पंचतत्वों की कहानी नाटक नूतन गुंजन

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Panchtatvon Ki Kahani पंचतत्वों की कहानी पाठ के प्रश्न उत्तर Question Answer of Panchtatvon Ki Kahani Panchtatva ki kahani 8th ICSE Nutan gunjan Hindi

पंचतत्वों की कहानी नाटक


Panchtatvon Ki Kahani पंचतत्वों की कहानी पाठ के प्रश्न उत्तर Question Answer of Panchtatvon Ki Kahani Panchtatva ki kahani 8th ICSE Nutan gunjan Hindi Pathmala 8 Solutions

पंचतत्वों की कहानी नाटक का सारांश

प्रस्तुत पाठ पंचतत्वों की कहानी  से लिया गया है। इस पाठ में पर्यावरण दिवस के अवसर पर एक नाटक का कार्यक्रम रखा जाता है, जिसका शीर्षक है  पंचतत्वों की कहानी , इस नाटक में पाँच हमउम्र के बालक-बालिका होते हैं जो अलग-अलग अभिनय करते हैं। यह नाटक प्रकृति के पंचतत्व पर आधारित है। आयुर्वेद में पंच महाभूतों की चर्चा मिलती है। इसमें कहा गया है कि सृष्टि और मानव शरीर का निर्माण पंचतत्वों से हुआ है - पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश। इसके बिना जीवन की कल्पना असंभव है | ये पांचों तत्व इंद्रियों के पाँच गुणों के साथ भी जुड़े हैं। जैसे पृथ्वी तत्व को इंद्रियों के पाँच गुणों - सुनना, छूना, देखना, चखना, सूंघना द्वारा जाना जा सकता है। जल की कोई गंध नहीं होती लेकिन इसे सुना, छूआ, देखा और चखा जा सकता है। अग्नि सुना देखा व महसूस किया जा सकता है। वायु को भी सुन और महसूस कर सकते हैं। आकाश केवल ध्वनि का माध्यम होता है। इस नाटक में पंचतत्व पांच पात्रों के माध्यम से अपनी कहानी बताते हैं- नाटक में पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश और समय भाग लेते हैं।

नाटक प्रारंभ होता है | समय कुर्सी पर विराजमान होता है | समय ने ही पर्यावरण दिवस के अवसर पर इस कार्यक्रम का आयोजन किया है और सभी पंचतत्वों को बुलावा भेजा है। धीरे-धीरे सभी प्रवेश करते हैं। पृथ्वी पहुँचते ही तारीफ करने लगता है कि वाह दादा कितना सुन्दर आयोजन है स्वच्छ और सुव्यवस्थित, तभी जल भी कहता है हाँ यहाँ की सुंदरता और स्वछता देख हृदय खिल उठा है। समय कहता है मैंने यह आयोजन तुम सबके लिए ही रखा है। ताकि मनुष्य तुम सब का महत्व समझ सके तुम सब एक दूसरे से जुड़े हो। पृथ्वी कहता है कि मैं आरंभ में एक जलते हुए वाष्पपुंज के रूप में थी। तभी जल कहता है कि हाँ पृथ्वी तुम्हारे ताप से ही मेरा जन्म हुआ है। वाष्प के रूप में मैं वायुमंडल में जाकर फिर से बादल बनकर तुमपर बरसती थी। आकाश ने कहा हां जल तुम्हारे अथक प्रयास के कारण ही पृथ्वी ठंडी हुई है। 

पृथ्वी मुस्कुराते हुए कहती है जब मैं सूर्य से अलग हुई तो बहुत तप रही थी, लेकिन बस इतना ही मेरा ताप कम हुआ कि मेरे ऊपरी सतह पर पपड़ी-सी जम गई और जैसे ही मेरे भीतर का ताप ठंडा होने लगा भीतरी सतह सिकुड़ने लगी जिससे बाहर भी सिकुड़ने लगा और सिकुड़न के कारण ही पहाड़ और घाटियों का निर्माण हुआ। फिर भी मैं ज्वालामुखी के रूप में विद्यमान थी जो भूकंप के रूप में लावा की अग्नि बनकर बाहर आता था। समय ने पृथ्वी से कहा लेकिन तुम्हें जल ने ठंडा किया जिससे तुम शीतल हुई और जल  घनघोर वर्षा के रूप में तुम्हारे धरातल पर ठहरने लगी जिससे समुद्र बना और जीवों की उत्पत्ति भी संभव हुई। अग्नि ने कहा कि जब मूसलाधार बारिश के बाद मैं धरती पर सूर्य के किरणों के रूप में पहुँची और जीवों की उत्पन्न होने की प्रक्रिया शुरू हुई। 

पंचतत्वों की कहानी नाटक नूतन गुंजन
इसी तरह से वायु ने अपनी बात कही मैं पृथ्वी के चारों ओर की मिलो तक फैली हूँ। मुझमें भी गैसों का मिश्रण है। शुरुवात में मुझमें कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा ज्यादा थी, जिसमें से कुछ चट्टानों के कार्बोनेट के रूप में परिवर्तित हो गई और कुछ समुद्र में अवशोषित हो गई। वायु ने कहा कि जीवों और वनस्पतियों की व्युत्पत्ति के लिए ऑक्सीजन की आवयश्कता होती है, जिसे मैंने पूरा किया। पृथ्वी ने वायु का धन्यवाद किया इस नेक कार्य के लिए। समय ने बताया कि जब जीवन के अंकुर पनप रहे थे, तब रासायनिक प्रक्रियाओं के चलते एक हरे का क्लोरोफिल नामक पदार्थ पैदा हुआ। यह हरा पदार्थ सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में जल की सहायता से कार्बन डाइऑक्साइड को ऑक्सीजन में बदल देता था । यह पदार्थ जीवन के लिए आवश्यक तत्व बन गया। इसकी सहायता से ही हरे रंग वाली एककोशिकीय जीव पौधे के रूप में विकसित हुए | इसके बाद संसार में विभिन्न प्रकार के वनस्पतियां विकसित हुई और धीरे-धीरे पृथ्वी का दामन जीव-जंतुओं और वनस्पतियों से भर गया। 


तभी पृथ्वी उदास होकर बोली दादा देखो प्रारम्भ में सब कितना सुंदर था, मैं कितनी हरी-भरी चारों ओर जंगल-ही-जंगल लेकिन अब देखो मेरा आँचल कितना रंगहीन हो गया है। इस पर जल ने कहा मनुष्य चकाचौंध में इतना अंधा हो गया है कि उसने हम पंचतत्वों की उपयोगिता को अनदेखा कर दिया है | जल को दूषित कर दिया, पृथ्वी पर मेरा पेय और मीठा स्वरूप बहुत कम मात्रा में है लेकिन मनुष्य इसका दुरुपयोग कर रहा है। वायु भी कहती है कि मुझे भी मनुष्यों ने गन्दा कर दिया है अत्याधुनिक उपकरणों और कारखानों से निकलने वाली दूषित, जहरीली गैस के कारण सांस लेना भी मुश्किल है जो कई बीमारियों का कारण बन रही है। इस पर आकाश भी बोल पड़ता है, वायु सही कर रहा है जंगलों की कटाई और दूषित गैसों के कारण मेरा ओजोन परत को भी नुकसान हुआ है जिसके कारण सूर्य की पराबैंगनी किरणों को रोकना कठीन हो रहा है। अग्नि भी कहता है कि मानवों के इन परिणामों के कारण मेरा ताप मनुष्य जाति के लिए असहाय होता जा रहा है। समय सभी की बातों को सुनकर कहता है आप सभी का चिन्तित होना स्वभाविक है, हम सब एक दूसरे पर निर्भर हैं, मनुष्य और प्रकृति पंचतत्वों से मिलकर बने हैं। मनुष्य के शरीर में जल अधिक मात्रा में है। जल वायु तत्व को बनाता है। वायु वनस्पति से आती है, पौधे हमें ऑक्सीजन देती है। वायु अग्नि तत्व को बनाती है। अग्नि से जलने के बाद जो बनता है वह पृथ्वी तत्व है। पृथ्वी के चारों ओर आकाश का आवरण है। आकाश में बादलों से जल बरसता है यह जल तत्व को बनाता है। इस प्रकार जीवन में उत्पत्ति का चक्र चलता है। 

और अंत में सभी ने एक साथ मिलकर पर्यावरण दिवस के अवसर पर पाँचो तत्वों ने मानव जाति को यह संदेश दिया की अपनी विचारधारा बदलो । प्रकृति के साथ सामंजस्य बनाते हुए उसके अनुकूल होकर चलो। प्रकृति से केवल लेना ही नहीं, देना भी सीखो | क्योंकि अगर अब भी सचेत नहीं हुए तो आनेवाली पीढ़ी के लिए कुछ नहीं बचेगा। और इस तरह से नाटक से बहुत कुछ सीखने को मिला जिसको हमारे जीवन में उतारने से हमें ही लाभ होगा और हमारा पर्यावरण स्वच्छ और सुन्दर बना रहेगा | यह नाटक हमें यही सिखाता है कि पर्यावरण और हम एक-दूसरे से जुड़े हैं | किसी एक के भी न होने से जीवन संभव नहीं है | इसलिए प्रकृति को बचाए रखना हमारा कर्तव्य है...||  

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पंचतत्वों की कहानी पाठ के प्रश्न उत्तर


प्रश्न-1 समय ने पर्यावरण दिवस का आयोजन क्यों किया ?

उत्तर- 
समय ने पर्यावरण दिवस का आयोजन इसलिए किया क्योंकि वह मानव जाति को पर्यावरण का महत्व समझाना चाहता था तथा पंचतत्व पृथ्वी, वायु, जल, अग्नि और आकाश के प्रति लोगों को सचेत करना ही उसका मुख्य उद्देश्य था। 

प्रश्न-2 पृथ्वी अपनी आरंभिक अवस्था में कैसी थी ? 

उत्तर- 
पृथ्वी अपने आरंभिक अवस्था में जलते हुए वाष्पपुंज के रूप में थी | 

प्रश्न-3 कार्बन डाइऑक्साइड के बारे में पृथ्वी ने कौन सी महत्वपूर्ण बात बताई ? 

उत्तर- 
कार्बन डाइऑक्साइड के बारे में पृथ्वी ने बताया कि यह उसकी सतह के तापमान को ग्रीन हाउस प्रभाव द्वारा 35℃ तक बनाए रखता है | अगर यह 21℃ से 14℃ होता अर्थात् कार्बन डाइऑक्साइड के अभाव में समुद्र जम जाते और पृथ्वी पर जीवन की संभावना नहीं होती। 

प्रश्न-4 वायु ने अपने दूषित होने के क्या-क्या कारण गिनाए ? 

उत्तर- वायु ने अपने दूषित होने के अनेक कारण गिनाए जिसमें उसने बताया कि बढ़ते आधुनिक उपकरणों से निकली गैसें, कारखानों से निकला जहरीला धुँआ, वायु को शुद्ध करने वाले उसके मित्रों अर्थात् पेड़-पौधों की अत्याधुनिक कटाई जिससे पर्यावरण प्रदूषित हो रहा है और प्राकृतिक संतुलन बिगड़ रहा है | 

प्रश्न-5 जल ने अपने जन्म की क्या कहानी सुनाई ? 

उत्तर- 
जल ने अपने जन्म की कहानी बताते हुए कहा कि मेरा जन्म पृथ्वी के ताप से हुआ है | जब पृथ्वी सूर्य से अलग हुआ तब उसकी भाप के रूप में वायुमंडल में आच्छादित हो गई। और ये बादल ठंडे होकर जल के रूप में बरसते थे, लेकिन पृथ्वी के ताप के कारण मैं फिर से वायुमंडल में पहुँच जाता था। बार-बार यही क्रिया दोहराने के बाद मेरे प्रयास से पृथ्वी ठण्डी हो गई जिससे घाटियाँ और समुन्द्र बने और समुद्र के रूप में मेरा अस्तित्व बना | 

प्रश्न-6 पृथ्वी पर पहाड़ और घाटियाँ कैसे बने ? 

उत्तर- 
पृथ्वी पर लगातार वर्षा होने से पृथ्वी का ताप कम होता गया और पृथ्वी ठंडी हो गई उसके बाद पृथ्वी के ऊपरी सतह पर कुछ पपड़ी-सी जम गई। पृथ्वी का भीतरी भाग ठंडा होकर सिकुड़ गया और ऊपरी सतह भी सिकुड़ने लगी इन सिकुड़न के कारण ही पृथ्वी पर पहाडों और घाटियों का निर्माण हुआ | 

प्रश्न-7 पृथ्वी का दामन जीव-जन्तुओं और वनस्पतियों से कैसे भर गया ? 

उत्तर- जब पृथ्वी पर जीवन के अंकुर पनप रहे थे तब रासायनिक प्रक्रियाओं के चलते एक हरे रंग का क्लोरोफिल नामक पदार्थ पैदा हुआ। यह हरा पदार्थ सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में जल की सहायता से कार्बन डाइऑक्साइड को ऑक्सीजन में बदल देता था । यह पदार्थ जीवन के लिए आवश्यक तत्व बन गया। इसकी सहायता से ही हरे रंग वाली एककोशिकीय जीव पौधे के रूप में विकसित हुए |  इसके बाद संसार में विभिन्न प्रकार के वनस्पतियां वविकसित हुई और धीरे-धीरे पृथ्वी का दामन जीव-जंतुओं और वनस्पतियों से भर गया | 

प्रश्न-8 समय ने जीवन की उत्पत्ति का क्या चक्र बताया ? 

उत्तर- 
समय ने बताया कि मनुष्य और प्रकृति पंचतत्वों से मिलकर बने हैं। मनुष्य के शरीर में जल अधिक मात्रा में है। जल वायु तत्व को बनाता है। वायु वनस्पति से आती है, पौधे हमें ऑक्सीजन देती है। वायु अग्नि तत्व को बनाती है। अग्नि से जलने के बाद जो बनता है वह पृथ्वी तत्व है। पृथ्वी के चारों ओर आकाश का आवरण है। आकाश में बादलों से जल बरसता है यह जल तत्व को बनाता है। इस प्रकार जीवन में उत्पत्ति का चक्र चलता है | 

प्रश्न-9 पाँचों तत्वों ने मानव जाति को क्या संदेश दिया ? 

उत्तर- 
पर्यावरण दिवस के अवसर पर पाँचों तत्वों ने मानव जाति को यह संदेश दिया की अपनी विचारधारा बदलो । प्रकृति के साथ सामंजस्य बनाते हुए उसके अनुकूल होकर चलो। प्रकृति से केवल लेना ही नहीं देना भी सीखो क्योंकि अगर अब भी सचेत नहीं हुए तो आनेवाली पीढ़ी के लिए कुछ नहीं बचेगा | 

प्रश्न-10 वाक्यांश चुनकर वाक्य पूरे कीजिए --- 

उत्तर- उत्तर निम्नलिखित हैं - 

(क) 
हमें प्राकृतिक असंतुलन का सामना बाढ़, भूकंप,  चक्रवात आदि के रूप में करना पड़ रहा है। 

(ख) जीवों की उत्पत्ति सबसे पहले समुद्र में हुई।

(ग) दूषित वायु मुख्यतः सांस की बीमारियों का कारण बन गई है।

प्रश्न-11 निम्नलिखित शब्दों के दो-दो पर्यायवाची  लिखिए -- 

उत्तर- उत्तर निम्नलिखित हैं - 

• वृक्ष -  तरु, पेड़
• जंगल - कानन, वन
• मनुष्य - मानव, मनुज
• धरती - पृथ्वी, वसुधा
• मित्र - मीत, सखा
• पौधा - विपट, पादप

प्रश्न-12 नीचे दिये गए शब्दों के विलोम शब्द लिखिए --- 

उत्तर- 
उत्तर निम्नलिखित हैं - 
• कठोर - कोमल
• शीतल - उष्ण
• स्वच्छ - अस्वच्छ
• भीतरी - बाहरी
• श्रेष्ठतम - निम्नतम
• प्रवेश - निकास

प्रश्न-13 दिये गए शब्दों में उपसर्ग और मूलशब्दों को अलग करके लिखिए -

उ. उत्तर निम्नलिखित हैं - 

• आवरण - आ + वरण
• सुव्यवस्था - सु + व्यवस्था
• संरक्षण - सम् + रक्षण
• आभार - आ + भार
• विशेष -  वि + शेष
• बेखबर - बे + खबर

प्रश्न-14 इन शब्दों का वाक्यों में इस प्रकार प्रयोग कीजिये की इनके अर्थ स्पष्ट हो जाएँ --- 

• आपदा - दुख

उत्तर-  आपदा आने पर बहुत दुःखों का सामना करना पड़ता है।

• विपदा - संकट

उत्तर- विपदा आने पर अपने-परायों का पता चल जाता है। 

• उपेक्षा - तिरस्कार

उत्तर- हमें किसी की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए।

• अपेक्षा - आशा, उम्मीद , तुलना में

उत्तर- किसी से ज्यादा अपेक्षा नहीं रखना चाहिए। 

• निश्चय - दृढ़ विचार

उत्तर- निश्चय कर लेने से कोई भी कठिन कार्य सफलतापूर्वक हो जाता है। 

• निर्णय - फैसला, दो पक्षों में से एक को उचित ठहराना

उत्तर- हमेशा सही निर्णय लेना चाहिए। 

• अस्त्र - जो हथियार फेंक कर चलाया जाए

उत्तर- अस्त्र से किसी को भी मात दिया जा सकता है।

• शस्त्र - जो हथियार हाथ में पकड़कर चलाया जाए

उत्तर- अर्जुन ने गुरु द्रोणाचार्य से शस्त्र चलाना सीखा था।

प्रश्न-15 दिए गए निर्देश के अनुसार वाक्य को बदलें --- 
(i). प्रकृति के विनाश के लिए केवल मनुष्य जिम्मेदार नहीं  है। ( विधानवाचक)

उत्तर- प्रकृति के विनाश के लिए केवल मनुष्य जिम्मेदार है।

(ii). हरे-भरे जंगल और चहचहाते पक्षी आजकल दिखाई देते हैं। (निषेधवाचक)

उत्तर- हरे-भरे जंगल और चहचहाते पक्षी आजकल दिखाई नहीं देते हैं।

(iii). पेड़-पौधे भी वातावरण को साफ करते हैं। (प्रश्नवाचक)

उत्तर-क्या पेड़-पौधे भी वातावरण को साफ करते हैं ? 

(iv). हमने अपनी जिम्मेदारियों से ही मुँह मोड़ लिया है। (विस्मयादिवाचक)

उत्तर- हमने अपनी जिम्मेदारियों से ही मुँह मोड़ लिया है ! 

(v). तुम पढ़ाई करते हो।(आज्ञावाचक)

उत्तर- तुम पढ़ाई करो।

(vi). तुम्हें सफल होना है। (इच्छावाचक)

उत्तर- तुम सफल होओ।

(vii). आज शाम तक वर्षा होगी। (सन्देहवाचक)

उत्तर-सम्भवतः आज शाम तक वर्षा होगी।

(viii). परिश्रम करो, सफलता मिलेगी। (संकेतवाचक)

उत्तर- यदि परिश्रम करोगे, तो सफलता मिलेगी।

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पंचतत्वों की कहानी पाठ के शब्दार्थ 


• विराजमान - बैठा हुआ
• आमंत्रित - बुलावा देना
• साज-सज्जा - सजावट
• हृदय खिल उठा - प्रसन्न होना 
• श्रेष्टतम - सबसे अच्छी 
• अंश - भाग
• वाष्प पुंज - भाप का गोला
• आच्छादित - छा जाना
• सराहना - प्रशंसा करना 
• धरातल - धरती का ऊपरी सतह
• उत्पत्ति - जन्म
• चतुर्दिक - चारों ओर
• अवशोषित - सोख लेना
• कुशाग्र - तेज, तीव्र
• संरक्षण - देख-रेख करना
• दुष्प्रभावों - बुरे प्रभाव
• सामंजस्य - मेल-जोल
• सचेत - जागरूक  | 




© मनव्वर अशरफ़ी 

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