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मुफ्त ही मुफ्त पाठ का सारांश

मुफ्त ही मुफ्त पाठ या लोककथा लेखिका ममता पाण्ड्या जी के द्वारा लिखित है | इस लोककथा में एक भीखूभाई नामक कंजूस व्यक्ति का रोचक चित्रण किया गया है | इस कहानी के अनुसार, एकदिन भीखूभाई का मन नारियल खाने का हुआ | ताज़ा-मुलायम, कसा हुआ, शक्कर के साथ | लेकिन एक छोटी सी समस्या थी | घर में एक भी नारियल नहीं था | " ओहो ! अब मुझे बाजार जाना पड़ेगा..." --- भीखूभाई ने अपनी पत्नी लाभुबेन से कहा | तभी लाभुबेन अपने कंधे उचकाकर बोलीं --- " खाना है तो जाना है |" 

भीखूभाई के साथ समस्या यह थी कि वे न तो बाजार जाना चाहते थे और न ही पैसे खर्च करना चाहते थे | वे सीधे खेत में जाकर बूढ़े बरगद के नीचे बैठ गए और सोचने लगे --- "क्या करूँ ? मैं क्या करूँ ?" मगर नारियल खाने के लिए जी ऐसा ललचाया कि वे जल्दी घर वापस लौटकर लाभुबेन से बोले --- " अच्छा, मैं बाजार तक हो आता हूँ | पता तो चले कि नारियल आजकल कितने में बिक रहे हैं |" 

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भीखूभाई ने बाजार में जब नारियल वाले से पूछा कि एक नारियल कितने में दोगे ? तो नारियल वाले ने बताया कि एक नारियल दो रुपये में है | भीखू भाई को नारियल का दाम बहुत ज्यादा लगा और कहने लगा कि एक रुपये में दे दो | नारियल वाला तैयार नहीं हुआ | भीखूभाई ने उससे पूछा कि अच्छा बताओ, एक रुपये में कहाँ मिलेगा ? नारियल वाले ने जब बताया कि मंडी में मिल सकता है, तब भीखूभाई तुरन्त मंडी की ओर निकल पड़े | 

मंडी में कोलाहल के साथ व्यापारियों की ऊँची-ऊँची आवाजें गूंज रही थीं | तभी भीखूभाई को नारियल वाला दिख गया | नारियल वाले से दाम पूछने पर वह बताया कि सिर्फ एक रुपया में, जो चाहो ले जाओ | भीखू भाई ने उसकी ओर पचास पैसे बढ़ाते हुए कहा --- " यह क्या ? मैं इतनी दूर से आया हूँ और तुम पूरा एक रुपया माँग रहे हो | पचास पैसे बहुत हैं | मैं इस नारियल को लेता हूँ और तुम, यह लो, पकड़ों पचास पैसे |" नारियल वाले ने झट उनके हाथ से नारियल छीन लिया और कहने लगा कि बंदरगाह पर चले जाओ, हो सकता है कि वहाँ तुम्हें पचास पैसे में मिल जाए | 

भीखू भाई सागर के किनारे एक नाव वाले के पास दो चार नारियल पड़े देख उससे पूछ बैठे --- " अरे भाई, एक नारियल कितने में दोगे ?" नाव वाले ने उत्तर दिया --- " पचास पैसे में |" भीखूभाई हैरान होकर बोल पड़े --- " इतनी दूर से पैदल आया हूँ | इतना थक गया हूँ और तुम कहते हो पचास पैसे ? मेरी मेहनत बेकार हो गई | ना भाई ना ! पचास पैसे बहुत ज्यादा हैं | मैं तुम्हें पचीस पैसे दूँगा | यह लो, रख लो |" नाव वाला तैयार नहीं हुआ और उसने भीखूभाई को नारियल के बगीचे में जाने की सलाह दे दी | 

भीखू भाई जब नारियल के बगीचे में पहुँच गए |  वहाँ के माली को देखकर उसने पूछा कि यह नारियल कितने पैसे में बेचोगे ? तो माली ने उत्तर दिया कि बस पच्चीस पैसे का एक | भीखूभाई को पच्चीस पैसे भी ज्यादा लगे | उन्होंने माली से कहा --- " हे भगवान ! पच्चीस पैसे ! पूरा रास्ता पैदल आने के बाद भी ! जूते घिस गए, पैर थक गए और अब पैसे भी देने पड़ेंगे ?" मेरी बात मानो, एक नारियल मुफ़्त में ही दे दो, हाँ | देखो, मैं कितना थक गया हूँ !" इतना सुनते ही माली ने कहा कि अगर मुफ्त में नारियल चाहिये तो पेड़ पर चढ़ जाओ और जितने चाहो तोड़ लो | 

भीखूभाई बहुत खुश हो गए | उन्होंने जल्दी-जल्दी पेड़ पर चढ़ना शुरू कर दिया | जल्दी ही ऊपर चढ़ गए | फिर वे टहनी और तने के बीच आराम से बैठ गए और सबसे बड़े नारियल को तोड़ने के लिए दोनों हाथों को आगे बढ़ाने लगे | तभी अचानक उनके पैर फिसल गए | उनहोंने एकदम से नारियल को पकड़ लिया | उनके दोनों पैर हवा में झूलने लगे थे | उन्होंने माली से सहायता माँगी तो माली मदद करने से मना कर दिया | तभी ऊँट पर सवार एक आदमी वहाँ से गुजर रहा था | भीखूभाई ने उससे मदद माँगी | वह तैयार हो गया | ऊँट की पीठ पर खड़े होकर उसने भीखू भाई के पैरों को पकड़ लिया | ठीक उसी समय हरे-हरे पत्ते खाने की लालच में ऊँट ने गर्दन झुकाई और अपनी जगह से हट गया |  परिणाम यह हुआ कि वह आदमी ऊँट की पीठ से फिसल गया और अपनी जान बचाने के लिए उसने भीखूभाई के पैरों को कसकर पकड़ लिया | 

इतने में एक घुड़सवार वहाँ पर आ पहुँचा | पेड़ से लटके दोनों ने उससे मदद माँगी | घुड़सवार ने सोचा कि मैं घोड़े की पीठ पर चढ़कर इनकी मदद कर देता हूँ | लेकिन घोड़े ने भी वही किया जो ऊँट ने किया था | हरी घास के चक्कर में घोड़ा आगे बढ़ा और छोड़ चला अपने मालिक को ऊँटवाले के पैरों से लटकते हुए | नारियल के पेड़ से अब तीन लोग झूल रहे थे | घुड़सवार ने भीखूभाई से कहा कि काका ! काका ! कसके पकड़े रहना | मैं आपको सौ रुपए दूँगा | इसके बाद ऊँटवाले ने भी कहा कि मैं आपको दौ सौ रुपए दूँगा | तुम नारियल को छोड़ना नहीं | भीखूभाई सौ और दो सौ के चक्कर में कुछ ज्यादा ही खुश हो गए | खुशी से उन्होंने अपनी दोनों बाहों को फैला दिया | इतने में नारियल हाथ से छूट गया |  परिणामस्वरूप, घुड़सवार, ऊँटवाला और भीखूभाई तीनों जमीन पर धड़ाम से गिर पड़े | 

तत्पश्चात्, भीखूभाई अपने आपको सँभाल ही रहे थे कि एक बहुत बड़ा नारियल उनके सिर पर आ फूटा...|| 

मुफ्त ही मुफ्त पाठ का उद्देश्य 

मुफ्त ही मुफ्त लोककथा से हमें यह सीख मिलती है कि ज्यादा लालच भी हमें कोई बहुत बड़ा नुकसान में डाल देता है | 


मुफ्त ही मुफ्त का प्रश्न उत्तर

प्रश्न-1 हर बार भीखूभाई कम दाम देना चाहते थे | क्यों ?

उत्तर- भीखूभाई एक कंजूस व्यक्ति थे | इसलिए हर बार कम दाम देना चाहते थे | 

प्रश्न-2 हर जगह नारियल के दाम में फर्क क्यों था ?

उत्तर- जैसे-जैसे नारियल को उसके मूल स्थान से आगे की ओर ले जाया जाता है, उसका दाम बढ़ता चला जाता है | इसलिए हर जगह नारियल के दाम में फर्क था | 

प्रश्न-3 क्या भीखूभाई को नारियल सच में मुफ्त में मिला ? क्यों ?

उत्तर- यदि पैसे की बात हो, तो सच में मुफ्त में मिला | पर उस नारियल को पाने के लिए भीखूभाई को बहुत दूर पैदल जाना पड़ा, धूप में पसीना बहाना पड़ा और अंत में तो वह नारियल के पेड़ से भी गिर पड़े | 
ऊपर से उनके सिर पर एक बड़ा नारियल भी आकर गिर गया, जिसके कारण उन्हें चोट भी आई होगी | 

प्रश्न-4 वे खेत में बूढ़े बरगद के नीचे बैठ गए | तुम्हारे विचार से कहानी में बरगद को बूढ़ा क्यों कहा गया होगा ?

उत्तर- वह बरगद का पेड़ बहुत पुराना होगा और वर्षों से लोगों की सेवा में समर्पित होगा | इसीलिए इस लोककथा में उसे बूढ़ा कहा गया है | 

प्रश्न-5 कहानी को पढ़कर तुम भीखूभाई के बारे में काफी कुछ जान गए होगे | भीखूभाई के बारे में कुछ बातें बताओ | 

उत्तर- भीखूभाई के बारे में कुछ बातें निम्नलिखित है - 

• भीखूभाई बहुत कंजूस थे | 
• उन्हें खाने-पीने का शौक भी था | 
• वे नारियल भी बहुत पसंद करते थे | 
• वे वस्तुओं को कम से कम दाम में खरीदना चाहते
  थे | 
• उन्हें बातें बनाना बहुत अच्छी तरह से आता था | 

प्रश्न-6 भीखूभाई नारियल के लिए कहाँ-कहाँ जाते हैं ? क्रमानुसार बताओ | 

उत्तर- भीखूभाई नारियल के लिए सबसे पहले बाजार जाते हैं | उसके बाद मंड़ी जाते हैं | फिर बंदरगाह जाते हैं | अंत में नारियल के बगीचे में पहुँच जाते हैं | 


मुफ्त ही मुफ्त पाठ का शब्दार्थ 


• बंदरगाह -                  समुद्र के किनारे जहाजों के ठहरने का स्थान
• उचकाकर -                उठाकर 
• मुफ्त -                      बिना पैसे का
• कोलाहल -                शोरगुल वातावरण 
• हक्के-बक्के रह गए -  हैरान रह गए, आश्चर्य में 
• हर्ज -                        नुकसान, घाटा 
• फुर्ती -                      तेजी 
• किस्मत -                  भाग्य 
• मेहरबानी -                कृपा
• मनपसंद -                 मन के अनुसार | 



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