जीवन में परिश्रम का महत्व Hindi Essay on Importance of Hard Work in Hindi

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जीवन में परिश्रम का महत्व Hindi Essay on Importance of Hard Work in Hindi


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सृष्टि के विकास का मूलमन्त्र परिश्रम है। श्रम के बल पर सृष्टि के समस्त कार्य संचालित होते हैं। पृथ्वी, नक्षत्र, ग्रह, सूर्य और चन्द्र सभी अपने कर्म में निरत हैं। संसार के सभी प्राणी कर्म के अधीन हैं। पक्षी प्रातःकाल दाना जुटाने के लिए अपने घोंसले से निकल पड़ते हैं।चींटी अपना भोजन एकत्र करने के लिए सतत चलती रहती है। सभी पशु, सभी मानव प्रातः से सायं तक अपने कर्म में अनवरत निरत दृष्टिगत होते हैं। मानव ने आदिम युग से आज तक का सभ्य जीवन परिश्रम से ही प्राप्त किया। उसने पशुओं का शिकार किया, खेती करना सीखा, पराका निर्माण किया, माम और नगर बसाये। गगनचुम्बी भवनों, विशाल बाँधों, कारखानों, यन्वी, माटर, रेलों का निर्माण किया। चारों ओर मानव का श्रम एव जयते' का उच्च उद्घोष सुनाई पड़ता छ। यह सब मनुष्य की साधना एवं अनवरत श्रम का परिणाम है। 

श्रम  के प्रकार

जीवन में परिश्रम का महत्व
जीवन में परिश्रम का महत्व

कर्म का दूसरा नाम श्रम है। मानव शरीर और मस्तिष्क से जो भी कार्य करता है, वह श्रम ही है। हम श्रम को दो रूपों में देखते हैं शरीर से यह जो श्रम करता है, वह शारीरिक श्रम कहलाता है। जैसे-गड़ा खोदना, खेती करना. समान ढोना. बढईगीरी. लहारगीरी आदि सभा कामों में शारीरिक श्रम करना पड़ता है। बुद्धि या मन के द्वारा जो कार्य किये जाते हैं, वे सब मानासक श्रम कहलाते हैं। वकालत, अध्यापन, डॉक्टरी आदि कार्यों में जो श्रम होता है, वह मानसिक श्रम की कोटी में आता है। 

श्रम का महत्व

जीवन में परिश्रम का महत्वपूर्ण स्थान है। जीवन में सुख और समृद्धि श्रम पर आधारित है। अथक परिश्रम से असम्भव कार्य भी सम्भव हो जाते हैं। श्रम जीवन की सफलता की कुंजी है। ईश्वर ने मनुष्य के लिए अनन्त पदार्थ बनाये है, परन्तु अकर्मण्य व्यक्ति उन्हें प्राप्त नहीं कर पाते हैं। उन्हें पाने के लिए कर्म तो करना ही होगा 

"सकल पदारथ यहीं जग माहीं, कर्महीन नर पावत नाहीं।" 


श्रम से मनुष्य मनुष्यत्व ही नहीं, देवत्व भी प्राप्त कर लेता है। श्रम वह सोपान है, जिस पर चढ़कर मनुष्य संसार-स्वर्ग के सभी सुखों को प्राप्त कर सकता है। मानवता का विकास और वैज्ञानिक उन्नति परिश्रम के ही मधुर फल हैं। गीता के "कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन्" में श्रम की महत्ता ही प्रतिपादित की गयी है। कवि नलिन के शब्दों में 

"जीवन एक सुमन मानो तो सौरभ उसका श्रम है। 

ईश्वर की वरदान शक्ति भी इसके आगे कम है।। 

जिस प्रकार सौरभ के बिना सुमन व्यर्थ है, उसी प्रकार श्रम के बिना जीवन व्यर्थ है। जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में श्रम का महत्व दृष्टिगोचर होता है। अध्यापक परिश्रमी छात्र से प्रसन्न रहता है। मालिक मेहनती सेवक से सन्तष्ट रहता है। बढे परिश्रम से सेवा करने वाले बच्चों से प्रसन्न रहते हैं। प्रथम श्रेणी प्राप्त करने वाले परिश्रमी छात्र को छात्रवृत्ति प्राप्त होती हैं। प्रतियोगी परीक्षाओं में परिश्रम द्वारा उत्तीर्ण होने वालों को सरकारी उच्च पद प्राप्त होते हैं। परिवार के परिश्रमी सदस्य के हाथ में घरं की बागडोर रहती है। इस प्रकार परिश्रम की अनिवार्यता जीवन के सभी क्षेत्रों में देखी जा सकती है। 

भाग्य और पुरुषार्थ 

भाग्य और पुरुपार्थ जीवन-पथ के दो पहिये हैं। अकेले. भाग्यचक्र से ही जीवन रथ आगे नहीं बढ़ सकता है। जो लोग श्रम को त्यागकर भाग्य या आलस्य का आश्रय लेते हैं, वे अपने जीवन में असफल रहते हैं। ईश्वर पर केवल आलसी व्यक्ति ही आश्रित रहते है."देव-देय आलसी पुकारा।" कायरों और अकर्मण्यों की ईश्वर भी सहायता नहीं करता है 

"God helps those, who help themselves" 

आलसी और अकर्मण्य पृथ्वी पर भार-स्वरूप हैं। आलस्य मनुष्य का प्रबल शह है। भाग्यवादी बनकर हाथ पर हाथ रखकर बैठना मौत की निशानी है। मनुष्य अपने भाग्य का स्वयं निर्माता है। परिश्रम के बल पर ही वह अपने बिगड़े भाग्य को बदल सकता है। 

सफलता का रहस्य श्रम

महापुरुष बनने का प्रथम सोपान परिश्रमशीलता है। संसार में जितने महापुरुष हुए सभी कष्ट-सहिष्णुता और अम के कारण श्रद्धा, गौरव और यश के पात्र बने। वाल्मीकि, कालिदास, तुलसीदास आदि जन्म से महाकवि नहीं थे। उन्हें ठोकरें लगी, ज्ञान-नेत्र खुले और अनवरत परिश्रम से महाकवि बने। जवाहरलाल नेहरू के प्रधानमन्त्री बनने का रहस्य उनकी -परिश्रमशीलता ही है। गाँधीजी का सम्मान उनके परिश्रम एवं कष्ट-सहिष्णुता के कारण ही है। इसे सबने अपने जीवन का प्रत्येक क्षण अमरत रहकर बिताया। उसी का परिणाम है कि वे सफलता के उच्च शिखर तक पहुँच सके। महान् राजनेताओं, वैज्ञानिकों, कवियों, साहित्यकारों और ऋषि-मुनियों की सफलता का रहस्य एकमात्र परिश्रम ही है। जितने भी लक्ष्मी के वरद पुत्र हैं, यदि वे निठल्ले पड़े रहते तो उनकी सम्पत्ति बढ़ने के बजाय घट जाती। अनुद्यमी मनुष्य लक्ष्मी का कृपापात्र नहीं हो. सकता है। 

परिश्रमी व्यक्ति राष्ट्र की बहुमूल्य पूँजी है। श्रम वह महान् गुण हैं, जिससे व्यक्ति का विकास और राष्ट्र की उन्नति होती है। संसार में महान् बनने और अमर होने के लिए परिश्रमशीलता अनिवार्य है। श्रम से अपार आनन्द मिलता है। श्रम के सामने प्रकृति भी नत हो जाती है 


"प्रकृति नहीं डर कर झकती है, कभी भाग्य के बल से । 

सदा हारती वह मनुष्य के उद्यम से, श्रम-जल से।" 


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