सातवां आम चुनाव 1980

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सातवां आम चुनाव 1980 : इंदिरा गांधी की जबर्दस्त वापसी इंदिरा गांधी ने किस तरह आपातकाल की वजह से खोया जनसमर्थन वापस पाया । सातवीं लोकसभा का कार्यकाल

सातवां आम चुनाव 1980 : इंदिरा गांधी की जबर्दस्त वापसी

सातवें आम चुनाव ने दिखाया कि इंदिरा गांधी ने किस तरह आपातकाल की वजह से खोया जनसमर्थन वापस पाया । सातवीं लोकसभा का कार्यकाल प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की नृशंस हत्या का भी गवाह बना । जनता पार्टी के अंदर मचे घमासान और देश में हुई राजनीतिक अस्थिरता ने इंदिरा का साथ दिया और वह चौथी बार देश की पी.एम. बनीं । जनवरी 1980 में हुए इस चुनाव में कांग्रेस (आई) ने 353 सीटों पर जीत दर्ज की । 1977 में पहले जनता पार्टी और फिर चरण सिंह की सरकार गिरने के बाद 1980 में लोकसभा चुनाव हुए । 1977 के चुनाव में जनता ने देखा कि गठबंधन कर के कांग्रेस को हराया जा सकता है । वहीं 1980 में हुए सातवें आम चुनाव ने दिखाया कि इंदिरा गांधी ने किस तरह आपातकाल की वजह से खोया जनसमर्थन वापस पाया । सातवीं लोकसभा का कार्यकाल प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की नृशंस हत्या का भी गवाह बना । आपातकाल के बाद जनता का सीधा सामना कर रहीं इंदिरा की नई पार्टी कांग्रेस (आई) के लिए यह चुनाव आसान नहीं था । उनके सामने हर तरफ कठिन राजनीतिक चुनौती थी । जैसे बिहार में सत्येंद्र नरायण सिन्हा और कर्पूरी ठाकुर, कर्नाटक में रामाकृष्ण हेगड़े, महाराष्ट्र में शरद पवार, हरियाणा में देवी लाल और ओडिशा में बीजू पटनायक । सभी अपने क्षेत्र में अच्छी पकड़ रखते थे । हालांकि, जनता पार्टी के अंदर मचे घमासान और देश में हुई राजनीतिक अस्थिरता ने इंदिरा का साथ दिया और वह चौथी बार देश की प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठीं । जनवरी 1980 में हुए इस चुनाव में कांग्रेस (आई) ने 353 सीटों पर जीत दर्ज की । वहीं कुछ दलों के अलग होने के बाद जो जनता पार्टी बची थी, वह 31 सीटों पर सिमट गई । कांग्रेस के समर्थन वापस लेने की वजह से पी.एम. पद से इस्तीफा देने वाले चरण सिंह की जनता पार्टी (सेक्युलर) ने 41 सीटें जीती थीं । 

जरनैल सिंह भिंडरावाला का उदय 

सातवां आम चुनाव 1980
इंदिरा गांधी
1977 में कांग्रेस को बाकी राज्यों की तरह पंजाब में भी बुरी तरह हार का सामना करना पड़ा था । इसके बाद अकाली दल ने सरकार बनाई । इस बीच पंजाब में अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए कांग्रेस ने जरनैल सिंह भिंडरावाला का सहारा लिया । कहा जाता है कि भिंडरावाला को शुरुआत में सीधा ज्ञानी जैल सिंह और संजय गांधी का समर्थन प्राप्त था । 1980 के चुनाव में भिंडरावाला ने कांग्रेस के लिए प्रचार भी किया था लेकिन इसी बीच पंजाब में हिंदी को बढ़ावा देने के लिए मुहिम चलाने वाले एक अखबार के मालिक की हत्या कर दी गई । इसमें भिंडरावाला का नाम आया और उसे गिरफ्तार भी किया गया लेकिन कांग्रेस ने उसे रिहा करवा दिया । इससे भिंडरावाला और शक्तिशाली हो गया ।

खालिस्तान की मांग, एशियाड खेलों का आयोजन 

साल 1981, अगले साल नवंबर-दिसंबर में देश में एशियाड खेलों का आयोजन होना था । 30 साल बाद देश में इतना बड़ा आयोजन होने वाला था । कांग्रेस इसके लिए कमर कस रही थी । दूसरी तरफ भिंडरावाला ने धमकी दी कि पंजाब की विभिन्न मांगों (आनंदपुर साहब प्रस्ताव) को लेकर वह दिल्ली में प्रदर्शन करेगा । इसे देखते हुए पंजाब बॉर्डर की सुरक्षा-व्यवस्था चुस्त की गई । इसमें दिल्ली आनेवाले सिखों को संदेह की नजरों से देखा जाने लगा । पाकिस्तान से जंग के बाद बांग्लादेश निर्माण में अहम भूमिका निभाने वाले आर्मी अफसर जगजीत सिंह अरोड़ा को भी इस अपमान का सामना करना पड़ा । इस मुद्दे को भिंडरावाला ने भुनाया जिससे पंजाब का गुस्सा बढ़ता गया । इस बीच वहां खालिस्तान की मांग कर रहे लोगों और उग्रवाद के बढ़ने की खबरें आईं ।

पंजाब को शांत करने के लिए इंदिरा ने ज्ञानी जैल सिंह को राष्ट्रपती बनाया । इंदिरा को उम्मीद थी कि एक सिख का राष्ट्रपती बनना पंजाब की मौजूदा स्थिति में सुधार लाएगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ । इस बीच 1983 में पंजाब में एक बस हत्याकांड हुआ जिसमें हिंदुओं का लाइन से कत्ल किया गया । इसके बाद इंदिरा ने पंजाब की दरबारा सिंह सरकार को हटाकर राष्ट्रपती शासन लगा दिया ।


ऑपरेशन ब्लू स्टार और इंदिरा गांधी की हत्या 

पंजाब में राष्ट्रपती शासन लगने के बाद भिंडरावाला ने स्वर्ण मंदिर के अकाल तख्त पर कब्जा कर लिया । इसके बाद समझौते की तमाम कोशिशें विफल होने के बाद 6 जून 1984 को “ऑपरेशन ब्लू स्टार” हुआ जिसमें भिंडरावाला को मार गिराया गया । इस हमले में स्वर्ण मंदिर को काफी नुकसान पहुंचा और निर्दोष लोगों के मारे जाने की बातें भी सामने आईं । इस घटना के बाद भी पंजाब में उग्रवाद कम नहीं हुआ । ऑपरेशन ब्लू स्टार का बदला लेते हुए 31 अक्टूबर 1984 को इंदिरा के ही 2 अंगरक्षकों ने उनकी गोली मारकर हत्या कर दी । इंदिरा गांधी की हत्या के बाद देशभर में हिंसा की घटनाएं हुईं । दंगों में सिखों को निशाना बनाया गया जिसमें करीब 2500 लोग मारे गए । देश में फैली अशांती को खत्म करने के लिए जल्दबाजी में राजीव गांधी को प्रधानमंत्री की शपथ दिलवाई गई । इसके बाद राजीव ने पंजाब के जाने-माने नेता हरचंद सिंह लोंगवाल से हाथ मिलाकर आनंदपुर साहब प्रस्ताव की कुछ शर्तों को माना लेकिन पंजाब के अलगाववादियों को यह समझौता मंजूर नहीं था और उन्होंने लोंगवाल की भी हत्या कर दी । इसके बाद करीब 10 साल तक पंजाब में राष्ट्रपती शासन लगा रहा लेकिन राज्य का उग्रवाद 1996 तक खत्म नहीं हुआ क्योंकि उस साल वहां सी.एम. बेअंत सिंह की हत्या हो गई थी ।


सातवां आम चुनाव 1980 चुनाव की मुख्य बातें 

*सातवीं लोकसभा के लिए जब चुनाव हुए तब साल था १९८० का । ये चुनाव ०२ दिन तक अर्थात ०३ जनवरी से ०६ जनवरी तक चले ।सातवीं लोकसभा के लिए उस समय २५ राज्यों और ०६ केंद्रशासित प्रदेशों में ५२९ सीटों के लिए चुनाव हुए ।

*देश की सातवीं लोकसभा १० जनवरी १९८० को अस्तित्व में आई ।

*सातवीं लोकसभा के चुनाव हेतु ४,३६,८१३ चुनाव केंद्र स्थापित किए गए थे । 

*उस समय मतदाताओं की कुल संख्या ३५.६२ करोड़ थी । 

*उस समय ५६.९२ % मतदान हुए थे । 

*सातवीं लोकसभा के लिए ५२९ सीटों के लिए हुए चुनाव में कुल ४६२९ उम्मीदवार चुनावी मैदान में थे जिन में से ३४१७ उम्मीदवारों की ज़मानत ज़ब्त हुई थी। 

*इस चुनाव में कुल १४३ महिला उम्मीदवार चुनाव लड़ रही थी जिन में से २८ महिला उम्मीदवार जीत दर्ज कराने में सफल हुई । 

*५२९ सीटों के लिए हुए इस चुनाव में ७९ सीटे अनुसूचित जाती के लिए और ४१ सीटे अनुसूचित जनजाती के लिए आरक्षित रखी गई थी । 

*सातवीं लोकसभा के लिए हुए चुनाव में ३६ राजनीतिक दलों ने भाग लिया था जिन में से राष्ट्रीय राजनीतिक दलों की संख्या ०६ और राज्य स्तरीय राजनीतिक दलों की संख्या १९ थी जबकि ११ पंजीकृत अनधिकृत राजनीतिक दल भी इस चुनाव में अपनी किस्मत आज़मा रहे थे     । 

*राष्ट्रीय राजनीतिक दलों ने कुल १५४१ उम्मीदवार चुनावी मैदान में उतारे थे, जिन में से ४४४ उम्मीदवारों की ज़मानत ज़ब्त हुई थी और राष्ट्रीय राजनीतिक दलों के ४८५ उम्मीदवार जीत दर्ज कराने में सफल हुए थे । इस चुनाव में राष्ट्रीय राजनीतिक दलों को कुल वोटों में से ८५.०७ % वोट मिले थे ।

*इस चुनाव में राजयस्तरीय राजनीतिक दलों ने कुल १०६ उम्मीदवार खड़े किए थे।  रिकॉर्ड के अनुसार इन १०६ प्रत्याशीयों में से २८   प्रत्याशीयों की ज़मानत ज़ब्त हुई थी और ३४ प्रत्याशी लोकसभा में पहुंचे थे।  इस चुनाव में राजयस्तरीय राजनीतिक दलों को कुल वोटो में से ७.६९ % वोट मिले थे। 

*इस चुनाव में पंजीकृत अनधिकृत राजनीतिक दलों ने १५६ उम्मीदवार चुनावी मैदान में उतारे थे। इन १५६ उम्मीदवारों में से १५१  उम्मीदवार अपनी ज़मानत बचाने में भी विफल रहे जबकि केवल ०१ उम्मीदवार लोकसभा तक पहुँचने में सफल हुआ। इस चुनाव में पंजीकृत अनधिकृत राजनीतिक दलों को कुल वोटो में से ०.८१ % वोट मिले थे। 

*इस चुनाव में कुल २८२६ निर्दलीय उम्मीदवार चुनावी मैदान में थे।  इन २८२६ निर्दलीय उम्मीदवारों में से ०९ उम्मीदवार जीत दर्ज कराने में सफल हुए थे।  कुल वोटो में से ६.४३ % वोट निर्दलीय उम्मीदवारों ने प्राप्त किए थे जबकि २७९४ निर्दलीय उम्मीदवारों की ज़मानत ज़ब्त होने का रिकॉर्ड मौजूद है।

*इस चुनाव में कांग्रेस (आई) सब से बड़े दल के रूप में सामने आया। ५२९ सीटों के लिए हुए इस चुनाव में कांग्रेस (आई) के ४९२ उम्मीदवार चुनावी मैदान में थे।  इन में से ३५३ उम्मीदवार जीत दर्ज करा कर लोकसभा पहुँचने में सफल हुए तो वही ०७ उम्मीदवारों की ज़मानत ज़ब्त होने का उल्लेख भी रिकॉर्ड में मौजूद है। इस चुनाव में कांग्रेस (आई) को कुल वोटो में से ४२.६९ % वोट मिले थे।

*जनता दल (धर्मनिरपेक्ष) दूसरा सब से बड़ा दल बन कर उभरा था।  जनता दल (धर्मनिरपेक्ष) ने कुल २९३ उम्मीदवार चुनावी मैदान में उतारे थे।  इन २९३ उम्मीदवारों में से १५२ उम्मीदवारों की ज़मानत जब्त हुई थी जबकि ४१ उम्मीदवार लोकसभा पहुँचने में सफल हुए थे। जनता दल (धर्मनिरपेक्ष) को कुल वोटों में से ९.३९ % वोट मिले थे।  

*उस समय की प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी उस समय सातवीं लोकसभा के लिए हुए इस चुनाव में आँध्रप्रदेश के मेडक चुनाव क्षेत्र से चुनाव जीत कर लोकसभा पहुंची थी।

*सरकारी आंकड़ों से पता चलता है कि सातवीं लोकसभा के लिए हुए इस चुनाव में ५४,७७,३९,००० (५४ करोड़, ७७ लाख, ३९ हज़ार रुपये) रुपये की राशि खर्च हुई थी ।  

*उस समय श्री एस. एल. शकधर भारत के मुख्य चुनाव आयुक्त हुआ करते थे, जिन्होंने ये चुनाव सफलतापूर्वक संपन्न कराने में बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।  

*सातवीं लोकसभा ३१ दिसंबर १९८४ को विसर्जित की गई। 

*इस चुनाव के बाद सातवीं लोकसभा के लिए २१ और २२ जनवरी को शपथ ग्रहण समारोह आयोजित किया गया था।  

*सातवीं लोकसभा के सभापती पद हेतु २२ जनवरी १९८० को चुनाव हुए और श्री बलराम को सभापती और जी. लक्ष्मणन  को उपसभापती के रूप में चुना गया।  

*सातवीं लोकसभा के कुल १५ अधिवेशन और ४६४ बैठके हुई।  इस लोकसभा में कुल ३३६ बिल पास किए गए थे जिस का रिकॉर्ड मौजूद है। 

*सातवीं लोकसभा की पहली बैठक २१ मार्च १९८० को हुई थी।

*सातवीं लोकसभा की ५२९ सीटों के लिए हुए इस चुनाव में ४८५ सीटों पर राष्ट्रीय राजनीतिक दलों ने, ३४ सीटों पर राज्यस्तरीय राजनीतिक दलों ने, ०१ सीट पर पंजीकृत अनधिकृत राजनीतिक दलों ने जबकि ०९ सीटों पर निर्दलीय उम्मीदवारों ने जीत दर्ज की।



प्रा. शेख मोईन शेख नईम 
डॉ. उल्हास पाटील लॉ कॉलेज, जलगाव 
7776878784

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