भाग्य और पुरुषार्थ पर निबंध भाग्य और पुरुषार्थ पर निबंध इन हिंदी bhagya aur purusharth bhagya aur purusharth ki vyakhya purusharth par nibandh जो मनुष्य भाग्य पर भरोसा करते हैं तथा अपने पुरुषार्थ पर विश्वास नहीं करते हैं ,वे ही अपनी दुर्गति के लिए भाग्य को दोषी मानते हैं। जो मनुष्य शेर होते हैं ,वे अपने बल पराक्रम में विश्वास रखते हैं।
भाग्य और पुरुषार्थ पर निबंध
भाग्य और पुरुषार्थ पर निबंध भाग्य और पुरुषार्थ पर निबंध इन हिंदी bhagya aur purusharth bhagya aur purusharth ki vyakhya purusharth par nibandh essay on bhagya aur purusharth in hindi - संसार में दो प्रकार के मनुष्य पाए जाते हैं - एक वे हैं जो पुरुषार्थ करते हैं तथा कठिन से कठिन से काम को बड़ी सरलता से करते हैं। दूसरे वे हैं जो आलसी है - उनका विश्वास होता है कि वही होगा जो भाग्य में लिखा होगा।
पुरुषार्थी अर्थात कर्मवीर व्यक्ति इस बात को मानते हैं कि मैं प्रत्येक कार्य में सफलता अर्जित करूँगा अन्यथा अपना शरीर त्याग दूंगा। इसके विपरीत कर्मभीरु आलसी मनुष्य कार्य करने से डरते हैं।
ऐसे व्यक्ति अपनी बात के समर्थन में संत मलूकदास की निम्नलिखित पंक्तियों को व्यक्त करते हैं -
अजगर करे ना चाकरी पंछी करे ना काम,
दास मलूका कह गए सब के दाता राम।
उपरोक्त पंक्ति संतों के लिए तो ठीक है परन्तु गृहस्थ व्यक्ति के लिए नहीं। आलस्य मानव जीवन का सबसे बड़ा शत्रु है।आलसी व्यक्ति परिवार समाज और देश सबके लिए कलंक होता है।
भाग्यवाद पर विश्वास -
जो मनुष्य भाग्य पर भरोसा करते हैं तथा अपने पुरुषार्थ पर विश्वास नहीं करते हैं ,वे ही अपनी दुर्गति के लिए भाग्य को दोषी मानते हैं। जो मनुष्य शेर होते हैं ,वे अपने बल पराक्रम में विश्वास रखते हैं। उनके लिए भाग्य जैसे शब्दों का कोई महत्व नहीं होता है।भाग्यवादी आलसी मनुष्यों का मत है कि परिश्रम और भाग्य में कोई प्रत्यक्ष सम्बन्ध नहीं है। उनके अनुसार ,भाग्य के सामने पुरुषार्थ तुच्छ या निरर्थक है। वे मानते हैं कि भाग्यवान देगा तो छप्पर फाड़कर देगा। उनके अनुसार परिश्रम करना पुरुषार्थ करना बेकार है।परन्तु आधुनिक युग में पुरुषार्थ को भाग्य से अधिक शक्तिशाली माना जाता है। यह बात सच है कि जो भाग्य में होगा वह तो होकर ही रहेगा। उसे कोई नहीं रोक सकता है किन्तु कर्म तो करना ही पड़ेगा।
कर्मरत मनुष्य -
मनुष्य को हमेशा परिश्रम करते रहना चाहिए। आलस्य द्वारा मनुष्य कायर बन जाता है। वह झूठ बोलने तथा चोरी करने लगता है। उसे उत्थान के स्थान पर पतन ,उन्नति के स्थान पर अवनति प्राप्त होती है। अतः आलस्य को त्यागकर ही मनुष्य अपने जीवन में सफलता प्राप्त कर सकता है। लक्ष्मी उद्योगी पुरुष के पास ही निवास करती है। रामधारी सिंह दिनकर जी ने लिखा है -
है कौन विघ्न ऐसा जग में, टिक सके वीर नर के मग में?
खम ठोंक ठेलता है जब नर, पर्वत के जाते पाँव उखड़।
मानव जब जोर लगाता है,
पत्थर पानी बन जाता है।
गुण बड़े एक से एक प्रखर, हैं छिपे मानवों के भीतर,
मेंहदी में जैसे लाली हो, वर्तिका-बीच उजियाली हो।
बत्ती जो नहीं जलाता है
रोशनी नहीं वह पाता है।
आधुनिक युग में मानव ने जो उन्नति प्राप की है ,चाँद आदि ग्रहों तक की जो यात्रा की है ,यह उसके पुरुषार्थ का तथा उसके परिश्रम का ही फल है।
Aapne bahut achcha laikh likha gai ummid hai aap aur bhi likhenge parntu kripya kar thoda bada Laikh likhe or udahrand ya kahani ke madhyam se bhi samjhane ka prayant kare. Dhanyawad
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