सपनों के से दिन sapno ke se din class 10 hindi

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सपनों के से दिन पाठ का सारांश  

प्रस्तुत पाठ या आत्मकथा सपनों के से दिन लेखक गुरदयाल सिंह जी के द्वारा लिखित है। प्रस्तुत पाठ के माध्यम से लेखक कहते हैं कि मेरे साथ खेलने वाले सभी बच्चों का हाल एक सा होता। नंगे पाँव, फटी-मैली सी कच्छीऔर टूटे बटनों वाले कई जगह से फटे कुर्ते और बिखरे बाल होते थे। जब खेलते-कूदते , भागते-दौड़ते हमें चोटें लगती और हम ज़ख्मी हो जाते तो सभी की माँ-बहनें हम पर तरस खाने की जगह और पिटाई करती थीं। लेखक आगे कहते हैं कि कईयों के बाप बड़े गुस्सैल थे, जो अपने बच्चों को बहुत बुरी तरह पिटाई करते थे। लेकिन पिटाई पड़ने के बाद भी दूसरे दिन फिर सभी खेलने चले आते थे। 
              
बच्चे ऐसी प्रवृति के क्यूँ होते हैं, ये बात लेखक को तब समझ आई, जब वे स्कूल अध्यापक बनने के लिए ट्रेनिंग करने गए और वहाँ पर उन्होंने बाल-मनोविज्ञान का विषय पढ़ा। आगे लेखक कहते हैं कि मेरे साथ खेलने वाले अधिकतर साथी हमारे जैसे ही परिवारों के हुआ करते थे। हम सभी कि आदतें भी कुछ मिलती-जुलती थीं। हमारे आधे से अधिक साथी राजस्थान या हरियाणा से आकर मंडी में व्यापार या दुकानदारी करने आए परिवारों से थे। न समझ पाने के कारण उनके कुछ शब्द सुनकर हमें हंसी आने लगती। लेकिन जब खेलते थे तो सभी एक-दूसरे की बात ख़ूब समझ जाते थे। हम में से ऐसा कोई न था, जिसे स्कूल के कमरे में बैठकर पढ़ना कैद न लगता हो। जब अगली श्रेणी या कक्षा में जाते तो एक ओर कुछ बड़े, सयाने होने के एहसास से उत्साहित भी होते , परंतु दूसरी ओर नयी, पुरानी कापियों- किताबों से जाने कैसी बास आती कि उन्हीं मास्टरों के डर से काँपने लगते, जो पिछली श्रेणी में पढ़ा चुके होते। अब तक जो बात अच्छी तरह याद है, वह छुट्टियों के पहले और आख़िरी दिनों का फर्क था। पहले दो-तीन सप्ताह तो ख़ूब खेल-कूद हुआ करती। हर वर्ष अपनी माँ के साथ नानी के घर चले जाते थे। नानी ख़ूब दूध-दही और मक्खन खिलाती। नानी के गाँव में ही जो तालाब था, उसमें दोपहर तक नहाते। फिर जो जी में आता, नानी से मांगकर खा लेते थे। 
          
आगे लेखक कहते हैं कि जब छुट्टियाँ बीतने लगतीं तो दिन गिनने लगते। हर दिन डर बढ़ता चला जाता। मास्टरों ने जो छुट्टियों में करने के लिए काम दिया होता उसका हिसाब लगाने लगते। दिन बहुत छोटे लगने लगते। स्कूल की पिटाई का डर और बढ़ने लगता। लेखक कहते हैं कि ऐसे समय में हमारा सबसे बड़ा नेता ‘ओमा’ हुआ करता। 

लेखक कहते हैं कि हमारा स्कूल बहुत छोटा था – केवल छोटे-छोटे नौ कमरे थे जो अंग्रेजी के अक्षर एच (H) की तरह बने थे। दायीं ओर पहला कमरा हेडमास्टर श्री मदनमोहन शर्मा जी का था, जिसके दरवाज़े के आगे हमेशा चिक लटकी रहती। स्कूल के प्रार्थना के समय वे बाहर आते और सीधी कतारों में कद के अनुसार खड़े लड़कों को देख उनका चेहरा खिल उठता। स्कूल के सारे अध्यापक भी उनके पीछे कतारबद्ध खड़े हो जाते थे। केवल मास्टर प्रीतम चंद, जो पी.टी. थे, वे लड़कों के बीच जाकर देखते थे कि कोई कतार से बाहर तो नहीं है। वे बहुत कडक मास्टर थे, जो बच्चों को तुरंत सजा दे देते थे। किन्तु, इसके विपरीत हमारे हेडमास्टर शर्मा जी थे। वे बिलकुल शांत स्वभाव के थे। लेखक कहते हैं कि शर्मा जी पाँचवीं और आठवीं श्रेणी को अंग्रेज़ी खुद पढ़ाया करते थे। लेखक के अनुसार, बिना रोये-चिल्लाए स्कूल कभी जाना नहीं होता था। परंतु स्कूल में कभी-कभी ऐसा भी पल हुआ करता था, जिसके चलते स्कूल अच्छा भी लगने लगता था। लेखक कहते हैं कि जब पी.टी. टीचर स्काउटिंग का अभ्यास करते समय नीली-पीली झंडियाँ हाथों में पकड़ाकर वन-टू-थ्री कहते, तो झंडियाँ ऊपर-नीचे, दायें-बाएँ लहराते तो अच्छा लगता था। हमारे द्वारा अच्छा करने पर वे हमें शाबाशी दिया करते थे। लेखक कहते हैं कि हर वर्ष अगली श्रेणी या कक्षा में प्रवेश करते समय मुझे पुरानी पुस्तकें मिला करतीं थीं। किन्तु, किसी भी नयी श्रेणी में जाने का ऐसा चाव कभी भी महसूस नहीं हुआ, जिसका जिक्र कुछ लड़के किया करते थे। 

सपनों के से दिन
सपनों के से दिन
आगे लेखक कहते हैं कि दूसरे विश्व युद्ध का समय था। लोगों को फौज में शामिल होने के लिए नौटंकी और गाने के माध्यम से आराम और बहादुरी के किस्से का दृश्य दिखाकर उन्हें आकर्षित किया करते थे। कभी-कभी हमें भी महसूस होता कि हम भी फ़ौजी जवानों से कम नहीं। धोबी कि धुली वर्दी और पालिश किए बूट और जुराबों को पहने जब हम स्काउटिंग की परेड करते तो लगता हम फ़ौजी ही हैं। 
                        
प्रस्तुत पाठ के लेखक गुरदयाल सिंह जी अपनी आत्मकथा को आगे बढ़ाते हुए कहते हैं कि मास्टर प्रीतमचंद को कभी मुसकराते हुए नहीं देखा। उनसे सभी डरते थे और नफ़रत भी करते थे। वे बहुत कठिन सज़ा देने में माहिर थे। वे चौथी श्रेणी में फ़ारसी पढ़ाते थे। एक दिन उन्होंने सभी बच्चों को शब्द-रूप याद करने के लिए कहा। परंतु कोई भी बच्चा पूरी तरह शब्द-रूप याद नहीं कर पाया था। 

मास्टर जी ने सभी बच्चों को टाँगों के पीछे से बाँहें निकालकर कान पकड़ने और पीठ ऊँची करने के लिए कहा। कई बच्चे सहन न कर सके, तीन चार मिनट बाद वे बारी-बारी गिरने लगे थे। तभी उसी वक़्त हेडमास्टर शर्मा जी उधर से निकले। उन्होंने पीटी सर को बच्चों से इतना बुरा व्यवहार करते देखा, तो उन्हें सहन नहीं हुआ। उन्होंने उन्हें बहुत डाँटा और उनकी शिकायत डायरेक्टर को लिखकर भेज दी। जब तक ऊपर से आदेश नहीं आ जाते थे, तब तक पीटी सर स्कूल में नहीं आ सकते थे। 
            
आगे लेखक कहते हैं कि तत्पश्चात् पी.टी. मास्टर अपने घर पर आराम करते रहते थे। उन्हें अपनी नौकरी की बिलकुल भी चिंता नहीं थी। वे अपने पिंजरे में रखे दो तोतों को दिन में कई बार भीगे हुए बादाम खिलाते और उनसे मीठी-मीठी बातें करते रहते। जब बच्चों की नज़र पी.टी. मास्टर के इस मधुर व्यवहार पर पड़ी तो उन्हें यह एक चमत्कार सा लगा कि जो मास्टर स्कूल में बच्चों को बुरी तरह मारते-पीटते थे, वे अपने तोतों के साथ आख़िर कैसे मीठी -मीठी बातें कर सकते हैं ? यह तो सचमुच आश्चर्यजनक है...|| 


गुरदयाल सिंह का परिचय 

सपनों के से दिन कहानी के लेखक गुरदयाल सिंह जी हैं। गुरदयाल सिंह जी का जन्म पंजाब के जैतो कस्बे में 10 जनवरी, 1933 को एक साधारण दस्तकार परिवार में हुआ था। अपने पारिवारिक काम को करते हुए उन्होंने अपनी शिक्षा पूरी की और कलम को थामा। 1954 से 1970 तक स्कूल में अध्यापन का कार्य किया। इनकी प्रथम कहानी 1957 में पंच दरिया पत्रिका में प्रकाशित हुई। गुरदयाल सिंह जी जब कॉलेज में प्राध्यापक के तौर पर नियुक्त हुए तब उन्हें अपना ही उपन्यास पढ़ाने का अवसर प्राप्त हुआ। गुरदयाल सिंह जी ठेठ ग्रामीण परिवेश और भावबोध के लेखक के रूप में जाने जाते हैं। बड़ी सहजता से वे अपने पात्रों का चुनाव खेतिहर मजदूरों, पिछड़े और दलितों के बीच से करते हैं, जो सदियों से अपने समाज की उस दूषित व्यवस्था के शिकार हैं, जो उनकी दीनता और बेबसी के कारण हैं। 
                   
यदि सम्मान की बात करें तो पंजाबी भाषा में इनकी उल्लेखनीय योगदान के लिए ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। साथ ही साहित्य अकादमी, सोवियत लैंड नेहरू सम्मान, पंजाब की साहित्य अकादमी सहित कई अन्य पुरस्कारों से सम्मानित होने का गौरव इनको हासिल हुआ है। इन्होंने एक लेखक के तौर पर कई देशों का भ्रमण भी किया है। 

इनकी साहित्यिक सफर की बात करें तो इन्होंने अब तक नौ उपन्यास, दस कहानी संग्रह, एक नाटक, एक एकांकी संग्रह, बाल साहित्य की दस पुस्तकें और विविध गद्य की दो पुस्तकों की रचना की है। गुरदयाल सिंह जी की प्रमुख कृतियाँ हैं – मढ़ी का दीवा, अथ-चाँदनी रात, पाँचवाँ पहर, सब देश पराया, साँझ-सबेरे, (आत्मकथा) क्या जानूँ मैं कौन ? इत्यादि...॥ 


सपनों के से दिन प्रश्न उत्तर 


प्रश्न-1 कोई भी भाषा आपसी व्यवहार में बाधा नहीं बनती − पाठ के किस अंश से यह सिद्ध होता है ?

उत्तर- प्रस्तुत पाठ के अनुसार, लेखक अपने बचपन की घटना को बताते हुए कहते हैं कि कोई बच्चा राजस्थान से तो कोई हरियाणा से है | लेकिन सभी अलग-अलग भाषाओं में व्यवहार करते हुए भी खेलते समय सब की भाषा सब समझ लेने में सक्षम होते थे | भाषाओं की विभिन्नता के कारण भी उनके व्यवहार में कोई अंतर नहीं आता था | खेलते वक़्त बच्चों के व्यवहार, उनकी भाषा अलग होते हुए भी एक सा रहता था |

प्रश्न-2 पीटी साहब की 'शाबाश' फ़ौज के तमगों-सी क्यों लगती थी |  स्पष्ट कीजिए |

उत्तर- प्रस्तुत पाठ के अनुसार, पीटी साहब एक अनुशासित व्यक्ति थे | वे हर वक़्त बच्चों को अनुशासन में रहने की सीख देते तथा उन्हें पढ़ाई करने के लिए डांटते रहते थे | लेकिन जब बच्चे बिना कोई गलती किए अच्छा काम करते तो पीटी साहब उन बच्चों को 'शाबाश' कहके संबोधित किया करते थे | जिस संबोधन सूचक शब्द को सुनकर बच्चे अत्यंत खुश हो जाते थे | बच्चों को ऐसा प्रतीत होता कि मानो फौज़ में सिपाही को तमगे दिए जाते हैं, वैसा ही तमगा उन्हें भी मिल गया हो | 

प्रश्न-3 नयी श्रेणी में जाने और नयी कापियों और पुरानी किताबों से आती विशेष गंध से लेखक का बालमन क्यों उदास हो उठता था ?

उत्तर- प्रस्तुत पाठ के अनुसार, नयी श्रेणी में जाने और नयी कापियों और पुरानी किताबों से आती विशेष गंध से लेखक का बालमन इसलिए उदास हो उठता था, क्योंकि अगली श्रेणी या कक्षा की मुश्किल होती पढ़ाई तथा शिक्षकों द्वारा मिलने वाले दंड व मार-पीट के भय से लेखक का बालमन नयी कापियों और पुरानी किताबों की गंध से उदास हो जाता था |

प्रश्न-4 हेडमास्टर शर्मा जी ने पीटी साहब को क्यों मुअत्तल कर दिया ?

उत्तर- प्रस्तुत पाठ के अनुसार, एक दिन पीटी मास्टर ने कक्षा में बच्चों को फ़ारसी के शब्द रूप याद करने के लिए दिए थे | किन्तु, बच्चे यह शब्द रूप याद नहीं कर सके | परिणामस्वरूप, मास्टर जी ने बच्चों को मुर्गा बना दिया | पीटी मास्टर के द्वारा दिया गया दंड बच्चे सहन नहीं कर पाए और कुछ ही देर में लुढ़कने लगे | उसी समय हेडमास्टर शर्मा जी वहाँ पर पहुँच गए और बच्चों की हालत देखकर भावुक हो गए | तत्पश्चात्, हेडमास्टर शर्मा जी ने पीटी साहब को मुअत्तल कर दिया |

प्रश्न-5 स्काउट परेड करते समय लेखक अपने को महत्वपूर्ण 'आदमी' फ़ौजी जवान क्यों समझने लगता था ?

उत्तर- स्काउट परेड करते समय लेखक अपने को महत्वपूर्ण 'आदमी' फ़ौजी जवान इसलिए समझने लगता था, क्योंकि स्काउट परेड के वक़्त लेखक धोबी से धुली साफ़-सुथरी ड्रेस पहनता था | जुराब तथा पॉलिश बूट पहनकर लेखक ठक-ठक करके चलता था | लेखक परेड के समय लेफ्ट टर्न, राइट टर्न और अबाऊट टर्न कहने पर बूटों की एड़ियों पर दाएँ-बाएँ या कदम मिलाकर चलता, तो वह ख़ुद को किसी फ़ौजी से कम नहीं समझता था | लेखक जब सीना चौड़ा करके चलता तो अपने अंदर एक फ़ौजी जैसा महत्वपूर्ण आदमी महसूस करता |

प्रश्न-6 लेखक के अनुसार उन्हें स्कूल खुशी से भागे जाने की जगह न लगने पर भी कब और क्यों उन्हें स्कूल जाना अच्छा लगने लगा ?

उत्तर- प्रस्तुत पाठ के अनुसार, लेखक को स्कूल जाना बिल्कुल अच्छा नहीं लगता था | लेकिन जब स्कूल में रंग-बिरगें झंडे लेकर, गले में रूमाल बाँधकर पीटी मास्टर प्रीतमचंद परेड करवाते थे, तो लेखक को बहुत अच्छा लगता था | वह उक्त क्रियाकलापों की तरफ़ आकर्षित हो जाते थे |  लेखक परेड के समय लेफ्ट टर्न, राइट टर्न और अबाऊट टर्न कहने पर बूटों की एड़ियों पर दाएँ-बाएँ या कदम मिलाकर चलता, तो वह ख़ुद को किसी फ़ौजी से कम नहीं समझता था | इसलिए लेखक के अनुसार उन्हें स्कूल खुशी से भागे जाने की जगह न लगने पर भी उन्हें स्कूल जाना अच्छा लगने लगा था |

प्रश्न-7 लेखक अपने छात्र जीवन में स्कूल से छुट्टियों में मिले काम को पूरा करने के लिए क्या-क्या योजनाएँ बनाया करता था और उसे पूरा न कर पाने की स्थिति में किसकी भाँति 'बहादुर' बनने की कल्पना किया करता था ?

उत्तर- प्रस्तुत पाठ के अनुसार, लेखक अपने छात्र जीवन में स्कूल से छुट्टियों में मिले काम को पूरा करने के लिए समय-सारणी बनाता कि कौन-सा काम व कितना काम एक दिवस में पूरा करना है | किन्तु, खेल-कूद में लेखक का समय बीत जाता और काम न हो पाता था | धीरे-धीरे समय बीतने लगता तो लेखक ओमा नामक ठिगने और बलिष्ठ लड़के जैसा बहादुर बनना चाहता था, जो उद्दंड था और काम करने के बजाए पिटना सस्ता सौदा समझता था |

प्रश्न-8 पाठ में वर्णित घटनाओं के आधार पर पीटी सर की चारित्रिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए |

उत्तर- पाठ में वर्णित घटनाओं के आधार पर पीटी सर की चारित्रिक विशेषताएँ निम्नलिखित है ---

• पीटी सर एक अनुशासन प्रिय व्यक्ति थे |
• पीटी सर शरीर से दुबले-पतले और नाटे कद के  व्यक्ति थे |
•  पीटी सर खाकी वर्दी और लम्बे जूते पहनते थे |
•  वे कठोर स्वभाव के थे, उनके मन में दया भाव न  था | बच्चे उनका कहना नहीं मानते तो वे कठोर दंड भी देते थे |
• अंतत: नौकरी से निकाले जाने पर वे हेडमास्टर जी के सामने गिड़-गिड़ाए नहीं, बल्कि चुपचाप चले गए | 

सपनों के से दिन पाठ के शब्दार्थ


• धनाढ्य - अमीर, धनी 
• मनोविज्ञान - मन का विज्ञान, साइकोलाजी 
• हरफनमौला - विद्वान, हर फन जानने वाला 
• मुअत्तल - निलंबित
• महकमाएँ-तालीम - शिक्षा विभाग
• अलौकिक - अनोखा 
• ननिहाल - नानी का घर
• खाल खींचना - पिटाई करना
• पीटी शिक्षक - शारीरिक शिक्षा के अध्यापक
• चपत - थप्पड़
• सतिगुर - सच्चा गुरु
• लीतर - टूटे हुए पुराने खस्ताहाल जूते
• ट्रेनिंग - प्रशिक्षण
• बहियाँ - खाता
• खेडण -  खेलने
• श्रेणी - कक्षा | 



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