मजहब की बंदिशों से आज़ाद उर्दू गजल

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मजहब की बंदिशों से आज़ाद उर्दू गजल उर्दू पढ़ने, लिखने, बोलने और समझने वाले करोडो की सँख्या में भारत, पाकिस्तान और विश्व के विभिन्न देशों में स्थायीक ह

मजहब की बंदिशों से आज़ाद उर्दू गजल


                                                      
र्दू  पढ़ने, लिखने, बोलने और समझने वाले करोडो की सँख्या में भारत, पाकिस्तान और विश्व के विभिन्न देशों में स्थायीक हैं l इस प्रकार उर्दू  भाषा अब वैश्विक भाषा का दर्जा प्राप्त करती जा रही हैं l उर्दू  ने विभीन्न धर्मो, आस्थाओं, मान्यताओं और विचारों वाले लोगों को एक दूसरे से करीब लाने में महत्वपुर्ण भूमिका निभाई हैं l आज भी उर्दू  देश की तरफ से उस पर आयद होने वाले कर्तव्यों को अंजाम दे रही हैं l आज उर्दू के चाहने वाले विश्व के कोने कोने में पाए जाते हैं l 

उर्दू  का वतन भारत हैं l इसी की रंगीन फिज़ा में ऊर्दु ने आँखें खोली l इस ने हिंदू मत के अनुसार गंगा की पवित्र लहरों में स्नान किया l उर्दू ने जमना के शफ्फाफ पानी में ताज महल के अक्स के सामने अपनी ज़ुल्फें सँवारी l अमीर खुसरो ने इसे लोरियाँ सुनाई, वली दक्कनी ने इसे गोद में खिलाया, लाल किले में ये जवान हुई, नवाबों ने इस के नाज़ उठाएँ, शायरों ने इस के हुस्न को निखारा, साहित्यकारों ने इस की ज़ुल्फों के पेच व खम सँवारे, मीर और गालीब ने इस से मोहब्बत की, मोहम्मद हुसैन आज़ाद और डिप्टी नज़ीर अहमद ने इस के जमाल को दोबाला कर दिया l कहने को तो उर्दू  नई भाषा हैं मगर इस के हुस्न, नज़ाकत और मिठास की बदौलत ये गंगा जमुनी तहज़ीब का प्रतीक बन गई l जिस ने सुना वो उर्दू  का आशिक हो गया l जिस ने पढ़ा वो इस की मोहब्बत में गिरफ्तार हो गया l उर्दू  हर तबके में समान रूप से प्रसिध्द हुई l ऊर्दु जब दरबारों के रंगीन माहौल से निकल कर जनता के बीच आई तो फिर ये हर क्षेत्र को अपनी ओर आकर्षित करने लगी l यह ऊर्दु की कशिश का ही परिणाम हैं कि, आज ऊर्दु साहित्य, गीत, गज़ल, कहानीयों, उपन्यासों, जनता, विद्वानों, सूफीयों, धड़कते दिलों, प्यार और मोहब्बत की भाषा बन गई l यहाँ तक कि, स्वतंत्रता संग्राम की क्रांतीकारी भाषा भी ऊर्दु ही थी l 

उर्दू  वो खुद्दार हसीना हैं जिस ने शाही हरम सरा की ज़ीनत बनने से इनकार कर दिया और लश्कर ने जिस की आबरू की हिफाज़त की l उर्दू  पंजाबी नाज़नीं की अलहड़ सहेली बनी, सिंधी हसीना ने इसे नाज़ व अदा सिखाए, उर्दू  ने हिंदी सखी के साथ बहनापा निभाया l उर्दू  ने फारसी से ज़िंदगी के आदाब सीखे l ऊर्दु एक शुध्द भारतीय भाषा हैं l ऊर्दु ने अपने दामन में विभीन्न धर्मों, आस्थाओं, मान्यताओं और विचारों वाले लोगो को पनाह दी l फिरंगी गिलक्रिस्ट और सर जॉन इस पर जान निसार करते थे l राजेंद्र सिंह बेदी और कुंवर महेंद्र सिंह जैसे सिख इस पर फ़िदा हुए l पंडित दयाशंकर नसीम, रतन नाथ सरशार, तिलवक चंद महरूम, रघुपती सहाय फिराक गोरखपुरी, कृष्ण चंद्र और आनंद नारायण मुल्ला से ले कर जगन्नाथ आज़ाद और कृष्ण बिहारी नूर तक ना जाने कितने हिंदू ऊर्दु के मतवाले हैं l आज भी सांस्कृतीक कार्यक्रमों से ले कर बॉलीवुड की महफिलों तक सभी रंगीनी और कशिश के लिए ऊर्दु के मोहताज हैं l आज भले ही ऊर्दु को सरकारी कार्यालयों में जगह ना मिली हो मगर आज भी बेशुमार भारतीयों के दिलों में ऊर्दु का बसेरा हैं l 

गज़ल ऊर्दु भाषा की सब से कीमती दौलत हैं l ऊर्दु शायरी की सब से अधिक पसंद की जाने वाली विधा गज़ल ही हैं l गज़ल ही हैं जिस ने ऊर्दु शायरी को विश्व के साहित्य में इज़्ज़त का मुकाम दिलाया l रशीद अहमद सिद्दीकी के अनुसार,"गज़ल ऊर्दु शायरी की आबरू हैं l हमारी संस्कृती गज़ल में और गज़ल हमारी संस्कृती में ढली हैं l दोनों की दिशा और रफ़्तार एक दूसरे से मिले हुए हैं l यहीं कारण हैं कि, हमारी संस्कृती की आत्मा गज़ल में और गज़ल की आत्मा हमारी संस्कृती में बेनकाब नज़र आती हैं l"

मजहब की बंदिशों से आज़ाद उर्दू गजल

ये विधा किसी से अछुती नहीं l समाज का हर समूह इस से आशना हैं l गज़ल ने हर किसी को प्रभावित किया और समाज के हर समूह को अपनी तरफ आकर्षित किया l गज़ल तमाम बंदिशों से आज़ाद हैं l ऊर्दु गज़ल ने विभीन्न धर्मों एवं मान्यताओं वालो को अपने दामन में पनाह दे कर उन्हें एक दुसरे से करीब लाने का महत्वपुर्ण काम किया हैं l अगर भारत के परिदृश्य में बात की जाए तो ऊर्दु गज़ल ने भारत की दो महत्वपुर्ण कौमों अर्थात हिन्दुओं और मुसलमानों को एक दुसरे के करीब लाने में महत्वपुर्ण भूमिका निभाई हैं l जबकि दोनों कौमों के धर्म, मान्यताएँ, आस्थाएँ और विचार भिन्न हैं l ऊर्दु शायरी की हर विधा प्रसिध्दी के दृष्टीकोण से उतार चढ़ाव का शिकार रही हैं l कुछ विधाएँ तो अब इतिहास का भाग बन चुकी हैं, मगर गज़ल का जादू आज भी सर चढ़ कर बोल रहा हैं क्योंकि गज़ल ज़माने के साहित्यीक तकाज़ों को पुरा करती हैं l इसी लिए हर साहित्य नवाज़ रशीद अहमद सिद्दीकी के इस कथन से सहमत हैं कि, "गज़ल ऊर्दु शायरी की आबरू हैं l"

गज़ल धर्म, पंथ, संप्रदाय और सरहद जैसी बंदिशों से आज़ाद हैं l गज़ल तो दिल की आवाज़ हैं जो एक दिल से दुसरे दिल तक पहुँचती हैं l गज़ल मज़हब की बंदिशों और कट्टरता से मुक्त एवं पवित्र विधा का नाम हैं l जैसे परवीन शाकीर ऊर्दु की एक प्रसिध्द कवयत्री गुज़री हैं l जिन का संबंध पाकिस्तान से हैं l परवीन शाकीर लिखती हैं कि - 

"कैद में गुज़रेगी जो उम्र बड़े काम की थी 
पर मैं क्या करती के ज़ंजीर तेरे नाम की थी 
क्यों हवा आ के उड़ा देती हैं आँचल मेरा 
यूँ सताने की आदत तो मेरे घनश्याम की थी"

हिंदू धर्म में घनश्याम मतलब कृष्णा lजिन्हें हिंदू मत में भगवान का दर्जा प्राप्त हैं l उत्तर भारत में विशेषतः उत्तर प्रदेश में तो कृष्णा की कहानीयाँ हर खास और आम की ज़बान से सुनने को मिलती हैं l पाकिस्तान जैसे देश की एक महिला शायरा ने यह शेर दशकों पहले लिखा था l इस शेर से कल्पना की जा सकती हैं और लेखक के दावे को बल मिलता हैं कि, किस तरह ऊर्दु गज़ल तमाम (विशेष तौर पर धर्म की) बंदिशों से आज़ाद हैं ? 

इसी तरह ऊर्दु के प्रसिध्द कवी बेकल उत्साही फरमाते हैं कि - 

"जिस की हर शाख पे राधाएँ मचलती होगी 
देखना कृष्णा उसी पेड़ के निचे होंगे"

राधा और कृष्णा की दास्तानें भारत में हर खास और आम में मशहूर हैं तथा बड़े शौक से सुनी और सुनाई जाती हैं l इन ही दास्तानों का उल्लेख बेकल उत्साही ने उपरोक्त शेर में किया हैं जो दर्शाता हैं कि ऊर्दु गज़ले मज़हब की बंदिशों से आज़ाद हैं l 

वहीं दूसरी तरफ हसन कमाल लिखते हैं कि - 

"अब कोई राम नहीं गम का जो धनुष तोड़े 
ज़िंदगी रोती हैं सीता के स्वयं वर की तरह"

रामायण के नाम से बच्चा बच्चा वाकिफ हैं l जिस में सीता और राम के स्वयं वर का उल्लेख मौजूद हैं l उपरोक्त शेर में उसी का उल्लेख कर के हसन कमाल ने ऊर्दु गज़लों के मज़हब की बंदिशों से आज़ाद होने के दावे पर सबूत की मुहर लगाईं हैं l 

इसी प्रकार ऊर्दु के गैर मुस्लिम कवी भी संप्रादायिक सौहार्द्र को परवान चढाने में मुस्लिम कवीयों के साथ खड़े नज़र आते हैं l 

कुंवर महेंद्र सिंह बेदी फरमाते हैं कि -

"इश्क हो जाए किसी से... कोई चारा तो नहीं 
सिर्फ मुस्लिम का मोहम्मद पर इजारा तो नहीं"

उपरोक्त शेर में पैगंबर-ए-इस्लाम की हस्ती को एक वैश्विक हस्ती के रूप में प्रस्तुत कर के कुंवर महेंद्र सिंह बेदी ने इस दावे को मज़बूती प्रदान की हैं कि, ऊर्दु गज़ल मज़हब की कैद से आज़ाद हैं l 

हर मुस्लमान की इच्छा होती हैं कि, वो मरने से पहले मदीने की ज़ियारत कर ले l हर मुस्लमान के दिल में मदीने की आरज़ू होती हैं l रविंद्र जैन का शेर हैं कि - 
"तुम अपने दिल में मदीने की आरज़ू रखना 
फिर उन का काम हैं जज़्बे की आबरू रखना"

उपरोक्त शेर में हर मुस्लमान के दिल में पलने वाली आरज़ू का इज़हार कर के रविंद्र जैन ने ऊर्दु गज़लों के पंथनिरपेक्ष रूप को प्रस्तुत किया हैं l 

ऊर्दु गज़लों में मान्यताओं से बगावत के अंश भी पाए जाते हैं l हिंदू मत में पुनर्जन्म का सिध्दांत पाया जाता हैं मगर कृष्णा बिहारी नूर फरमाते हैं कि - 

"मर भी जाओ तो नहीं मिलते मरने वाले 
मौत ले जा कर खुदा जाने कहाँ छोड़ती हैं 
ज़ब्त-ए-गम क्या हैं तुझे कैसे समझाऊँ 
देखना मेरी चीता कितना धुआँ छोड़ती हैं"

कृष्णा बिहारी नूर का यह शेर भले ही उन की धार्मिक आस्था के विरुध्द बगावत प्रतीत होता हो परंतू इस शेर के माध्यम से वे ऊर्दु गज़लों के सर्व समावेशक एवं पंथ निरपेक्ष चरित्र को प्रस्तुत करते हैं l कृष्णा बिहारी नूर के उपरोक्त शेर में दो कौमों की आस्थाओं का बेहतरीन संगम देखने को मिलता हैं l यह हसीन संगम उपरोक्त शेर को बेपनाह हुस्न प्रदान करता हैं l 

किसी कवी का बतौर कवी कोई धर्म, पंथ या संप्रदाय नहीं होता l शायर इन तमाम बंदिशों से आज़ाद होता हैं और इन सब से ऊपर उठ कर सोचता हैं l शायर समाज का संवेदनशील भाग होता हैं जो प्रचलीत व्यवस्था एवं समाज रचना का चित्रण करता हैं l जो सत्य का ऐलान करता हैं l 
  
लाला लाल चंद फलक कहते हैं कि -  
 "आतीश कदे के अंदर रौशन हैं नूर तेरा 
काबे में बूत कदे में भी ज़हूर तेरा 
मंदिर में कोई तुझ को माथा नवा रहा हैं 
मस्जीद में कोई सजदे में सर झुका रहा हैं"

वहीं दूसरी ओर महाराजा कल्याण सिंह अपनी शायरी में इस्लामी तलमीहात बरतते हुए नज़र आते हैं l फरमाते हैं, 
"अल्लाह की हम्द लिख रहा हुँ 
मद्दाह-ए-रसूल-ए-किब्रिया हुँ 
आशिक हुँ दिल से पंजतन का 
औसाफ़-ए-हुसैन और हसन का"

उपरोक्त शेरों की रौशनी में यह बात चमकते हुए सूर्य की तरह बिल्कुल स्पष्ट हो जाती हैं और पुरे दावे के साथ कही जा सकती हैं कि, ऊर्दु गज़ल धर्म, पंथ, संप्रदाय और सरहद जैसी तमाम बंदिशों से आज़ाद हैं l ऊर्दु गज़ल दिल की आवाज़ हैं जो एक दिल से दुसरे दिल तक पहुंचती है क्योंकि ऊर्दु गज़ल का संबंध प्रकृती से हैं l ऊर्दु गज़ल ने चाँद तारों की बातें करने वाले कवी भी देखे और ज़मीनी मुद्दे उठाने वाले शायरों को भी अपने दामन में पनाह दी हैं, जिन्होंने धड़कते दिल, सुलगते जज़बात और तड़पती रूह निचोड़ कर अपने कलम का रिश्ता आम जनों से जोड़ा l जिन्होंने अपने कलम की नोक से इंसानी ज़िंदगी की गाँठे खोल कर मानवता के ज़ख्म सिये l आज हमारे देश भारत के सामने असहिष्णुता एवं टुट कर बिखरते सांप्रदायिक सौहार्द्र की चुनौती हैं l निःसंदेह इस चुनौती से निपटने हेतू ऊर्दु गज़ल महत्वपुर्ण भूमिका निभा सकती हैं l ऊर्दु गज़ल का दामन बहुत बड़ा हैं जो अपने अंदर विभीन्न धर्म, जाती, पंथ, विचारों, आस्थाओं, मान्यताओं और संप्रदाय के लोगों को पनाह दे कर उन्हें एक दुसरे से जोड़ने का काम करता हैं l 

बस इस शेर पर अपने कलम को विराम दे रहा हुँ कि -
 
"अरब, चीन व जापान में इस का तराना 
हैं युरोप में मशहूर इस का फ़साना"



                   - शेख मोईन शेख नईम ,  
Anudip Foundation  
7776878784  
 

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