मिर्च का मज़ा क्लास ३

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मिर्च का मज़ा रामधारी सिंह दिनकर


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मिर्च का मज़ा कविता का अर्थ व्याख्या 

एक काबुली वाले की कहते हैं लोग कहानी,
लाल मिर्च को देख गया भर उसके मुँह में पानी।

सोचा, क्या अच्छे दाने हैं, खाने से बल होगा,
यह जरूर इस मौसम का कोई मीठा फल होगा।

एक चवन्नी फेंक और झोली अपनी फैलाकर,
कुंजड़िन से बोला बेचारा ज्यों-त्यों कुछ समझाकर!

‘‘लाल-लाल पतली छीमी हो चीज अगर खाने की,
तो हमको दो तोल छीमियाँ फकत चार आने की।’’

‘‘हाँ, यह तो सब खाते हैं’’-कुँजड़िन बेचारी बोली,
और सेर भर लाल मिर्च से भर दी उसकी झोली!

मगन हुआ काबुली, फली का सौदा सस्ता पाके,
लगा चबाने मिर्च बैठकर नदी-किनारे जाके !

व्याख्या - प्रस्तुत पंक्तियों में कवि रामधारी सिंह दिनकर जी कहते है कि लोगों के मुंह से उन्होंने एक काबुलीवाले के बारे में कहानी सुनी है। उसको लाल मिर्च देखकर उसके मुंह में पानी भर आया था। काबुलीवाले के कभी लाल मिर्च देखी नहीं थी। अतः उसने सोचा कि इसको खाने से ताकत आएगी। यह जरुर कोई मौसमी फल होगा। यही सोचकर उसने एक कुंजड़िन  को एक चवन्नी देकर ,अपना झोला फैलाया। काबुलीवाले ने अपनी भाषा में कुंजड़िन  को कुछ समझाया और कहा कि पतली पतली लाल रंग की छीमी हमें दो , यदि यह खाने की चीज़ हो। कुंजड़िन  बोली - हाँ ,इसे सब खाते हैं। यह कहकर ,उसने एक सेर लाल मिर्च से उसकी झोली भर दी। काबुलीवाले ने यह सस्ता सौदा पाकर ,बहुत खुश हुआ। वह नदी के किनारे बैठकर मिर्च खाने लगा।  


मगर, मिर्च ने तुरत जीभ पर अपना जोर दिखाया,
मुँह सारा जल उठा और आँखों में पानी आया।
मिर्च का मज़ा क्लास ३
मिर्च का मज़ा क्लास ३

पर, काबुल का मर्द लाल छीमी से क्यों मुँह मोड़े?
खर्च हुआ जिस पर उसको क्यों बिना सधाए छोड़े?

आँख पोंछते, दाँत पीसते, रोते औ रिसियाते,
वह खाता ही रहा मिर्च की छीमी को सिसियाते!

इतने में आ गया उधर से कोई एक सिपाही,
बोला, ‘‘बेवकूफ! क्या खाकर यों कर रहा तबाही?’’

कहा काबुली ने-‘‘मैं हूँ आदमी न ऐसा-वैसा!
जा तू अपनी राह सिपाही, मैं खाता हूँ पैसा।’’

व्याख्या - कवि कहते है कि लाल मिर्च ने तुरंत अपना असर दिखाया और काबुलीवाले की जुबान जलने लगी। आँखों में पानी छलक आया। लेकिन काबुलीवाला ,काबूल का मर्द था ,इसीलिए लाल छीमी से अपना मुंह क्यों मोड़े। उसने मिर्च खरीदने में पैसे खर्च किये थे। अतः वह बिना पूरा पैसे वसूले उन्हें छोड़ेगा नहीं। वह आँख पोछते ,दांत पीसते ,रोते और गुस्सा होकर लाल मिर्च को सी - सी करते हुए खाता रहा। इतने में संयोग से उधर एक सिपाही गुजरा और काबुलीवाले ने कहा कि तुम लाल मिर्च खाकर ,अपने आप को क्यों परेशान कर रहे हो। काबुलीवाला यह बात सुनकर चिढ़ गया और कहा कि मैं काबूल का मर्द हूँ। सिपाही तु अपनी राह जा। मैंने इन लाल छीमियों पर पैसा लगाया हूँ। अतः मैं पैसा खाता हूँ। 


मिर्च का मज़ा कविता के प्रश्न उत्तर 


बातचीत के लिए 
प्र.काबुलीवाले ने मिर्च को स्वादिष्ट फल क्यों समझ लिया?

उ. काबुलीवाले ने कभी मिर्च जैसा फल नहीं देखा था। पहली बार उसने मिर्च देखी थी। उसने समझा कि मिर्च लाल लाल ,कोई मौसमी फल है ,जिसे खाकर ताकत मिलती है। 

प्र. सब्जी बेचने वाली ने क्या सोचकर उसे झोली भर मिर्च दी होंगी?

उ.  सब्जी वाली को काबुलीवाले ने पैसे दिए थे। साथ ही साथ वह अपनी बात सब्जीवाली को समझा नहीं पा रहा था। यही सारी बातें सोचकर उसने झोली भर मिर्च दे दी थी। 

प्र. सारी मिर्च खाने के बाद काबुलीवाले की क्या हालत हुई होगी?

उ.  सारी मिर्च खाने के बाद काबुलीवाले की तबियत बिगड़ गयी होगी। उसे दस्त आने लगी होगी। इसी कारण उसे डॉक्टर के पास जाना पड़ा होगा। 

प्र.अगले दिन सब्ज़ी वाली टमाटर बेच रही थी| क्या काबुलीवाले ने टमाटर खाया होगा?

उ. अगले दिन सब्जी वाली टमाटर बेच रही थी। काबुलीवाला बाज़ार गया था ,लेकिन लाल - लाल टमाटर नहीं ख़रीदे। अब वह हर लाल चीज़ों से डरता है। अतः उसने लाल टमाटर नहीं खरीदें होंगे। 

मुंह में पानी 

प्र. लाल-लाल मिर्च देखकर काबुलीवाले के मुँह में पानी आ गया तुम्हारे मुँह में किन चीजों को देख कर या सोचकर पानी आ जाता है?

उ. मुझे निम्नलिखित चीज़ों को देखकर मुंह में पानी आ जाता है - आम ,जलेबी ,समोसा ,इमली ,चाउमीन ,रसगुल्ला आदि 


मिर्च का मज़ा कविता के कठिन शब्द शब्दार्थ 


काबुलीवाले - काबूल का रहने वाल आदमी 
कुंजड़िन - कुँजड़े की पत्नी
सेर भर - एक किलोग्राम से ज़रा कम
सौदा - लेनदेन 
छीमी - फलिया 
बेवकूफ - जिसके पास दिमाग न हो। 
सधाए - काम पूरा करना। 



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