महादेवी वर्मा का साहित्य महादेवी वर्मा का विरह वर्णन महादेवी वर्मा की गद्य शैली शृंखला की कड़ियाँ अतीत के चलचित्र स्मृति की रेखाएँ पथ के साथी क्षणद
महादेवी वर्मा का साहित्य
महादेवी वर्मा जी हिन्दी साहित्य मे छायावाद की प्रमुख कवियत्री के रूप मे स्थापित हो चुकी है । प्रसाद , पंत और निराला के साथ छायावाद को स्थापित करने का श्रेय आपको दिया जाता है । आपकी कविताओं मे रहस्यवाद का भी पुट रहता है । हिन्दी मे गीतों को नया आयाम महादेवी वर्मा जी ने दिया है । उनकी कविता मे गेयता और बिम्बत्मकता के गुण सर्वत्र मिलते हैं ।
महादेवी वर्मा की प्रमुख काव्य रचनाओं मे निहार ,रश्मि ,नीरजा ,सांध्य गीत तथा दीप शिखा को लिया जा सकता है । नीहार मे 47 कवितायें हैं । प्रेम तथा विरह इन कविताओं का मुख्य विषय है । रश्मि मे 35 रचनाएँ हैं । इसमें दर्शनपरक आध्यात्मिक अनुभूतियों की अधिकता है । नीरजा मे महादेवी वर्मा जी की प्रौढ़ काव्य रचनाओं का संकलन है । इसमें संग्रहीत 58 कविताओं से महादेवी जी को रहस्यवादी कवियत्री के रूप मे मान्यता मिली ।
सांध्यगीत मे 45 गीत है जिसमें सुख दुख तथा राग विराग के भाव भरे हैं । दीपशिखा मे 51 गीत संकलित हैं जिनके साथ महादेवी जी कृत चित्र भी दिये गए हैं । इस संग्रह मे महादेवी जी एक कलाकार के रूप मे सामने आई है ।
महादेवी वर्मा का विरह वर्णन
महादेवी वर्मा जी के काव्य का प्रमुख स्वर विरह का है । 'मिलन का मत नाम ले , मैं विरह मे चिरहूँ की रट लगाने वाली महादेवी वर्मा आधुनिक युग की मीरा के रूप मे विख्यात है । प्रेम और विरह के साथ - साथ रहस्यवाद , करुणा , प्रकृति - चित्रण आदि महादेवी वर्मा के काव्य की प्रमुख विशेषताएँ हैं ।
महादेवी वर्मा जी उत्कृष्ट कवियत्री होने के साथ साथ महान गद्य लेखिका भी रही हैं । आपकी प्रमुख गद्य रचनाएँ हैं -
- शृंखला की कड़ियाँ
- अतीत के चलचित्र
- स्मृति की रेखाएँ
- पथ के साथी
- क्षणदा
महादेवी वर्मा जी गद्य और पद्य दोनों मे समान रूप से भावुक दिखाई पड़ती है । महादेवी वर्मा जी अनेक पशु पक्षियों को अपने परिवार का अंग बनाया और उन पर लिखा । 'पथ के साथी ' मे इस युग के साहित्यकारों के अत्यंत प्रामाणिक एवं भावपूर्ण चित्र अंकित है । शृंखला की कड़ियों मे भारतीय समाज मे नारी की स्थिति पर प्रकाश डाला गया है ।
महादेवी वर्मा की गद्य शैली
महादेवी वर्मा की गद्य शैली प्रभाव पूर्ण , चित्रात्मकता तथा काव्यात्मक है । संस्कृतनिष्ठ ,तत्सम शब्दावली प्रधान भाषा उनकी विशेषता है । उन की भाषा शैली के दो प्रमुख रूप काव्य के निकट पहुँच जाता है । सुप्रसिद्ध विचारक श्री रामधारी सिंह दिनकर जी के शब्दों मे - 'भारतीय नारी की करुण स्थिति महादेवी वर्मा को अत्यंत निकट से अनुभूत हुई है । अनुभूत ही नहीं हुई ,कन्यावध की परिपाटी और विवाह की बिडम्बना के भीतर से वह स्थिति महादेवी जी के रेशे - रेशे से होकर गुजरी है । सचमुच महादेवी जी की कला का जन्म अक्षय सौंदर्य के मूल से दिव्य प्रेम के भीतर से , अलौकिक प्रकाश की गुहा से और पावन आँसुओं के भीतर से हुआ है । '
महादेवी वर्मा जी ने हिन्दी गद्य को एक विशिष्ट तत्सम शब्दवाली प्रधान भाषा दी है जो अपने आप मे अद्वितीय है । उनके निबंधों मे राष्ट्र प्रेम , प्रकृति प्रेम तथा ईश्वर प्रेम का अद्भुत संगम दिखाई पड़ता है ।
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