Man is he who Die for Others Essay In Hindi | वही मनुष्य है जो मनुष्य के लिए मरे पर निबन्ध जो मनुष्य के लिए मरे कहानी manushy h bhi ki jo manushy ke
वही मनुष्य है जो मनुष्य के लिए मरे
वही मनुष्य है जो मनुष्य के लिए मरे निबंध Man is he who Die for Others Essay In Hindi वही मनुष्य है जो मनुष्य के लिए मरे पर निबन्ध मनुष्य है वही जो मनुष्य के लिए मरे मनुष्य है वही जो मनुष्य के लिए मरे कहानी वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे मनुष्य वही है जो मनुष्य के लिए मरे story manushy h bhi ki jo manushy ke liye mre वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे मनुष्य वही है जो मनुष्य के लिए मरे पर कहानी - मनुष्य का सच्चा स्वरुप वह है कि जिसके द्वारा वह मानव मात्र के कल्याण हेतु अपने प्राणों का भी बलिदान कर देता है।
भारतवर्ष बहुजन हिताय एवं बहुजन सुखाय की भावना को लेकर चलने वालों की भूमि है। भारतवासियों का प्राण वसुधैव कुटुम्बकम् अर्थात सारी पृथ्वी एक परिवार के समान है की भावना से ओतप्रोत है। ऐसे परोपकारी देश में अनेकानेक महापुरुषों ने मानस रक्षा हेतु अपने अमूल्य प्राण न्योछावर किये है। हमारे धार्मिक ग्रन्थ ऐसे उदाहरणों से भरे पड़े है।
मनुष्य वही है जो मनुष्य के लिए मरे पर कहानी
दानव देवता संग्राम में जब देवगण वृत्रासुर नामक राक्षस के अत्याचारों से अत्यंत दुखी हो गए तब देवराज इंद्र अन्य देवताओं सहित संसार के सृष्टा ब्रह्मा जी के समीप करबद्ध प्रार्थना करके वृत्रासुर राक्षस के मुक्ति पाने का उपाय पूछने लगे। ब्रह्मा जी ने देवताओं सहित देवराज इंद्र को उपाय बताते हुए कहा कि - हे देवाधिदेव यदि आप महर्षि दधीचि की अस्थियों का अस्त्र बनाकर राक्षसों से युद्ध करें तो निश्चित ही राक्षस वृत्रासुर का वध तथा उससे मुक्ति संभव है। ब्रह्मा जी ने इन वचनों को सुनकर देवराज इंद्र महर्षि दधीचि के आश्रम में पहुंचे। इंद्र को बड़ा संकोच हो रहा था कि किस प्रकार हम महर्षि के प्राणों को मांगेंगे। वह ब्राह्मण का भेष बनाकर आये थे ,लेकिन ऋषि की दिव्य दृष्टि से न छिप सके।तपस्या में लीन महर्षि का मुख मंडल दिव्य तेज़ से प्रदीप्त था। नेत्र खोलते ही उन्होंने इंद्र देवता से वहां आने का कारण पूछा और आश्रमवासियों सहित उनका स्वागत किया। इंद्र देवता नें कुछ हिचकिचाहट के साथ उन्हें बताया कि राक्षस बकासुर के अत्याचारों से सर्वत्र त्राहि - त्राहि मची हुई है। ऋषिवर बोले इस प्रकार से जो दूसरों को निरंतर कष्ट पहुँचाता है तो उनका अवश्य ही अंत कर देना चाहिए। उन्होंने बड़े ही मधुर शब्दों में सुरपति इंद्र से पूछा कि आप मुझे बताएं कि मैं इसमें आपकी क्या सेवा कर सकता हूँ ? तत्पश्चात देवराज इंद्र ने महर्षि दधीचि को ब्रह्मा द्वारा कहा गया सारा वृत्तान्त सुना दिया।
इंद्र के वृत्तान्त को सुनकर ऋषि सहर्ष बोले - "देवराज आपने व्यर्थ ही सकोंचवश मुझे यह बात बताने में विलम्ब कर दिया। यदि मेरा यह तुच्छ शरीर किसी के प्राणों की रक्षा करने में समर्थ होगा तो मैं स्वयं को सौभाग्यशाली समझूंगा।
यह कहते हुए ऋषिवर दधीचि ने योगासन मुद्रा में स्वांस खींचा और अपने प्राण त्याग दिए। देवराज इंद्र ने ऋषि दधीचि की अस्थियों से व्रज नामक अस्त्र बनाया और राक्षसों का संहार किया।
उपयुक्त कहानी यह दर्शाती है कि महर्षि दधीचि का मानव रूप में उत्पन्न होना सार्थक सिद्ध हुआ क्योंकि उन्होने अपने अमूल्य बलिदान से मानवता की रक्षा की।
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