अमीरी की तुलना में गरीबी अधिक सुखद है

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अमीरी की तुलना में गरीबी अधिक सुखद है अमीरी की अच्छाइयां और बुराइयां अमीरी में मनुष्य को सभी सुख सुविधाएं प्राप्त होती हैं। समाज में दो ही वर्ग हैं एक

अमीरी की अच्छाइयां और बुराइयां


मीरी में मनुष्य को सभी सुख सुविधाएं प्राप्त होती हैं। समाज में दो ही वर्ग हैं एक अमीर और दूसरा गरीब। ये दोनों एक दूसरे से अलग अलग रहते हैं। दोनों की अपनी अपनी मान्यताएं हैं। अमीरी सभी सुखों की जननी है ,परन्तु कुछ बुराईयों की जननी भी इसको माना जाता है। अधिक सुख में आदमी अँधा हो जाता है। अभिमान उसे उचित अनुचित की सोच से दूर कर लेता है। अब हम विचार करेंगे इसकी अच्छाइयों और बुराईयों पर। 

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। समाज में रहने के लिए उसे अपनी प्रारंभिक आवश्यकताओं जैसे भोजन ,कपडा और मकान की पूर्ति हेतु धन की आवश्यकता होती है। वह कठिन परिश्रम द्वारा इन्हें पूरा करता है। इन्हें पूरा करने के पश्चात वह समाज में अपना अच्छा स्थान बनाने हेतु कठिन परिश्रम करके अधिक धन अर्जित करता है और धनवान बन जाता है। समाज में अधिक धन प्राप्त करके वह अमीरों की श्रेणी में आ जाता है।

अमीरी की अच्छाई 

आज के युग में मनुष्य जहाँ अनेक भौतिक सुख सुविधाओं से घिरा हुआ है ,उन्हें प्राप्त करने का एकमात्र साधन धन
अमीरी की तुलना में गरीबी अधिक सुखद है
अमीरी
ही है। बिना धन के व्यक्ति अनेक चिंता व अभावों से ग्रसित रहता है। अमीर व्यक्ति संसार के सभी भौतिक सुखों का आनंद ले सकता है। वह धन के माध्यम से सब कुछ प्राप्त कर सकता है। उसका जीवन सब प्रकार से सुखद होता है। समाज में वह सम्मानीय समझा जाता है। उसका मुखारविंद सदैव प्रसंन्नता से खिला रहता है। वह सम्पूर्ण गुणों का भंडार एवं विद्वान समझा जाता है। 

वह अपने परिवार की हर संभव आवश्यकता को बड़ी सरलता से पूरा कर लेता है। अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलवाने में सदैव उसकी अमीरी साथ देती है। अमीरी उसके जीवन की हर मुश्किल को आसान करने में सहायक होती है। अमीरी व्यक्ति को सब प्रकार से सहयोग प्रदान करती है। चाहे परिवार हो या समाज सब जगह से उसके अस्तित्व की श्रेष्ठता को बढाती है। मनुष्य को उसकी अमीरी धार्मिक बनने में भी सहायक होती है ,क्योंकि वह जानता है कि ईश्वर की कृपा से ही उसे धन प्राप्त हुआ है। अतः वह यदा कदा अपने धन के सदुपयोग के लिए निर्धन व जरुरतमंदों को दान देकर अपने जीवन को सफल भी बनाता है। समय समय पर धार्मिक अनुष्ठान आदि करके अमीर व्यक्ति अपने मन को शांति प्रदान करता है। अभिप्राय यह है कि अमीरी मनुष्य की हर क्रिया की सफलता है।  

अमीरी की बुराइयां

जहाँ एक ओर अमीरी मनुष्य के समस्त कार्यों का साधन है वहीँ वह कभी कभी उसके चरित्र का हनन भी करती है। अधिक धन प्राप्त करके व्यक्ति कभी कभी अभिमानी व चरित्रहीन बन जाता है। बिहारी कवि ने कहा भी है - 

कनक कनक ते सौ गुनी, मादकता अधिकाय। 
वा खाए बौराय जग, या पाए बौराय।। 

अर्थात स्वर्ण की चमक व्यक्ति को धतूरे से भी अधिक नशीला बना देती है। अमीरी के मद में मनुष्य अपने मित्रों सम्बन्धियों को भूल जाता है। शराब ,जुआ आदि गंदे व्यवसनों में पड़ जाता है। वह अपने स्तर से निम्न लोगों का सम्मान करना ही भूल जाता है। वह अपने जीवन में धन को सम्पूर्ण महत्व देने लगता है। उसके मन में दुनिया का सबसे बड़ा अमीर बनने की महत्वकांक्षा जागृत हो जाती है तो वह येन केन प्रकारेण अधिक से अधिक धन प्राप्त करने की पिपासा से ग्रसित होकर अपने मन की शांति सुख व चैन से रहित हो जाता है। 

अमीरी मनुष्य में ऊँच - नीच की भावना को जन्म देती है। मानव मूल्यों जैसे प्रेम ,दया ,भाईचारा समानता आदि को नष्ट कर देती है। मनुष्य को अमीरी कंजूस बनाती है। वह अपने कर्मियों के साथ कठोरता का व्यवहार करने लगता है। अपने अमीरी की सुरक्षा हेतु व्यक्ति गरीब लोगों पर जुर्म करता है। 

मानवता व अमीरी के बीच संतुलन 

इस प्रकार से अमीरी में जहाँ बहुत ही अच्छाईयां है ,वहीँ उसमें अधिक बुराइयाँ भी है। अमीर व्यक्ति को कवि की इन पंक्तियों को अपने जीवन का सिद्धांत बनाना चाहिए जिससे उसकी मानवता और अमीरी के बीच संतुलन बना रहे। कबीरदास जी इस सम्बन्ध में कहते हैं कि - 

जो जल बाढ़े नाव में, घर में बाढ़े दाम ।
दोऊ हाथ उलीचिए, यही सयानो काम ।।


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