कितनी नावों में कितनी बार कविता का भावार्थ सारांश प्रश्न उत्तर

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कितनी नावों में कितनी बार कविता अज्ञेय


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कितनी नावों में कितनी बार कविता का भावार्थ व्याख्या 

कितनी दूरियों से कितनी बार
कितनी नावों में कितनी बार कविता का भावार्थ सारांश प्रश्न उत्तर
कितनी डगमग नावों में बैठ कर
मैं तुम्हारी ओर आया हूँ
ओ मेरी छोटी-सी ज्योति!
कभी कुहासे में तुम्हें न देखता भी
पर कुहासे की ही छोटी-सी रुपहली झलमल में
पहचानता हुआ तुम्हारा ही प्रभा-मंडल।
कितनी बार मैं,
धीर, आश्वस्त, अक्लांत—
ओ मेरे अनबुझे सत्य! कितनी बार

व्याख्या - प्रस्तुत कविता मे कवि सत्य को अनेक रूपों मे देखने की बात कहते हैं । भारतीय परंपरा मे सत्य का जो रूप उपलब्ध है वह अन्यत्र दुर्लभ है । कवि कहना है कि हे ! मेरी छोटी - सी प्रकाश किरण ! मैं तुम्हें पाने के लिए न जाने कितनी दूर से कितनी बार डगमगाती नौकाओं मे बैठकर तुम्हारी ओर लौट आया हूँ । अनेक बार ऐसा भी हुआ है कि यह नन्ही सी किरण मुझे धुंधलके मे छुपी हुई अस्पष्ट सी लगी परंतु उस धुन्ध के ही चमकदार धुंधलके मे मैंने तुम्हारा प्रकाश का वृत्त देखा है । कवि के कहने का भाव यह है कि ज्योति को अपनी पूर्णतया मे न देखकर भी कवि ने उसकी धुंधली झलक को सदा देखा है । कवि कहता है कि अनेक बार मैंने धैर्यवान बनकर , विश्वास से भरकर और कभी - कभी थकी हारी दृष्टि से इस अनबुझे सत्य को देखा है । 

कवि का मानना है कि सत्य का प्रकाश भारतीय परम्पराओं मे अनिवार्य रूप से समाया है । प्रकाश का बिम्ब स्पष्ट न भी दिखे तो भी उसका हल्का - सा प्रकाश वृत्त अवश्य ही दिख जाता है । 

विशेष - उपरोक्त पंक्तियों मे निम्नलिखित विशेषता दिखलाई पड़ती है - 

  1. सत्य का चेहरा जितना भारतीय परंपराओं मे उभरता है उतना अनयंत्र कहीं नहीं । 
  2. कविता की भाषा सरल , तत्सम शब्दावली प्रधान है । 
  3. कभी कुहासे मे अनुप्रास अलंकार है । 
  4. भारतीय जीवन दृष्टि मे आस्था व्यक्त की गयी है । 
  5. वैयक्तिकता के दर्शन होते हैं । 



और कितनी बार कितने जगमग जहाज़
मुझे खींच कर ले गये हैं कितनी दूर
किन पराए देशों की बेदर्द हवाओं में
जहाँ नंगे अंधेरों को
और भी उघाड़ता रहता है
एक नंगा, तीखा, निर्मम प्रकाश—
जिसमें कोई प्रभा-मंडल नहीं बनते
केवल चौंधियाते हैं तथ्य, तथ्य—तथ्य—
सत्य नहीं, अंतहीन सच्चाइयाँ...
कितनी बार मुझे
खिन्न, विकल, संत्रस्त—
कितनी बार!

व्याख्या - प्रस्तुत पंक्तियों मे कवि अज्ञेय जी लिखते हैं कि पश्चिम मे सच्चाई का कितना भयानक रूप सामने आ रहा है । उनका मानना है कि मैं कितनी ही बार जगमगाते हुए जहाजों पर बैठकर बहुत दूर , पराए देशों मे गया हूँ । मैं कितनी ही बार पराए देशों मे गया हूँ जहां पर कठोर ,निर्मम हवाओं नंगे ,तीक्षण प्रकाश के नंगे अँधेरों को और भी अधिक नंगा किया है । कहने का भाव यह है कि उन देशों मे गंदगी और विकृतियाँ एकदम उघड़ी हुई है । वह प्रकाश इतना तेज़ है कि उससे कोई प्रकाश वृत्त या प्रभामंडल नहीं बनता अर्थात ऐसे प्रकाश मे कुछ भी प्रिय नहीं लगता और न ही स्पष्ट दिखता है । ऐसे प्रकाश मे चौंधियाने वाले नग्न तथ्य ही बार - बार दिखाई पड़ते हैं । ये नग्न तथ्य मुझे बार - बार दुखी ,बेचैन और भयभीत करते हैं । 

कवि का कहना है कि दूर - दूर के देशों मे जाकर उसने यह पाया है कि सच्चाई का जो रूप पश्चिम मे , दूर देशों  मे मिलता है । वह आँखें नहीं खोलता बल्कि चौंधियाता है । कवि के कहने का भाव यह है कि सच्चाई वहाँ इतनी कठोर , क्रूर और पीड़ादायक है कि उसे देख पाना मुश्किल है । 

विशेष - उपरोक्त पंक्तियों मे निम्नलिखित विशेषता दिखलाई पड़ती है - 

  1. साभिप्रिया विशेषणों से बात कहने मे प्रभाव बढ़ा है । यथा - पराए देश , बेदर्द हवाएँ ,नंगे अंधेरे ,निर्मम प्रकाश आदि । 
  2. मुक्त छंद मे प्रवाह पूर्ण शैली मे लिखी गयी यह कविता अतुकांत है ,परंतु अर्थ के लय से जुड़ती है । 
  3. तत्सम शब्दावली प्रधान भाषा का प्रयोग किया गया है । 



कितनी नावों में कितनी बार कविता के प्रश्न उत्तर


प्र। अनेकानेक यात्राओं मे कवि को किस 'अनबुझे सत्य' से साक्षात्कार कराया ?

उ। कवि अज्ञेय को विभिन्न यात्राओं से यह सत्य प्राप्त हुआ है कि भारतवर्ष मे ही वास्तविक सत्य के दर्शन किए जा सकते हैं । इसी भूमि पर सत्य की सुनहली आभा ,उसका सुनहला प्रभा मण्डल देखा जा सकता है । सत्य भले ही अपने नग्न ,चौंधियाने वाले रूप मे नहीं दिखता फिर भी कल्याणकारी सत्य यही है । कवि को भारतीय परम्पराओं और जीवन मूल्यों मे अटूट आस्था थी । 

सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय
प्र। 'ओ मेरी छोटी सी ज्योति ' का क्या अभिप्राय है ?

उ। ओ मेरी छोटी सी ज्योति का अर्थ है सत्य की नन्ही सी किरण । कवि अज्ञेय कहते हैं कि इस छोटे से सत्य की ही खोज लेना चाहते थे । 

प्र। 'कितनी नावों मे कितनी बार कविता मे कवि क्या कहना चाहते हैं ?

उ। हिन्दी मे यायावर कवि के रूप मे विख्यात अज्ञेय सचमुच घूमकक्ड थे और उन्होने देश - विदेश की यात्राएं अनेक बार की हैं । कवि , प्रस्तुत कविता मे यह स्पष्ट करता है कि हमारा मन कितने ही तरीकों से कितनी बार सच्चाई को जानने का प्रयास करता है । कवि कहता है कि विदेशों मे सच्चाई नग्न तथ्यों और तर्कों पर आधारित है परंतु क्या तर्कों पर आश्रित सच्चाई को अंतिम सत्य मान लिया जाये । कवि विदेशी पद्धति को उचित नहीं मानता है । सच्चा ज्ञान तो आत्मा के प्रकाश मे हैं जो कि भारत मे दिखाई पड़ता है । कवि यह स्पष्ट करता है कि सत्य की खोज का भारतीय तरीका ही श्रेष्ठ था । 


कितनी नावों में कितनी बार कविता का सार मूल भाव 

कितनी नावों मे कितनी बार सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय जी की प्रसिद्ध कविता है । प्रस्तुत कविता मे मे कवि को अपनी विभिन्न यात्राओं के माध्यम से वास्तविक सत्य के दर्शन किया गया है । कवि का कहना है कि उसे सत्य का चेहरा भले ही अस्पष्ट दिखाई देता है फिर भी उसकी हल्की सी झलक देख लेता है उस झिलमिलाहट मे कवि को प्रकाश की किरण चमकती दिखलाई पड़ती है । विदेशों मे अँधेरे नंगे हैं अर्थात वहाँ पर समाज मे व्याप्त व्यभिचार , भ्रष्टाचार और हिंसा बहुत ही स्पष्ट है । वहाँ पर सच्चाई भी इन विकृतियों को ही उभारती है अर्थात अँधेरों को और अधिक नंगा करती है । विदेशों में किसी को किसी से सहानुभूति नहीं रह गयी है । सभी व्यक्तिनिष्ठ एवं स्वार्थी हो गए हैं । दया , ममता और उदारता वातावरण मे ही नहीं रह गए हैं । सच्चाई पर प्रकाश यहाँ पर कठोर ,तीखा और नंगा होता है । यहाँ पर कवि ने नंगा ,तीखा और निर्मम जैसे विशेषणों को सत्य तथा प्रकाश से जोड़कर प्रभाव को और अधिक प्रभावशाली बना दिया है । 

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