लंबा लेट कहानी - शमोएल अहमद

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लंबा लेट कहानी शमोएल अहमद फरमान अली बेटे कुरबान अली की पीठ पर लम्बा लेट गया था | और बेटा भी मरण-तुल्य बाप को एनिस Aeneas की तरह पीठ पर लादे शहर शहर

लंबा लेट - शमोएल अहमद 

रमान अली बेटे कुरबान अली की पीठ पर लम्बा लेट गया था | और बेटा भी मरण-तुल्य बाप को एनिस Aeneas की तरह पीठ पर लादे शहर शहर घूमता था | बेटे की पीठ दुखती नहीं थी | बाप की कुर्बत में उसके चेहरे पर सूर्य की रुपहली किरणों की गरिमा होती और आँखें दोपहर की तरह रौशन ---!

और बीवी---?

बीवी की आँखों में धुआँ सा तैरता | वो बुदबुदाती ‘’ एक यही रह गए हैं----मानो और बेटे हैं ही नहीं ---!

और बेटे भी थे | एक दुबई में रहता था मिरजान अली और दूसरा इसी शहर में उस्मान अली | कहा नहीं जा सकता कि  दुबई वाला बेटा  करता क्या  था , हो सकता है झाड़ू लगाता हो लेकिन जब घर आता तो रंग ढंग कम्पनी के मैनेजर जैसे होते | वो पतलून की जेब में हाथ डाले खड़ा रहता और बीमार बाप को इस तरह देखता जैसे  बिस्तर पर पड़े रोगी को उसके दूर का रिश्तेदार देखता है | वो बात-चीत में अंग्रेजी के दो शब्द बार बार दोहराता ‘’ यस ‘’ और ‘’नो ‘’ | घर के प्रांगण में चहलकदमी करता और सिगार के कश लगाता | 

लंबा लेट कहानी
उस्मान अली के लिए बाप का मकान छोटा पड़ता था और उसकी बीवी फैल कर रहना चाहती थी | वो किसी आई टी  कम्पनी में मुलाजिम था और अलग मकान में रहता था | उस्मान अली की कम्पनी बाप को भी चिकित्सा का  खर्च देती थी जिसके लिए अस्पताल में भर्ती  होना जरूरी था | तबीयत की जरा सी गिरानी पर उस्मान अली बुजुर्ग बाप को अस्पताल में भर्ती  करा देता और कम्पनी को  बढ़ा चढ़ा कर दवाइयों का बिल पेश करता | अस्पताल का खर्च कुरबान अली वहन करता और कम्पनी उस्मान अली के खाते में पैसे डालती | क़ुरबान अली नहीं चाहता था बार बार अस्पताल का मुंह देखना पड़े | बूढ़े को दिल का रोग नहीं था लेकिन फेफड़ा कमजोर था | उसको सांस लेने में अकसर तकलीफ होती थी | क़ुरबान अली ने आक्सीजन मास्क खरीदकर दिया था लेकिन डाक्टर ने वर्जिश भी बताई थी | इस तरह की वर्जिश एक दस्ती मशीन से अमल में आती थी जो क़ुरबान अली ने तुरंत खरीद ली थी | बूढ़ा मशीन में लगी नलकी मुंह में लेकर निरंतर उलटी सांसें लेता और फेफड़े में हवा भरता और खारिज करता |

फेफड़े की वर्जिश से बूढ़े को राहत मिली और क़ुरबान अली खुश हुआ | लेकिन बीवी की आँखों में धुआँ सा तैर गया | उसने मशीन की कीमत का दिल ही दिल में अंदाजा लगाया और सोचने पर मजबूर हुई कि उसकी कलाई में घड़ी नहीं है | उस दिन खाना देर से बना तो क़ुरबान अली ने वजह पूछी | वो मानो  इस सवाल का इंतज़ार कर रही थी | ठनक कर बोली कि उसकी कलाई पर घड़ी नहीं बंधी है कि वक्त देखकर काम करे | क़ुरबान अली उसे बाजार ले गया | बीवी ने गोल्डन चेन वाली घड़ी खरीदी | 

क़ुरबान अली ने और चीजें भी खरीदीं | मसलन शुगर चेक करने के लिए ग्लूकोमीटर , ब्लड प्रेशर मापने का आला , बलगम निकालने का आला, स्टीम लेने की मशीन और बीवी हर बार ठनकी | उसे हर बार कमी का एहसास हुआ | कभी कान की बालियाँ बदरंग लगीं , कभी लगा ढंग के कपड़े नहीं हैं लेकिन जब क़ुरबान ने आक्सीजन की मशीन और गैस सिलिन्डर खरीदा तो बीवी बिस्तर पर पट हो गयी ---‘’ कोई पचास हजार का होगा ‘’ और उसको एहसास हुआ कि उसके पास जेवर की कमी है | उसे दुबई वाली भाभी याद अअ गयी | वो जब दुबई से आती तो सोने के बिस्कुट एक बैग से निकालकर दूसरे बैग में रखती और मिरजान अली सिगार के कश लगाता |

बीवी दो दिन तक पट पड़ी रही कि सिर में दर्द है | क़ुरबान ने समझ माइग्रेन हो गया है | इस बीच कामवाली भी नहीं आई |क़ुरबान ने बर्तन धोए | खाना होटल से आया | लेकिन बीवी ने बूढ़े के लिए घर में परहेज़ी बनाई | क़ुरबान अली खुश हुआ की ध्यान रखती है | बीवी ठनकी  ‘’ चूड़ियाँ घिस गयी हैं ‘’| 

क़ुरबान अली उसे बाजार लेगया | उसने जड़ाव कंगन खरीदे | 

क़ुरबान अली ने जैसे घर को ही पंचसितारा  अस्पताल  बना दिया था | मरीज की सुविधा की वो तमाम चीजें थीं जो अस्पताल में उपलब्ध होती हैं |  वो सुबह सुबह शुगर चेक करता और ब्लड प्रेशर मापता | नाक अगर नजले से बंद रहती तो सिर को ढक कर मशीन से भांप देता | फेफड़े की दस्ती मशीन से सांस की वर्जिश  कराता | बूढ़े को अकसर खांसी के दौरे पड़ते थे | खाँसते खाँसते उसकी आँखें कटोरे से उबलने लगतीं | वो बहुत स बलगम उगलता जिसे क़ुरबान अली अपनी हथेली पर रोकता | हाथ धोकर आता तो देर तक पीठ सहलाता और पाँव दबाता | लेकिन अब उसने बलगम निकालने की मशीन खरीद ली थी | मशीन की कटोरी मुंह में लगा देता और रबर की नलकी से जुड़े  ब्लैडर को धीरे धीरे पम्प करता | बलगम मुंह से निकलकर कटोरी में जमा होने लगता | 

एक बार बूढ़े ने पेट में दर्द बताया | दर्द शिद्दत का नहीं था और बिल्ली की नज़र  छेछड़े  पर होती है | उस्मान अली बाप को अस्पताल में भरती कराने पर उतारू हुआ |  क़ुरबान अली को लगा मामूली सा दर्द है, दवाई से ठीक हो सकता है | डाक्टर से फोन पर बात की | डाक्टर ने दवा का नाम बताया और खाने में परहेज का सुझाव दिया | दवा कारगर हुई  और अस्पताल में भरती होने की नौबत नहीं आई | उस्मान अली नाराज हुआ और क़ुरबान की बीवी मुस्कराई |

और वो मुस्कराती थी और अस्पताल के मंजरनामे को दूरबीन से देखती थी कि धान कूटे  क़ुरबान अली और कोठी भरे उस्मान  अली |  लेकिन क़ुरबान अली को इस बात कि फिक्र नहीं थी कि कितना धान कोठी में गया और कितना उसके खाते में आया |  उसे बाप की सेवा से मतलब था और उसके इलाज पर खुलकर खर्च करता था | बूढ़े बाप को ज्यादा से ज्यादा आराम पहुंचाना उसकी ज़िंदगी का मकसद था | बाप कभी उठकर बैठना चाहता तो पीछे तकिया लगा देता | तकिया लगाकर हट नहीं जाता बल्कि दूर खड़े होकर देखता और खुश होता कि बाप को आराम मिल रहा है |  बूढ़े को क्लीन-शेव रहने की आदत थी | क़ुरबान अली रोज उसकी दाढ़ी बनाता , नाखून कुतरता और गुस्ल देता |  भीगे जिस्म को तौलिए से खुश्क करते हुए बाप कि आँखों में मुस्करा कर देखता और वो क्षण पावन क्षण होते | उस वक्त कोई बाप नहीं होता | कोई बेटा नहीं होता | दो इनसान होते---  उनके दरम्यान मुहब्बत होती ---दिव्य बंधन होता ---फरमान  अली के चेहरे पर सुकून होता और क़ुरबान आली का चेहरा खुशी से चमक रहा होता | दोनों की आँखें अनदेखी चमक से रौशन होतीं ---और दोनों होंठों पर धूप जैसी मुस्कान लिए एक-दूसरे को निहार रहे होते ---आनन्द  की असीम लहरों में डूब रहे होते---उभर रहे होते --!

दुबई वाली भाभी साल में एक बार आती थी | इस बार आई तो इससे पहले कि सोने के बिस्कुट इस बैग से निकालकर उस बैग में रखती ननद ने जुड़ाव कंगन पहन लिए और गले में सच्चे मोतियों की माला  भी डाली जो उन दिनों ली थी जब क़ुरबान अली ने स्टीम लेने वाली मशीन खरीदी थी | 

मिरजान  अली  बाप के सिरहाने  पतलून की जेब में हाथ डाले खड़ा था |  

‘’ नो...नो--बहुत कमजोर हो गए हैं |’’

क़ुरबान अली को  बुरा लगा |  कमजोर हो गए हैं तो और अहसास दिलाओ----बीवी को भी बुरा लगा मिरजान  अली  बाप के लिए कोट भी लाया था | क़ुरबान अली खुश हुआ लेकिन बीवी ने आतशी शीशे से देखा | कोट का एक बटन दूसरे रंग का था | उसने कोट अलमारी में सैंत दिया---’’ हमारे इतने बुरे दिन भी नहीं आ  गए हैं कि बुजुर्ग बाप को उतरन पहनाएं | ‘’  क़ुरबान अली को भी अच्छा नहीं लगा | मिराजान अली चला गया तो क़ुरबान ने बाप के लिए नया कोट खरीदा | 

किसी बूढ़े के पास बैठ जाओ तो वो अतीत में चला जाता है | क़ुरबान अली से फरमान अली की आत्मीय बातें होती

शमोएल अहमद
शमोएल अहमद
थीं लेकिन बुजुर्ग ने कभी बीते  दिनों की किताब नहीं खोली | वो मिश्र के देवमालाई किस्से सुनाता और कभी पीर-फकीर के | तूफान- नूह की बाबत एक बात हमेशा दोहराता कि एक महा सैलाब का जिक्र हर कौम में मिलता है |  क़ुरबान अली बहुत ध्यान से सुनता | कभी कभी सवाल भी करता | वो ऐसे सवाल भी करता जिसका जवाब उसको मालूम होता | असल में उसने महसूस किया था कि सवाल पूछने पर बाप को खुशी होती है | लेकिन इधर कुछ दिनों से विमर्श का विषय बदल गया था | बूढ़ा मौत के किस्से सुनाने लगा था |  इमाम गजाली के बारे में बताया कि  उन्हें मृत्यु-आभास हो गया था | पानि मंगाकर वज़ू किया, नमाज़ पढ़ी और चादर तानकर सो गए तो फिर नहीं उठे | उसने एक शरीर से दूसरे शरीर में प्राण डालने की बाबत भी बताया कि किस तरह जोगी और सूफी महात्मा स्पर्श के माध्यम से बीमार की रगों में प्राण हस्तांतरित करते हैं | लाहरी महाशय का उदाहरण दिया कि सूक्ष्म शरीर में चलते थे और प्राण  ट्रांसफर करते थे | लंदन में अपने हाकिम  की बीमार बीवी को इसी तरह  नि ;रोग  किया था |  फिर इस बात पर आगे टिप्पणी की थी कि  तुम जब किसी को छूते हो तो स्पर्श एक संवाद स्थापित करता है | इस संवाद में अनदेखी शक्ति भी निहित होती है | जिस तरह दो तारों को जोड़ने से इनमें बिजली की धारा प्रवाहित होती है उसी तरह स्पर्श के जरिए एक शरीर से दूसरे शरीर में  जान डाली जा सकती है |  ये इस बात पर आश्रित है कि तुम किस हद तक संवेदनशील हो और तुम्हारी रूह में उर्जा कितनी है ? फिर बूढ़े ने बाबर बादशाह की मिसाल पेश की थी | वो ये कि हुमायूँ  जब बीमार पड़ा और दवा बेकार गयी तो बाबर ने बीमार हुमायूँ की चारपाई की परिक्रमा की और दुआ मांगी कि उसकी ज़िंदगी हुमायूँ को मिल जाए | हुमायूँ अच्छा होने लगा और बाबर बीमार रहने  लगा | इधर हुमायूँ मुकम्मल तौर पर सेहतयाब हुआ और उधर बाबर ने मौत के बुलावे को स्वीकार किया | लेकिन बूढ़े ने ये भी बताया कि इस घटना का जिक्र इतिहास में नहीं मिलता | फिर भी इसका रचनात्मक पक्ष है | इसका वर्णन होते रहना चाहिए | वो घटना जो रचनात्मक मूल्यों की हामिल  होती है , इतिहास में अपनी जगह बना लेती है | 


क़ुरबान अली को भी मौत के सपने आने लगे | वो विचित्र सपने देखने लगा | एक बार देखा कि बहुत बूढ़ा हो गया है और एक कब्रिस्तान से गुजर रहा है |  अचानक एक युवक सामने आगया | वो युवक उसका बाप था | उसने सपना फरमान अली को सुनाया तो वो हंसने लगा | उसने फ्राइड और यूंग  के बारे में बताया कि फ्राइड ने सपने को अचेतन तक पहुँचने का शाही मार्ग बताया है और यूंग ने भी सपने का मनोवैज्ञानिक विश्लेषण किया है |  तब उसने बेटे के सपने का विश्लेषण  किया कि उसके अचेतन में ये बात पनप रही है कि बाप को अभी मरना नहीं चाहिए    इस लिए उसको जवान देखा और खुद को बूढ़ा ---यानि उसके बुढ़ापे तक भी बाप सेहतमंद रहे | फिर वो फुसफुसाया----’’ मौत से किस की यारी हुई है ---?’’

अगले महीने शहर में पुस्तक मेला  लगा तो बाप मचल गया कि मेला घूमेगा | बेटे को घबराहट हुई | असल में बूढ़े की टांगें जवाब दे रही थीं | वो वाकर के सहारे किसी तरह बिस्तर से खाने की मेज तक की दूरी तय  करता था | फिर भी क़ुरबान अली बाप को यदा  कदा मनोरंजन के लिए इधर उधर ले जाया करता था कि पंगु होने का अहसास न हो | मेले में गर्द बहुत उड़ती थी | फेफड़े में इन्फेक्शन का खतरा था | यही वो बात थी कि क़ुरबान अली मेला घूमने में आना-कानी कर रहा था | लेकिन बाप को हट था | आखिर उसने व्हील चयर निकाली | बीवी भी साथ हो ली | दोनों ने मिलकर बूढ़े को व्हील चयर पर बिठाया | बीवी चयर कहलाती हुई कार तक लाई | कार में वाकर रखा | जूस-पैक और पानी भी रखा | क़ुरबान अली ने बाप को गोद में उठाकर कार की अगली सीट पर बिठाया |  

मेला  पहुँचकर   बुज़ुर्ग खुश हुआ | वो स्टाल पर एक नजर डालता तो क़ुरबान अली किताब का नाम पूछता | लेकिन बाप अगले स्टाल की ओर इशारा करता ----फिर अगले स्टाल की ओर ---! कई स्टाल झाँकने के बावजूद भी बूढ़े ने कोई किताब पसंद नहीं की | कुर्बान अली को हैरानी थी कि आखिर तलाश किस चीज की है ? तब बूढ़े की आँखें चमकीं | उसने रहस्यमयी ढंग से बताया कि तुम जिस संवेदना से किसी किताब को ढूंढते हो तो किताब भी तुम्हें उसी संवेदना से ढूंढती है और तुम्हें खींचकर अपने पास लेआती है |  फिर एक भेद-भरी मुस्कान के साथ गैलरी के अंत में एक छोटे से स्टाल की तरफ इशारा किया कि किताब वहाँ बुला रही है | बहु ने व्हील चेयर का रुख उधर मोड़ दिया |  स्टाल पर आते ही उसने इधर-उधर नजर डाली और अचानक बच्चे की तरह खुश होकर बोल | ‘’ वो देखो.. ‘’ इब्न खलदून का मुकदमा | ‘’

क़ुरबान अली का चेहरा हर्ष से खिल गया | बीवी हैरान हुई लेकिन प्रभावित नहीं हुई | उसने सोचा  स्टाल पर प्रकाशक का नाम पढ़कर अनुमान लगाया होगा | 

किताब  खरीद कर वो फूड-स्टाल पर आए |  बेटे ने बर्गर लिया | बीवी ने गोल-गप्पे खाए | बाप ने जूस पिया जो बहु घर से लेकर आई थी |  वापसी में क़ुरबान अली ने अपने लिए डायरी खरीदी | बीवी ने इस्लामिया बुक डिपो से कलाम-पाक की तख्ती खरीदी |

मेले से आकर बूढ़े को खांसी रहने लगी | एक दिन सीने  में दर्द हुआ तो क़ुरबान अली ने उसे अस्पताल में भर्ती कर दिया | डाक्टर ने फेफड़े में वरम बताया | चार दिनों तक वो आईसीयू में रहा | कुर्बान अली ने भी अस्पताल में डेरा जमा दिया | उसको अलग से अटेंडेंट  रूम मिल गया था | बीवी घर से टिफिन लेकर आती थी | उस्मान खबरगिरी करने आता था | कभी सुबह आता कभी शाम | डाक्टरों से बात करता | चार्ट पर दवाइयों की इंट्री चेक करता और चला जाता | लेकिन क़ुरबान अली दिन भर सिरहाने बैठा रहता | उसकी आँखों में चिंता के बादल घिर आए थे | चेहरा काला पड़ गया था | बीवी ने क़ुरबान अली को इस से पहले इतना परेशान नहीं देखा था | वो उसका धैर्य बँधाती कि अल्लाह देख रहा है, सब ठीक कर देगा |  फरमान  अली चार दिनों के बाद अस्पताल से डिस्चार्ज हुआ | इस बार बिल एक लाख चौवालीस  हजार का हुआ था | उस्मान अली बहुत खुश था  और बीवी की आँखों में जलन हो रही थी कि धान कूटे क़ुरबान अली और कोठी----? उसने डिस्चार्ज  समरी से क़ुरबान अली की आई डी चुपके से निकाल ली | उस्मान को पता नहीं चला कि बिल के साथ आई डी नहीं है | 

फरमान अली अस्पताल से घर आया तो कमजोर हो गया था | उसकी टांगों का दर्द बढ़ गया था | वाकर से चलना भी मुश्किल हो रहा था | अब खाना बिस्तर पर ही खाने लगा | बाथरूम तक किसी तरह चला जाता लेकिन गुस्ल करना पसंद नहीं करता था लेकिन दाढ़ी बनाना बंद नहीं हुआ था | क़ुरबान अली भीगे कपड़े से जिस्म पोंछ देता और सिर पर मालिश कर देता | दाढ़ी बनाता,क्रीम लगाता , बालों में कंघी करता और बाप हँसती हुई आँखों से बेटे को देखता | उसका जिस्म कमजोर हो गया था लेकी चेहरे पर तेज था |  वो कमजोर से कमजोर-तर होता गया लेकिन क़ुरबान अली को बाप न बूढ़ा नजर आया न कमजोर | वो बस सेवा में लगा था और ज्यादा से ज्यादा समय दे रहा था | और बीवी बुदबुदाती---जैसे एक यही रह गए हैं | बीवी को लगता बूढ़ा बाप मकड़ी का जाला है जिसमें बेटा मक्खी की तरह फंसा हुआ है | 

फेफड़े  की वरजिश अब रुक गयी थी | वो उलटी सांस नहीं ले पारहा था |  आक्सीजन सिलेंडर का मास्क लगाकर जोर जोर से सांस लेता | बूढ़ा बिस्तर से लग गया | उसके कपड़े भी गीले रहने लगे | बीवी बिस्तर बदल देती | कपड़े क़ुरबान अली  धोता |  बाप को जब हल्का हल्का बुखार भी रहने लगा तो बेटे को  चिंता हुई | | खून जांच के बाद डाक्टर ने कुछ दवाइयों के नाम लिखे | लेकिन दवाइयाँ काम नहीं कर रही थीं | बुखार था कि उतर नहीं रहा था | जांच की एक दवा रह गयी थी जो कहीं मिल नहीं रही थी | ये दवा उम्मीद कि किरण थी | क़ुरबान अली को यकीन था कि इसके सेवन से बुखार उतर जाएगा | उसने इंटरनेट  पर खोज की | आखिर गूगल सर्च से मालूम हुआ कि दवा कृष्णा फार्मेसी मुंबई में उपलब्ध है | क़ुरबान अली ने सुबह सुबह मुंबई की फ्लाइट पकड़ी और रात तक दवा लेकर आ गया  |

दवा का असर हुआ | बुखार कुछ कम हुआ लेकिन एकदम नहीं उतरा | कुर्बान अली को कुछ राहत मिली | उस दिन उस्मान अली भी पहुंचे | आते ही दुखड़ा सुनाया कि बिल पास नहीं हुआ | बिल के साथ आई डी नहीं थी | क़ुरबान अली से उलझ गया कि बिल के साथ आई डी क्यों न चेक की ? क़ुरबान अली को होश कहाँ था ? वो तो बाप के वाइरल बुखार में उलझा था | अचानक बाप को खांसी का दौरा पड़ गया |  क़ुरबान अली दौड़कर पहुंचा | बलगम कंठ में फंस गया था | वो  इतना कमजोर हो गया था कि बलगम उगल नहीं पा रहा था | उसकी आँखें उबलने  लगीं और सांसें उखड़ने  लगीं | क़ुरबान अली घबरा  गया | उसको लगा  बाप का  दम घुट जाएगा |  उसने उसके कंठ में अपना हाथ डाला और  फंसे हुए बलगम को साफ किया |  ऐसा दो-tतीन बार किया तो सांसें संतुलित हुईं  | उस्मान अली खड़ा देखता  रहा | क़ुरबान अली ने हाथ धोए  |

 बाप का बुखार तो उतर गया लेकिन बेटे पर चढ़ गया | शाम तक बुखार बहुत तेज हो गया | बीवी घबरा गयी | उसने घर के डाक्टर को फोन किया | उसने आकर देखा और दवाइयाँ लिख दीं | कोई फायदा नहीं हुआ | क़ुरबान अली का शरीर मानो आग में जल रहा था | बीवी रात-भर सिरहाने बैठी रही | सुबह डाक्टर फिर आया | खून की भी जांच हुई लेकिन समझ में नहीं आया कि मर्ज क्या है ? डाक्टर को चिंता हुई | क़ुरबान अली कौमा में चला गया | 

इधर बाप भी मरण-शय्या पर पड़ा था | उसको पूछने वाला कोई नहीं था | बीवी का रोते रोते बुरा हाल था |  बूढ़े के कानों में सबकी आवाज जा रही थी लेकिन कोई उसे कुछ बता नहीं रहा था | वो चुपचाप बिस्तर पर पड़ा छत को घूरता रहा | रात तक भी क़ुरबान अली को होश नहीं आया | बीवी सजदे  में चली गयी | 

आधी रात के करीब कमरे में खट  खट  की आवाज  गूंजी | बूढ़ा वाकर घसीटता हुआ क़ुरबान अली के कमरे की तरफ बढ़ रहा था | बीवी एक तरफ कुर्सी पर गठरी बनी औंघते औंघते गठरी बनी सो गयी थी | बाप किसी तरह बेटे के बिस्तर तक पहुंचा और सिरहाने बैठ गया | बाप का चेहरा एकदम शांत था |उसने एकबार दोनों हाथ ऊपर की ओर उठाए , दुआ मांगी | बेटे के चेहरे का दोनों हाथों से  कटोरा सा बनाया | ललाट को चूमा फिर उसका हाथ अपने हाथ में लेकर सहलाने लगा | वो उसके सारे जिस्म पर आहिस्ता आहिस्ता हाथ फेर रहा था | उसकी आँखों से आँसू निकल कर बेटे के जिस्म पर टप टप गिर रहे थे |

सुबह बीवी की आँख खुली तो उसने देखा फरमान अली बेटे पर लम्बा बेजान पड़ा था और बेटा द्रवित आँखों से छत को घूर रहा था |

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- शमोएल अहमद 
३०१, ग्रैंड पाटलिपुत्र अपार्टमेन्ट
नई पाटलिपुत्र कालोनी ,
पटना - 800013
MOB - 9835299303
shamoilahmad@gmail.com 

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हिन्दीकुंज,Hindi Website/Literary Web Patrika: लंबा लेट कहानी - शमोएल अहमद
लंबा लेट कहानी - शमोएल अहमद
लंबा लेट कहानी शमोएल अहमद फरमान अली बेटे कुरबान अली की पीठ पर लम्बा लेट गया था | और बेटा भी मरण-तुल्य बाप को एनिस Aeneas की तरह पीठ पर लादे शहर शहर
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