वराह अवतार की कथा

SHARE:

वराह अवतार की कथा विदुर श्री सुखदेव जी से कहा आप मुझे आदिराज राजर्षी मनु का आदित्य का पवित्र चरित्र सुनाइए। उनका दिल श्री विष्णु भगवान के शरण में रहता है इसलिए उनकी चरित्र को सुनने में मुझे श्रद्धा है।जिसकी हृदय श्री मुकुंद की चरनारविंद में विराजमान है उन भक्तजनों के गुण को श्रवण करना ही मनुष्य के लिए बहुत दिनों तक किए गए शास्त्र अभ्यास के श्रम का मुख्य फल है । ऐसा विद्वानों का श्रेष्ठ मत है।

वराह अवतार की कथा 


विदुर श्री सुखदेव जी से कहा आप मुझे आदिराज राजर्षी मनु का आदित्य का पवित्र चरित्र सुनाइए। उनका दिल श्री विष्णु भगवान के शरण में रहता है इसलिए उनकी चरित्र को सुनने में मुझे श्रद्धा है।जिसकी हृदय श्री मुकुंद की चरनारविंद  में विराजमान है उन भक्तजनों के गुण को श्रवण करना ही मनुष्य के लिए बहुत दिनों तक किए गए शास्त्र अभ्यास के श्रम का मुख्य फल है । ऐसा विद्वानों का श्रेष्ठ मत है।

श्री सुकदेव जी का कथन है कि बिदुर जी भगवान श्रीहरि के अनन्य  भक्त थे  इसलिए उनकी विनयपूर्ण भगवान की कथा सुनने की प्रेरणा होने पर मु निवर मैत्रेय जी का रोम रोम खिल उठा।

श्री मैत्रेय जी बोले महाराज मनु जन्म उपरांत ब्रह्मा जी से विनय पूर्वक बोले हम आपकी संतान हैं ऐसा कौन सा कर्म करें जिससे आपकी सेवा हो सके। आप हमसे हो सकने वाले कार्य यह लिए हमें आज्ञा दें। जिससे हम लो क
वराह अवतार
वराह अवतार
और परलोक में सद्गति प्राप्त करें और कीर्ति फैले।

ब्रहमा जी ने कहा तात!  पृथ्वी पते! तुम्हारा और मैत्रेय दोनों का कल्याण हो। तुमने विनय पूर्वक निष्कपट भाव से आज्ञा मांगी है । इसका तात्पर्य है कि आत्मसमर्पण कर दिया । सभी पुत्र को इसी  प्रकार पिता की पूजा करनी चाहिए। साथ ही इर्षा का भाव छोड़कर जहां तक हो सके सावधानी से आज्ञा का पालन करना चाहिए।

अपनी ही समान गुणी संतति उत्पन्न  करके धर्म पूर्वक पृथ्वी  का पालन करो और यज्ञों  द्वारा श्री हरि की आराधना करो। प्रजा पालन करते देखकर भगवान श्रीहरि भी तुमसे प्रशन्न होंगे। यह सब कुछ उनका सुनकर मनु जी ने ब्रह्मा जी से कहा -

आपका नाश करने वाले पिता जी ! मैं आपकी आज्ञा का पालन जरूर करूंगा परंतु इस जगत में मेरे और मेरी भावी प्रजा के रहने के लिए  स्थान बताइए।क्योंकि इस समय जिस पर लोग निवास करते हैं वह पृथ्वी प्रलय के जल में दूबी हुई है। आप पृथ्वी देवी के उद्धार का प्रयत्न कीजिए।

श्री मैत्रेय जी के ने कहा कि मनु का बच्चन सुनकर ब्रहमा जी सोच में पड़ गए और उन्होंने सोचा कि मेरा जन्म तो सृष्टि की रचना के लिए हुआ है। और मैं इस समय सृष्टि रचना में लगा हुआ हूं इसी समय पृथ्वी जल में डूब गई और रसातल में चली गई  इसका उद्धार कैसे होगा ! यह सोचते हुए  कि सर्वशक्तिमान हरि ही मेरा यह काम पूरा करें।

निष्पाप विदुर जी ने कहा - ब्रहमा जी इस प्रकार विचार में डूबे ही थे कि उनके नासा छिद्र से अकस्मात अंगूठे के बराबर आकार का एक बारह शीशु निकला  और देखते ही देखते बड़ा  आकार धारण कर लिया।

उसी वराह रूपधारी सूकर अवतारी जल के भीतर रसातल से पृथ्वी का उद्धार किया। पृथ्वी को ऊपर लाते समय विघ्न डालने वाले महापराक्रमी हिरण्याक्ष का भी अंत किया।


- सुख मंगल सिंह,अवध निवासी

COMMENTS

Leave a Reply

You may also like this -

Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy बिषय - तालिका