कफन कहानी की कहानी के तत्वों के आधार पर समीक्षा

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कफन कहानी की कहानी के तत्वों के आधार पर समीक्षा

कफ़न कहानी का उद्देश्य क्या है kafan kahani ki samiksha kafan kahani ka sandesh kafan kahani ka uddeshya kya hai premchand ki kahani ki samiksha premchand ki kahani ka saransh moral of the story kafan in hindi कफन कहानी का निष्कर्ष कफन कहानी की आलोचना कफन कहानी की समीक्षा कीजिए कफन कहानी की समीक्षा कफन कहानी की कहानी के तत्वों के आधार पर समीक्षा - कफन कहानी में दलित चेतना कफन 'कफन' प्रेमचन्द के उत्कर्ष-काल की श्रेष्ठतम कहानी है। यह वातावरण-प्रधान सामाजिक कहानी है। यहाँ लेखक मनोविज्ञान को आधार बनाकर कहानी रचना में प्रवृत्त हुआ है। जीवन का, यथार्थ एवं स्वाभाविक चिंत्रण उसका ध्येय बन गया है।विद्वानों ने कहानी-कला के छ : तत्त्वों को स्वीकार किया है, जिनके परिप्रेक्ष्य में ‘कफ़न' कहानी की समीक्षा करना निम्नांकित रूप से समीचीन होगा 

कफ़न कहानी का सारांश

इस कहानी के कथानक की सर्जना मनोविज्ञान की अनुभूति के धरातल पर हुई है। यह अत्यन्त सुगठित एवं सुव्यवस्थित है तथा इसमें केवल एक संवेदना का सूत्र सम्पूर्ण कथानक की सृष्टि में प्रयुक्त हुआ है। इस कहानी में कथानक की मूल संवेदना यह है कि आधुनिक आर्थिक विषमता, बेरोजगारी और निकम्मे समाज-व्यवस्था के कारण सर्वहारा वर्ग कितना स्वार्थी, कामचोर और जड़ हो जाता है कि वह अपनी मृतक पुत्रवधू और पत्नी के कफ़न के लिए एकत्र चन्दे के धन को शराब पीने में व्यय कर डालता है और अन्त में अपने कुकृत्य का समर्थन करने के लिए समाज की रीति-रिवाज को कोसता हुआ कहता है कि “कैसा बुरा रिवाज है कि जिसे जीते जी, तन ढकन को चीथड़ा भी न मिले उसे मरने पर कफन चाहिए। कफ़न लाश के साथ जलकर राख हो जाता है। इस प्रकार, कहानी के कथानक का आरम्भ घीसू और माधव की दीन-हीन एवं कारुणिक समस्या स होता है। इसके पश्चात् परिचय और घटना की तैयारी होती है, जिसमें कहानीकार यह दिखाता है । माधव की पत्नी के बच्चा होने वाला है, वह प्रसव-वेदना से छटपटा रही है। जबकि झोपड़े के द्वारा अलाव के सामने घीसू और माधव दोनों बाप-बेटे चुपचाप बैठे यह इन्तजार कर रहे हैं कि कब की पत्नी मरे और घर में शान्ति हो। इसके उपरान्त कथानक में उत्तेजक घटना आती है। जब में माधव की स्त्री मर जाती है, पहले तो दोनों छाती पीटकर हाय-हाय करते हैं, फिर का लकड़ी के लिए चन्दा इकट्ठा करते हैं, इसके अनन्तर कथानक में घात-प्रतिघात का सच म घात-प्रतिघात का संघर्ष दिखाया गया है। बाप-बेटे दोनों कफन खरीदने के लिए दूकान पर जाते हैं, कुछ न खरीदकर कई दुकानों का चक्कर लगाते हैं और शाम हो जाती है। कथानक चरम सीमा तक आता है, जब बाप-बेटे अनायास किसी दैवी प्रेरणा से एक शराबखाने के सामने जा पहुँचते हैं और कफन के पैसे से तली हुई मछलियाँ, आदि खाकर-पेट भरकर शराब पीते हैं और अन्ततः नशे में बेसुध होकर वहीं गिर जाते हैं। इस प्रकार, इस कहानी में ग्रामीण-जीवन की रूढ़िग्रस्तता और बेकारी का सफल चित्रण हुआ है। 

घीसू और माधव का चरित्र चित्रण

कफन कहानी
कफन कहानी
इस कहानी में मुख्यतः दो पात्रों- घीसू और उसके पुत्र माधव का वर्णन आया है। दोनों ही निर्धन श्रमिक-वर्ग से सम्बन्धित हैं, दोनों आराम तलब, कामचोर और बदनाम हैं। कोई उन्हें काम पर नहीं बुलाता, कभी विवशता में किसी ने बुलाया भी तो आधा घण्टा काम करेंगे, एक घण्टा चिलम पियेंगे, ये एक दिन काम करते हैं तो तीन दिन आराम ।जब फाके पड़ने की नौबत आती तो एक पेड़ से लकड़ियाँ तोड़ता, दूसरा उसे बाजार में बेचकर पेट-पूजा का जुगाड़ करता। अपनी हरामखोरी, कुप्रवृत्तियों के कारण ये मजदूरी नहीं पाते। आर्थिक विपन्नता ने दोनों को निर्दयी, कठोर एवं हृदयहीन बना दिया है। तभी तो घर में बुधिया प्रसद-पीड़ा से तड़प-तड़पकर प्राण छोड़ देती है और वे दोनों अलाव पर बैठे-बैठे चोरी के भुने आलुओं को खाने में मग्न हैं। ये उसकी चीख सुनते हैं, लेकिन उसके पास जाते भी नहीं हैं और वह मर जाती है। इस प्रकार इसको दारुण दशा, विपन्नता एवं अन्तिम परिणति किसी भी संवेदनशील मनुष्य के दिल. को दहला देती है और इस समाज की विषम आर्थिक-संरचना पर सोचने के लिए बाध्य कर देती है। 

कफन कहानी का कथोपकथन

प्रेमचन्द जी ने संवादों के माध्यम से पात्रों की चारित्रिक विशेषताओं का उद्घाटन अत्यन्त मार्मिक एवं कलात्मक ढंग से किया है। ये संवाद कथा-सूत्र को आगे बढ़ाने में सहायक बने हैं।उन्होंने अपने पात्रों के मनोभावों का चित्रण नाटकीय एवं मनोवैज्ञानिक स्तर पर किया है। वे जानते थे कि कौन पात्र किस परिस्थिति में कैसे मनोभावों को व्यक्त करता है। इन्हीं विशेषताओं को उद्घाटित करने वाला एक उदाहरण द्रष्टव्य है -

“घीसू ने कहा- मालूम होता है, बचेगी नहीं। सारा दिन दौड़ते हो गया, जा देख तो आ माधव चिढ़कर बोला- "मरना ही है तो जल्दी मर क्यों नहीं जाती। देखकर क्या करूँ? ' "तू बड़ा बेदर्द है बे। साल भर जिसके साथ सुख-चैन से रहा, उसी के साथ इतनी बेवफाई।" "तो मुझसे तो उसका तड़पना और हाथ-पाँव पटकना नहीं देखा जाता है।" 

वातावरण 

इस कहानी में वातावरण की प्रधानता है।प्रेमचन्द जी वातावरण के सजन में सिद्धहस्त हैं।इस कहानी में वातावरण की सृष्टि कथाकार ने इतने मनोयोग से किया है कि यह कहानी जीवन की सच्ची घटना प्रतीत होती है। स्थान एवं परिस्थिति का यथार्थ बोध इसमें सफलतापूर्वक प्रस्तुत किया गया है।कहानी के आरम्भ में ही बिम्बात्मक वातावरण प्रस्तुत किया गया है -

- "झोपड़े के द्वार पर बाप और बेटा दोनों एक बुझे हुए अलाव के सामने चुपचाप बैठे हुए हैं और अन्दर बेटे की जवान बीबी बुधिया प्रसव-वेदना से पछाड़ खा रही थी। रह-रहकर उसके मुँह से दिल हिला देने वाली आवाज निकल रही थी कि दोनों कलेजा थाम लेते थे। जाड़े की रात भी प्रकार सन्नाटे में डूबी थी। सारा गाँव अन्धकार में लय हो रहा था।" 


भाषा शैली

इस कहानी की भाषा-शैली सरल, सशक्त एवं सजीव है। इससे प्रौढता परिपक्वता एवं सप्राणता पर्याप्त मात्रा में मिलती है। वह आधन्त पात्रानुकूल है। वातावरण के चित्रण में भाषा पूर्णतः वर्णनात्मक हो गयी है। इस कहानी में भाषा की बिम्बात्मकता सर्वत्र दिखायी देती है, उदाहरणार्थ -

"सबेरे माधव ने कोठरी में जाकर देखा तो उसकी स्त्री ठण्डी हो गयी थी। उसके मुंह पर मक्खियाँ भिनक रही थीं। पथराई हुई आँखें ऊपर टँगी हुई थीं। सारी देह धूल से लथपथ हो रही थी। उसके पेट में बच्चा मर गया था।" इस कहानी में नाटकीयता प्रायः दिखायी देती है कि व्यंग्य शदित तो इस कथाकार में जन्मजात ही रही। व्यंग्यात्मकता का एक उदाहरण यहाँ प्रस्तुत है- "दुनिया का दस्तूर है, नहीं तो लोग बाभनों को हजारों रुपये क्यों दे देते हैं, कौन देखता है, परलोक में मिलता है या नहीं। बड़े आदमियों के पास धन है, चाहे फूंकें। हमारे पास फूंकने को क्या है ?" 

कफ़न कहानी का उद्देश्य 

उददेश्य की दष्टि से यह कहानी यथार्थवादी है।आर्थिक विषमता वाले जिम समाज में एक ओर तथाकथित धनी-मानी और बड़े लोग बैठे-बैठे दुनिया के सारे आनन्द लेते हैं तथा निर्धन मजदूर एवं किसान रात-दिन कठिन परिश्रम करके भी दो जून की रोटी का जुगाड़ नहीं कर पाते, वहाँ घीसू और माधव के कामचोर हो जाने को लेखक ने उचित माना है।लेखक ने यहाँ किसानों मजदूरों में चेतना जगाने का प्रयास किया है।आर्थिक शोषण के विरुद्ध क्रान्ति-भावना भरना उसका उद्देश्य बन गया है। गरीबी व्यक्ति को किस स्तर तक संवेदनशून्य और जड़ बना सकती है। घीसू और माधव इसके ज्वलन्त उदाहरण हैं।किसी भी सभ्य समाज को आर्थिक स्थिति की ऐसी विषमता चिन्तनशील प्राणी को सोचने पर अवश्य बाध्य करेगी। 

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