Surdas Ke Pad Poem Explanation Class 11 Hindi सूरदास के पद अर्थ सहित

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सूरदास के पद अर्थ सहित कक्षा 11


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खेलन में को काको गुसैयाँ सप्रसंग  व्याख्या 

खेलत में को काको गुसैयां | 
हरि हारे जीते श्रीदामा बरबसहीं कत करत रिसैयां | 
जाति पांति हम तें बड़ नाहीं नाहीं बसत तुम्हारी छैयां।
अति अधिकार जनावत हम पै हैं कछु अधिक तुम्हारे गैयां | 
रुहठि करै तासों को खेलै कहै बैठि जहं तहं सब ग्वैयां | 
सूरदास प्रभु कैलो चाहत दांव दियौ करि नंद-दुहैया || 

भावार्थ - प्रस्तुत पद कवि सूरदास जी के द्वारा रचित है |  इसमें कवि कहते हैं कि कान्हा गोपियों से खेल में हारने के बाद भी हार स्वीकार नहीं करता है | उसके सखा ग्वालबाल उससे कहता है कि कृष्ण खेल-खेल में हार जाने से नाराजगी कैसी, खेल में कौन किसका स्वामी होता है। तुम हार गए हो और सखा श्रीदामा जीत गए हैं। फिर जबरदस्ती का नाराज क्यों हो रहे हो | झगड़ा क्यों कर रहे हो ? तुम्हारी जाति-पाति हमसे बड़ी तो है नहीं और न ही हम तुम्हारे अधीन हैं | तुम्हारी छाया के नीचे तो रहते नही है। तुम इतना अधिकार इसलिए दिखाते हो क्योंकि तुम्हारे बाबा के पास हमसे अधिक गाय है। हम तुम्हारे साथ नहीं खेलेंगे तुम हमेशा रूठे रहते हो | जो हमेशा खेल में रूठता है उसके साथ कौन खेलेगा। यह कहकर सब मित्र यहाँ-वँहा बिखर गए। सूरदास जी कहते हैं, प्रभु तो खेलना चाहते हैं इसलिए उन्होंने नँदबाबा की शपथ ली और कभी ना रूठने की कसम खाकर दाव मित्रों को दे दिया | 


मुरली तऊ गुपालहिं भावति व्याख्या

मुरली तऊ गुपालहिं भावति।
सुनि री सखी जदपि, नँदलालहिं नाना भाँति नचावति।
राखति एक पाइ ठाढ़ौ करि, अति अधिकार जनावति।
कोमल तन आज्ञा करवावति, कटि टेढ़ी ह्वै आवति।
अति आधीन सुजान कनौड़े गिरिधर नार नवावति।
आपुन पौढ़ि अधर सज्जा पर, कर-पल्लव पलुटावति।
भृकुटी कुटिल, नैन नासा-पुट, हम पर कोप करावति।
सूर प्रसन्न जानि एकौ छिन, धर तैं सीस डुलावति।।


भावार्थ - 
प्रस्तुत पद कवि सूरदास जी के द्वारा रचित है |  इसमें कवि कहते हैं कि गोपियाँ श्री कृष्ण के मुरली से जलती हैं। एक सखी दूसरी सखी से कहती है, सखी सुनती हो ये मुरली नंदलाल को कई तरह से नचाती है। उसके बाद भी कृष्ण को इस मुरली से इतनी मोह है। यह मुरली कान्हा को एक पैर में खड़ा करके रखती है और कान्हा पर अपना अधिकार जमाती है। और तो और उनके कोमल शरीर से आज्ञा तक मनवा लेती है। और कृष्ण की कमर भी टेढ़ी हो आती है। बस बात इतनी ही नहीं किसी दास की तरह कृष्ण का सर भी उसके सामने झुकाने को मजबूर कर देती है। जिसने पर्वत को अपने ऊँगली पर उठा लिया। किसी के सामने नहीं झुके ओ मुरली के सामने अपना शीश झुकाते हैं। यह मुरली कान्हा के होठों पर सज कर उनके हाथों से अपना पैर तक दबवाती है। उनके अधर पर मुरली को देखकर लगता है कि सेज पर कोई आराम से लेटा हो। टेढ़ी भृकुटी, बाँके नेत्रों और फड़कते हुए नासिका पुटों से हम पर क्रोध करवाती हैं। मुरली श्री कृष्ण को एक क्षण के लिए भी प्रसन्न जानकर धड़ से सिर हिलवाती है। इस तरह सखियाँ मुरली के प्रति अपना नाराजगी जता रही हैं। जिसने कान्हा को अपने वश में कर रखा। क्योंकि गोपियां कान्हा से बहुत प्रेम करती हैं, लेकिन कान्हा के मुरली के प्रति मोह उनको पसंद नहीं है | 

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सूरदास का जीवन परिचय

प्रस्तुत पाठ के रचयिता सूरदास जी हैं। सूरदास जी के जन्म को लेकर मतभेद है। कुछ विद्वानों के अनुसार इनका
सूरदास के पद अर्थ सहित
सूरदास
जन्म सन् 1478 को रुनकता उत्तरप्रदेश जिला आगरा में हुआ माना जाता है। और कुछ विद्वानों का मानना है कि इनका जन्म दिल्ली के निकट सीही ग्राम में हुआ था। सूरदास जी गऊघाट पर रहते थे। सूरदास भक्ति-काल के सगुण भक्ति-शाखा के श्रेष्ठ कवि हैं। महाकवि सूरदास जी वात्सल्य रस के महान सम्राट माने जाते हैं। वे महाप्रभु वल्लभाचार्य के शिष्य थे। सुरदास पुष्टिमार्ग सम्प्रदाय के 'अष्टछाप' कवियों में से सबसे प्रसिद्ध कवि थे। इनकी काव्य रचना में प्रकृति और कृष्णबाल लीला का वर्णन किया गया है। सुरदास कृष्णभक्त कवि थे उन्होंने कृष्ण के जन्म से लेकर उनके मथुरा जाने तक की कथा और कृष्ण के अन्य लीलाओं का बहुत ही मनोरम काव्य रचना की है। वे ब्रज भाषा तथा अन्य बोलचाल की भाषा में काव्य रचना करते थे। उन्होंने अपने काव्यों में भक्ति-भावना, प्रेम, वियोग, श्रृंगार इत्यादि को बड़ी ही सजगता से सरल और सहज स्वाभाविक रूप में वर्णन किया है। सुरदास जी के सभी पद गेय हैं आर्थत गायन रूप में है | उनकी रचना किसी ना किसी राग में बंधी हुई है। उनके अनुसार अटल भक्ति ही मोक्ष-प्राप्ति का एक मात्र साधन है और उन्होंने भक्ति को ज्ञान से भी बढ़ कर माना है। सूरदास की मृत्यु गोवर्धन के निकट पारसौली ग्राम में 1583 ई. में हुई मानी जाती है | 

सूरदास जी की कुछ प्रमुख कृतियाँ में सूरसागर, साहित्य लहरी, सूर सारावली आदि शामिल हैं। उनका लिखा सूरसागर ग्रन्थ सबसे ज़्यादा लोकप्रिय माना जाता है | सूरसागर को राग सागर भी कहा जाता है...|| 



खेलन में को काको गुसैयाँ मुरली तऊ गुपालहिं भावति पाठ का सारांश

प्रस्तुत दोनों पद के रचयिता सूरदास जी हैं। प्रथम पद में कवि ने कृष्ण के बाललीला का अत्यंत मनोरम वर्णन किया है। कृष्ण और सखाओं के बीच खेल-खेल में हो रहे नाराजगी को बताया है, जिसमें कान्हा खेल में हार जाते हैं लेकिन हार स्वीकार नहीं करते | उनके सखा कान्हा से कहते हैं तुम हार गए हो और तुम हमारे स्वामी नहीं हो जो हम तुम्हारी हर बात को माने | हमें इस तरह के मित्र नहीं चाहिए जो खेल में नाराज हो जाए लेकिन कवि कहते हैं कि कान्हा खेलना चाहता है और कान्हा ने अपने नँदबाबा कि शपथ भी ली है और दाव सखा को दे दिया । इस पद में बाल-मनोविज्ञान का अत्यंत सूक्ष्म चित्रण किया गया है। दूसरे पद में कवि ने कृष्ण की मुरली के प्रति गोपियों के इर्ष्या के भवना को प्रकट किया है। इसमें सारी सखियाँ कृष्ण की मुरली को अपना दुश्मन समझती हैं, कहती हैं कि इस मुरली ने कान्हा को वश में करके रखा है और इशारों पर नचा रही है। इस जलन की भावना में गोपीयों का कृष्ण के प्रति प्यार भी झलकता है। इस पद में कृष्ण और गोपियों का अनन्त प्रेम देखने को मिलता है...|| 


सूरदास के पद पाठ के प्रश्न उत्तर 


निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए --- 
प्रश्न-1 खेलन में को काको 'गुसैयाँ’ पद में कृष्ण और सुदामा के बीच किस प्रसंग का वर्णन है ? 

उत्तर- 
खेलन में को काको  'गुसैयाँ’ पद में कृष्ण और सुदामा के बीच खेल-खेल में हो रहे नाराजगी का वर्णन किया गया है। कान्हा खेल में हार जाते हैं लेकिन अपना हार स्वीकार नहीं करते हैं, जिससे नाराज होकर सभी मित्र इधर-उधर चले जाते हैं।

प्रश्न-2 हार जाने पर भी कृष्ण के क्रोध करने का क्या कारण था ? 

उत्तर- 
प्रस्तुत पाठ के अनुसार, कृष्ण हारने के बाद भी अपनी हार स्वीकार नहीं कर रहा था। जीत की रट लगा रहा था। कृष्ण के क्रोध का कारण अपनी हार को स्वीकार नहीं करना था। 

प्रश्न-3 'मुरली तऊ गुपालहिं भावति।' पद में एक सखी दूसरी सखी से क्या कहती है ? 

उत्तर- 
'मुरली तऊ गुपालहिं भावति।' पद में एक सखी दूसरी सखी से कहती है कि सखी सुनती हो ये मुरली नंदलाल को कई तरह से नचाती है। उसके बाद भी कृष्ण को इस मुरली से इतनी मोह है। यह मुरली कान्हा को एक पैर में खड़ा करके रखती है और कान्हा पर अपना अधिकार जमाती है। और तो और उनके कोमल शरीर से आज्ञा तक मनवा लेती है। और कृष्ण की कमर भी टेढ़ी हो आती है। बस बात इतनी ही नहीं किसी दास की तरह श्रीकृष्ण का सर भी उसके सामने झुकाने को मजबूर कर देती है। यह मुरली कान्हा के होठों पर सज कर उनके हाथों से अपना पैर तक दबवाती है। उनके अधर पर मुरली को देखकर लगता है जैसे कोई सेज में लेटा हो। टेढ़ी भृकुटी, बाँके नेत्रों और फड़कते हुए नासिका पुटों से हम पर क्रोध करवाती हैं। मुरली श्री कृष्ण को एक क्षण के लिए भी प्रसन्न जानकर धड़ से सिर हिलवाती हैं। इस तरह सखियाँ मुरली के प्रति अपना नाराजगी जता रही हैं | 

प्रश्न-4 कृष्ण को 'सुजान कनौड़े' क्यों कहा गया है ? 

उत्तर- 
प्रस्तुत पाठ के अनुसार, कृष्ण को 'सुजान कनौड़े' इसलिए कहा गया है क्योंकि कृष्ण की मुरली बहुत चतुर है | वह कृष्ण को अपने दास की तरह अपने सामने सिर झुकाने को मजबूर कर देती है | 

प्रश्न-5 खेल में रूठने वाले साथी के साथ सभी क्यों नहीं खेलना चाहते हैं ? 

उत्तर- खेल-खेल में किसी एक के रूठ जाने से सारा खेल का मज़ा समाप्त हो जाता है। जो खेल में अपनी हार नहीं मानता उसके साथ खेलना अच्छा नहीं लगता है। कान्हा भी अपनी हार स्वीकार नहीं करता है, इसलिए सारे मित्र उन्हें छोड़कर ईधर-उधर चले जाते हैं। कान्हा से कहते हैं जो खेल में रूठ जाए उसके साथ कौन खेलना चाहेगा। 

प्रश्न-6 खेल में कृष्ण के रूठने पर उनके साथियों ने उन्हे डॉंटते हुए क्या-क्या तर्क दिए ? 

उत्तर- प्रस्तुत पाठ के अनुसार, खेल में कृष्ण के रूठने से उनके सखा ग्वालबाल उनको डाँटते हुए कहते हैं कि कृष्ण खेल-खेल में हार जाने से नाराजगी कैसी, खेल में कौन किसका स्वामी होता है। तुम हार गए हो और सखा श्रीदामा जीत गए हैं। फिर जबरदस्ती का नाराज क्यों हो रहे हो | झगड़ा क्यों कर रहे हो ?  तुम्हारी जाति-पाति हमसे बड़ी तो है नहीं और न ही हम तुम्हारे अधीन है तुम्हारी छाया के नीचे तो रहते नही हैं। तुम इतना अधिकार इसलिए दिखाते हो क्योंकि तुम्हारे बाबा के पास हमसे अधिक गाय हैं |  कृष्ण को साथियों ने यही तर्क दिए | 

प्रश्न-7 कृष्ण ने नंद बाबा की दुहाई देकर दाव क्यों दिया ? 

उत्तर- 
प्रस्तुत पाठ के अनुसार, कृष्ण जब हार नहीं मानते हैं तो सारे सखा उनसे झगड़ा करके इधर-उधर भाग जाते हैं। लेकिन कृष्ण खेलना चाहते हैं। इसलिये कृष्ण ने नंद बाबा का दुहाई देकर दाव सखा को दे देता है | 

प्रश्न-8 बाँसुरी बजाते हुए कृष्ण की छवि किस प्रकार हो जाती है ? 

उत्तर- 
प्रस्तुत पाठ के अनुसार, बाँसुरी बजाते हुए कृष्ण की छवि ऐसा लगता है जैसे बाँसुरी कृष्ण के होंठों पर सज कर उनसे अपना पैर दबाव रही हो। टेढ़ी भृकुटी, बाँके नेत्रों और फड़कते हुए नासिका पुटों से हम पर क्रोध करवाती हैं |  

प्रश्न-9 गिरधर नाव नवावती से सखी का क्या आशय है ? 

उत्तर- गिरधर नाव नवावती से सखी का यह आशय है कि ये मुरली कितनी चतुर है, जिसने कृष्ण को अपने सामने झुका लिया। जो कृष्ण गोवर्धन पर्वत को अपने ऊँगली में उठा लिए जो कभी किसी से सामने नहीं झुकते वो कृष्ण इस मुरली के सामने अपना मस्तक झुकाते हैं, मुरली ने इनको इतना मोह लिया है | 

प्रश्न-10 कृष्ण के अधरों की तुलना सेज से क्यों की गई है ? 

उत्तर- 
कृष्ण की अधरों की तुलना सेज से इसलिए कि गई है क्योंकि मुरली को कान्हा जब होंठों पर सजाते हैं,  तो हाथों पर मुरली को देखकर ऐसा लगता है जैसे कोई सेज में लेटा हो। कृष्ण के हाथ मुरली के लिए सेज बन जाता है | 

प्रश्न-11 पठित पदों के आधार पर सूरदास के काव्य की विषेशताएँ बताइए | 

उत्तर- 
पठित पदों के आधार पर सूरदास के काव्य की विषेशताएँ निम्नालिखित हैं --- 

• पदों में गेयता का गुण है | 
• बाल लीलाओं का मनोरम वर्णन | 
• गोपियों का कृष्ण के प्रति अत्यंत प्रेम का भाव | 
• जलन में छुपा गोपियों का कान्हा के पति प्रेम | 
• इन पदों में ब्रज भाषा का प्रयोग | 
• बाल मनोविज्ञान बालकों के स्वभाव का चित्रण | 
• अधर सज्जा ,कर - पल्लव में रुपक अलंकार का  प्रयोग है | 
• सुनिरी सखी, नैन नासा में अनुप्रास अलंकार का प्रयोग | 
• इस कविता में श्रृंगार रस का प्रयोग | 

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सूरदास के पद पाठ से संबंधित शब्दार्थ 


• कटी - कमर
• गुसैयां - स्वामी।
• श्रीदामा - श्रीकृष्ण का एक सखा।
• बरबस हीं - जबरदस्ती ही।
• छैयां - छायाँ के नीचे , अधीन।
• सुजान - चतुर।
• कोय - क्रोध
• कनौड़े - क्रीतदास।
• नार - गर्दन, स्त्री
• सन - समान।
• गिरिधर - पर्वत को उठाने वाले
• घर तैं सीस ढुलावति - धड़ पर सिर हिलवाने  लगती है। 



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