शांति निकेतन में अशांति के बादल क्यों मंडराये ?

SHARE:

शांति निकेतन में अशांति के बादल क्यों मंडराये ? गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर द्वारा स्थापित विश्व भारती विश्वविद्यालय यानि शान्ति निकेतन इनदिनों अशांति एवं अराजकता का केन्द्र बना हुआ है। शिक्षा के इस विश्वविख्यात केन्द्र के परिपाश्र्व में जिस तरह की राजनैतिक एवं क्षेत्रगत घटनाएं हो रही है, वे दुखद है।

शांति निकेतन में अशांति के बादल क्यों मंडराये ?


गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर द्वारा स्थापित विश्व भारती विश्वविद्यालय यानि शान्ति निकेतन इनदिनों अशांति एवं अराजकता का केन्द्र बना हुआ है। शिक्षा के इस विश्वविख्यात केन्द्र के परिपाश्र्व में जिस तरह की राजनैतिक एवं क्षेत्रगत घटनाएं हो रही है, वे दुखद है। इस राष्ट्रीय महत्व के शैक्षिक संस्थान में हिंसा, तोडफोड़ एवं अराजकता का होना एवं सरस्वती के इस पवित्र मन्दिर को राजनीतिक उद्देश्यों की पूर्ति का अखाड़ा बनाना बेहद शर्मनाक है। शांति निकेतन केवल शिक्षा का मन्दिर ही नहीं है बल्कि यह बांग्ला संस्कृति के संवर्द्धन का प्रमुख केन्द्र भी है, यह विभिन्न संस्कृतियों विशेषतः पूर्व एवं पश्चिम की संस्कृति का संगम स्थल है। जहां वर्षों से खुल मैदान में प्रतिवर्ष दिसम्बर महीने में ‘पौष उत्सव’ का आयोजन होता रहा है, इस वर्ष शान्ति निकेतन के अधिकारियों ने फैसला किया कि यह आयोजन नहीं होगा एवं उसने मैदान में दीवार खड़ी करने का फैसला किया और उसका काम भी शुरू कर दिया गया। इन निर्णयों प्रभावित लोगों एवं समूहों में अशांति एवं रोष फैला एवं शांति निकेतन अशांति का केन्द्र बन गया। स्थिति की गंभीरता को देखते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने स्वयं इस पर हस्तक्षेप किया है और वे सर्वमान्य एवं शांति निकेतन की गरिमा के अनुकूल वातावरण बनाने को तत्पर हुए है। 

शान्ति निकेतन के अधिकारियों के फैसले को लेकर इस विश्वविद्यालय के करीब रहने वाले लोगों में रोष फैला।
शांति निकेतन
शांति निकेतन 
तृणमूल कांग्रेस के एक विधायक श्री नरेश बावरी के नेतृत्व में नयी बन रही दीवार और नये बने दरवाजे को तोड़ डाला गया। वास्तव में विश्वविद्यालय प्रशासन के इस फैसले के खिलाफ संघर्ष करने के लिए स्थानीय लोगों ने ‘पौष मेला मठ बचाओ समिति’ का गठन भी किया था। इसी समिति ने दीवार स्थल पर जाकर आन्दोलन करना शुरू किया और अन्ततः श्री बावरी के नेतृत्व में उसे तोड़ डाला और बुलडोजर तक का इस्तेमाल किया। पौष मेला ग्राउंड के नाम से चर्चित विश्वविद्यालय के इस मैदान में बनी दीवार को लेकर हंगामा होना, बड़ी संख्या में जुटे लोगों द्वारा विश्वविद्यालय की संपत्तियों की नुकसान पहुंचाया जाना बेहद शर्मनाक एवं चिन्ताजनक है। इन त्रासद एवं विडम्बनापूर्ण कारणें से शान्ति निकेतन को अनिश्चितकाल तक के लिए बन्द कर दिया जाना और भी आश्चर्यकारी है।

रविन्द्रनाथ टैगोर शान्ति निकेतन विद्यालय की स्थापना से ही संतुष्ट नहीं थे। उनका विचार था कि एक ऐसे शिक्षा केन्द्र की स्थापना की जाए, जहाँ पूर्व और पश्चिम को मिलाया जा सके। सन् 1916 में रवीन्द्रनाथ टैगोर ने विदेशों से भेजे गए एक पत्र में लिखा था-‘शान्ति निकेतन को समस्त जातिगत तथा भौगोलिक बन्धनों से अलग हटाना होगा, यही मेरे मन में है। समस्त मानव-जाति की विजय-ध्वजा यहीं गड़ेगी। पृथ्वी के स्वादेशिक अभिमान के बंधन को छिन्न-भिन्न करना ही मेरे जीवन का शेष कार्य रहेगा।’ अपने इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए टैगोर ने 1921 में शान्ति निकेतन में ‘यत्र विश्वम भवत्येकनीडम’ (सारा विश्व एक घर है) के नए आदर्श वाक्य के साथ विश्व भारती विश्वविद्यालय की स्थापना की। तभी से यह संस्था एक अन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय के रूप में ख्याति प्राप्त कर रही है, भारत का गौरव बढ़ा रही है, शिक्षा एवं संस्कृति के माध्यम से इंसान से इंसान को जोड़ने का काम कर रही है, लेकिन ताजा हालातों ने इसकी गरिमा एवं गौरव को आघात पहुंचाया है।

गुरुदेव तो शान्ति निकेतन को खुला (ओपन एयर) विश्वविद्यालय देखना चाहते थे। दीवार बनाना ही उनके विश्वविद्यालय के चरित्र एवं साख के विरुद्ध है। हालांकि दीवार गिराये जाने वाले दिन पुलिस भी हरकत में नजर आयी और उसने आठ लोगों को गिरफ्तार भी कर लिया है मगर इसके बाद विश्वविद्यालय को अगले आदेश तक बन्द कर दिया गया। पूरे पश्चिम बंगाल में शान्ति निकेतन ही एकमात्र केन्द्रीय विश्वविद्यालय है। अतः विश्वविद्यालय प्रशासन इस मामले में केन्द्र सरकार के सम्बन्धित विभागों को भी सूचित कर रहा है, परन्तु मूल प्रश्न तो रविन्द्रनाथ टैगोर से जुड़ा है, बांग्ला संस्कृति व परंपराओं का है। जरूरी यह है कि शान्ति निकेतन की परंपराओं का ध्यान रखते हुए इस समस्या का हल निकाला जाये और जल्दी से जल्दी विश्वविद्यालय खोला जाए।

अनेक वर्षों से विश्वविद्यालय के खुले परिसर के दायरे में ही पौष उत्सव मनता आ रहा है और इस पर कभी आपत्ति नहीं की गई, फिर ऐसा क्या हुआ कि इस वर्ष इस सांस्कृतिक उत्सव पर रोक लगाने की स्थितियां बनी? शान्ति निकेतन तो सांस्कृतिक मूल्यों को आगे बढ़ाने के लिए ही गुरुदेव ने स्थापित किया था और इसी दृष्टि से इस महोत्सव में विश्वविद्यालय के छात्र व स्थानीय लोग मिल-जुल कर हिस्सा लेते हैं। परन्तु वर्ष 2017 में एनजीटी ने विश्वविद्यालय प्रशासन को चेतावनी दी थी कि वह पर्यावरण के सन्तुलन का ध्यान रखे। उसके बाद प्रशासन ने विगत जुलाई महीने में फैसला किया कि उस स्थान की सीमा बांध दी जाये जहां हर वर्ष पौष उत्सव होता है। विश्वविद्यालय की अधिशासी परिषद द्वारा यह फैसला किया गया। परिषद विश्वविद्यालय की सर्वोच्च प्रशासनिक इकाई होती है। लेकिन प्रश्न है कि इस तरह के निर्णय लेने से पहले काफी सोच-विचार की जरूरत को क्यों नहीं समझा गया? क्यों मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की सरकार ने यह सब होने दिया? सम्पूर्ण घटनाक्रम दुखद होने के साथ-साथ अनेक ज्वलंत सवाल खड़े करता है। शांति निकेतन को राजनीति का मोहरा बनाकर उसके अस्तित्व एवं अस्मिता को धुंधलाना एवं विद्यार्थियों की शिक्षा में व्यवधान उपस्थित करना, गंभीर स्थितियां है। 

‘पौष उत्सव’ एवं शांति निकेतन के आपसी संबंधों की प्रगाढ़ता को समझने की जरूरत है। क्योंकि यह लोकसंस्कृति का ऐसा पर्व है, जिस संस्कृति को गुरुदेव बल देते थे, इस उत्सव में आसपास के गांवों व जिलों तक के लोग शामिल होते हैं और पौष मेले में इन इलाकों में रहने वाले दस्तकार, शिल्पकार व कारीगर अपनी कलात्मक कृतियों का प्रदर्शन एक अस्थायी बाजार लगा कर करते हैं। इस महोत्सव का बांग्ला संस्कृति में बहुत महत्व है। सर्दियों के मौसम में पड़ने वाले इस पर्व पर बंगाली लोग प्रकृति की रंग-बिरंगी छटा का उत्सव उसी प्रकार मनाते हैं जिस प्रकार ‘पोहला बैशाख’ पर्व पर, जो कि बांग्ला संस्कृति में ‘नव वर्ष’ होता है। पौहला बैशाख का महत्व इतना है कि बांग्लादेश में भी यह पर्व राष्ट्रीय उत्सव के रूप में मनाया जाता है। बंगाल के तीज-त्यौहार धर्म की सीमा से ऊपर होकर मनाये जाते हैं। मजहब का इनसे कोई खास लेना-देना नहीं होता, फिर अब क्यों उन्हें मजहबी रंग दिया जा रहा है? प्रश्न यह भी है कि मैदान की चारदीवारी या उसे बन्द करने की योजना क्यों बनी? बांग्ला संस्कृति एवं शांति निकेतन के विरुद्ध हुए इन घटनाओं के लिये कौन जिम्मेदार है। 

शिक्षा, संस्कृति और परम्पराओं की विविधता के बावजूद शांति निकेतन की उपयोगिता एवं महत्व को जो एक रखती आई है, राजनीति ने इसकी मूलभूत भावना को विद्रूप किया है। परन्तु समस्या का समाधान उसका विकल्प खोजने में नहीं अपितु पुनः अर्जित करने में है। आज समाज का सारा नक्शा बदल रहा है। परस्पर समभाव या सद्भाव केवल अब शिक्षा देने तक रह गया है। हो सकता है भीतर ही भीतर कुछ घटित हो रहा है। लेकिन हमें उसकी टोह लेनी होगी। संस्कृति के उपक्रम विश्वास में नहीं, विवेक में है। अन्यथा अन्धविश्वास का फायदा राजनीतिज्ञ व तथाकथित अवसरवादी उठाते रहेंगे।

आज हमें शांति निकेतन के आंगन में दीवार उठाने की नहीं, उसकी दीवारें मजबूत बनाने की जरूरत है। यह मजबूती एक पाॅजिटिव और ईमानदार सोच ही ला सकती है। ऐसी सोच, जो हमें जाति, भाषा, राजनीति और मजहब की दीवारों से आजाद कराए। समता, स्वतंत्रता, न्याय और बंधुत्व अगर संविधान में वर्णित शब्द ही बने रहेंगे, तो यह हमारी जड़ता और मूढ़ता का परिचायक होगा। ये शब्द हमारे जीवन का हिस्सा बनने चाहिए। जब तक जाति और मजहब वोट की राजनीति का जरिया बने रहेंगे, जब तक सारा समाज भारतीयता के सूत्र में नहीं बंधेगा, शांति निकेतन की शांति आहत होती रहेगी। दीवारें आंगन छोटा बनाती हैं, जबकि जरूरत इसे बड़ा करने की है। इसे बड़ा करके ही राष्ट्रीयता को मजबूत कर सकेंगे, शांति निकेतन के गौरवपूर्ण शिखर को अक्षुण्ण रख सकेंगे।



- ललित गर्ग
लेखक, पत्रकार, स्तंभकार
ई-253, सरस्वती कुञ्ज अपार्टमेंट
25 आई॰ पी॰ एक्सटेंशन, पटपड़गंज, दिल्ली-92
फोनः 22727486, 9811051133


COMMENTS

Leave a Reply

You may also like this -

Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy बिषय - तालिका