कबीर के पद Kabir Ke Pad Class 11 NCERT Solutions

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कबीर के पद  Kabir Ke Pad Class 11 NCERT Solutions 


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कबीर के पद की व्याख्या

हम तौ एक एक करि जांनां | 
दोइ कहैं तिनहीं कौं दोजग जिन नाहिंन पहिचांनां || 
एकै पवन एक ही पानीं एकै जाेति समांनां | 
एकै खाक गढ़े सब भांड़ै एकै काेंहरा सांनां || 
जैसे बाढ़ी काष्ट ही काटै अगिनि न काटे कोई | 
सब घटि अंतरि तूँही व्यापक धरै सरूपै सोई ||
माया देखि के जगत लुभांनां काहे रे नर गरबांनां |
निरभै भया कछू नहिं ब्यापै कहै कबीर दिवांनां || 

भावार्थ - प्रस्तुत पंक्तियाँ कबीर जी के द्वारा रचित है, जो पद जयदेव सिंह और वासुदेव सिंह के द्वारा संकलित एवं सम्पादित कबीर वाङ्मय -- खंड 2 (सबद) से लिए गए हैं | इन पंक्तियों के माध्यम से कबीर ने उस परमात्मा को जानने की बात कही है, जिसने पूरी सृष्टि को रचा है, जो एक है | कबीर के अनुसार, वह परमात्मा इसी संसार में व्याप्त है | कबीर जी कहते हैं कि जो लोग परमात्मा से अनभिज्ञ हैं, वे लोग ही इस संसार और परमात्मा के अस्तित्व को अलग-अलग रूपों में देखते हैं | कबीर के अनुसार, सम्पूर्ण संसार के कण-कण में एक ही परमात्मा की ज्योति विद्यमान है | आगे कबीर जी ने कुम्हार की तुलना परमात्मा से करते हुए कहते हैं कि जिस तरह कुम्हार एक ही मिट्टी को अलग-अलग आकार व रूप के बर्तनों में गढ़ता है, ठीक उसी प्रकार ईश्वर या परमात्मा ने भी एक ही तत्व से हम मनुष्यों को अलग-अलग रूपों में ढाला है | जिस प्रकार बढ़ई लकड़ी को काट सकता है, किन्तु उसमें मौजूद अग्नि को खत्म नहीं कर सकता | ठीक उसी तरह शरीर के मरने के पश्चात् भी आत्मा अमर हो जाया करती है | आगे कबीर जी कहते हैं कि संसार का मायावी रूप-सज्जा लोगों को अपने वश में कर लिया है | लोग संसार की झूठी माया पर गर्व करते नहीं थकते | कबीर जी अपनी बातों पर जोर देते हुए दीवानों की तरह परमात्मा भक्ति में लीन होकर सांसारिक मोह-माया से मुक्त होने की बात करते हैं | उनका मानना है कि जो लोग इस मोह-माया के बंधन से मुक्त हो जाते है, अर्थात् आडंबरयुक्त जीवन से छुटकारा पा लेते हैं, उन्हें किसी प्रकार का कोई भय नहीं रहता | 

(2)- सतों देखत जग बौराना |   
साँच कहौं तो मारन धावै, झूठे जग पतियाना || 
नेमी देखा धरमी देखा, प्रात करै असनाना | 
आतम मारि पखानहि पूजै, उनमें कछु नहिं ज्ञाना ||  
बहुतक देखा पीर औलिया, पढ़ै कितेब कुराना | 
कै मुरीद तदबीर बतावैं, उनमें उहै जो ज्ञाना ||  
आसन मारि डिंभ धरि बैठे, मन में बहुत गुमाना | 
पीपर पाथर पूजन लागे, तीरथ गर्व भुलाना ||  
टोपी पहिरे माला पहिरे, छाप तिलक अनुमाना | 
साखी सब्दहि गावत भूले, आतम खबरि न जाना ||  
हिन्दू कहै मोहि राम पियारा, तुर्क कहै रहिमाना |  
आपस में दोउ लरि लरि मूए, मर्म न काहू जाना ||  
घर घर मन्तर देत फिरत हैं, महिमा के अभिमाना | 
गुरु के सहित सिख्य सब बूड़े, अंत काल पछिताना || 
कहै कबीर सुनो हो संतो, ई सब भर्म भुलाना | 
केतिक कहौं कहा नहिं मानै, सहजै सहज समाना ||   

भावार्थ - प्रस्तुत पंक्तियाँ कबीर जी के द्वारा रचित है, जो पद जयदेव सिंह और वासुदेव सिंह के द्वारा संकलित एवं सम्पादित "कबीर वाङ्मय -- खंड 2 (सबद) से लिए गए हैं | इन पंक्तियों के माध्यम से कबीर जी ने संसार के लोगों की तरफ़ इशारा करते हुए कहते हैं कि वे पागल हो गए हैं | उनका दिमाग सही और गलत में अंतर करने लायक नहीं है | उनके सामने सच बात कहो, तो वे गुस्सा होकर मारने दौड़ाते हैं और झूठ बात कहो, तो विश्वास कर लेते हैं | आगे कबीर जी कहते हैं कि वे इस संसार में ऐसे साधु-संतों को भी देखे हैं, जो केवल धर्म के नाम पर व्रत और नियमों का कठोरता से पालन करते हैं | वे अपनी अंतरात्मा की आवाज़ सुनना छोड़कर, सिर्फ बाह्याडंबरों का ढोंग रचते रहते हैं | 

कबीर जी कहते हैं कि संसार में ऐसे कई पीर-पैगंबर भी हैं, जो केवल धार्मिक पुस्तकों को पढ़कर खुद को ज्ञानी
कबीर
कबीर
या बुद्धिमान समझते रहते हैं | वे अपने शागिर्दों (शिष्यों) को भी परमात्मा की प्राप्ति या मोक्ष की प्राप्ति का उपाय बताते रहते हैं, जबकि वे ख़ुद ही इस ज्ञान से अनभिज्ञ रहते हैं | आगे कबीर जी कहते हैं कि कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो सिर्फ आसन-समाधि लगाकर बैठे रहते हैं तथा खुद को ईश्वर या परमात्मा का सच्चा साधक बताकर अहंकार में डूबे रहते हैं | कबीर जी की नज़र में पत्थर की मूर्ति और वृक्षों की उपासना करना, तीर्थ यात्रा जैसे कार्यों में भाग लेना, ये सब व्यर्थ की बातें हैं | जो लोग गले में माला, टोपी और माथे पर तिलक लगाते हैं, वे केवल दिखावा करते हैं | वे ख़ुद परमात्मा के ज्ञान से अनभिज्ञ हैं, परन्तु दूसरों को ज्ञान बाँटने में कोई कमी नहीं करते हैं | आगे कबीर जी कहते हैं कि हिन्दू राम को और मुसलमान रहीम को श्रेष्ठ मानकर या बताकर धर्म या सम्प्रदाय के नाम पर आपस में लड़ते-झगड़ते रहते हैं | जबकि दोनों ही मूर्ख हैं, क्योंकि दोनों को ही ईश्वर या परमात्मा के अस्तित्व का मर्म नहीं मालूम | आगे कबीर जी कहते हैं कि जो गुरू अज्ञानी हैं और दिखावेपन का ढोंग करते हैं, उनके शिष्य भी उनके शरण में रहकर उनके जैसा ही आडंबरयुक्त जीवन जीने लगते हैं तथा मोह-माया के जाल में फँस कर रह जाते हैं | कबीर जी कहते हैं कि जिन्हें परमात्मा का कोई ज्ञान नहीं होता, वैसे लोग ही अपने शिष्यों को आधा-अधूरा ज्ञान बाँटते रहते हैं | अत: कबीर जी का मानना है कि सच्चे परमात्मा की प्राप्ति सहजता और सरलता से सम्भव है, दिखावे और ढोंग ईश्वर को नहीं पाया जा सकता |


कबीर के पद पाठ का सारांश

प्रस्तुत पाठ या पद कबीर जी के द्वारा रचित है, जो पद जयदेव सिंह और वासुदेव सिंह के द्वारा संकलित एवं सम्पादित कबीर वाङ्मय - खंड 2 (सबद) से लिए गए हैं | कबीर जी ने अपने पहले पद में कण-कण में परमात्मा के अस्तित्व की बात कही है तथा परमात्मा को ज्योति रूप में स्वीकारा है | परमात्मा की व्याप्ति को अद्वैत सत्ता के रूप में देखते हुए विभिन्न उदाहरणों के द्वारा रचनात्मक अभिव्यक्ति दी है | अपने दूसरे पद में कबीर जी ने बाह्याडंबरों पर प्रहार किया है | उनके अनुसार ज्यादातर लोग अपने अंदर की शक्ति को न पहचानकर अनजाने में अवास्तविक संसार से रिश्ता बना बैठते हैं और वास्तविक संसार से बेखबर रहते हैं | 



कबीर के पद के प्रश्न उत्तर


प्रश्न-1 कबीर की दृष्टि में ईश्वर एक है | इसके समर्थन में उन्होंने क्या तर्क दिए हैं ? 

उत्तर- कबीर की दृष्टि में ईश्वर एक है | कबीर के अनुसार, सम्पूर्ण संसार के कण-कण में एक ही परमात्मा की ज्योति विद्यमान है | आगे कबीर जी ने कुम्हार की तुलना परमात्मा से करते हुए कहते हैं कि जिस तरह कुम्हार एक ही मिट्टी को अलग-अलग आकार व रूप के बर्तनों में गढ़ता है, ठीक उसी प्रकार ईश्वर या परमात्मा ने भी एक ही तत्व से हम मनुष्यों को अलग-अलग रूपों में ढाला है |

प्रश्न-2 मानव शरीर का निर्माण किन पंच तत्वों से हुआ है ? 

उत्तर- जिन पंच तत्वों से मानव शरीर का निर्माण हुआ है, उनका नाम है -- जल, वायु, पृथ्वी, अग्नि और आकाश | 

प्रश्न-3 जैसे बाढ़ी काष्ट ही काटै अगिनि न काटे कोई | 
सब घटि अंतरि तूँही व्यापक धरै सरूपै सोई ||  

इसके आधार पर बताइए कि कबीर की दृष्टि में ईश्वर का क्या स्वरूप है ? 

उत्तर- प्रस्तुत पंक्तियाँ कबीर जी के द्वारा रचित है, जो पद जयदेव सिंह और वासुदेव सिंह के द्वारा संकलित एवं सम्पादित "कबीर वाङ्मय -- खंड 2 (सबद) से लिए गए हैं | इन पंक्तियों के माध्यम से कबीर जी ने मनुष्य के शरीर की तुलना लकड़ी से करते हुए कहते हैं कि जिस प्रकार बढ़ई लकड़ी को काट सकता है, किन्तु उसमें मौजूद अग्नि को खत्म नहीं कर सकता | ठीक उसी तरह शरीर के मरने के पश्चात् भी आत्मा अमर हो जाया करती है | इस तरह मनुष्य के अंतरात्मा में ही परमात्मा या ईश्वर का वास होता है, जिसका रूप बहुत व्यापक है | 

प्रश्न-4 कबीर ने अपने को दीवाना क्यों कहा है ? 

उत्तर- कबीर जी ख़ुद को दीवाना इसलिए कहते हैं, क्योंकि वे सांसारिक मोह-माया अर्थात् आडंबरयुक्त जीवन से मुक्त होकर एक परमात्मा की भक्ति में श्रद्धापूर्वक लीन हैं | उन्हें किसी भी प्रकार का भय नहीं है | 

प्रश्न-5 कबीर ने ऐसा क्यों कहा है कि संसार बौरा गया है ? 

उत्तर- कबीर जी के अनुसार, संसार में रहने वाले लोग दिखावे के जीवन में इतना ढल गए हैं कि उन्हें सच और झूठ में कोई अंतर नहीं मालूम | सच्ची बातों पर वे क्रोधित हो उठते हैं और झूठी बातों पर विश्वास कर लेते हैं | कबीर जी के अनुसार ऐसे भी संत-महात्मा हैं, जो स्वयं को शुद्ध करने के लिए प्रातःकाल स्नान करते हैं | परमात्मा या ईश्वर की प्राप्ति के लिए धार्मिक आडंबरों का सहारा लेते हैं तथा स्वयं को महान बताने की चेष्टा करते हैं | इसलिए कबीर जी ने कहा है कि संसार बौरा गया है अर्थात् पागल हो गया है | 

प्रश्न-6 कबीर ने नियम और धर्म का पालन करने वाले लोगों की किन कमियों की ओर संकेत किया है ? 

उत्तर- कबीर जी ने नियम और धर्म का पालन करने वाले लोगों की कमियों की ओर संकेत करते हुए कहते हैं कि धर्म के नाम पर दिखावा करने वाले ऐसे कई पाखंडी लोग हैं, जो गले में माला पहनकर, सिर पर टोपी पहनकर और माथे पर तिलक लगाकर परमात्मा या ईश्वर की प्राप्ति का ढोंग करते हैं | वे तरह-तरह की उपासना में लीन रहते हैं अर्थात् कभी पत्थर की मूर्तियों को, तो कभी वृक्षों की पूजा करते हुए नज़र आते हैं | अत: धर्म के नाम पर व्यर्थ के नियमों का पालन करते हैं तथा अपने शिष्यों को भी दिगभ्रमित करते हैं | 

प्रश्न-7 अज्ञानी गुरूओं की शरण में जाने पर शिष्यों की क्या गति होती है ? 

उत्तर- अज्ञानी गुरूओं की शरण में जाने पर शिष्यों की जो दुर्गति होती है, उस संबंध में एक कहावत सटिकता का प्रमाण देता है --- " जैसी करनी वैसी भरनी..." | अर्थात् जो जैसा कर्म करेगा, उसे उसी अनुरूप फल भी मिलेगा | कबीर जी के अनुसार, अज्ञानी गुरूओं की शरण में जाने पर उनके शिष्य भी उन्हीं की तरह मूर्ख और ढोंगी बन जाते हैं | जो गुरू अपने शिष्यों को आधा-अधूरा और मिथ्या ज्ञान देते हैं, वे खुद परमात्मा के बारे में सही से नहीं जानते | गुरु और शिष्य दोनों संसार रूपी मोह-माया के जाल में फंस जाते हैं | अपनी महानता सिद्ध करने के लिए गुरु अपने शिष्यों को भी आडंबरयुक्त जीवन जीने के आदि बना देते हैं, अर्थात् पाखंड का दुकान अग्रसर रहता है | अत: जब नि:स्वार्थ भाव से ईश्वर या परमात्मा के प्रति सच्ची साधना का ज्ञान होता है, तो अंत में दोनों को पछताना पड़ता है | 

प्रश्न-8 बाह्याडंबरों की अपेक्षा स्वयं (आत्म) को पहचानने की बात किन पंक्तियों में कही गई है ? उन्हें अपने शब्दों में लिखें | 

उत्तर- बाह्याडंबरों की अपेक्षा स्वयं (आत्म) को पहचानने की बात निम्नलिखित पंक्तियों में कही गई है --- 

टोपी पहिरे माला पहिरे, छाप तिलक अनुमाना | साखी सब्दहि गावत भूले, आतम खबरि न जाना ||

उक्त पंक्तियों के माध्यम से कबीर जी कहते हैं कि जो लोग गले में माला, टोपी और माथे पर तिलक लगाते हैं, वे केवल दिखावा करते हैं | वे ख़ुद परमात्मा के ज्ञान से अनभिज्ञ हैं, परन्तु दूसरों को ज्ञान बाँटने में कोई कमी नहीं करते हैं |



कबीर के पद पाठ के कठिन शब्द शब्दार्थ 


• खाक - मिट्टी, धूल-धूसरित राख 
• कोंहरा - कुम्हार, कुंभकार
• दोजग (फा. दोज़ख) - नरक 
• समांनां - व्याप्त
• सांनां - एक साथ मिलाकर
• बाढ़ी - बढ़ई, कारपेन्टर 
• अंतरि - भीतर, अंदर 
• सरूपै - स्वरूप
• गरबांनां - गर्व करना, नाज़ करना 
• निरभै - निर्भय, डरमुक्त 
• बौराना - बुद्धि भ्रष्ट हो जाना, पगला जाना, दिमाग ठिकाने में न रहना 
• आतम - स्वयं, खुद 
• पखानहि - पत्थर को, पत्थरों की मूर्तियों को 
• बहुतक - बहुत से, अनेक 
• पीर औलिया - धर्मगुरू और संत, ज्ञानी व्यक्ति 
• कुराना - कुरान शरीफ़ (इस्लाम धर्म की पवित्र किताब) 
• धावै - दौड़ते हैं 
• पतियाना - विश्वास करना, भरोसा करना 
• नेमी - नियमों का पालन करने वाला
• धरमी - धर्म का पाखंड करने वाला
• असनाना - स्नान करना, नहाना
• मुरीद - शिष्य, अनुगामी अर्थात् गुरु के साथ-साथ विचरण करने वाला 
• तदबीर - उपाय, युक्ति 
• आसन मारि - समाधि या ध्यान मुद्रा में बैठना
• डिंभ धरि - आडंबर करके, दिखावा करके 
• गुमाना - अहंकार, घमंड, अभिमान 
• पीपर - पीपल का पेड़ 
• पाथर - पत्थर 
• छाप तिलक अनुमाना - मस्तक पर विभिन्न प्रकार के तिलक लगाना 
• आतम खबरि - आत्मज्ञान, आत्म तत्व का ज्ञान 
• रहिमाना - दयालु, रहम या दया करने वाला 
• महिमा - गुरु का महात्म्य
• सिख्य - शिष्य, चेला, शागिर्द 
• साखी - गवाह, साक्षी, साक्षात प्रमाण 
• सब्दहि - दीक्षा के अवसर पर गुरु के द्वारा शिष्य को दिया जाने वाला मंत्र या उपदेश | 




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