अपना मालवा खाऊ उजाड़ू सभ्यता में Apna Malwa by Prabhash Joshi

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अपना मालवा खाऊ उजाड़ू सभ्यता में - प्रभाष जोशी



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अपना मालवा खाऊ उजाड़ू सभ्यता में पाठ का सार

 
प्रस्तुत पाठ अपना मालवा खाऊ-उजाड़ू सभ्यता में लेखक प्रभाष जोशी जी के द्वारा लिखित है। इस पाठ में लेखक ने मालवा प्रदेश की मिट्टी, वर्षा, नदियों की स्थिति उद्गम एवं विस्तार तथा वहाँ के जनजीवन तथा संस्कृति को चित्रित करने का प्रयास किया है। उन्होंने मालवा के बारे में बहुत ही सुंदर एवं मनमोहक चित्रण किया है। मालवा की अभी की स्थिति एवं पहले की स्थिति की तुलना की है। जैसे कि पहले की मालवा 'मालवा धरती गहन गंभीर, डग-डग रोटी, पग-पग नीर' की अब के मालवा 'नदी नाले-सुख गए, पग-पग नीर वाला मालवा सूखा हो गया' से तुलना की है। मालवा में रहने वाले लेखक अपने जन्मभूमि की बखान करते हुए उसकी पहले की सुंदरता और आज के आधुनिक युग में उजड़ चुके हरियाली और नदी झरनों की दुःख को व्यक्त करते हैं। जिसने पूरे मालवा को बर्बाद कर दिया और मालवा की मिट्टी को बंजर बना दिया है। लेखक कहते हैं कि जो मालवा अपनी सुख-समृद्धि एवं संपन्नता के लिए प्रख्यात था, वही मालवा अब खाऊ-उजाड़ू सभ्यता में फंसकर उलझ गया है | 

               
अपना मालवा खाऊ उजाड़ू सभ्यता में Apna Malwa by Prabhash Joshi
अपना मालवा

लेखक नवरात्रि के समय घाट-स्थापना का उल्लेख करते हुए बताते हैं कि यह दिन बहुत ही खुशहाली का दिन है इस दिन सारे लोग सज-धज कर घर आँगन को सजाते हैं, लेकिन आज आसमान में बादल गरज रहे हैं और बारिश होने वाली है। और मैं उस घड़ी  मालवा की उजली चटक धूप-लहलहाते ज्वार बाजरे और सरसों सोयाबीन की फसल, बेल के पीले फूल और दमकते हुए घर आँगन को देखने आया था। इस क्वांर के महीने में तो बारिश चली भी जाती है लेकिन इस बार या बारिश जरूर होगी। उस वक़्त बहुत बारिश हुई किसानों का कहना था कि हमारी सोयाबीन की फसल तो गल गई। लेकिन अब गेहूँ और चना की फसल अच्छी होगी। मालवा में बारिश का पानी घरों में गूस गया था। सबको पुराने दिन याद आने लगे थे लेकिन मालवा में अब पहले जैसे दिन कहा थे। कवि सफर के बारे में इस पाठ में बताते हैं की जब उज्जैन से देवास होते हुए इंदौर जाना होता है तो मालवा आँगन पड़ता है। और क्वांर के महीने में जब जाना होता था तो मालवा की भरी-पूरी गदराई हरियाली से तबियत मस्त हो जाती थी। कुँए, बावड़ी, तलाब-तलैया के  लबालब भरे नदी-नालों को बहते और फसलों को लहलहाते हुए देखो तो बहुत गजब की खुशियों की अनुभूति होती थी | 

             
लेकिन अब औधोगिक पद्धत्ति के कारण सारा मालवा बदल चुका है, समृद्ध मालवा अब खाऊ-उजाड़ू सभ्यता बन गया है। लेखक के अनुसार खाऊ-उजाड़ू सभ्यता अमेरिका एवं यूरोपियन की देन है। जिसके कारण विकास की  औधोगिक सभ्यता उजाड़ की अपसभ्यता बन गई है। जिसके कारण पूरी दुनिया प्रभावित हुई है जैसे  लेखक बताते हैं की नर्मदा को सीमेंट और कंक्रीट के विशाल राक्षसी बाँध से बांध दिया गया है। इसलिए वह चिढ़ गई है। लेकिन फिर में उसमें अब भी बहुत पानी और गति है लेकिन नेमार के पास उसका बहाव और गति धीमी हो गई है। लेखक ने अपने यात्रा के दौरान जो भी देखा महसूस किया और आज की जो स्थिति है, उसे इस पाठ में शब्दों के माध्यम से पिरोया है, उस आस में स्थित सारी नदियों और तीर्थ स्थलों जैसे ओंकारेश्वर, जहाँ से सिप्रा नदी का उद्गम है, सिरमोल का घाट, जैसे जगहों के बारे में बताया है। जो आज के समय में नष्ट होने के कगार पर हैं। नदियों के स्थान पर बाँध है। फसलों की जगह कारखानों ने ले ली है |   

             
इस बढ़ते औधोगिक के कारण पर्यावरण का विनाश हुआ है। जिस मालवा में पहले खेत-खलिहानों में हरी-भरी फसल लहलाती थी | वह आज बंजर हो गई है। नदियाँ तालाब झरने सब सुख गए है। नदियों को बंधी बना दिया गया है। अमेरिका की खाऊ-उजाड़ू जीवन पद्धति ने पूरी दुनिया को इतना प्रभावित किया है कि हम खुद अपनी जीवन पद्धति, संस्कृति, सभ्यता तथा अपनी धरती माता को उजाड़ने में लगे हुए हैं। आधुनिक पद्धति विकास ने हमारे जीवन को हमारे जड़-ज़मीन से अलग कर दिया है | हम अपनी जमीन की महत्व को भूलते जा रहे हैं। और हकीकत तो यह है कि हम विकास के नाम पर उजाड़ रहे हैं। इस पाठ के माध्यम से लेखक ने पर्यावरणीय सरोकारों को आम जनता से जोड़ दिया है तथा पर्यावरण के प्रति लोगो को सचेत किया है। और मनुष्यों को पर्यावरण के महत्व को बताने की कोशिश की है। लेखक ने मालवा के साथ-साथ पूरे प्रकृति के विनाश की ओर अग्रसर किया है। जिससे हम पर्यावरण विनाश से बच सके अथवा उसके महत्व को समझ कर प्रकृति का दोहन न करे बल्कि उसका संरक्षण करें...||


प्रभाष जोशी का जीवन परिचय


प्रस्तुत पाठ के लेखक प्रभाष जोशी जी हैं। इनका जन्म सन् 1937 में मध्यप्रदेश इंदौर में हुआ। शिक्षा इंदौर के महाराजा शिवा जी राव मिडिल स्कूल और हाई स्कूल में हुई। होल्कर कॉलेज, गुजराती कॉलेज और क्रिश्चियन कॉलेज में पहले गणित और विज्ञान पढ़े। उसके बाद देवास के सुनवानी महाकाल में ग्राम सेवा और अध्यापन का कार्य किया। जोशी जी पत्रकार थे | इन्होंने पत्रकारिता की शुरुआत नई  दुनिया के संपादक राजेंद्र माथुर की सहायता से की और पत्रकारिता के बारे में जानकारी हासिल किया। इन्होंने इंडियन एक्सप्रेस अहमदाबाद, चंडीगढ़ संस्करणों का संपादन, प्रजापति का संपादन और सर्वोदय संदेश में संपादन सहयोग किया। सन् 1983 में जोशी जी के संपादन में जनसत्ता अख़बार निकला जिसने हिंदी पत्रकारिता को नई ऊँचाइयाँ दी। वे जनसत्ता में नियमित स्तंभ भी लिखा करते थे। 'कागद कारे' नाम से उनके लेखों का संग्रह प्रकाशित हुआ था। देशज भाषा के शब्द उपयोग से उन्होंने हिंदी पत्रकारिता को एक नया तेवर दिया है। जोशी जी ने पत्रकारिता में लेख, सिनेमा, संगीत, साहित्य जैसे गैरपारंपरिक विषयों पर गम्भीर लेखन की नींव डाली है। क्रिकेट, टेनिस हो या कुमार गंधर्व का गायन इन विषयों पर उनका लेखन मर्मस्पर्शी है | इनकी प्रमुख कृतियाँ हैं --- हिन्दू होने का धर्म, मसि कागद और कागद कारे...|| 


अपना मालवा खाऊ उजाड़ू सभ्यता में पाठ का प्रश्न उत्तर 


प्रश्न-1 मालवा में जब सब जगह बरसात की झड़ी लगी रहती है तब मालवा के जनजीवन पर इसका क्या असर पड़ता है ? 

उत्तर- प्रस्तुत पाठ के अनुसार, मालवा में जब सब जगह बरसात की झड़ी लगी रहती है, तब मालवा के जनजीवन पर इसका गहरा प्रभाव पड़ता है। जब बारिश होती है तो मालवा में स्थित नदी-नाले पानी से लबालब भर जाते हैं। बरसात का पानी घरों में घुस जाता है। फसलें हरि-भरी लहलहा उठती हैं। बाबड़ी, तालाब, कुएँ तथा तलैया सब पानी से लबालब भर जाते हैं। चारों ओर मालवा में समृद्धि होती है | 

प्रभाष जोशी
प्रभाष जोशी

प्रश्न-2 
अब मालवा में वैसा पानी नहीं गिरता जैसा गिरा करता था। उसके क्या कारण हैं ? 

उत्तर- 
अब मालवा में वैसा पानी नहीं गिरता जैसा गिरा करता था उसके निम्नलिखित कारण हैं -- 

(क)- औद्योगिकरण जो पर्यावरण को नष्ट करते जा रहे हैं । इसने जल, मिट्टी, तथा वायू प्रदूषण को बढ़ावा दिया है।
(ख)- वायुमण्डल में कार्बन डाईऑक्साइड गैस में वृद्धि, जिसके कारण वायुमण्डल और ओजन परत को नुकसान पहुँच रहा है।
(ग)- पेड़-पौधों की कटाई के कारण पर्यावरण को नुकसान हो रहा।
(घ)- जनसंख्या वृद्धि तथा अत्यधिक शहरीकरण। 


प्रश्न-3 हमारे आज के इंजीनियर ऐसा क्यों समझते हैं कि वे पानी का प्रबंध जानते है और पहले ज़माने के लोग कुछ नहीं जानते थे ? 

उत्तर- आज के इंजीनियर अपने तकनीकी ज्ञान को बहुत उच्च मानते हैं। उनको लगता है कि पुराने ज़माने में लोगों को तकनीकी ज्ञान नहीं था। वे तकनीकी शिक्षा से अनजान थे। वह मानते हैं कि पश्चिमी सभ्यता ने ज्ञान का प्रसार किया है। भारत के लोगों को ज्ञान था ही नहीं। रिनसां के बाद से ही लोगों के अंदर ज्ञान आया था | 

प्रश्न-4 'मालवा में विक्रमादित्य, भोज और मुंज रिनेसां के बहुत पहले हो गए।' पानी के रखरखाव के लिए उन्होंने क्या प्रबंध किए ? 

उत्तर- ये समझ चुके थे कि पठारों में पानी को रोक के  रखना होगा इसलिए बेहतर इंतज़ाम किए। उन्होंने इसके लिए सबसे पहले वहाँ पर तालाब, कुएँ, बावड़ियों का निर्माण करवाया। इस तरह वह बरसात का पानी जमा करके रख सकते थे। यहॉं  पूरे वर्ष पानी की व्यवस्था की जाती थी, जिससे लोगों को पानी के लिए तरसना नहीं पड़ता था। मालवा इसी का प्रमाण है | 

प्रश्न-5  'हमारी आज की सभ्यता इन नदियों को अपने गंदे पानी के नाले बना रही है।'- क्यों और कैसे ? 

उत्तर- 
आज के समय में मनुष्य बहुत तेज़ी से आगे बढ़ रहा है, परन्तु इससे वातावरण को बहुत नुकसान हो रहा है। प्रदूषण इस प्रगति का सबसे भयानक रूप है। प्रदूषण की मार से जल, थल और आकाश पूरी तरह से ग्रसित है। पानी जीवन देता है, परन्तु मनुष्य ने इस अमूल्य जल संसाधन को भी प्रदूषित कर दिया है। नदियाँ जो पानी का मुख्य स्रोत है, वे प्रदूषित हो रही है, इनमें शहरों का गंदा पानी बहा दिया जाता है | साथ ही कारखानों का जहरीला पदार्थ भी इसमें डाल दिया जाता है। ये नदियाँ सदियों से हमारे लिए जीवनदायिनी मानी जाती है जो हमारा जलापूर्ति करते आ रही है। लेकिन आज इनका पानी इतना जहरीला हो गया है कि इससे भयंकर बीमारी होने लगी है। नदियों में रहने वाले जीव-जन्तुओं का जीवन भी प्रदूषण के कारण विलुप्ति की कगार पर है। अब इन नदियों को छोटे-छोटे बांधो में बांधकर इनको नालों में बदल दिया गया है | 

प्रश्न-6 लेखक को क्यों लगता है कि 'हम जिसे विकास की औद्योगिक सभ्यता कहते हैं वह उजाड़ की अपसभ्यता है' ? आप क्या मानते हैं ? 

उत्तर- 
हम लेखक के इस कथन से बिलकुल सहमत है। ऐसी औद्योगिक सभ्यता जिसने विकास के नाम पर प्रदूषण, प्रकृति दोहन, पृथ्वी का विनाश ही किया है। उसे अपसभ्यता ही कहा जाता है। यह विकास और प्रगति के नाम पर विनाश की ओर ले जा रहा है। मनुष्य ने अपनी उत्पत्ति के साथ से ही पृथ्वी का भी दोहन करना आरंभ कर दिया था। परन्तु तब दोहन की प्रक्रिया बहुत ही मंद थी। जैसे-जैसे मनुष्य का विकास होता गया, उसने प्रकृति का दोहन तेज़ी से करना आरंभ कर दिया। मनुष्यों ने अपने आवास के लिए पेड़ों को काटना शुरु कर दिया, ईंट के निर्माण के लिए मिट्टी का प्रयोग किया, कोयले, सीमेंट, धातु, इत्यादि की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए उसने पृथ्वी को खोद डाला |  यह कैसा विकास है, इस औधोगिक के कारण जीव-जंतु, पेड़-पौधे, नदियाँ, पहाड़ों, भूमि सभी को नुकसान हो रहा है । जो हमें उजाड़ रहा है। अतः हम इसे अपसभ्यता ही मानते हैं | 

प्रश्न-7 धरती का वातावरण गरम क्यों हो रहा है ? इसमें यूरोप और अमेरिका की क्या भूमिका है ? टिप्पणी कीजिए | 

उत्तर - 
आज पूरे संसार में ग्लोबल वार्मिंग का खतरा मंडरा रहा है। इस कारण धरती का वातावरण तेज़ी से गरम हो रहा है। लोगों ने खुद की सुविधाओं के नाम पर जो विकास किया है। वह प्रकृति के लिए ख़तरनाक सिद्ध हो रहा है। वाहनों, हवाई जहाजों, बिजली बनाने वाले संयंत्रों (प्लांटस), उद्योगों इत्यादि से अंधाधुंध होने वाले गैसीय उत्सर्जन की वजह से कार्बन डायऑक्साइड में वृद्धि हो रही है। इन गतिविधियों से कार्बन डायऑक्साइड, मिथेन, नाइट्रोजन ऑक्साइड इत्यादि ग्रीनहाउस गैसों की मात्रा में भी वृद्धि ही रही है। धिरे-धिरे धरती के तापमान में बढ़ोतरी हो रही है। ग्लेशियरों के बर्फ बढ़ रहे तापमान के कारण तेजी से पिघल रही है। जिससे आने वाले समय में जल संकट खड़ा हो सकता है। जंगलों का बड़ी संख्या में कटाव हो रहा है, जंगल नष्ट होते जा रहें हैं। गैसों के उत्सर्जन में अमेरिका तथा यूरोपीय देशों की भूमिका मुख्य है। वहाँ शहरीकरण व औधोगिक कारण सबसे ज्यादा है। जिसके कारण विषैले गैसों का उत्सर्जन हो रहा है। जिसकी अधिक मात्रा में वही से निकलता है | 

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अपना मालवा खाऊ उजाड़ू सभ्यता में पाठ से संबंधित शब्दार्थ 


• निथरी - फैली, चमकीली
• चौमासा - बारिश के चार महीने
• ओटले - मुख्य द्वार
• घऊँ-घऊँ - बादलों में गरजने की आवाज
• पानी भोत गिरियो - पानी बहुत गिरा, बरसात बहुत हुई
• फसल तो गली गई - फसल पानी में डूब गई और सड़-गल गई
पण - परन्तु
• उनने - उन्होंने
• अत्ती - बड़ा-चढ़ाकर, अतिश्योक्ति में
• पश्चिम के निरेसां - पश्चिम का पुनर्जागरण काल
• विपुलता की आश्वस्ति - सम्पनता, समृद्धि का आश्वासन
• अबकी मालवी खूब पाक्यो है - अबकी मालवा  खूब समृद्ध है
• पेले माता बिठायंगा - पहले माता की मूर्ती स्थापित करूँगा
• रड़का - लुढ़का
• मंदे उजाले से गमक रही थी - हल्के प्रकाश से सुगंधित हो रही थी
• चवथ का चाँद - चतुर्थी का चाँद
• छप्पन का काल - 1899 का भीषण अकाल
• दुष्काल का साल - बुरा समय, आकाल
• पुर - बाढ़
• गाद - झाग , कूड़ा-कचरा
• कलमल करना - सँकरे रास्ते से पानी बहने की आवाज़
• सदानीरा - हर वक्त बहने वली नदियाँ  |             

                   

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हिन्दीकुंज,Hindi Website/Literary Web Patrika: अपना मालवा खाऊ उजाड़ू सभ्यता में Apna Malwa by Prabhash Joshi
अपना मालवा खाऊ उजाड़ू सभ्यता में Apna Malwa by Prabhash Joshi
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