तस्वीर हिंदी कहानी

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तस्वीर तस्वीर हिंदी कहानी मिटटी की पाल वाला पुराना सा कमरा मिटटी की दीवार पर चूना मिश्रित रंग से रंगी दीवार। छोटे से कमरे में लगी निवार वाली छोटी सी चारपाई। साधारण सा कमरा ,पर दीवार पर लगी एक काले सफेद आवरण वाली तस्वीर। जाने क्या आकर्षण था उस तस्वीर में? कमरे में प्रवेश करते ही हर किसी के कदम ठिठक से जाते।

तस्वीर


मिटटी की पाल वाला पुराना सा कमरा मिटटी की दीवार पर चूना मिश्रित रंग से रंगी दीवार। छोटे से कमरे में लगी निवार वाली छोटी सी चारपाई। साधारण सा कमरा ,पर दीवार पर लगी एक काले सफेद आवरण वाली तस्वीर। जाने क्या आकर्षण था उस तस्वीर में? कमरे में प्रवेश करते ही हर किसी के कदम ठिठक से जाते।

तस्वीर एक लड़की की थी। रंग गोरा, बड़ी-बड़ी आंखें और कसी हुई चोटी। शायद स्कूल के फॅारम केे लिये खिंचवाई गई हो। बड़े फ्रेम में लगी यह तस्वीर अनायास ही सबके कदम अपनी ओर खींच लेती। वह तस्वीर ही थी जो कमरे में जाकर रूकने को विवश करती। जब भी उसकी ओर देखो लगता कि जैसे कुछ बोलने का प्रयास कर रही है। लगता शायद कुछ बात उसके मन में ही रह गई थी ,जो किसी से कह ही न सकी हो। और तस्वीर है कि बिन बोले भी जुबां का काम करने को आतुर है।

दिन भर चहकती रहती चिड़िया सी इधर - उधर जिसके मुंह पर देखों उसी का नाम बीना..........‘‘ओ बचुली.......।..चाय बना तो,.....।‘‘ ‘‘बचुली....नान पानि त पिवे दे......।‘‘ ‘ओं ल्यूंछ......।‘‘ बीना , बीन सी मधुर, कार्यों में निपुण, स्वभाव उत्तम ,व्यक्तित्व मुखर। हर काम तन्मयता के साथ करने वाली किन्तु यदि कुछ भी गलत हो उसका...... विरोध करती। विरोंध में विद्रोह नहीं अपितु सही मार्ग दिखाने की प्रेरणा ही देती परिवार के मध्य बात को संभलना तथा विवाद होने से पूर्व ही मामले को शांत कर देना ऐक विशेष गुंण।।  

तस्वीर
शिक्षा के प्रति विशेष लगाव। विद्यालय जाने में कभी भी आनाकानी नहीं। प्रतिदिन घर के काम निबटा स्कूल को चली जाती। कोई कह दे आज स्कूल रहने दे। ‘क्यूं रहने द‘ूं? स्कूल का हर्जा करना अच्छा लगता है क्या ‘?.... फिर आज क्या पढ़या कैसे पता लगेगा‘‘? घर के जितने काम करने है कर दूंगी पर स्कूल का हर्जा करने को मत कहना‘‘। मांॅ हंस देती ‘‘ठीक छ जतु पढ़छी पढ़ । अपसर बनेली‘‘। 

घर के पास ही एक मंदिर भूमिया ;भूमि देवद्ध का । वहां रहते एक साधु महाराज। प्रतिदिन जाती कभी चाय लेकर कभी फल लेकर। ‘‘खुश रहो बच्ची‘‘ । कुछ देर बैठकर ‘‘अच्छा महाराज जी मैं चलती हूं स्कूल का काम भी करना है।‘‘ ‘‘ अरे बेटा क्या करेगी इतना पढ़कर ? तू.... भगवान का भजन कर ।..... भगवान का भजन भी तो गाती ही हूं , जब सब पूजा करने आते हैं यहां पर।..................‘‘ स्कूल का काम छूट जाएगा। बिना पढ़े-लिखे आज कुछ भी नहीं है। आप चाय पीजिये महाराज जी। हा...हा...हा... ठीक है बेटा ,फिॅर वह लौट चली आती। 
        
हाईस्कूल की परिक्षा के समय मां बीमार रहने लगी। पिताजी खेतों से सब्जी बाजार बेचने जाया करते। घर पर सारे काम और गौशाला में पशुओं की कोई कमी नहीं भैंसें ,बैल, घोड़ा बकरी सभी। प्रातः उठकर भाई के साथ मिलकर घर और गौशाला के सारे काम निबटाना,फिर परीक्षा देने जाना । वापस आकर चारे की व्यवस्था करना माॅ की देखभाल करना सभी कुछ कार्य तो होते।दिन भर कभी इधर तो कभी उधर। ‘‘बची कसि पास होली तंै, माॅ को जब चेतना लौटती और देखती सारे कामों को। बीमारी ने मां की स्थिति इतनी खराब कर दी कि विद्यालय से घर लौटने पर मुंह के पास जाकर केवल यह जांच करनी होती कि सांस चल रही अथवा नहीं। फिर भी तीनों भाई बहन एक ही कक्षा में एक ही साथ उत्तीर्ण। 
     
गाॅंव से विद्यालय का र्माग लम्बा एवं सुनसान । जंगल के मध्य से होकर गुजरने वाल मार्ग लगभग एक से डेढ़ किलोमीटर की चढ़ाई उसके बाद गाड़ी रोड मार्ग  वाहन सुविधा तो कहां किन्तु चलती गाड़ियां नजर आ ही जाती। इस गाड़ी मार्ग में अनचाहे उपद्रवी अकसर मिल जाते जिससे, भय का आवरण बना सा रहता । कभी  तो भाईयों का साथ हो जाता पर कभी ऐसा न हो पाता । जब अक्सर इस प्रकार उपद्रवी पीछा करने लगे तो सभी लड़कियों ने एक नई तरकीब निकाली गई ; अब विद्यालय को आते -जाते समय कमर पर सलवार के उपर पत्थर लपेट कर ले गए। एक दिन आधे से अधिक मार्ग तक उन्हें पीछा करने दिया। जैसे ही लगा कि अब यह अधिक नहीं भाग पाएगें तो सभी ने उनके उपर पत्थरों से बौछार कर दी। जिससे लड़के घबरा गए। अचानक इस प्रकार का हमला वह समझ पहीं पाए और जान बचाकर भागे। अपनी जीत पर सभी लड़कियां बहुत  खुशी के साथ गाती खेलती घर को लौटी , उस दिन के बाद कभी किसी ने उनका पीछा नहीं किया और उनका भय भी जाता रहा।
   
चंचल गोस्वामी
चंचल गोस्वामी
गांव से विद्यालय जाने वाली कन्याओं में ,कुछ ने पढ़ा नहीं कुछ ब्याही गईं, कुछ थोड़ा पढ़कर पढ़ाई छोड़ दीं। बची के पढ़ने की लगन कम न हुई। स्नातक की परीक्षा उत्तीर्ण कर परास्नातक के लिये तैयारी करने लगी। इसी मध्य माता - पिता बची के विवाह के लिये भी चिन्तित रहने लगे। कभी - कभी मां साधु महाराज से कहती, ‘‘बाबा जी बचि का ब्याह कैसे होगा ? कोई रिश्ता ही नहीं मिल रहा है‘‘।  बाबा जी का अब भी वही उत्तर .....।... ‘‘इससे भजन कर कहो, भजन । विवाह क्या करना है ? भजन कर । हाॅं बची‘‘। कभी - कभी तो मां के मन में यह भी उत्पन्न होने लगा कहीं..... ये बाबा मेरी लड़की को भी सन्यासी बनाने की तो नहीं सोच रहा ? अब तो मां के मन की उधेड़बुन की कोई सीमा ही न रही। 

अब एक विवाह प्रस्ताव आया नाम- विजय, टेली फोन विभाग में कार्यरत। बची और विजय दोंनो ने रजामंदी दे दी। विवाह तय हो गया। घर में सब ओर प्रसन्नता का ही माहोल। वर पक्ष की ओर से टीका एवं सगाई की रस्म अदा की गई। इस सगाई के साथ ही दोंनों ने अनकहे शब्दों में दोनों एक दूजे का वरण कर लिया। प्रेम के लिये किसी विशेष अवसर की प्रतिक्षा थोड़े ही होती है। 

धीरे - धीरे परिवार में विवाह की तैयारी आरम्भ हो गई। खरीददारी पूर्ण हो गई। इधर विवाह से कुछ समय पूर्व विजय अपने पिता संग बीना के घर आया। अब विवाह के संबंध में व्यवस्थाओं से जुड़ी कुछ बातें करनी थी। अगले दिवस शौच से लौटते समय पैर में हल्के दर्द की अनुभूति हुई। यह तो सामान्य बात है कुछ नहीं कुछ होगा। परिवार का सत्कार और बची की चिन्ता साथ लेकर विजय लौट गया। अभी विवाह की बहुत सी तैयारियां शेष जो रह गई थी। 

इस ओर बची के घर पर जोर शोर से विवाह की तैयारियां चल रही । विवाह के  चार दिन पूर्व सूचना आती है कि विजय का स्वास्थ कुछ ठीक नहीं । विजय को शहर के चिकित्सालय में भर्ती कराया गया है। विवाह के चार दिवस पूर्व इस प्रकार की खबर......। परिवार में चिंता के बादल छा गए। परिवार के सभी पुरूष भागे - भागे अस्पताल चले गए,  इधर बची और उसकी मां चिुता मग्न। परिवार में सभी रिश्तेदारों का आगमन हो चुका। .....कैसे किसी से कहैं ? क्या कहें ? यह बड़ी चिंता का विषय ;कैसे अपना दुख व्यक्त करे और कैसे छिपाए ??? किसी प्रकार धीरज बांधे रखा.......... जब भाई घर लौटे.........। भीतर अलग ले जाकर ‘‘ ईजा फालिस पड़ गई है...। फालिश....?? लकुवा....लकुवा पड़ गया है। 

अब कि होल ..... मेरी बचीक??.....हे ईश्वर.... दबी आवाज में रोने के स्वर...। इधर दरवाजे की ओट से बची सब सुन चुकी थी। विपदा तो यह है कि वह खुल कर रो भी नहीं सकती। अभी ठीक होने की कोई आस नहीं थी। विवाह की तिथि आगे बढ़ने का निर्णय लिया गया। मेहमान दिलासा देकर लौटने लगे। अब डाक्टर भी सहज ठीक होने की उम्मीद छोड़ रहे थे। किसी अन्य अस्पताल रेफर किये जाने की बात सामने आई । भीतर  तक गहरे अवसाद में घिरी बची ने विजय से मिलने की इच्छा जाहिर की। मां के साथ अस्पताल गई ओैर असीम दुख अपने भीतर समेट कर विजय से मिली। ना विजय कुछ कह सका और ना बची। जिन बातों को नेत्र बयां करते हों उनके लिये जुबां की आवश्यकता कहां? जज्बातों की धार सहज ही बह रही थी अंतर्मन में जिसका उफान नेत्रों की कोरों तलक आकर चुपके से बह निकलता।

विजय को रेफर किये जाने के बाद विवाह पूरी तरह टूट चुका था। परिवार धीरं - धीरे सहज होने लगा। बची भी सहज होने का प्रयास करने लगी। अब बची ने मन को अन्यत्र लगाने का निर्णय लिया और टाइपिंग सीखने लगी। इधर परिवार ने तय किया कि बची का कहीं और विवाह कर दिया जाय। बची ....ईजा तेरा व्याह की कहीं और बात चलाते हैं हां।....ईजा.....?????अब शादी की बात मत करना। किलै? क्या हुआ उसके भाग में ऐसा ही होना लिखा होगा। ना..... शादी एक ही बार होती है बार - बार नहीं। अरे तेरी शादी जो क्या हुई है जो जीवन भर राह देखती रहेगी। टीका ही तो लगा था। कुछ नहीं होता कहीं और से अच्छा रिश्ता आएगा.....। ना ईजा टीका भी शादी बराबर ही होता है अब बिल्कुल नहीं। कोई शादी की बात मत करना।
    
घर की प्रसन्नता अचानक से जाती रही एक घटना ने परिवार का सुख छीन सा लिया। घीरे - धीरे परिवार सहज हो गया। बची........ बाहर तो सहज सी पर अंदर बड़ा तूफन समे हुए। इस तूफन का मंजर कभी - कभी स्वभाव में भी दिखाई देने लगा। सामान्यतः बची संयत ही रहा करती। टाइपिंग सीखने में अब मन भी लगने लगा । एक दिन प्रातः ‘‘ईजा.......ओ ईजा.......दूर खेतों से आवाज आई हो.......।‘‘ खेतों में ही जाकर ईजा में टाइपिंग के लिये जा रही हूं। ‘‘ अच्छा ‘ मां ने अधिक जवाब न दिया।........ईजा में एम0 ए0 का फारम भी भरना चाहती हूं।‘‘ मां जैसे अपने भीतर जाने कितना दुख दबाए बैठी थी। जाने कौन से कष्टों का विष अंतर्मन में उबाल मार रहा था??? मां की चिंता उसके दुख के साथ उमड़ पड़ी । कब से तुझे समझा रही हूं मान क्यों नहीं जाती शादी के लिये। कब तक ऐसे गुमसुम बनी रहेगी??? बता तो ‘‘ईजा फिर से वही बात........? फारम भरने की बात कह रही हूं असके बारे में बात कर और कितनी बार कह दिया है शादी दोबारा नहीं होगी। अब जा रही हूं मैं बाजार। मां का मन अभी शांत नहीं हुआ।  हां...हांकृअब वहीं का फारम भर .... हम सब मरेंगे तब भरेगी फारम...।‘‘पीछे से और बोल पड़ी मां। राह चलते - चलते कदम ठिठक पड़े कुछ सोचकर घर वापस लौट गई। ‘‘अरेे क्या हुआ???? जाती क्यों नहीं ?? अब गुस्स होकर होता है मान लो बड़ों की बात ...‘‘। पर अब बची ने कुछ न सुना ......्रऔर घर लौट गई। 

इधर उधेड़बुन के साथ मां भी घास काटकर घर लौट गई। बाहर से आवाज लगाई ‘‘वची..........। ओ बचुली अब तक रिशा रछै.....। हं.... तसि रीश...।‘‘ ,बजार जानेछी न्हें जानि .....कां गे हो? जब बहुत पुकारने पर भी बचुली का कोई उत्तर नहीं मिलता तो..... मां स्वयं भीतर ढूंढने लगी है। पर.........ये क्या ?????? बची अपनी आखिरी सांसें गिन रही थी। तब तक बड़ा भाई भी घर पर आ जाता है। उसे कुछ समझ नहीं आता है वह जल्दी से बाजार दौड़ता है। दवा और डाॅक्टर के लिये। इधर मां का चीत्कार गूजने लगता है। ये क्या क्या कर दिया बचुली........??
मां की बात इतनी गहरी चुभ गई थी। ‘‘चेली मतारी क क्यों गलत ज कि हुंछ????? मां पिरंतर आंसू बहाए जाय। आंसू बची के भी आंखों में थे पर उनमें मां के प्रति दुख, थोड़ा क्रांेध, और अपने अपूर्ण प्रेम की समिश्रित ताप बह निकल रही थी। कुछ पल बची अपने माता - पिता के दुखी चेहरों को देखती रही। अथाह कष्ट के मध्य शायद बहुत कुछ कहना चाहती थी किन्तु , घी में मिलाकर विष निगलने के कारण कंठ नली जल चुकी थी चाह कर भी शब्द नहीं निकल सकते थे। एकटक तकते नैनों से अपने माता - पिता को मूक प्रणाम कह , अपने अपूर्ण प्रेम की अनकही स्मृतियों के साथ विदा ले गई।

आनन फानन में दोनों भाई डाॅक्टर को लेकर पहुंचे अवश्य किन्तु  अब तक देह का ताप भी जाता रहा। बहुत सी बातें जो चाह कर भी कह न सकी थी। बहुत सी चाहतें जो किसी को बता न सकी थी। सूखे आंसुओं के साथ ही गालों में चिपक गए थे जिन्हें कोई मिटा तो सकता था पर पढ़ नहीं सकता था।
वो बचुली जो किसी के भी साथ गलत नहीं होते देख सकती थी , आज स्वयं के साथ जाने सही जाने गलत कर चली गई। शायद उसकी नजर में वही सही था। क्योंकि दूसरा विवाह उसके लिये गलत था। फिर हृदय से स्वीकार लेने से अधिक और विवाह क्या?

वह तो बस एक चिड़िया सी आंगन में उतर आई थी। दाना - पानी चुगा।अपनी मीठी बोली से सबका मन जीत लिया फिर लौट चली अपने गंतव्य को अनंत काल तक न लौटने के लिये। रह गई तो केवल वह तस्वीर जो सुनसान कमरे में इस आस में टंगी रहती कि कोई आए तो वह उससे दो बात कह सके। उसके अपूर्ण प्रेम की दांसता सुन सके। उसकी देह तो चली गई रह गया उसका प्रेम जो समा गया उस तस्वीर में जो बहता रहता उस मासूम निर्जीव चेहरे से पर उसे पढ़ने को कोई नजर न रह गई।
                                                        


- चंचल गोस्वामी 
                                                                   ग्राम-सन्न,
                                                                पो0 ऑ0- वडडा,पिथौरागढ़
                                                                     उत्तराखण्ड

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