सुरा पीने की मजबूरी बुरा

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सुरा; पीने की मजबूरी बुरा सुरा; आदिसुरी विश्वमोहिनी के हाथ की जादूगरी सुरों के अमरत्व की आकांक्षा असुरों की वासनामयी जिजीविषा! सुरा; जिसे बांटा था आ

सुरा; पीने की मजबूरी बुरा 


सुरा;
आदिसुरी
विश्वमोहिनी के हाथ की जादूगरी
सुरों के अमरत्व की आकांक्षा
असुरों की वासनामयी जिजीविषा!
सुरा;
जिसे बांटा था आदिसुरी ने
एक ही अमिय कलश से
सुरों-असुरों में एक ही प्याला से
जो बन गया एक ही समय में
सुरों का अमृत, असुरों की मदिरा!
कहते हैं जाकि रही भावना जैसी
प्रभु मूरत देखी तिन तैसी
सुरा पीने की मजबूरी बुरा

सुरा;

जब धन्वंतरि के हाथों में था
था सागर का सुमथित फेन
एक वैद्य की दुआ कायाकल्प सुधा
अमरता की औषधि, राम बाण दवा
मृत संजीवनी सुरा!
जो पीनेवाले की भावना, पीने की मात्रा
और देह की धारण क्षमता से बन गया
एक के लिए अच्छा दूसरे के लिए बुरा!
सुरा;
कौन कहता यह श्री विष्णु का खेल था
सुरपालक असुर द्रोही भाव से खेला गया?
कौन कहता आदिसुरी छली थे?
एक डग ग्वालिन की भरकर 
देवों को पिला गए क्षीर
दूजा डग कलवारिन की भरकर 
दानवों को पिला गए मदिरा!
छलिया उनका नाम सही 
पर छलना उनका काम नहीं
छले जाते हैं लोग अपनी ही मंशा से!
पीओ सुरा तुम चम्मच से,
वह जीवन औषधि बन जाता!
पीओ सुरा तुम प्याला से,
वह मस्ती हाला बन जाता!
पीओ सुरा तुम बोतल से, 
वह हलाहल बन जाता!
ना सुरा बुरा, ना सुरी बुरा,
पीने की मजबूरी बुरा!

(2)
देख अमृत कलश विश्वमोहिनी के हाथ 
पराजित देवों में मातृभाव पनपा था
या देवी सर्वभूतेषु मातृरुपेण संस्थिता
नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमो नमः
अमिय दो माते कहकर चिल्लाया था
देख अमिय कलश विश्वमोहिनी के हाथ में
दानवों में उद्दाम वासना जग आया
बांह थामकर कहा यौवन रस पिला साक़िया
अलग-अलग भावना की अलग-अलग परिणति
वही सुधारस, वही कलश, एक ही प्याला, 
एक ही साकी, एक ही मयखाना के 
हमप्याला थे देव और दानव,
फिर भी कहते लोग इसे 
विश्वमोहिनी का छल करतब!
जो बूंद गिरा देवों के मुख में 
वह अमृत रस कहलाया,
जो धार गिरा दानवी जिह्वा पर 
वह मदिर वासना बन छाया!
एक ही मेघ का बूंद, 
एक सीपी का मोती,
दूजा रेत का धुंध बन जाता
सुरा सुरों का पेय सोमरस,
असुरों का महुआ वाली मदिरा,
पीने वाले कहते अच्छा, 
नहीं पिए सो कहे बुरा!
वैधानिक चेतावनी समझो 
सुरा बुरा, बुरा-बुरा-बुरा---

(3)
क्यों चाहते हो अमर देव बन इतराना
या दानव बनकर वासना में तिर जाना
मिट गए अमर देव/अजेय दानव
आदिसुरी के हाथों अमृत पीकर भी
कहते हैं अमृत विश्वमोहिनी के स्पर्श से
सुरा किंवा मदिरा में ढल गया
श्री विष्णु आदिसुरी बनकर 
देव-दानवों को छल गया!
बदलो इस मंशा को कि दूध 
कलारिन के हाथ  मद बन जाता, 
या कि नीर ग्वालिन के घट में 
क्षीर बनकर बिक जाता
मद को पीकर दवा सा 
और समझकर नीर को क्षीर
मन को नियंत्रित करके मानव 
बन जाता स्वस्थ धीर-वीर-गंभीर 
किंवा अजर-अमर बलवीर!
अमृत से विष तक विस्तृत 
सुरा का स्वाद कैसा?
कम्बल ओढ़कर पीने वाले सुर 
जब पिए यह सुरा सा लगता,
हमें बुरा सा लगता!
कम्बल बेचकर पीने वाले मजबूर जब पिए
यह बुरा सा लगता,
बहुत बुरा लगता है!
बर्फ में कम्बल की कफनी ओढ़े वीर 
जब पिए खून में गर्मी लाता,
 मां सी लोरी सुनाता
पिता सा ठंडी हथेली सहलाता नजर आता
पत्नी आरती उतारती/पुत्री उंगली पकड़ती
पुत्र साथ चलने को जिद करता,
तुतलाता,रणभेरी बजाते दिखता 
वीर अभिमन्यु जैसा,
तब सुरा अमृत सा लगता!




- विनय कुमार विनायक
दुमका, झारखंड-814101 

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