वे दिन भी क्या दिन थे पाठ 8 हिंदी class 5th

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वे दिन भी क्या दिन थे पाठ 8 हिंदी class 5th


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वे दिन भी क्या दिन थे Summary Class 5 Hindi

वे दिन भी क्या दिन थे पाठ में लेखक 'आइज़क असीमोव' ने भविष्य में होने वाले तकनीकी बदलावों को रोचकता तथा गम्भीरता से बताने का प्रयास किया है | पाठ के अनुसार, कुम्मी और रोहित नाम के दो बच्चे हैं | कुम्मी ने अपनी डायरी में 17 मई 2155 की रात को लिखा --- 

“आज रोहित को सचमुच की एक पुस्तक मिली है |"

वह पुस्तक बहुत पुरानी थी | कुम्मी के दादा ने बताया था कि जब वे बहुत छोटे थे, तब उनके दादा ने कहा था कि उनके ज़माने में कहानियाँ कागज पर छपती थीं और पढ़ी जाती थीं | पुस्तक में पृष्ठ होते थे, जिनपर कहानियाँ छपी होती थीं और आगे पढ़ने के लिए पृष्ठ पलटना पड़ता था | सारे शब्द स्थिर थे, चलते नहीं थे | रोहित ने इस पर कहा कि तब तो पढ़ने के बाद सभी पुस्तकें बेकार हो जाती होंगी | इससे तो अच्छा हमारा टेलीविजन है, जिसके पर्दे पर बहुत-सी पुस्तकों की सामग्री आ जाती है और फिर भी यह पुस्तक नई की नई रहती है | 

कुम्मी के पूछने पर कि तुम्हें वह पुस्तक कहाँ से मिली, रोहित जवाब में बोला --- घर में एक पुराना डिब्बा कहीं दबा पड़ा था, उसी को फेंक रहे थे कि यह पुस्तक नज़र आ गई | उस पुस्तक में स्कूल के बारे में लिखा था | 

वे दिन भी क्या दिन थे
वे दिन भी क्या दिन थे
लेखक कहना चाह रहे हैं कि पुराने जमाने की अपेक्षा अब सब कुछ बदल सा गया है | अब तो हर विद्यार्थी के घर में एक मशीन होती है, जिसमें टेलीविजन की तरह एक पर्दा होता है | रोज नियमत: उस तकनीकी मशीन के सामने बैठकर विद्यार्थियों को वह सब याद करना होता है, जो वह मशीन हमें बताती है | अपने गृहकार्य को उस तकनीकी मशीन में डालना होता है | फिर वह मशीन हमारी गलतियाँ तलाशकर हमें बताती है | अध्याय पूरा होने पर वही मशीन हमारी परीक्षा भी लेती है | 

कुम्मी को यह मशीनी काम या पढ़ाई बहुत उबाऊ लगता है | वह रोहित को मशीन से सम्बन्धित एक घटना के बारे में बताती है कि एक बार जब उससे भूगोल में रोज वही गलतियाँ होने लगीं थीं, तो उसकी माँ ने मुहल्ले के अध्यक्ष को बताया था | तब एक आदमी आया था और उसने उस मशीन के पुर्जे-पुर्जे अलग कर दिए | उसके बाद उसने सभी पुर्जी को फिर से जोड़कर उसकी गति कुछ धीमी कर दी, जिससे कुम्मी से गलतियां होना बंद हो गया था | 

कुम्मी सोचती है कि पुराने जमाने में भी ऐसे ही मशीन से लोग पढ़ाई करते होंगे | लेकिन जब रोहित ने कुम्मी को बताया कि पहले मशीन की जगह अध्यापक होते थे, जो बच्चों को सारे विषय समझाते थे, गृहकार्य देते थे और प्रश्न पूछते थे | यह सुनकर वह और जानने की उत्सुकता से भर गई | 

आगे रोहित कहता है, बच्चे एक विशेष भवन में पढ़ते थे, जिसे स्कूल कहते थे | एक आयु के बच्चे एक साथ बैठते थे और एक समय में एक जैसी चीजें सीखते थे | कुम्मी ने भी पुस्तक पढ़ने की इच्छा ज़ाहिर की क्योंकि वह जानना चाहती थी कि तब स्कूल कैसे होते थे ? वह पुस्तक पढ़कर स्कूल के बारे में और भी बातें जानने को उत्सुक हो रही थी कि तभी उसकी माँ की आवाज़ कानों में पड़ी और दोनों बच्चे (रोहित और कुम्मी) अपने-अपने घर की ओर रवाना हो गए | 

सबक का समय हो गया था | कुम्मी जैसे ही घर पहुँची अंदर मशीन आगे का सबक देने को तैयार थी | मशीन से आवाज आने लगी ---

“सबसे पहले आज तुम्हें गणित सीखना है | कल का होमवर्क छेद में डालो...|"

कुम्मी ने वैसा ही किया | लेकिन वह मन ही मन सोचती रही कि कितना अच्छा था पुराने जमाने का स्कूल | एक ही आयु के सभी बच्चे साथ-साथ रहते, खेलते-कूदते और एक साथ पढ़ते थे | उनको पढ़ाने वाले शिक्षक भी स्त्री या पुरुष हुआ करते थे | 

कुम्मी को मशीनी पढ़ाई से ज्यादा बेहतर पुराने जमाने का जीवित स्कूल लगा...|| 


वे दिन भी क्या दिन थे प्रश्न उत्तर  

प्रश्न-1 असीमोव की कहानी 2155 यानी भविष्य में आने वाले समय के बारे में है | फिर भी कहानी में ‘थे’ का इस्तेमाल हुआ है जो बीते समय के बारे में बताता है | ऐसा क्यों है ?

उत्तर- आइज़क असीमोव की कहानी 2155 यानी भविष्य में आने वाले समय के बारे में है | लेकिन कहानी में वर्तमान समय दिखाया गया है | मतलब वर्तमान समय में कहानी के दो प्रमुख किरदार कुम्मी और रोहित एक-दूसरे से बातें कर रहे हैं | बेशक कहानी के मुताबिक 2155 का समय वर्तमान रूप में चल रहा है और उसके दादा जी की डायरी और बातें भूतकाल की हैं | चुंकी, कहानी में कुम्मी और रोहित के दादा जी की बातें चल रही हैं | इसलिए इसमें बीते समय को दर्शाने वाले क्रिया शब्द ‘थे’ का इस्तेमाल किया गया है | 

प्रश्न-2 कुम्मी के हाथ जो किताब आई थी वह कब छपी होगी ?

उत्तर- कुम्मी के हाथ जो किताब आई थी वह सन् 2155 से पहले यानी आज के जमाने में छपी होगी | यह कहानी भविष्य की चिंताओं और तकनीकी दुनिया को ध्यान में रखकर लिखी गई है | 

प्रश्न-3 तुम कागज़ पर छपी किताबों से पढ़ते हो | पता करो कि कागज़ से पहले की छपाई किस-किस चीज़ पर हुआ करती थी ?

उत्तर- कागज़ से पहले छपाई के लिए ताम्र पात्र, खजूर के पत्ते, लकड़ी, धातु से बने पत्रों इत्यादि का इस्तेमाल किया जाता था | 

प्रश्न-4 तुम मशीन की मदद से पढ़ना चाहोगे या अध्यापक की मदद से ? दोनों के पढ़ाने में किस-किस तरह की आसानियाँ और मुश्किलें हैं ?

उत्तर- देखा जाए तो अध्यापक और मशीन दोनों की अपनी-अपनी आसानियाँ और मुश्किलें हैं | 

अध्यापक से प्रत्यक्ष पढ़ना ज्यादा रोचक और जीवंत होगा | उनसे आपस की संवेदनाओं और जरूरतों को साझा करना ज्यादा लाभप्रद होगा | मगर जहाँ अध्यापक को भी कोई विषय-वस्तु समझ में नहीं आ रहा हो, तो वहाँ उन्हें भी तकनीक या मशीन का सहारा लेना पड़ सकता है | 

मशीन अध्यापक की अपेक्षा बिना रुके-थके घंटों हमें पढ़ा सकती है | परन्तु, मशीन के सामने हम नियंत्रण में नहीं होते और अपना अनुशासन खो सकते हैं | क्योंकि मशीन तो हमारे नियंत्रण में होती है | जबकि अध्यापक से पढ़ते समय हम उनकी नज़र में बने होते हैं और अनुशासित रहते हैं | 

प्रश्न-5 रोहित ने कहा था, “कितनी पुस्तकें बेकार जाती होंगी | एक बार पढ़ी और फिर बेकार हो गई |” क्या सचमुच में ऐसा होता है ?

उत्तर-  ऐसा नहीं है कि पढ़ने के बाद पुस्तकें बेकार हो जाती हैं | किताबें एक व्यक्ति के बाद दूसरे व्यक्तियों के हाथों में जाकर उसके ज्ञान का स्रोत बनती रहती हैं | जिसके कारण कई लोगों को महत्वपूर्ण जानकारी मिलती रहती है | यदि ऐसा न होता, तो आज जगह-जगह पर पुस्तकालय का अस्तित्व नहीं होता | 


वे दिन भी क्या दिन थे का  शब्दार्थ

• उत्सुकता -  कुछ जानने के लिए उत्सुक होना 
• पुर्ज़े-पुर्जे़ -    मशीन का हर भाग या हिस्सा 
• रफ़्तार -      गति, चाल 
• पृष्ठ -          पन्ना
• पश्चात् -        बाद
• सदियों पहले -   वर्षों पहले, सालों पहले 
• सबक -        पाठ
• आरंभ -        शुरू 




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