संक्रमित मुक्त समाज

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समाज में ऐसे लोगों की कमी नहीं है, जिन के दिल पर न जाने कब और किसकी बात असर कर जाये। वह उस बात से न केवल अपने आप को बदल देते हैं। बल्कि अपने कामों से दूसरों के भी सहयोगी बन जाते है।। ऐसे ही लोगों में शामिल हैं बिहार के गया जिला स्थित आमस प्रखंड की महुआंवा पंचायत के 40 वर्षीय गुन्नु यादव।

कारावास नहीं है क्वारंटाइन सेंटर


कोरोना संक्रमण का खौफ लोगों पर इस कदर हावी है कि दूसरे राज्यों से आने वाले अपने सगे संबंधियों से भी लोगों ने दूरियां बनानी शुरू कर दी है। प्रवासियों का नाम सुनते ही मन मे कई तरह के नकारात्मक विचार आने लगते हैं। एक तरफ जहां लोगों में प्रवासियों को लेकर गलतफहमियां हैं तो वहीं दूसरी ओर प्रवासियों में भी क्वारंटाइन सेंटर से संबंधित बहुत सारी भ्रांतियां भी हैं। इन प्रवासियों को लगता है कि यह सेंटर किसी कारावास से कम नहीं होगा, जहां उनके साथ कैदियों जैसा व्यवहार किया जायेगा। जहां खाना और रहने के नाम पर इंसानों के साथ जानवरों जैसा सुलूक किया जाता होगा। इस तरह के भ्रामक और तथ्यहीन बातों को हवा देने में सोशल मीडिया पर फैली अफवाहों की बड़ी भूमिका है। यही कारण है कि कुछ ऐसे प्रवासी भी हैं जिनके परिजनों ने उनके गृह नगर पहुँचने की खबर प्रशासन को देने की बजाए उन्हें घर पर छुपा कर रखा। हालांकि बाद में क्वारंटाइन सेंटर जाने, वहां का वातावरण देखने तथा डॉक्टरों और सेंटर के अन्य स्टाफ के व्यवहार ने उनके डर को न केवल दूर कर दिया बल्कि उनकी सोंच को भी बदल दिया।

संक्रमित मुक्त समाज
समाज में ऐसे लोगों की कमी नहीं है, जिन के दिल पर न जाने कब और किसकी बात असर कर जाये। वह उस बात से न केवल अपने आप को बदल देते हैं। बल्कि अपने कामों से दूसरों के भी सहयोगी बन जाते है।। ऐसे ही लोगों में शामिल हैं बिहार के गया जिला स्थित आमस प्रखंड की महुआंवा पंचायत के 40 वर्षीय गुन्नु यादव। जो 20 वर्षों से दिल्ली में रह कर अपने परिवार का लालन पालन कर रहे थे। कोरोना महामारी के कारण लगाए गये लॉकडाउन से उनका काम भी बंद हो गया। जब खाना और कमरे का 3000 रूपए किराया देना मुश्किल हो गया तो उन्होंने घर लौटने का निर्णय किया। साथियों से बात की और 17 अन्य कामगार के साथ मिल कर 85000 रुपये में एक गाड़ी ठीक की, और 1 मई को दिल्ली से रवाना हो कर 2 मई की रात अपने घर पहुँच गये।

गुन्नु ने बताया कि जैसे ही हाथ पैर धो कर रात के भोजन के लिए बैठा तो दरवाजे पर पुलिस आ गई। हम घबरा गए कि अब किया करें! घर से भागना चाहा तो गांव वालों ने समझा बुझा कर पुलिस के साथ क्वारंटाइन सेंटर भेज दिया। दिल में डर और घबराहट लिए हम क्वारंटाइन सेंटर पहुंचे। जहाँ पहले से ही सोने के लिए बिस्तर और मछरदानी के साथ साथ खाने पीने की सारी सुख सुविधाएं मौजूद थीं।  क्वारंटाइन सेंटर के सभी कर्मचारीगण सेवा भाव से हम लोगों की सेवा में लगे रहे। लेकिन मैं इन सारी बातों से बेपरवाह केवल यही सोचता था कि इस कारावास से कैसे भागा जाए? इसी दौरान स्क्रीनिंग और चेकअप करने वाले डॉक्टर समी अहमद हमें बार बार यह समझाते रहे कि यह सब हमें और हमारे परिवार को स्वस्थ्य रखने के उद्देश्य से ही किया जा रहा है। यह कारावास नहीं बल्कि क्वारंटाइन सेंटर है। जहां हमें किसी जुर्म के कारण नहीं बल्कि अपने परिवार और आसपास के समाज को स्वस्थ्य रखने के उद्देश्य से कुछ दिन ठहरना है। ताकि हमारी किसी चूक की वजह से पूरा समाज कोरोना से संक्रमित न हो जाये। उनकी यह बात हम सभी के दिल को छू गई। क्योंकि मैं अपने परिवार से बहुत प्यार करता हूं, इसलिए मैंने निर्णय किया कि क्वारंटाइन सेंटर में पूरा समय गुजारूंगा। इसके साथ साथ डॉ समी द्वारा बताई गई सारी बातों का न केवल पालन करूंगा बल्कि दूसरों को भी पालन करने के लिए प्रेरित करता रहूंगा।    

इस संबंध में क्वारंटाइन सेंटर में ड्यूटी पर तैनात मास्टर जावेद कलामी और मिंहाज अहमद बताते हैं कि गुन्नु बहुत ही सहज तरीके से यहां रहते थे। वह 2 से 17 मई तक यहां रहे। इस दौरान देह से दूरी का न केवल खुद पालन करते थे बलिक दूसरों को भी इसके लिए प्रेरित किया करते थे। शुरू के कुछ दिनों उन्हें थोड़ी परेशानी जरूर हुई मगर बाद में वह स्वयं लोगों की हर प्रकार की सहायता करने लगे थे। वहीं गांव के वार्ड सदस्य सुजय कुमार निराला ने बताया कि क्वारेंटाइन की अवधि पूरी कर लेने के बाद इन प्रवासियों का गांव लौटने पर जोरदार स्वागत किया गया। अब ये अपने परिवार के साथ हंसी खुशी रह रहे हैं। गांव में अब कोई भी कोरोना से संक्रमित रोगी नही है जिसकी हमें खुशी है। गुन्नु और उनके साथियों ने गांव वालों के स्वास्थ्य का पूरा ख्याल रखा है।

क्वारंटाइन सेंटर से जुडी भ्रांतियों की, यह केवल किसी एक गुन्नु यादव की हकीकत नहीं है बल्कि देश में ऐसे कई प्रवासी हैं जो इस सेंटर से जुड़ी अफवाहों के कारण इसे कारावास समझने लगते हैं। यही कारण है कि वह यहां जाने से बचने के लिए झूठ का सहारा लेते हैं। इस प्रकार वह न केवल अपनी जान जोखिम में डाल देते हैं बल्कि अपने आसपास के लोगों को भी अनजाने में संक्रमित कर रहे हैं। जरूरत है इस दिशा में सरकार और स्थानीय प्रशासन को भी आगे बढ़ कर एक सकारात्मक पहल करने की, ताकि क्वारंटाइन सेंटर से जुड़ी अफवाहों को रोक कर हम संक्रमित मुक्त समाज तैयार कर सकें। (चरखा फीचर्स)


- फौजिया रहमान खान
गया, बिहार

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