गरीब लड़की बनी आईएएस ऑफिसर

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garib ladki bani ias officer गरीब लड़की बनी आईएएस ऑफिसर जिला कलेक्टर बनाकर नियुक्ति दे दी गई थी। उसे रहने के लिए सरकारी आवास भी आवंटित कर दिया गया था।

 जानकी           


जानकी बीकानेर के एक छोटे से गांव में रहती थी। उसका पति असाध्य बीमारी से ग्रसित हो, कुछ वर्ष पूर्व उसे संसार में अकेला और बेसहारा छोड़ कर काल कल्वित हो चुका था। जानकी की गोद में उसकी फूल सी बिटिया पायल थी, जिसके लालन-पालन की जिम्मेदारी अब उसके कमजोर कांधों पर आ पड़ी थी। अपनी बिटिया के अच्छे लालन-पालन के लिए जानकी ने लोगों के घरों में बर्तन मांजने का काम शुरू कर दिया था।

 

गरीब लड़की बनी आईएएस ऑफिसर

समय पंख लगाकर उड़ रहा था। पायल अब दो वर्ष की हो चुकी थी, उसकी इच्छाएं भी बढ़ रही थी। ऐसे में जानकी अपनी छोटी सी कमाई में उसकी इच्छाओं को पूरा करने में अपने आप को असमर्थ पा रही थी। इसलिए वह गांव छोड़कर शहर अपने परिचित के पास चली आई, जिसने उसे एक दयालु सेठ के यहां उसकी लकवा ग्रस्त पत्नी की सेवा के लिए नौकरी दिलवा दी। वह सेठ दयालु स्वभाव का था, उसने जानकी को अपने बंगले में ही एक कमरा रहने के लिए दे दिया था। जानकी दिन भर सेठानी की मन लगाकर सेवा करती परंतु इसके बदले में उसे सेठानी की गालियां सहन करनी पड़ती थी। पायल जब पांच वर्ष की हुई तो जानकी ने उसे एक सरकारी स्कूल में पढ़ने के लिए बिठा दिया।

    पायल शुरू से ही पढ़ने में बड़ी जहीन थी इसलिए उसने स्कूली शिक्षा के साथ-साथ अपनी कॉलेज की शिक्षा भी पूर्ण कर ली थी। कॉलेज में पढ़ाई के दौरान पायल ने आईएएस अधिकारी बनने का सपना देखा था अतः वह शिक्षा पूर्ण करने के पश्चात् अपने सपने को पूरा ने के लिए आईएएस की परीक्षा की तैयारी में जुट गई थी। जब परीक्षा का परिणाम आया तो पायल इस परीक्षा में अच्छे अंक लेकर उत्तीर्ण हुई थी। जानकी को जब यह सुखद समाचार मिला तो उसकी खुशी का कोई पारावार न रहा। पायल को प्रशिक्षण हेतु देहरादून जाना पड़ा था। जब वह अपना प्रशिक्षण पूरा कर वापस शहर अपनी मां के पास आई तो वह आईएएस अधिकारी बन चुकी थी।

 दैवयोग से पायल को उसी शहर में जिला कलेक्टर बनाकर नियुक्ति दे दी गई थी। उसे रहने के लिए सरकारी आवास भी आवंटित कर दिया गया था।

    आज पायल अपनी मां जानकी के साथ उसी सरकारी आवास में रहने के लिए आ रही थी। जब जानकी अपनी बिटिया के साथ उस सरकारी आवास में पहुंची तो उसने नौकरों की चहल-पहल देखी जो दोनों मां और बेटी का स्वागत करने के लिए तैयारी कर रहे ।

   जानकी जो कभी नौकरानी थी ; आज उसके चारों ओर नौकरों की भीड़ थी। कभी उसके चेहरे पर चिंता की लकीरें हुआ करती थी, आज उनके स्थान पर संतोष मिश्रित प्रसन्नता से उसका मुख मंडल प्रभासित हो रहा था।



- विनय मोहन शर्मा

अलवर

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