देश के प्रति हमारा कर्तव्य पर निबंध

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देश के प्रति हमारा कर्तव्य पर निबंध जीवन में कर्त्तव्य का महत्व देश के प्रति निष्ठा ही है हमारा उत्तरदायित्व देश के प्रति युवको का कर्तव्य मातृभूमि के

जीवन में कर्त्तव्य का महत्व या देश के प्रति हमारा कर्तव्य

देश के प्रति निष्ठा ही है हमारा उत्तरदायित्व Desh Ke Prati Hamara Kartavya Essay in Hindi देश के प्रति युवको का कर्तव्य निबंध देश के प्रति हमारे कर्तव्य विषय पर अपने विचार लिखिए मातृभूमि के प्रति हमारा कर्तव्य - यदि हम विचार कर देखें तो विश्व का यह विराट स्वरूप जो हमारे सामने दिखाई देता है वह वास्तव में कर्तव्य पालन का ही परिणाम है। यदि संसार के समस्त प्राणी-जड़ अथवा चेतन अपना-अपना कर्तव्य छोड़ दें तो सृष्टि के समस्त सौन्दर्य को नष्ट होने में देर नहीं लगेगी। 

मानव जो विकास के सोपानों में बढ़ता हुआ आज इस स्थिति में पहुंचा है वह कर्तव्य पालन के ही कारण। जीवन की रक्षा और विकास के लिए इस गुण की नितांत आवश्यकता होती है और जिस किसी ने इसकी अवहेलना की है उसे पतन का मुख देखना पड़ा  है। कर्तव्य पालन ही शक्ति, सम्मान और यश का प्रमुख माध्यम है। जिस प्रकार एक सुन्दर पुष्प की सुगन्ध वातावरण को सुन्दर बना देती है और लोग उस पर मुग्ध हो जाते हैं उसी प्रकार कर्तव्य की सुगन्ध यश के रूप में समाज को सुवासित कर देती है। 

कर्तव्य पालन धर्म है

कर्तव्य पालन मनुष्य मात्र का धर्म है। प्रत्येक मनुष्य को अपना कर्तव्य पहचानना चाहिए और तदनुकूलं कार्य करना चाहिए। भिन्न-भिन्न परिस्थितियो में और भिन्न-भिन्न समय पर मनुष्यों के कर्तव्य परिवर्तित होते रहते हैं। मानव-जीवन अनेक कर्तव्यों की समष्टि है। कभी हमें माता-पिता के प्रति अपना कर्तव्य-पालन करना पड़ता है कभी स्त्री के प्रति, कभी सन्तान के प्रति, कभी देश के प्रति। सच्चा मनुष्य वही है जो बाधाओं से विचलित न होकर अपने कर्तव्य पथ पर आरूढ़  रहता है। चाहे उसे प्राणों का ही उत्सर्ग क्यों न करना पड़े वह टस से मस नहीं होता। 

कर्त्तव्य पालन से लाभ 

देश के प्रति हमारा कर्तव्य पर निबंध
कर्तव्य-पालन से अनेक लाभ है। इससे मनुष्य को अपूर्व उन्नति होती है। यहाँ तक कि इसके प्रताप से रंक राजा बन जाता है। दीन-हीन व्यक्ति राजा तक के हृदय पर अपना अधिकार जमा लेता है। झोपड़ी से लेकर राजमहल तक कर्तव्य-निष्ठ व्यक्ति का आदर होता है। वह समाज के लिए आदर्श बन जाता है। प्रत्येक मनुष्य के हृदय में इसके प्रति अटूट श्रद्धा होती है और लोग उसका अनुकरण करने में अपना सौभाग्य समझते हैं। इस प्रकार कर्तव्य-पालन व्यक्ति से समाज का बड़ा हित होता है। वह स्वंय तो समाज और देश का भुख उज्ज्वल करता ही है, उसके प्रभाव से भी उनका बहुत उत्थान होता है। ऐसे मनुष्य को इस लोक में तो यश मिलता है, परलोक में शांति मिलती है। मृत्यु पश्चात संसार में उसकी पूजा होती है, सदैव के लिए उसका नाम अजर-अमर हो जाता है। इतिहास में उसका नाम स्वर्णाक्षरों में लिखा जाता है। कर्तव्य-निष्ठ व्यक्ति वास्तविक सुख का अनुभव करता है। संसार की दृष्टि में उसका जीवन कंटकाकीर्ण होता है, क्योंकि उसे सब प्रकार के सुखों को तिलांजलि देनी पड़ती है, यहाँ तक कि प्राणों पर खेलने के लिए तैयार रहना पड़ता है, किन्तु वह उसे दुःख नहीं समझता। सफलता प्राप्त करने पर तो उसे हर्ष होता ही है, पर असफल होने पर भी उसे इस बात का सन्तोष रहता है कि हमने अपना कर्तव्य-पालन किया। जो कर्तव्य-पालन करता है उसकी आत्मा भी निरन्तर उन्नति की ओर अग्रसर होती जाती है।अपने कर्तव्य का पालन करना ही ईश्वर की सच्ची सेवा है, ईश्वर की सच्ची भक्ति है।  

कर्तव्ययान महापुरुष

विश्व का इतिहास कर्तव्य-परायण महापुरुषों की गौरव-गाथाओं से जगमगा रहा है। इटली में विसूवियस नामक ज्वालामुखी फटने पर नगर भर के नर-नारी भाग गये, परन्त एक सन्तरी ने अपना स्थान न छोड़ा। वह पहरे पर था। दूसरे किसी सन्तरी के आये बिना पहरे से कैसे हटे ? वह अपने कर्तव्य-पालन में ऐसा तत्पर रहा कि वहीं डटे रहकर उसने प्राण त्यागे। भला ऐसे कर्तव्य-परायण व्यक्ति की कौन प्रशंसा न करेगा? ऐसे सपूतों से देश का मुख उज्ज्वल होता है। हमारे देश में भी कर्तव्य-निष्ठ मनुष्यों का आविर्भाव हुआ। कुन्ती ने दीन बाह्मण की रक्षा के लिए अपने प्रिय पुत्र भीम को भयंकर राक्षस बकासुर के पास भेजने में तनिक भी आगा-पिछा नहीं किया। शरणागत की रक्षा के लिए, कर्तव्य-पालन में तनिक भी दिलाई नहीं किया। शरणदाता की रक्षा के लिए कर्तव्य-पालन का इससे उत्कृष्ट उदाहरण और कहाँ मिल सकता है ? पन्ना धाय ने राजकुमार उदयसिंह की प्राण-रक्षा उसके स्थान पर अपने पुत्र को देखते-देखते बध कराके स्वामी के प्रति इस कर्तव्य-पालन के उदाहरण को सुनकर किसके मुख से 'धन्य-धन्य' शब्द न निकल पड़ेंगे? शरणागत की रक्षा का उदाहरण भगवान राम के चरित्र में मिलता है। जब रावण ने विभीषण पर प्राण-घातिनी शक्ति छोड़ी तब रामचन्द्रजी ने उसे स्वंय अपने ऊपर ले लिया। इस प्रकार विभीषण के प्राण बच गये। यह है कर्तव्य-पालन। हमारे महात्मा गाँधी भी कर्तव्य-पालन की जीती-जागती मूर्ति थे। जिस कार्य को करना वे अपना कर्तव्य समझते थे, उसका सम्पादन करने में प्राणों तक का उत्सर्ग - करने के लिए उद्यत हो जाते थे। कई बार उन्होंने कर्तव्य-पालन के लिए आमरण उपवास किये। अन्त में वे कर्तव्य-पालन में ही शहीद हुए। 

देश के प्रति निष्ठा ही है हमारा उत्तरदायित्व

खेद का विषय है कि जिस देश में ऐसे कर्तव्य-निष्ठ महान् आत्माएं उत्पन्न हुई उस देश के लोग कर्तव्य-निष्ठ नहीं। हम लोगों की प्रवृत्ति हो गई है कि जब तक कोई कष्ट या हानि होने की सम्भावना नहीं होती है तब तक कही हम अपना कर्तव्य-पालन करते हैं। क्या हमारे लिए यह लज्जा की बात नहीं है? हम अपने स्वार्थ के सम्मुख कर्तव्य-पालन के उच्च आदर्श को ठुकरा देते हैं। यही कारण है कि हमने अपने देश को अवनति के गर्त में डाल रखा है और आज हम आठ-आठ आसूँ  रो रहे हैं। हम देश के नवयुवकों को यदि भारत का मस्तक ऊंचा करना है, यदि अपने पूर्वजों की शान रखनी है, तो हमें कर्तव्य-परायण बनना होगा, कर्तव्य-पालन में सर्वस्व बलिदान करने के लिए सदैव कटिबद्ध रहना पड़ेगा। 


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