अन्याय के खिलाफ Class 8th Hindi Durva

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अन्याय के खिलाफ चकमक से


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अन्याय के खिलाफ पाठ का सारांश


प्रस्तुत पाठ अन्याय के खिलाफ चकमक से लिया गया है। प्रस्तुत पाठ में आंध्र प्रदेश के कोया आदिवासी जिन्होंने अंग्रेजों के अन्याय के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी। कोया आदिवासियों ने अंग्रेजों के विरूद्ध लड़ाई लड़ी और अपने हक की माँग की। यह बात सन् 1922 की है, जब भारत में अंग्रेजों का शासन था। देश को गुलाम बना के रखा गया था। अंग्रेजों ने अपने स्वार्थ के लिए भारत के मासूम लोगों के ऊपर अनाचार किया था। अपना काम निकलवाने के लिए उन्होंने डरा-धमका कर लोगों को मजबूर कर दिया था | 

इसी समय की बात है जब उन अंग्रेजों के अन्याय के खिलाफ लड़ने वाले लोग थे और वह आंध्र प्रदेश के कोया आदिवासी थे। उनके नेता थे श्रीराम राजू जिन्होंने कोया आदिवासियों के लिए अपना पूरा योगदान दिया था। कोया आदिवासी आंध्र के जंगल में रहकर सीधे-साधे जीवन यापन कर रहे थे। जिनके जीने का मुख्य साधन खेती था। 

अन्याय के खिलाफ Class 8th Hindi Durva
अन्याय के खिलाफ
अंग्रेजों ने उनके सादे जीवन में आकर विष घोल दिया। जिससे उनका जीवन मुश्किल हो गया। अंग्रेज आंध्र के उस जंगल में बीचों-बीच सड़क का निर्माण करना चाहते थे। लेकिन सवाल यह था कि सड़क निर्माण के लिए मजदूर कहाँ से लाए। यह काम तहसीलदार बेस्टियन को सौंपा गया था। बेस्टियन कि नजर कोया आदिवासियों के ऊपर पड़ी। बेस्टियन बहुत घमंडी और क्रूर था। उसने आदिवासियों से कहा कि दो दिन में सड़क का काम शुरू हो जाएगा तुम सब तैयार रहना। अंग्रेज सरकार का हुक्म है, बस यह जान लो। सब चुप थे। जंगल में अकेले थे आखिर किससे पूछे और क्या पूछे एक आदमी ने हिम्मत करके पूछ लिया कि काम के बदले हमें क्या मिलेगा ? लेकिन तहसीलदार गुस्से से तमतमा गया और बोलने लगा नौकर का काम है हुक्म बजाना फिर कभी ये सवाल नहीं करना। सभी लोग सहमे हुए बेज्जती का घूंट पीकर चले गए | खुद को असहाय महसूस कर रहे थे किसी का मन नहीं था काम करने का। अपमान की अग्नि अंदर-अंदर सुलग रही थी। 


उन्हीं दिनों एक साधु जंगल में रहने आया था। नाम था अल्लुरी श्रीराम राजू। उन्होंने हाई स्कूल तक कि शिक्षा प्राप्त की थी और 18 वर्ष की उम्र में ही साधु बन गए थे। जब वे जंगलों में रहने आए आदिवासी लोग उनसे अच्छी तरह मिल-जुल गए थे। और अपने सारे दुख-दर्द उनसे कहते उसका निवारण माँगते। श्रीराम जी का कहना था कि आत्याचार के खिलाफ आवाज उठाना चाहिए अन्याय को चुप-चाप सहन नहीं करना चाहिए | उसके बाद श्रीराम जी के नेतृत्व में उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ आवाज उठाया। जब अंग्रेज उस इलाके में आते तो आदिवासी उन पर हमला कर देते थे। लेकिन भारतिय सैनिकों को बिल्कुल भी चोट नहीं पहुँचाते थे। पुलिस चौकी में जाकर हंगामा मचा देते थे। श्रीराम ने गुप्तचर रखे थे। जिसकी कानो कान ख़बर नहीं थी | किसी को अंग्रेज श्रीराम के कार्य को देख कर दंग रह जाते थे | वे कुछ नहीं कर सकते थे। जंगलों और पहाड़ों में राजू के आदमी छिपने-छुपाने में बहुत माहिर थे। वे विद्रोहियों को सहारा देते और खाने को भी देते थे। वे जंगलों में भारी भरकम हथियार उठा कर भी आसानी से छुप जाते और अंग्रेजों पर हमला कर देते थे। लाख कोशिश के बाद में अंग्रेज उन्हें खोज नहीं पाते थे। तब उन्होंने सोचा कि आदिवासी को लड़ाई में हरा नहीं सकते इसलिए अंग्रेजों ने उनका खाने पीने का समान गाँव तक पहुँचने नहीं दिया। आदिवसी भूख से मरने लगे। उनके पास धीरे-धीरे बंदूक कारतूस सब खत्म होने लगे । अंग्रेजों ने गाँव में आकर उनसे मार-पीट करना शुरू कर दिया। आदिवासी लोगों की हिम्मत टूटने लगी, कब तक भूखे-प्यासे रहकर उनसे मुकाबला करते अब तो राजू के कुछ लोग पुलिस के पकड़ में आ गए थे। एक बार तो राजू भी पुलिस की पकड़ में आकर बहुत जख्मी हो हो गया था। लोग बहुत परेशान थे राजू से लोगों की ये हालत देखी नहीं जा रही थी। तो उसने खुद को अंग्रेजों के हवाले करने की सोची, जिससे गाँव वालों की दिक्कत खत्म हो जाए | उसकी यह बात सुनकर गाँव के लोग इक्कठे हो गए | मेजर साहब बहुत खुश थे कि शिकारी खुद उसके जाल में फंस गया है। राजू की माँग थी कि उसकी कार्यवाही कोट कचहरी के हिसाब से हो मगर मेजर की ऐसी कोई इच्छा नहीं थी। मेजर के एक इशारे पर सिपाही ने राजू के ऊपर गोली चला दी और राजू ने वहीं दम तोड़ दिया। राजू आदिवासियों के लिए शाहिद हो गए। उधर कोया आदिवासियों का आंदोलन टूट गया। अंग्रेज सरकार समझ चुकी थी कि आदिवासियों से लड़ना आसान नहीं है। सरकार ने फिर उनके हितों की रक्षा के लिए विशेष कोशिश करने का निर्णय लिया। भारत देश के इतिहास में कोया आदिवासियों ने अन्याय के खिलाफ लड़ने की मिसाल स्थापित की। इस पाठ में कोया आदिवासियों के त्याग और बलिदान तथा अन्याय के खिलाफ लड़ने की सिख देते हुए संघर्ष की बातों को बताया गया है...|| 

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अन्याय के खिलाफ पाठ के प्रश्न उत्तर


प्रश्न-1 आंध्र के घने जंगलों में रहने वाले आदिवासियों के बीच अपना हक जमाने के लिए अंग्रेज़ों ने क्या किया ? 

उत्तर- आंध्र के घने जंगलों में रहने वाले आदिवासियों पर अंग्रेज़ों ने हक जमाने के लिए कहा कि दो दिनों में जंगल में सड़क बनाने का काम शुरू होगा। सब को पहुँचना है, जो नहीं पहुँचेगा तो ठीक नहीं होगा। इस तरह डरा-धमका कर उनपर हुक्मत करना चाहते थे। 

प्रश्न-2 श्री राम राजू कौन था ? उसने अंग्रेज़ों के सामने आत्मसमर्पण क्यों किया ? 

उत्तर- श्रीराम राजू एक साधु थे, जो उन दिनों आंध्र के जंगलों में रहने आए थे। और आदिवासियों से मिल जुल गए थे | उन्होंने कोया आदिवासियों की तकलीफ देखकर अंग्रेज़ों के खिलाफ आवाज उठाई और आदिवासियों के नेता बनकर उनका नेतृत्व करने लगे। लेकिन अंग्रेज जब उनसे लड़ नहीं पाए तो आदिवासियों के ऊपर जुल्म करने लगे | उन्हें मारने-पीटने लगे | उनका भोजन छीन लिया गया। राजू ने गाँव की तकलीफ देखकर अंग्रेजों के सामने आत्मसमर्पण कर दिया और शाहिद हो गए। 

प्रश्न-3 अंग्रेज़ों से लड़ने के लिए कोया आदिवासी क्या-क्या करते थे ? 

उत्तर- 
अंग्रेज़ों से लड़ने के लिए कोया आदिवासी संकरी पगडंडियों के आसपास जंगलों में छिपे रहते थे। उन पगडंडियों से जब अंग्रेज़ी सेना गुजरती थी, तो वह उनमें से भारतीयों सेना के लोगों को जाने देते थे और जैसे ही अंग्रेज़ी कैप्टन आते थे तो उसे मार देते थे। पुलिस चौकियों या सेना पर हमला कर देते थे और अस्त्र-शस्त्र लूट कर भाग जाते थे।

प्रश्न-4 कोया आदिवासियों के विद्रोह को स्वतंत्रता संग्राम क्यों कहना चाहिए ? 

उत्तर- प्रस्तुत पाठ के अनुसार, यह लड़ाई अंग्रेज़ों के अत्याचारों के विरूद्ध थी। वे अंग्रेज़ी शासन को हटाना चाहते थे, इसलिए इसे स्वतंत्रता संग्राम कह सकते हैं।

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प्रश्न-5 क्या ठीक होगा
(i)”दो दिन में जंगल में सड़क बनाने का काम शुरू होगा। तुम सब लोगों को इस काम पर पहुँचना है। अगर नहीं पहुँचे तो ठीक नहीं होगा।”
(ii)”काम करेंगे तो बदले में क्या मिलेगा।”
ऊपर के कथन तहसीलदार बेस्टीयन का है जो आदिवासियों के गाँवों मे जाकर चिल्ला-चिल्लाकर बोला था | अब तुम सोचकर बताओ कि–
(क)- तुम्हारे विचार से बेस्टियन का कथन ठीक होगा ? 

उत्तर- 
बेस्टियन का कथन गलत है क्योंकि उसने जबरन काम करवाने वाली बात कही है, जिससे अदिवासी सहमत नहीं थे | 

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प्रश्न-6 सड़क बनाने में किन-किन सामानों की ज़रूरत होती है ? पता करके लिखो | 

उत्तर- सड़क बनाने में रोड़ी, डामर, चूना, सीमेन्ट, रेता, फावड़ा, कुदाल, परात, रोड रोलर जेसीबी, मजदूर आदि की आवश्यकता पड़ती है।

प्रश्न-7 राजू हाई स्कूल तक पढ़ाई करने के बाद जंगलों मे रहने क्यों आया होगा ? 

उत्तर - हो सकता है राजू को दुनिया के मोह माया को त्याग दिया होगा और संसार में फैले भ्र्ष्टाचार से दुखी होकर वह साधु बन गया होगा और जंगल में जीवनयापन या तप करने का संकल्प लेकर आया होगा | 

प्रश्न-8 राजू के शहीद होने का आदिवासियों के आंदोलन पर क्या असर हुआ होगा ? 

उत्तर- 
राजू के शहीद होने का आदिवासियों के आंदोलन पर बहुत बुरा असर पड़ा और उनका आंदोलन टूट गया। 

प्रश्न-9 नीचे लिखे वाक्यों में मुहावरों का प्रयोग किया गया है। इन्हीं मुहावरों का प्रयोग करते हुए तुम कुछ नए वाक्य बनाओ।

(क)- एक सिपाही ने उसका काम तमाम कर दिया।

उत्तर- 
आदिवासियों ने अनेक शत्रुओं का काम तमाम कर दिया | 

(ख)- आदिवासियों की हिम्मत जवाब देने लगी।

उत्तर- अब तो बढ़ती उम्र के साथ हिम्मत भी जवाब देने लगी है | 

(ग)- अंग्रेज़ों ने अपने दांतों तले उँगली दबा ली।

उत्तर- 
सुन्दर कढ़ाई देखकर लीला ने दाँतों तले उँगली दबा ली | 

(घ)- किसी को कानो-कान खबर न हो।

उत्तर- सीता की शादी का किसी को कानो-कान खबर न हुई | 

(ङ)- अंग्रेज़ सरकार के छक्के छूट गए।

उत्तर- चोर को इतनी मार पड़ी कि उसके छक्के छूट गए।

(च)- अंग्रेज़ों के होश उड़ गए।

उत्तर- मुझे दफ़तर में अचानक देखकर रमेश के होश उड़ गए | 

(छ)- भारतीय सैनिकों का बाल बाँका न होने पाए।

उत्तर- दुश्मनों के अनेक वार से हमारा बाल भी बाँका न हो सका | 

प्रश्न-10 वचन बदलो --- 

(क)- सिपाही ने राजू पर गोली चलाई।

उत्तर- सिपाहियों ने राजू पर गोलियाँ चलाई।

(ख)- उगी हुई फसल को जलाया जाने लगा

उत्तर- उगी हुई फसलों को जलाया जाने लगा।

(ग)- आदिवासी की हिम्मत जवाब दे गई।

उत्तर- आदिवासियों की हिम्मत जवाब दे गई।

(घ)- आगे से यह सवाल मत पूछना।

उत्तर- आगे से कोई सवाल मत पूछना।


प्रश्न-11 भाववाचक संज्ञा से विशेषण बनाओ।

उत्तर - भाववाचक संज्ञा से विशेषण - 

• घमंड - घमंडी
• हिम्मत - हिम्मती
• साहस - साहसी
• स्वार्थ - स्वार्थी
• अत्याचार - अत्याचारी
• विद्रोह - विद्रोही

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अन्याय के खिलाफ पाठ से संबंधित शब्दार्थ 



• गुलाम - किसी के अधीन, पराधीन
• हक - अधिकार
निगाह - नजर 
क्रूर - निर्दयी, दया नहीं करने वाला
घमंड - अभिमान
पगडंडी - मनुष्यों के चलने से जंगल, खेत या मैदान में बना हुआ पतला रास्ता
टुकड़ी - समूह
अचूक - खाली ना जाने वाला
सख्ती - कड़ाई
फुर्ती - तेजी
तरकीब - उपाय
मिसाल - उदाहरण | 


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