कोरोना महामारी में मजदूर वर्ग की आजीविका संकट में

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कोरोना महामारी में मजदूर वर्ग की आजीविका संकट में दुनिया अभी कोरोना की दूसरी लहर से पूरी तरह उभरी भी नहीं है कि कुछ देशों में फिर से बढ़ते आंकड़े तीसरी

कोरोना महामारी में मजदूर वर्ग की आजीविका संकट में


दुनिया अभी कोरोना की दूसरी लहर से पूरी तरह उभरी भी नहीं है कि कुछ देशों में फिर से बढ़ते आंकड़े तीसरी लहर की आशंका को जन्म देने लगे हैं। कोरोना की दूसरी लहर ने भारत में सबसे अधिक तबाही मचाई थी। इंसानी जानों के अलावा इसने अर्थव्यवस्था को भी ज़बरदस्त नुकसान पहुंचाया है। मध्यम और छोटे वर्ग के व्यापारियों के व्यापार चौपट हो गए वहीं उद्योग धंधों के बंद हो जाने से लाखों लोगों की नौकरियां चली गईं। कोविड-19 महामारी और इससे बचाव के लिए सरकार द्वारा लगाए गए लॉकडाउन की वजह से मजदूरों की आजीविका पर भी भारी संकट आ गया है। इसके कारण रोज़ाना मजदूरी कर परिवार का पेट भरने वाले मजदूरों की आजीविका लगभग खत्म हो गई है और वह आधा पेट खाना खाने को मजबूर हैं। जागरूकता की कमी के कारण सरकार द्वारा कोरोना काल में दी जाने वाली सुविधाओं का भी उन्हें किसी तरह का लाभ नहीं मिल सका है।

देश के अन्य राज्यों की तरह राजस्थान में भी कोरोना महामारी के कारण अर्थव्यवस्था को काफी नुकसान पहुंचा है। हालांकि आंकड़ों में कमी को देखते हुए राज्य सरकार द्वारा लॉकडाउन में छूट से राहत मिली है, लेकिन यह समस्या का हल नहीं हो सकता है। कई ऐसे गरीब परिवार हैं जिनका लॉकडाउन के कारण रोज़गार ख़त्म हो चुका है और अब उनके सामने आर्थिक संकट खड़ा है। इस संबंध में धौलपुर जिले के बसेड़ी नगर पालिका क्षेत्र के रहने वाले गोपाल बंजारा कहते हैं कि वह फेरी लगाने का काम करते थे, दिन भर काम करने के बाद जो पैसे बचते थे उससे घर का राशन आता था, जिससे उनका और तीन बच्चों का पेट भरता था। लेकिन मार्च 2020 के बाद लगातार लगने वाले लॉकडाउन से वह सामान बेचने तथा फेरी लगाने के लिए बाहर नहीं जा सके। जिसके कारण उनके परिवार को पर्याप्त भोजन नहीं मिल सका और कई दिनों तक उन्हें भूखे पेट सोने पर मजबूर होना पड़ा है।

गोपाल का बड़ा बेटा दैनिक मज़दूर है और वह अपनी पत्नी और बच्चों के साथ अलग रहता है। लेकिन इन दिनों उसे भी मजदूरी नहीं मिल रही है। जिससे उसके परिवार की हालत भी अच्छी नहीं है। उसे कर्ज लेकर अपने परिवार का पेट भरना पड़ रहा है। ऐसे में गोपाल बंजारा को उससे भी किसी प्रकार से मदद की उम्मीद नहीं है। उसे यह डर भी लग रहा है कि यदि कोरोना बीमारी उसके घर आ गई तो उनका इलाज कैसे होगा? उनके पास तो कोई बचत भी नहीं है। हालांकि राजस्थान सरकार मुख्यमंत्री चिरंजीवी स्वास्थ्य बीमा योजना के अंतर्गत अपने नागरिकों का इलाज सरकारी या निजी अस्पताल में निशुल्क करा रही है, लेकिन जागरूकता की कमी और विभागीय लापरवाही के कारण गोपाल और उसके जैसे कई लोग इस सुविधा से अनजान हैं। हालांकि एक अच्छी बात यह है कि केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी प्रधानमंत्री आवास योजना का उसे लाभ अवश्य मिला है जिससे उसका छोटा घर बन गया है, और उज्जवला योजना के तहत गैस कनेक्शन की सुविधा भी है, लेकिन आमदनी ख़त्म हो जाने के कारण वह गैस नहीं भरवा सकता है।

लॉकडाउन ने केवल दैनिक कामगारों और मज़दूरों के सामने ही संकट पैदा नहीं किया है बल्कि कई लोगों को बेरोज़गार भी कर दिया है। धौलपुर जिले के ही सैपऊ पंचायत समिति स्थित देहरी गांव के दिलीप कुमार शर्मा ने बताया कि उन्होंने नर्सिंग का कोर्स किया है, परंतु सरकार द्वारा पद खाली होने के बावजूद वैकेंसी नहीं निकाली गई, जिससे उन्हें मजबूर होकर बहुत कम वेतन पर नौकरी करनी पड़ी तो कभी मजदूरी करने पर भी मजबूर होना पड़ा है। इससे होने वाली आमदनी से परिवार का खर्च नहीं चल पा रहा है। उन्होंने बताया कि पिछले डेढ़ वर्ष से कोरोना संकट के बाद वह पूरी तरह से बेरोजगार हो चुके हैं। आमदनी नहीं होने की वजह से उच्च प्रोफेशनल पढ़ाई करने के बावजूद उसे अपने परिवार के पालन पोषण के लिए कई बार कर्ज लेना पड़ा है।

अब उन्हें इस बात की चिंता है कि यदि जल्द हालात सामान्य नहीं हुए और उन्हें नौकरी नहीं मिली तो परिवार का भरण पोषण कैसे करेंगे और क़र्ज़ के बढ़ते बोझ को पूरा कैसे करेंगे? इस विकट परिस्थिति का सामना कर रहे दिलीप कहते हैं कि कोरोना में गरीब आदमी का जीना दुश्वार हो गया है। गरीबों को जिंदा रहने के लिए बहुत संघर्ष करना पड़ रहा है। कई लोग इस परिस्थिति का सामना नहीं कर पा रहे हैं। आमदनी के सारे रास्ते बंद हो जाने और परिवार को भूखा मरते देख कई लोग आत्महत्या करने को मजबूर हो रहे हैं।

कोरोना महामारी में मजदूर वर्ग की आजीविका संकट में
कोरोना संकट से निपटने के लिए सरकार भी लॉकडाउन लगाने पर मजबूर है। लेकिन इससे मजदूर व्यक्ति घर पर बैठ गया है और उन्हें सरकार की ओर से पर्याप्त सुविधाएं भी नहीं मिल रही हैं। हालांकि गरीब आदमी को कोरोना संकट में आर्थिक मदद पहुंचाने के उद्देश्य से सरकार की ओर से कई योजनाएं बनाई गई और सुविधाएं भी प्रदान की गई हैं। लेकिन ज़मीनी स्तर पर यह योजनाएं पूरी तरह से कारगर नज़र नहीं आती हैं। कई बार यह भ्रष्टाचार की भेंट भी चढ़ जाती हैं। गरीब आदमी मजदूरी के लिए बाहर शहरों की तरफ जाता था, अब वह बाहर जाने से भी कतरा रहा है, क्योंकि बार-बार लॉकडाउन लगना और बार-बार घर आना, इसमें ही उसकी सारी आमदनी खर्च हो जा रही है।

कोरोना की पहली लहर से निपटने के लिए अचानक लगाए गए लॉकडाउन का प्रभाव दूसरी लहर की आहट में दिखा था, जब दुबारा देशव्यापी लॉकडाउन की अफवाह के कारण देश के महानगरों में काम करने वाले हज़ारों मज़दूर घर लौटने लगे थे। जिससे उन्हें काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा था। कइयों ने ट्रेनों में धक्के खाए तथा खाना भी नसीब नहीं हुआ, वहीं कुछ मज़दूरों को सुरक्षित घर वापसी के लिए किराए के रूप में अपनी सारी बचत बस वालों और ट्रक वालों को देनी पड़ी।

विडंबना यह है कि कोरोना संकट के मद्देनज़र लगने वाले लॉकडाउन के कारण उद्योग धंधे सब ख़त्म हो चुके हैं। सुक्ष्म और लघु उद्योग पर ताले लग गए हैं। असंगठित क्षेत्र के लाखों मज़दूर बेरोज़गार हो चुके हैं। इस समय मजदूर वर्ग कर्ज लेकर अपने परिवार का पेट भर रहा है। इस कर्ज की वापसी अगले कितने वर्षों में पूरी हो पायेगी उसे पता नहीं है, क्योंकि कोरोना का काल कब तक चलता रहेगा और उसे मजदूरी कब मिलेगी, इसकी कोई गारंटी नहीं है।  दिलीप और उसके जैसे कई युवाओं को यह लगता है कि इस कोरोना काल से जाने कितनी पीढ़ियों का भविष्य अंधकार में चला गया है। मोबाइल की समुचित सुविधा नहीं होने के कारण ग्रामीण क्षेत्रों के बच्चों को ठीक तरह से ऑनलाइन क्लास की सुविधा भी नहीं मिल पा रही है। जिससे उनकी पढ़ाई लगभग छूट चुकी है। ऐसा लग रहा है कि बच्चे पढ़ाई छोड़ देंगे। इससे उनका भविष्य खतरे में है।

वहीं इस संकट ने पढ़े लिखे और उच्च प्रोफेशनल डिग्री वाले युवाओं को भी बेरोज़गारी की दहलीज़ पर लाकर खड़ा कर दिया है। कंपनियों के बंद होने से जहां हज़ारों नौजवान सड़कों पर आ गए हैं वहीं सरकार ने भी रोज़गार के दरवाज़े बंद कर रखे हैं। बसेडी पंचायत समिति के धरमपुरा ग्राम के निवासी रघुराज ने बताया कि एक वर्ष से वह बेरोज़गार हैं और किसी प्रकार से मज़दूरी कर अपना और परिवार का भरण पोषण कर रहे थे। लेकिन लॉकडाउन ने उनसे यह अवसर भी छीन लिया। शहर से लेकर गांव तक उसे रोज़गार की बात तो दूर, दैनिक मज़दूर के रूप में भी कोई काम नहीं मिल रहा है।

कोरोना की दूसरी लहर की भयानक त्रासदी के बाद केंद्र से लेकर राज्य सरकार तक तीसरी लहर को रोकने के लिए कई योजनाओं पर काम कर रही है, लेकिन इसका अंतिम विकल्प लॉकडाउन ही होता है, जो इसकी चेन को तोड़ने में कारगर है। लेकिन अब सरकार को लॉकडाउन के साथ साथ ऐसे विकल्पों पर भी योजना बनाने की आवश्यकता है जिससे मज़दूर वर्ग की आजीविका के संकट का हल हो सके। यह वह वर्ग जो हमारी अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। इस रीढ़ को भुखमरी और क़र्ज़ से बचाने की सबसे अधिक आवश्यकता है। (चरखा फीचर)



- अरुण जिंदल,
जयपुर, राजस्थान

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