होली के रंग

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आज होली है और कालोनी के निवासी इस रंगों के त्यौहार को मनाने में मशगूल हैं .इस कालोनी में रहने वाले तिवारी जी के यहां सन्नाटा पसरा हुआ है।

होली के रंग

     

ज होली है और कालोनी के निवासी इस रंगों के त्यौहार को मनाने में मशगूल हैं .इस कालोनी में रहने वाले तिवारी जी के यहां सन्नाटा पसरा हुआ है। तिवारी जी अपनी धर्मपत्नी श्रीमती विमलेश के साथ अपने कमरे में बैठ कर टीवी पर समाचार देख रहे हैं। उनकी पुत्रवधू रमा रसोईघर में चाय बना रही है।      

कहने को तो तिवारी जी टीवी पर समाचार देख रहे हैं परन्तु उनका मन कहीं और है। उनकी आंखों के सामने दो वर्ष पूर्व की घटना चलचित्र की भांति घूम रही है। वह दिन भी होली का ही दिन था जो उनके जीवन में अंधेरा भर गया था। तिवारी जी उस दिन अपने मित्रों के साथ होली खेलने के लिए जल्दी ही निकल पड़े थे और उनका पुत्र कमल भी अपना स्कूटर ले कर अपने मित्रों के साथ होली खेलने अपने पिता के बाद निकल गया था। वापस घर लौटते समय रास्ते में उसका स्कूटर तीव्र गति से आते हुए एक ट्रक से टकराता हुआ दूर जा गिरा था और कमल उछल कर सड़क पर आ गिरा।

होली के रंग
होली के रंग

वहां एक्सीडेंट हुआ देखकर लोगों की भीड़ लग गई थी। उसी भीड़ में शामिल तिवारी जी के पड़ोसी शर्मा जी भी थे, जब उन्होंने कमल को घायल अवस्था में देखा तो तुरन्त ही लोगों की मदद से उसे पास ही स्थित अस्पताल में भर्ती कराया और तिवारी जी को सूचना दे दी गई। यह सूचना मिलते ही तिवारी जी के पैरों तले जमीन निकल गई और वह तुरंत ही अस्पताल के लिए निकल पड़े परंतु जब वह अस्पताल पहुंचे,देर हो चुकी थी। डाक्टर ने कमल को मृत घोषित कर दिया था। यह देख कर तिवारी जी पर बेहोशी छा गई। बड़ी मुश्किल से उनकी स्थिति सामान्य हुई तो उन्होंने घर पर किसी को भी कमल की मृत्यु के बारे में नहीं बताया। लेकिन जब कमल का मृत शरीर घर पर पहुंचा तो उनकी धर्मपत्नी और पुत्रवधू का रो रो कर बुरा हाल था। कमल जो उनके जीवन का आधार था वह सबके जीवन में अंधेरा भर गया था। उस दिन के बाद से तिवारी जी ने होली के त्यौहार पर घर से बाहर निकलना बन्द कर दिया था। आज भी वही मनहूस दिन था और तिवारी जी की आंखों से जल धारा बहने लगी।

अचानक घर के मुख्य दरवाजे पर किसी की दस्तक ने उनकी तन्द्रा भंग कर दी। जब तिवारी जी दरवाजे पर पहुंचे तो उन्होंने देखा कि शर्मा जी अपनी धर्मपत्नी के साथ खड़े हुए थे। तिवारी जी ने उनको बैठक में बैठा कर उनके लिए चाय बनाने का आदेश देने चले गए। और वापस आ कर बैठ गये। बातों से पता चला कि शर्मा जी अपने पुत्र के लिए उनकी पुत्रवधू का संबंध ले कर आए हैं। शर्मा जी के पुत्र की धर्मपत्नी की किसी दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी और शर्मा जी से पुत्र की यह दशा नहीं देखी जा रही थी इसलिए अपने पुत्र के लिए तिवारी जी की पुत्रवधु का हाथ मांगने चले आए ।

दोनों परिवारों ने आपसी सहमति से यह रिश्ता स्वीकार कर लिया और एक साधारण समारोह में तिवारी जी ने अपनी पुत्रवधू को अपनी पुत्री के रूप में शर्मा जी की पुत्रवधु बना कर विदा कर दिया। आज रमा के चेहरे पर लाज की गुलाबी लाली छाई हुई थी। ऐसा लगता था कि रमा के चेहरे पर फिर से किसी ने होली के रंग मल दिये हों।



- विनय मोहन शर्मा
अलवर

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