हे भूख ! मत मचल हे मेरे जूही के फूल जैसे ईश्वर

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वचन अक्क महादेवी 


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हे भूख ! मत मचल की व्याख्या 


हे भूख ! मत मचल 
प्यास, तड़प मत 
हे नींद ! मत सता 
क्रोध, मचा मत उथल-पुथल 
हे मोह ! पाश अपने ढील
लोभ, मत ललचा
हे मद ! मत कर मदहोश
ईर्ष्या, जला मत
अो चराचर ! मत चूक अवसर
आई हूँ संदेश लेकर चन्न मल्लिकार्जुन का | 

व्याख्या - प्रस्तुत पंक्तियाँ शैव आंदोलन से जुड़ी कर्नाटक की प्रसिद्ध कवयित्री अक्क महादेवी जी के द्वारा रचित कविता या वचन से उद्धृत हैं | उक्त वचन में कवयित्री के द्वारा इंद्रियों पर नियंत्रण का संदेश दिया गया है | इन पंक्तियों के माध्यम से कवयित्री इंद्रियों से आग्रह करती हुई नज़र आती हैं | वह एक-एक करके अपनी इंद्रियों को संबोधित करती हैं | वह भूख से कहती हैं कि तू ज़्यादा मत मचल, इससे मेरी भक्ति में अवरोध उत्पन्न होता है | तत्पश्चात्, वह सांसारिक प्यास से कहती हैं कि तू मुझमें अत्यधिक पाने की इच्छा मत जगा, ताकि मोह-माया के बंधनों से मुक्त रहकर मैं अपने प्रभु की भक्ति में लीन रह सकूँ | 

आगे कवयित्री अपने नींद से कहती हैं कि मुझे ज्यादा मत सता अर्थात् मुझे आलस्य से दूर रहने दे, ताकि मैं अपने कर्म पथ पर अडिग रह सकूँ | तत्पश्चात्, कवयित्री अपने क्रोध से कहती हैं कि तू उथल-पुथल मत मचा, क्योंकि तेरे कारण मानव का विवेक नष्ट हो जाता है | वह अपने मोह से कहती हैं कि वह अपने बंधन ढीले कर दे | तेरे कारण मनुष्य दूसरे का अहित या बुरा करने की सोचता है | आगे कवयित्री लोभ से कहती हैं कि तू मनुष्य को ललचाना छोड़ दे | उसे सत्य के मार्ग पर चलने दे | कवयित्री मद से कहती हैं कि तू मनुष्य को मदहोश करना छोड़ दे, ताकि उसके जीवन में भटकाव न आ सके | तत्पश्चात्, कवयित्री ईर्ष्या से कहती हैं कि मनुष्य को जलाना छोड़ दे | अर्थात् एक-दूसरे के विरुद्ध बहकाना छोड़ दे, ताकि हम प्रेम से मिलकर साथ रह सकें | आगे कवयित्री सम्पूर्ण सृष्टि के जड़-चेतन जगत् को संबोधित करते हुए कहती हैं कि तुम्हारे पास शिव-अराधना का अवसर है | इससे चूकना मत, क्योंकि मैं शिव (चन्न मल्लिकार्जुन) का संदेश लेकर तुम्हारे पास आई हूँ | 


हे मेरे जूही के फूल जैसे ईश्वर की व्याख्या 

हे मेरे जूही के फूल जैसे ईश्वर 
मँगवाओ मुझसे भीख 
और कुछ ऐसा करो 
कि भूल जाऊँ अपना घर पूरी तरह 
झोली फैलाऊँ और न मिले भीख
कोई हाथ बढ़ाए कुछ देने को
तो वह गिर जाए नीचे 
और यदि मैं झुकूँ उसे उठाने
तो कोई कुत्ता आ जाए
और उसे झपटकर छीन ले मुझसे | 

व्याख्या - प्रस्तुत पंक्तियाँ शैव आंदोलन से जुड़ी कर्नाटक की प्रसिद्ध कवयित्री अक्क महादेवी जी के द्वारा रचित कविता या वचन से उद्धृत हैं | उक्त वचन में कवयित्री अक्क महादेवी ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण का भाव व्यक्त
अक्क महादेवी
अक्क महादेवी
करती हुई नज़र आती हैं | वह अपने अहंकार को नष्ट करके ईश्वर में समा जाने की कामना करती हैं | इन पंक्तियों के माध्यम से कवयित्री ईश्वर की तुलना जूही के फूल से करते हुए कहती हैं कि तुम चाहो तो मुझसे भीख मंगवा लो | या फिर ऐसी परिस्थितियाँ उत्पन्न कर दो कि मैं भूल जाऊँ अपना घर पूरी तरह, अर्थात् मैं पूर्णतः पारिवारिक मोह से दूर हो जाऊँ | घर का मोह सिर्फ सांसारिक उलझनों का चक्र है, इससे छुटकारा पाना ही ईश्वर प्राप्ति की ओर अग्रसर हुआ जा सकता है | 

आगे कवयित्री पूरी दृढ़ता से कहती हैं कि जब वह भीख माँगने के लिए अपनी झोली फैलाए तो उसे कोई भीख नसीब न हो | यदि कोई उसे दया स्वरूप कुछ देने के लिए हाथ भी बढ़ाए, तो वह नीचे गिर जाए | इस तरह वह सहायता भी व्यर्थ हो जाए | 

तत्पश्चात्, कवयित्री कहती हैं कि यदि मजबूरीवश मैं उस गिरे हुए चीज़ को उठाने के लिए झुकूँ भी तो कोई कुत्ता आ जाए और उसे झपटकर छीनकर ले मुझसे | अत: हम कह सकते हैं कि कवयित्री आडंबररहित भाव को पूर्णतः आत्मसात करके अपने प्रभु की उपासना में स्वयं को समर्पित कर दी थी | उसके लिए मान-अपमान का कोई दायरा नहीं रह गया था | 


हे भूख ! मत मचल। हे मेरे जूही के फूल जैसे ईश्वर कविता का मूल भाव सारांश 

प्रस्तुत पाठ या वचन या कविता अक्क महादेवी जी के द्वारा रचित है | प्रस्तुत दोनों वचनों का अँग्रेज़ी से हिन्दी अनुवाद कवि केदारनाथ सिंह जी ने किया है | पहले वचन में इंद्रियों पर नियंत्रण का संदेश दिया गया है | यह उपदेशात्मक न होकर प्रेम-भरा मनुहार है | 

कवयित्री अक्क महादेवी जी के द्वारा रचित दूसरे वचन में एक भक्त का ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण व निष्ठा का भाव प्रस्फुटित हुआ है | चन्न मल्लिकार्जुन की अनन्य भक्त अक्क महादेवी उनकी अनुकंपा के लिए हर भौतिक वस्तु से अपनी झोली खाली रखना चाहती हैं | वे ऐसी निस्पृह स्थिति की कामना करती हैं, जिससे उनका स्व या अहंकार पूरी तरह से नष्ट हो जाए...||  


हे भूख ! मत मचल। हे मेरे जूही के फूल जैसे ईश्वर कविता के प्रश्न उत्तर 


प्रश्न-1 लक्ष्य प्राप्ति में इंद्रियाँ बाधक होती हैं --- इसके संदर्भ में अपने तर्क दीजिए | 

उत्तर- जी हाँ, लक्ष्य प्राप्ति में इंद्रियाँ बाधक होती हैं | देखा जाए तो स्वाभाविक रूप से मनुष्य की इंद्रियाँ उसे सांसारिक मोह-माया के बंधनों में जकड़ लेती हैं, जिसकी वजह से मनुष्य अपने लक्ष्य से भटक जाता है | इंद्रियाँ मनुष्य की एकाग्रता भंग कर देती हैं तथा लक्ष्य से वंचित कर देती हैं | 

प्रश्न-2 ओ चराचर ! मत चूक अवसर --- इस पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए | 

उत्तर- यहाँ चराचर से तात्पर्य 'संसार' है | अर्थात् कवयित्री संसार के लोगों से आह्वान् कर रही हैं कि ईश्वर प्राप्ति का जो अवसर उनके पास है, उसे न गवाएँ | 

कवियित्री भगवान शिव के चरणों में अपना सर्वस्व न्योछावर करना चाहती हैं तथा संसार के अन्य लोगों से भी ऐसा करने के लिए निवेदन कर रही हैं | 

प्रश्न-3 ईश्वर के लिए किस दृष्टांत का प्रयोग किया गया है ?  ईश्वर और उसके साम्य का आधार बताइए | 

उत्तर- प्रस्तुत कविता में ईश्वर के लिए जूही के फूल का दृष्टांत का प्रयोग किया गया है | अर्थात् जिस प्रकार जूही का फूल पवित्र, सुगंधित और आनंदमय होता है, ठीक उसी प्रकार ईश्वर भी पवित्र, विघ्नहर्ता, दयालुता से भरे हुए तथा सर्वव्यापक होते हैं | 

प्रश्न-4 ‘अपना घर’ से क्या तात्पर्य है ? इसे भूलने की बात क्यों की गई है ? 

उत्तर- यहाँ ‘अपना घर’ से कवयित्री का तात्पर्य उस स्वार्थमय संसार से है, जिसे वह भूलना चाहती हैं | कवयित्री भक्ति मार्ग में अपना जीवन समर्पित करना चाहती हैं | वह अपने प्रभु के लिए सर्वस्व त्यागना चाहती हैं | वह मोह-माया के समस्त बंधनों को त्यागकर ईश्वर की ओर प्रवृत्त होने की कामना रखती हैं | कवयित्री का मानना है कि इस आडंबरयुक्त जीवन का त्याग करके ही मनुष्य ईश्वर के घर जा सकता है | 

प्रश्न-5 दूसरे वचन में ईश्वर से क्या कामना की गई है और क्यों ? 

उत्तर- प्रस्तुत कविता या वचन के अनुसार, कवयित्री ने दूसरे वचन में ईश्वर से कामना करते हुए कहती हैं कि उनका समस्त सांसारिक सुख नष्ट हो जाए | ऐसी परिस्थितियाँ आ जाए कि कवयित्री को भीख भी माँगना पड़े, तो उसे भीख भी न मिले | वह संसार के सारे सुख-सुविधाओं से वंचित हो जाए | ताकि कवयित्री प्रभु की भक्ति में नि:स्वार्थ भाव से लीन हो सके | 


हे भूख ! मत मचल। हे मेरे जूही के फूल जैसे ईश्वर कविता के कठिन शब्द शब्दार्थ 


• ढील - ढीला करना
• मद - नशा 
• मचल - पाने की जिद
• तड़प - छटपटाना
• पाश - बंधन, जकड़ 
• मदहोश - नशे में चूर होना या होश खो बैठना
• चराचर - जड़ व चेतन 
• भीख - भिक्षा
• हाथ बढ़ाना - सहायता करना, मदद करना 
• झपटकर - खींचकर 
• चूक - छोड़ना, भूलना
• चन्न मल्लिकार्जुन - शिव
• जूही - एक प्रकार का सुगंधित फूल | 


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