उर्दू शायरी में देशभक्ति की भावना

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उर्दू शायरी में देशभक्ति की भावना देशभक्ति की भावना विश्व की हर भाषा एवं शायरी में देखने को मिलती हैं l उर्दू भाषा और शायरी ने भी इस जज़बे को परवान चढ़ा

देशभक्ति की भावना से ओतप्रोत उर्दू शायरी 


देशभक्ति की भावना विश्व की हर भाषा एवं शायरी में देखने को मिलती हैं l उर्दू भाषा और शायरी ने भी इस जज़बे को परवान चढ़ाया l उर्दू मिश्रीत भारतीय भाषा हैं l स्वतंत्रता आंदोलन में उर्दू भाषा का महत्वपुर्ण योगदान रहा हैं l उर्दू को पुरे दावे के साथ स्वतंत्रता आंदोलन की भाषा भी कहाँ जा सकता हैं l प्रस्तुत लेख में उर्दू शायरी में मौजूद देशभक्ती की भावना का जायज़ा लिया गया हैं l साथ ही यह सिध्द करने का प्रयास किया गया हैं कि, देशभक्ती की भावना के प्रदर्शन के मामले में उर्दू शायरी विश्व की किसी भी शायरी एवं भाषा से पीछे नहीं हैं l 

भारत में स्वतंत्रता की कल्पना से ले कर आज़ादी की सुबह तक नि:संदेह उर्दू भाषा का बेहद महत्वपुर्ण योगदान रहा हैं l उर्दू भाषा देशभक्ती की भावना से ओतप्रोत थी, हैं और सदैव रहेगी l उर्दू शायरी का दामन "सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा" और "सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में हैं" जैसी देशभक्ती की भावना से ओतप्रोत ना जाने कितनी ग़ज़लों एवं कविताओं से भरा पड़ा हैं l प्रस्तुत लेख केवल इस की एक झलक मात्र हैं l 

उर्दू शायरी में देशभक्ति की भावना

मौलाना अलताफ हुसैन हाली उर्दू के वो महान कवी हैं, जिन के बारें में खुद मिर्ज़ा गालीब ने कहाँ था कि, "अगर तुम शेर ना कहोंगे तो अपनी तबियत पर ज़ुल्म करोगे l" मौलाना हाली ने देशभक्ती की भावना से ओतप्रोत हो कर कई कलाम लिखे l "हुब्ब-ए-वतन" हाली की महत्वपुर्ण मसनवी हैं, जिस में हाली ने अछूते ढंग से एकता का सन्देश दिया हैं l ये मसनवी देशभक्ती की भावना के प्रदर्शन का प्रतीक प्रतीत होती हैं l मौलाना अलताफ हुसैन हाली फरमाते हैं कि, 

"ऐ वतन !!! ऐ मेरे बहिश्त-ए-बरीं 
क्या हुए तेरे आसमान व ज़मीं 
क्या ज़माने को तू अज़ीज़ नहीं ?
ऐ वतन !!! तू तो ऐसी चीज़ नहीं 
जीन व इंसान की हयात हैं तू
मुर्ग व माही की कायनात हैं तू 
तेरी एक मुश्त खाक के बदले 
लूँ ना हरगिज़ गर बहिश्त मिले"

उपरोक्त कलाम में मौलाना अलताफ हुसैन हाली ने भारत की महानता का बड़े दिलनशीं और अछूते अंदाज़ में वर्णन किया हैं l हाली के समीप भारत की एक मुट्ठी खाक स्वर्ग से श्रेष्ठ हैं l 

कई उर्दू कवि ऐसे भी हैं जो अपने देश को अपने धर्म पर वरीयता देते हैं l उन के करीब देश पहले आता हैं और धर्म बाद में मौलाना ज़फर अली खान लिखते हैं कि - 

"जितनी बूँदें थी शहदान-ए-वतन के खून की 
कैसर-ए-आज़ादी की आराइश का सामान हो गई 
ज़िंदगी उन की हैं, दीन उन का हैं, दुनिया उन की हैं 
जिन की जाने वतन की इज़्ज़त पर कुरबान हो गई"

इस शेर के माध्यम से यह बात स्पष्ट रूप से सामने आती हैं कि, उर्दू कवी देशभक्ती के मामले में ज़ात और धर्म से ऊँचा उठ कर सोचते हैं और देश को धर्म पर वरीयता देते हैं l 

इसी तरह सरवर जहाँबादी उर्दू शायरी के आधुनिक कवीयों में एक चमकता हुआ सितारा हैं l मौलाना हसरत मोहानी (जिनकी ग़ज़ल "चुपके चुपके रात दिन आँसूँ बहाना याद हैं" को हर कोई पसंद करता हैं) सरवर जहाँबादी के बारें में लिखते हैं - 

"काम आयु में जो वे लिख गए हैं वह सुदृढ़ता का प्रमाणपत्र पाने के लिए काफी हैं l"

देशभक्ती की भावना सरवर जहाँबादी की शायरी का एक महत्वपुर्ण विषय रहा हैं, इसीलिए तो उर्दू के पहले ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त कवी रघुपती सहाय फिराक गोरखपुरी ने सरवर जहाँबादी को उर्दू शायरी का सब से बड़ा राष्ट्रीय कवी कहाँ हैं l सरवर जहाँबादी ने अपनी कविता "मादर-ए-हिंद" में भारत को लक्ष्मी, सरस्वती और दुर्गा कह कर संबोधीत किया हैं l सरवर जहाँबादी लिखते हैं - 

"लक्ष्मी तू हैं... ज़माने में हैं उजाला तेरा 
हर कँवल का फुल पानी में हैं शिवाला तेरा 
सरस्वती का रूप हैं... दुर्गा का हैं अवतार तू 
नित्क व दानिश की हैं देवी मादर-ए-गम ख्वार तू"

इसी तरह डॉ. अल्लामा इकबाल बीसवीं शताब्दी के महान उर्दू कवी थे l आज सारा उर्दू जगत उन्हें "शाईर-ए-मशरीक" और "हकीम-उल-उम्मत शायर" जैसी उपाधीयों से याद करता हैं l जो लोग अल्लामा इकबाल को नहीं जानते वे भी "सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्ता हमारा" यह तराना सुन कर इस के रचयिता का नाम बता देते हैं l एक अवसर पर राष्ट्रपिता गाँधी जी ने इस तराने के बारें में कहाँ था कि - 

"कौन सा ऐसा हिंदुस्तानी दिल होगा जो इकबाल का सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्ता हमारा सुन कर धड़कने नहीं लगता ? अगर कोई ऐसा दिल हैं तो मैं यह उस का दुर्भाग्य समझूँगा l"

सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्ता हमारा इस तराने को डॉ. इकबाल ने नाम दिया हैं "तराना-ए-हिंदी" - जिस में इकबाल फरमाते हैं -

"सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्ता हमारा 
हम बुलबुले हैं इस की ये गुलसिताँ हमारा 
गुरबत में हो अगर हम रहता हैं दिल वतन में 
समझो वही हमें भी दिल हो जहाँ हमारा"

"हिंदुस्तानबच्चों का कौमी गीत" नामक कविता इकबाल के देशभक्ती एवं राष्ट्रवाद संबंधी दृष्टीकोण को विशिष्ट रूप से प्रस्तुत करती हैं l इस कविता में इकबाल ने भारत के विस्तृत इतिहास को चंद पंक्तीयों में समेटा हैं l इकबाल फरमाते हैं,- 

"चिश्ती ने जिस ज़मीं में पैगाम-ए-हक सुनाया 
नानक ने जिस चमन में वहदत का गीत गाया 
तातारीयों ने जिसे अपना वतन बनाया 
जिस ने हिजाज़ीयों से दश्त-ए-अरब छुड़ाया 
मीर-ए-अरब को आई ठंडी हवा जहाँ से 
वहदत की लय सुनी थी दुनिया ने जिस मकां से 
जिस ने सारे जहाँ को इल्म व हुनर दिया था 
मेरा वतन वहीं हैं... मेरा वतन वही हैं"

इस कविता की चंद पंक्तीयों में इकबाल ने कई कौमो का इतिहास समेट दिया हैं l इस कविता में भारत का सदीयों का इतिहास दर्ज हैं l 

उपरोक्त संदर्भों एवं चर्चा की रौशनी में यह बात बिल्कुल स्पष्ट हो जाती हैं और दावे के साथी कही जा सकती हैं कि, देशभक्ती की भावना के इज़हार में उर्दू भाषा एवं शायरी विश्व की किसी भी भाषा और शायरी से पीछे नहीं हैं बल्की बहुत आगे नज़र आती हैं l उर्दू एक मिश्रीत भारतीय भाषा हैं जो अपनी नज़ाकत और मिठास के कारण हर किसी को अपनी ओर आकर्षित करती हैं l जिन कवियों का उल्लेख प्रस्तुत लेख में हुआ हैं, यकीनन वे सच्चे देशभक्त, एकता के प्रचारक और देश पर जान छिड़कने वाले सच्चे राष्ट्रप्रेमी थे l इन कवियों को सत्यप्रेमी एवं साहित्यप्रेमी शाम-ए-अबद तक याद रखेंगे - 

"ये किस्सा-ए-लतीफ़ अभी ना तमाम हैं 
जो कुछ बयाँ हुआ वो आगाज़-ए-बाब था" 




- शेख मोईन शेख नईम 
डॉ. उल्हास पाटील विधी महाविद्यालय, जलगाँव 
7776878784

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