पुरस्कार कहानी की तात्विक समीक्षा

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पुरस्कार कहानी जयशंकर प्रसाद पुरस्कार कहानी का उद्देश्य पुरस्कार कहानी के प्रश्न उत्तर समीक्षा कहानी में राष्ट्रीय भावना तात्विक विशेषताएं puraskar

पुरस्कार जयशंकर प्रसाद की कहानी 


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पुरस्कार कहानी का सारांश

पुरस्कार कहानी की तात्विक समीक्षा
कथावस्तु की दृष्टि से पुरस्कार कहानी का कथानक इतिहासिक तथा काल्पनिक धरातल पर निर्मित है ,पर अतिहसिक आधार स्पष्ट नहीं है। कहानीकार ने कोशल नरेश का नामोउल्लेख तक नहीं किया है। मधुलिका कोशल राज्य के अन्यतम योद्धा सिंहमित्र की एकमात्र पुत्री है। कोशल के राष्ट्रीय नियम तथा परम्परानुसार इन्द्र्पुजन के उत्सव के समय ,कृषि महोत्सव के अवसर पर ,उसकी उपजाऊ भूमि ले ली जाती है। राजकीय अनुग्रह को वह स्वीकार नहीं करती है ,क्योंकि वह भूमि उसके पूर्वजों की है ,जिसे बेचने का उसे अधिकार नहीं है। कोशल के इस उत्सव को देखने के लिए मगध का राजकुमार अरुण भी आया हुआ था। मधुलिका के भोले सौन्दर्य तथा सरल चितवन पर लट्टू होकर वह उसके सन्मुख प्रेम निवेदन करता है ,जिसे वह ठुकरा देती है। 

इस घटना के तीन वर्ष के  बाद मगध का विद्रोही तथा निर्वासित राजकुमार अरुण मधुलिका की पर्णकुटी में आश्रय लेता है। भोली -भाली मधुलिका अरुण के प्रेम में दीवानी हो जाती है तथा अरुण द्वारा कोशल के दुर्ग पर आक्रमण करने तथा अधिकार प्राप्त करने की योजना में सहयोग करती है। पर अंत में मधुलिका की राष्ट्र प्रेमी आत्मा विद्रोह कर देती है। राष्ट्रप्रेम तथा वैयक्तिक प्रेम के मध्य भयानक द्वन्द छिड जाता है तथा राष्ट्रप्रेम की भावना से ओतप्रोत मधुलिका अपने प्रेमी अरुण को बंदी बनवा देती है। जब अरुण को प्राण दंड की सजा मिलती है और उसे पुरस्कार मांगने के लिए कहा जाता है तो वह तत्काल मगध राजकुमार अरुण की बगल में जाकर खड़ी हो जाती है और पुरस्कार के रूप में अपने लिए भी प्राण दंड का उपहार मांगती हैं। प्रेम और कर्तव्य का यह द्वन्द ही मधुलिका के चरित्र का प्राण है। जिस प्रकार कहानी का आरम्भ ,भव्य और उद्दीपक है ,उसी प्रकार उसका अंत भी उतना ही महत्वपूर्ण ,कलापूर्ण ,नाटकीय एवं उत्तेजक है। इसके आरम्भ ,उत्कर्ष और अंत तीनों में एकसूत्रता है। कहानी का अंत अत्यंत महत्वपूर्ण स्थल पर हुआ है। इस स्थल पर पहुँचकर कहानी अपनी संवेदनशीलता और प्रभावोत्पादकता का पूर्ण परिचय देती है। 

पुरस्कार कहानी शीर्षक की सार्थकता

शीर्षक की दृष्टि से पुरस्कार कहानी का नामकरण ही कथा की मूल संवेदना को उभारने में पूरी तरह सक्षम है। यह शीर्षक घटना चक्र से सम्बंधित लघु ,संक्षिप्त ,आकर्षक ,नवीन ,मौलिक ,भावोत्तेजक तथा कुतुहलवर्धक है। कहानी के प्रति पाठकों में उत्सुकता ,आकर्षण आदि भावों को जागृत करने में यह शीर्षक पूर्ण सफल है। पुरस्कार शीर्षक से ही कुतूहल तथा जिज्ञासा का आरम्भ होता है जो अंत तक बना रहता है। सच पूछा जाए तो पुरस्कार कहानी का शीर्षक भावना और कथ्य दोनों के अनुरूप हैं। 

पुरस्कार कहानी के पात्र

चरित्र चित्रण की दृष्टि से पुरस्कार कहानी के सभी पात्र आदर्श से अनुप्राणित है ,पर मधुलिका जो कहानी की प्रमुख पात्र है ,अपने चारित्रिक वैशिष्ट्य के कारण सर्वोपरि मानी गयी है। कहानीकार ने मधुलिका का चरित्रांकन मनोवैज्ञानिक पृष्ठभूमि पर किया है। उसका चरित्र सामान्य भारतीय नारी चरित्र से भिन्न न होते हुए भी अनेक असाधारण तत्वों से निर्मित है। वह जितनी सरल ,भोली ,सुन्दर ,मधुर और आकर्षक है ,अवसर आने पर उतनी ही कठोर ,चतुर और साहसी भी है। यद्यपि उसमें नारी ह्रदय की कमजोरियां विद्यमान हैं ,फिर भी उन पर विजय प्राप्त करने की उसमें अपूर्व क्षमता है। आत्माभिमान और कुलशील की रक्षा के लिए वह विषम से विषम परिश्तिती का सामना करने में भी सक्षम है और अपने ह्रदय की दिव्यता की रक्षा के लिए आत्मबलिदान से भी वह पीछे नहीं हटती। असाधारणरूप से संवेदनशील होने के कारण ही उसे तीव्र अंतर्द्वंद का सामना करना पड़ता है। इसी अंतर्द्वंद के चतुर्दिक प्रतिरोध ,आत्मोत्सर्ग ,क्षमा ,दया ,प्रेम और सहनशीलता की सुनहली रेखाएं बिछी हैं। राजकुमार अरुण एक आदर्श प्रेमी है। वह मधुलिका के जीवन का प्रकाश है ,उसका दिव्य पुरस्कार है। कोशल नरेश एक योग्य शासक है। इस प्रकार कहानी का प्रत्येक पात्र अपने आदर्श व्यक्तित्व तथा चरित्र के कारण महत्वपूर्ण है। 

कथोपकथन

कथोपकथन के विचार से पुरस्कार कहानी के संवाद स्वाभाविक ,संक्षिप्त ,सरल ,स्पष्ट और अर्थ से पूर्ण है। वे कथोपकथन कथानक के विकास और पात्रों के चारित्रिक उत्कर्ष में अत्यंत सहायक है। पुरस्कार कहानी के कथोपकथनों में मनोवैज्ञानिकता और उतार चढ़ाव का पूरा पूरा ध्यान रखा गया है। इस प्रकार इस कहानी के संवादों में कहीं आंतरिक वेदना ,कहीं आंतरिक उद्देग और कहीं आंतरिक निवेदन विद्यमान है। सारांश रूप में कहा जा सकता है कि प्रस्तुत कहानी के कथोपकथन संतुलित ,मौलिक ,सांकेतिक ,कलात्मक ,संक्षिप्त तथा प्रभावोत्पादक है। 

देशकाल तथा वातावरण 

देशकाल तथा वातावरण की दृष्टि से पुरस्कार कहानी का परिवेश अत्यधिक आकर्षक ,सशक्त तथा प्रभावोत्पादक है। तत्युगिन वातावरण तथा देशकाल के स्वाभाविक तथा हृदयग्राही चित्रांकन स्थान -स्थान पर मिलते हैं। उदाहरण के लिए कहानी का प्रारम्भ का परिवेश देखने योग्य है - आद्रा नक्षत्र आकाश में काले -काले बादलों की घुमड़ ,जिसमें देव्दुन्भी का गंभीर घोष। प्राची के एक निरभ्र कोने में स्वर्ण पुरुष झाँकने लगा था - देखने लगा महाराज की सवारी। शैलमाला के अंचल में समतल उर्वराभूमि से सोंधी बास उठ रही थी। नगर तोरण से जयघोष हुआ ,भीड़ में गजराज का चामरधारी शुण्ड उन्नत दिखाई पड़ा है। हर्ष और उत्साह का वह समुन्द्र हिलोरे भरता हुआ आगे बढ़ने लगा। "

पुरस्कार कहानी की भाषा शैली

भाषा शैली की दृष्टि से कहानी की भाषा तत्सम शब्द प्रधान तथा परिमार्जित है। इसमें ओज तथा माधुर्य गुणों का विशेष समावेश है। प्रसंगानुकूल प्रसाद गुण के भी दर्शन हो जाते हैं। कहानी के वातावरण तथा उसकी संवेदना के अनुसार भाषा का समुचित प्रयोग मिलता है। कहानी के कवित्वपूर्ण ,कल्पनायुक्त शैली प्रयुक्त है। प्रसंगानुकूल दार्शनिक ,नाटकीय ,करुणापूर्ण तथा वर्णात्मक शैली का भी प्रयोग हुआ है। 

पुरस्कार कहानी का उद्देश्य

उद्देश्य की दृष्टि से पुरस्कार कहानी आदर्श प्रधान कहानी है। भावना की अपेक्षा कर्तव्य श्रेष्ठ है ,यही आदर्श इस कहानी का मूलाधार है। इसमें देश प्रेम और व्यक्तिगत प्रेम दोनों प्रतिद्वंदी के रूप में सम्मुखीन होते हैं तथा एक दूसरे पर हावी व्यक्तिगत प्रेम को भी अपना गौरव तथा महत्व प्राप्त होता है ,पर कालांतर में व्यक्तिगत प्रेम को भी अपना गौरव तथा महत्व प्राप्त होता है। कहानी की नायिका मधुलिका ने देश प्रेम तथा व्यक्तिगत प्रेम दोनों का सम्यक निर्वाह करते हुए उन्हें समान रूप से महत्व दिया है। वह इन दोनों का पालन करके विशेष आदर्श का परिचय देती है और यही कहानी का महत उद्देश्य भी है। प्रसाद जी ने इस कहानी में करुणा ,सत्य और उत्सर्ग का आदर्श उपस्थित किया है। 

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