चमरासुर उपन्यास (4) / शमोएल अहमद

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ऊना गाँव में चार दलित युवकों की बेरहमी से पिटाई हुई थी | वे मृत गाय की चमड़ी उधेड़ रहे थे | उनका पेशा भी यही था | लेकिन गौरक्षकों ने उन्हें धर दबोचा और

चमरासुर उपन्यास (4) / शमोएल अहमद


धर अचानक दलितों पर अत्याचार बढ़ गये | धरती सख्त हो गयी | आकाश दूर हो गया | बस्तियाँ रुदन में डूब गईं |

ऊना गाँव में चार दलित युवकों की बेरहमी से पिटाई हुई थी | वे मृत गाय की चमड़ी उधेड़ रहे थे | उनका पेशा भी यही था | लेकिन गौरक्षकों ने उन्हें धर दबोचा और निर्दयता से पीटा | लखनऊ में २८ जुलाई को एक मरी हुई गाय की खाल उतारने जा रहे दो दलितों की पिटाई कर दी | गोबर खाने और पेशाब पीने पर मजबूर किया | इसका वी.डी.ओ. बनाकर सोशल मीडिया पर वायरल कर दिया | काठा गाँव में एक मृत गाय को नहीं उठाने पर दलित को बेरहमी से मारा | दबंगों ने घर की गर्भवती महिला के साथ भी मार पीट की | 30 जुलाई को एक दलित औरत को नंगा करके मारा | पश्चिमी चम्पारण के नरकटियागंज की दलित लडकी का बलात्कार हुआ | कन्नौज के चौधरी सराय कांसीराम कालोनी में दलित लड़की के सामूहिक बलात्कार के बाद तेज़ाब से नहला दिया जिससे उसकी मौत हो गयी | हरियाणा के फरीदाबाद में पंचायती चुनाव में वोट नहीं देने पर दलितों के साथ मार पीट की गयी | 3 अगस्त को स्स्कॉलरशिप में कटौती के विरोध में प्रदर्शन करते हुए दलित छात्रों को पुलिस ने निर्दयता से पीटा |मुजफ्फरपुर में बाइक चोरी करने वाले को बेरह्मी से पीटा और मुँह पर पेशाब कर दिया |मैनपुरा में मात्र 15 रुपए के लिए दलित दम्पत्ति को मौत के घाट उतार दिया | 19 अगस्त को हरदोई में दलित लडकी के रेप के बाद आँखें फोड़ दी गईं | कन्नौज के अरपुरा क्षेत्र में दलित औरत का रेप कर उसे पेड़ से नंगा बाँध दिया |

चमरासुर उपन्यास (4) / शमोएल अहमद

गाँधी चौक पर हजारों दलित जुटे | सहारनपुर से दलितों की जमात भीमसेना की अगुआई में पहुँची| चमरासुर भी दोस्तों के साथ पहुँचा| दलित बहुत आक्रोश में थे | उनके नेताओं ने भाषण दिया लेकिन रुक्मिणी ने माइक सँभाला तो समाँ बंध गया |

‘’ सवर्णों ने दलित को हमेशा हाशिए पर रखा है |दलितों को कोई जगह इतिहास में नहीं दी गई|बड़ी घटनाएँ जैसे आज़ादी की लड़ाई या कोई भी आन्दोलन जो हिन्दुस्तान में चला उसमें दलितों का ज़िक्र नहीं आता है | मीडिया भी हमारी अनदेखी करती है | शूद्र कमजोर नहीं है | उसे कमजोर बना दिया गया है | दलित क्यों कहते हैं ? मुझे दलित शब्द पर आपत्ति  है | यह घिनौना शब्द है | इस का मतलब है दबा और कुचला हुआ | इस शब्द को बदलो | अपने लिए  ऐसे शब्द का चयन करो जो तुम्हे ताकत दे | खुद को असुर कहो और महिषासुर से जोड़ो | यही तुम्हारा देवता है तुम्हारे देवता ब्रह्मा, विष्णु, महेश नहीं हैं | तुम हिन्दू नहीं हो | तीन तबका हिन्दुओं में शुमार होता है | ब्राह्मण, राजपूत और वैश्य मनुवादियों  ने तुम्हें ब्राह्मा के पाँव से पैदा किया ताकि हमेशा पाँव के  नीचे रहो | तुम जबतक खुद को हिन्दू समझोगे दलित बने रहोगे |अम्बेडकर ने इसीलिए बौद्ध धर्म में शरण लिया | वे दलित कहलाना पसंद नहीं करते थे | तुम दलित नहीं हो | तुम असुर हो....महिषासुर क वंशज ....!’’

सैफ ने भी अपनी बात राखी |

‘’गौरक्षा, वन्देमातरम, लव-जेहाद, सूर्यनमस्कार, मन्दिर वहीं बनाएंगे आज के सांस्कृतिक-राजनतिक प्रतीक हैं जिनके पीछे हिंदुत्व की काल्पनिक दुनिया आबाद है | ये इमारत वासियों के सियासी हथियार हैं जिसे अजगर मंडली धार देती है | आदि-ग्रन्थ के नजदीक अछूत आदमी नहीं होते | ये म्लेच्छ होते हैं | इन्हें मानुस नहीं छग-मानुस का दर्जा दिया गया है | यही सोच कुचल कर मारने को प्रेरित करती है | मनुस्मृति छग-मानुस को मानव अधिकार से वंचित रखती है | इसलिए इन्हें कुचलने में अपराधबोध नहीं होता |

कुचलने की इस नई संस्क्रति में अछूत के साथ मुसलमान  भी सूचीबद्ध हो गया है | लोकतंत्र की जगह फासीवाद ने ले ली है | हमें फासीवाद का मिलकर मुकाबला करना होगा |’’

अंत में मेमोरंडम पेश करने के लिए दलितों का काफिला गवर्नर हाउस की तरफ कूच करने लगा |


भाँजी पास कर गयी | लक्ष्मीकांत बहुत खुश हुआ | उसने चमरासुर को ढाई लाख रूपये भेंट किये |चौगान ने चाल चली | पहले नियम था कि प्रतियोगिता परीक्षा की कॉपियाँ दस साल तक सुरक्षित रखी जाएँगी | अब नियम बना कि इन्हें तीन महीने के बाद नष्ट कर दिया जाएगा | और तीन महीने के बाद इन्हें नष्ट कर दिया गया | अब कोई खतरा नहीं था |

और मैडम चौगान को जलाल आ गया |

‘’मुख्यमंत्री ने भाँजी को मैजिस्ट्रेट बना दिया और मेरे मायके के लोग निठल्लू बैठे हैं | ‘’

मैडम के तेवर चंद्रवंशी थे | उनका मायका भी महाराष्ट्र में था | मैडम ने महाराष्ट्र से सोलह निठल्लू बुलवाए | सब की वोटर आई.डी. बदली गयी | आधार कार्ड बदले गये | उनके लिए भी स्कॉलर बुलाए गये | दालचपाती खिलखिला कर हँसी| सबके दामन में फूल गिरे | कोई बस कंडक्टर हो गया ....कोई फ़ूड इंस्पेक्टर....कोई सप्लाई इंस्पेक्टर...जनता जनार्दन के लिए दर खुल गये ....रीत आम हो गयी...बाज़ार सज गये....बोली लगाई गयी....हर तरफ चाँदी की खनक ....सोने की दमक...नौकरियाँ रेवड़ी की तरह बटने लगीं | दस लाख में कोई भी फ़ूड इंस्पेक्टर बन सकता था....पन्द्रह लाख में सप्लाई इंस्पेक्टर ...बीस लाख में पुलिस इंस्पेक्टर...इंजीनियरी और मेडिकल में प्रवेश के लिए पचीस लाख और बस कंडक्टर की जगह के लिए दो लाख ! दालचपाती खूब अट्टहास करती ...प्रदेश के हर क्षेत्र में विचरती....जुल्फें लहराती...इठलाकर चलती ....उसके नितम्ब भारी हो गये....जुल्फों के साए गहरे हो गये और चौगान का दामन मोतियों से मालामाल हो गया | गवर्नर साहब भी दालचपाती के इश्क में गिरफ्तार हुए | बेटे की हथेली पर भी फूल गिरे | वह लक्ष्मीकांत का पी.ए. हो गया | वह  स्कॉलर ढूँढ कर लाता और एडमिट कार्ड की तस्वीरें बदलता | लेकिन जो फूल उसके हिस्से में आए उसमें काँटे भी छुपे थे | काँटा उसकी हथेली में चुभ गया | खून की पतली सी लकीर उभर आई और दालचपाती मुस्कराई | उसने इतना ही कहा |

‘’ एक दिन ये होना है |’’

जहाँ आग है वहाँ धुआँ होगा | आग थी | शुरू में धुआँ नहीं था | आग बढती गयी तो धुआँ फैलता गया | आहिस्ता आहिस्ता धुआँ गाढ़ा हो गया | एक साध्वी भी इसमें लिपटी नजर आयी | मेडिकल में अपने भतीजे के प्रवेश के लिए स्कॉलर बुलाया था | आँच चौगान तक भी पहुँची | दालचपाती की सलाह थी कि ऐसे काँटे साफ़ करो जो चुभते हैं वरना आग में झुलस जाओगे | गवर्नर साहब का पुत्र-अज़ीज़ बहुत से राज़ जानता था | घर का भेदी लंका ढाता है पुत्र-अज़ीज़ कहीं घूमने गया और होटल में मरा पाया गया | घर के भेदी और भी थे | कोई दो सौ के करीब लाशें....होटल की छत से लटकी हुई....रेलवे की पटरियों पर फेंकी हुई....तालाब में तैरती हुई ....! धुओं से बचना मुश्किल हुआ तो सी.बी.आई. को जाँच का फरमान मिला |

‘’ चौगान तो गया...?’’

‘’ उसे कुछ नहीं होगा |’’ दालचपाती मुस्कराई |

‘’ आकाओं को कभी कुछ नहीं होता | कमिटी भी उनकी है जाँच भी उनकी है | कोतवाल भी उनका है | तुम पहले अंग्रेजों के गुलाम थे , अब इनके गुलाम हो | ये हत्यारों का जश्न मनाते हैं | गोडसे का मंदिर बनाया | सोहराब एनकाउन्टर केस में सबको क्लीन चिट मिल गयी और सीना छप्पन इंच का हो गया | शासन किसी का भी हो शोषण हमेशा आम आदमी का होगा | आम आदमी की हैसियत एक बटेर से ज्यादा की नहीं है और मैं हर दौर में रही हूँ और हर दौर में रहूँगी| मैं नेताओं के वीर्य से उत्पन्न हुई | मैं अमर अजर हूँ | मैं हर विभाग में मौजूद हूँ | हर गली...हर नुक्कड़....हर आदमी के दिल में हूँ ....मैं बोफोर्स से लेकर खेल के मैदान तक फैली हुई हूँ | मैं इससे पहले भी थी और इससे आगे भी रहूँगी| तुम ने देखा किस तरह सुषमा जी ललित गेट से इठलाती हुई बाहर निकल गईं,,,,,बेदाग़ ...बेखतर ....यह मेरी ही अनुकम्पा है...सुषमा जी हों या सिंधिया जी , मेरी जुल्फें सब के कन्धों पर लहराती हैं | 

दालचपाती इठलाती हुई इमारत में लुप्त हो गयी |



- शेष अगले अंक में 



- शमोएल अहमद 
३०१ ग्रैंड पाटलिपुत्र अपार्टमेंट 
नई पाटलिपुत्र कालोनी 
पटना ८०००१३
मो;  ९८३५२९९३०३ 

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हिन्दीकुंज,Hindi Website/Literary Web Patrika: चमरासुर उपन्यास (4) / शमोएल अहमद
चमरासुर उपन्यास (4) / शमोएल अहमद
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