ-
जीवन दह गया है । 

व्याख्या - प्रस्तुत कविता कवि निराला जी अपनी निराशा और हताशा को सूखते हुए झरने के रूपक द्वारा हमारे सम्मुख प्रस्तुत करते हैं । वे लिखते हैं कि मेरे जीवन मे बहने वाला प्रेम का झरना बह चुका है अर्थात अब सुख चुका है । मेरा स्नेहहीन जीवन अब झरने के किनारे बच रहे रेत के समान हो गया है । कवि अपने प्राण तत्व के क्षीण हो जाने पर शरीर को निरर्थक , शुष्क रेत के समान पाता है । कवि अपने जीवन की तुलना एक आम की सुखी डाली से करता हुआ कहता है कि आम की यह सूखी डाली जो मुझे दिख रही है ,वह मानों मुझ से कह रही है ," अब मेरे निकट कोयल या मोर नहीं आते हैं । मैं एक ऐसी पंक्ति के समान हूँ जो कि निरर्थक है । सच्चाई तो यह कह है कि मेरा जीवन व्यर्थ हो गया है । 

कविवर निराला अपने जीवन को तीन प्रतिकों द्वारा स्पष्ट करते हैं । पहला बिम्ब निर्झर का है । कवि के भीतर जो प्राण शक्ति थी वह बह चुकी है , अब उसका शरीर सूखे , निरर्थक रेत के समान रह गया है । दूसरा बिम्ब आम की सूखी टहनी का है ,जिसके पास कोयल या मोर नहीं आते हैं जोकि अकेली है । तीसरा बिम्ब एक निरर्थक पंक्ति है जिसका कोई अर्थ नहीं है । 

विशेष - प्रस्तुत पंक्तियों मे निम्नलिखित विशेषता है - 

  1. प्रस्तुत पंक्तियों मे निराला जी की गहन निराशा झलकती है । उनका अकेलापन और निरर्थकता का भाव भी झलकता है । 
  2. अपने छीजते ,नष्ट होते प्राण तत्व को कवि ने रेत का जो बिम्ब दिया है वह निस्सारता ,क्षणिकता और आकर्षण शून्यता का सूचक है । 
  3. मुक्तक छंद मे गीत की लय और अर्थ की लय का सुंदर समन्वय है । 

दिये हैं मैने जगत को फूल-फल,
किया है अपनी प्रतिभा से चकित-चल;
पर अनश्वर था सकल पल्लवित पल--
ठाट जीवन का वही
 जो ढह गया है ।

व्याख्या - प्रस्तुत पंक्तियों मे कविवर निराला जी अपने जीवन की असफलताओं के बावजूद यह विश्वास दिलाते हैं कि उसकी रचना शक्ति अभी भी जीवित है । कवि कहते हैं मैंने संसार को अपना सर्वस्व दिया है और उस दान मे ही उसका गौरव है । सूखी हुई आम की टहनी कहती है कि मैंने जीवन भर अपनी समृद्धि से संसार को चकित किया है और ललचाया है । कवि का मानना है कि आम की टहनी कहती है कि मेरे विकास के वे क्षण अमर थे , मेरी सृजनशीलता का वह समय अमर है । मेरे जीवन का ठाठ ढह गया है अर्थात ऊपरी चमक - दमक नष्ट हो गयी है परंतु मेरी भीतरी रचना शक्ति आज भी अमर है । 

विशेष - प्रस्तुत पंक्तियों मे निम्नलिखित विशेषता है - 
  1. मुक्तक छंद का सुंदर प्रयोग हुआ है । पल्लवित पल के पश्चात कवि का रुकना सार्थक है क्योंकि दूसरे ही क्षण वह जीवन के विनाश की बात करता है । 
  2. कवि का आत्म गौरव स्पष्ट लक्षित है । 
  3. कवि ने रूपक के माध्यम से बात स्पष्ट की है । फूल - फल और चकित चल मे अनुप्रास अलंकार है । 


स्नेह निर्झर बह गया है कविता का भावार्थ सारांश प्रश्न उत्तर
अब नहीं आती पुलिन पर प्रियतमा,
श्याम तृण पर बैठने को निरुपमा ।
बह रही है हृदय पर केवल अमा;
मै अलक्षित हूँ; यही
कवि कह गया है ।

व्याख्या - कवि प्रस्तुत पंक्तियों मे निराशा व्यक्त करता हुआ कहता है कि अब कोई प्रेयसी नदी के किनारे मेरी प्रतीक्षा नहीं करती अर्थात अब किसी को मेरा इंतज़ार नहीं रहता है । कोई भी अद्वितीय सुंदरी अब हरी भरी घास पर बैठकर मेरी प्रतीक्षा नहीं करती है । कवि कहता है कि अब तो मेरे हृदय पर अमावस का अंधकार छाया हुआ है अर्थात मैं घने अंधकार मे डूबा हुआ हूँ । वह अपनी वास्तविक पीड़ा को व्यक्त करता हुआ कहता है कि मैं जीवन के इस मोड पर आकार पूरी तरह अकेला पड़ गया हूँ ,उपेक्षित हो गया हूँ । कवि को इस बात का दुख है कि जिस संसार को उसने इतना कुछ दिया है वही संसार उसे पूरी तरह भुला चुका है । संसार द्वारा दी गयी उपेक्षा ने ही कवि को सर्वाधिक आहत किया है । 


विशेष - प्रस्तुत पंक्तियों मे निम्नलिखित विशेषता है - 
  1. उपयुक्त पंक्तियों मे कविवर निराला ने अपनी निराशा व्यक्त की है । अंधकार का छाना तो सुना था , बहना नहीं । यहाँ अंधकार की परते इतनी गहरी हैं कि वह पिघल कर बह निकला है । 
  2. कवि का अकेलापन ही उसकी व्यथा का मूल कारण है । 
  3. प्रस्तुत गीत मे विषाद और संतोष ,निराशा और आत्म गौरव के विरोधी स्वर एक साथ विद्यमान है । 
  4. मुक्तक छ्ंद का सुंदर प्रयोग किया गया है । 

स्नेह निर्झर बह गया है कविता का सारांश मूल भाव 

स्नेह निर्झर बह गया कविता सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी की प्रसिद्ध कविता है । आपने कविता मे अपनी आंतरिक
महाकवि निराला
शक्ति ,ऊर्जा अथवा प्राण शक्ति के धीरे - धीरे समाप्त होने की करुण कहानी कही है । जिस प्रकार किसी जल स्त्रोत के सूख जाने पर उसके स्थान पर रेत मात्र रह जाता है उसी प्रकार कवि को लगता है कि उसके जीवन से स्नेह का स्रोत सूख जाने पर उस का जीवन नीरस ,शुष्क ,निरर्थक ,अनाकर्षक रेत के समान रह गया है । रेत यहाँ पर जीवन की असफलता व्यर्थता का सूचक बन गया है । 

कवि कहता है कि उनका जीवन एक अर्थहीन पंक्ति की तरह बन गया है । जिस प्रकार निरर्थक पंक्तियों की ओर कोई ध्यान नहीं देता है ,उसी प्रकार का निराला जी अपने को उपेक्षित पाते हैं । जीवन को निरर्थक पंक्ति से उपमित करना जीवन के निरर्थक बोध को गहराता है । कवि विपरीत परिस्थिति मे भी अपने आत्म - गौरव को भी नहीं भूल पाते हैं ।  एक ओर उन्हे लगता है कि उनका जीवन सूखी हुई टहनी की तरह निरर्थक हो चुका है । दूसरी ओर वे सोचते हैं कि जिस प्राणदाई सृजन शक्ति ने उस टहनी को हरा - भरा किया था वह अमर है । कविवर स्पष्ट करते हैं कि हरियाली के वे क्षण अमर थे जिनमें यह डाली फूल - फलों से लदी थी और अपनी सम्पदा से संसार को ललचाती थी । भले ही उनके जीवन को बाहरी चमक - दमक हरी भरी डाली के सूखने की तरह समाप्त हो गयी है परंतु फिर भी उनकी सृजन शक्ति अमर है ,वह मरी नहीं है । निराला को अपने साहित्य की गरिमा पर अटूट विश्वास था , इसीलिए वे अपने सृजन को , अपनी साहित्यिक रचनाओं को अमर मानते हैं । 



स्नेह निर्झर बह गया है कविता के प्रश्न उत्तर

 
प्र। कवि का जीवन रेत सा नीरस क्यों हो गया है ?

उ। कवि का जीवन रेत सा नीरस इसीलिए रह गया है क्योंकि उसमें स्नेह की धारा या प्रेम बह चुका है ,समाप्त हो चुका है । कवि की यह अवस्था इसीलिए हुई है क्योंकि इस स्वार्थी विश्व ने निराला से सब कुछ लेकर भी उन्हे उपेक्षित किया है । 

प्र। अपने जीवन की नीरसता और व्यर्थता को कवि ने किन प्रतिकों के माध्यम से व्यक्त किया है ?

उ। कवि ने अपने जीवन की नीरसता को तीन प्रतिकों के माध्यम से व्यक्त किया है । वे तीन प्रतीक हैं - 

प्र। किन पंक्तियों मे कवि ने अपने जीवन के उस ठाठ की ओर इंगित किया गौ जब उसने अपनी काव्य प्रतिभा से जगत को चकित किया था ?

उ। कवि ने अपने जीवन को ठाठ को निम्न पंक्तियों मे व्यक्त किया है , यथा - 

दिये हैं मैने जगत को फूल-फल,
किया है अपनी प्रतिभा से चकित-चल;
पर अनश्वर था सकल पल्लवित पल--
ठाट जीवन का वही
जो ढह गया है ।


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