अभिनेयता की दृष्टि से आषाढ़ का एक दिन

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अभिनेयता की दृष्टि से आषाढ़ का एक दिन अभिनेयता की दृष्टि से आषाढ़ का एक दिन आषाढ़ का एक दिन नाटक मोहन राकेश जी द्वारा रचित समस्त हिन्दी साहित्य में अपना विशिष्ट स्थान रखता है।इसकी अभिनेयता पर दृष्टिपात करने पर ज्ञात होता है कि यह नाटक अभिनेयता के गुण से मण्डित है।

अभिनेयता की दृष्टि से आषाढ़ का एक दिन 


अभिनेयता की दृष्टि से आषाढ़ का एक दिन आषाढ़ का एक दिन नाटक मोहन राकेश जी द्वारा रचित समस्त हिन्दी साहित्य में अपना विशिष्ट स्थान रखता है।इसकी अभिनेयता पर दृष्टिपात करने पर ज्ञात होता है कि यह नाटक अभिनेयता के गुण से मण्डित है।इसका स्पष्टीकरण इस प्रकार भी हो जाता है कि यह नाटक- दिल्ली, लखनऊ, कलकत्ता, कानपुर, ग्वालियर, नागपुर, इलाहाबाद तथा कई स्थानों पर सफलतापूर्वक खेला गया है। अमेरिका में भी इसका मंचन किया जा चुका है। इसकी अभिनेयता के कारण ही अलकाजी जैसे कुशल निर्देशक तथा अनामिका जैसी संस्था ने इसे लेकर सर्वदा अलग-अलग दृष्टियों से प्रयोग किया है।यहाँ तक कि आकाशवाणी के विभिन्न केन्द्रों से लगभग समस्त भारतीय भाषाओं में 'आषाढ़ का एक दिन' नाटक . प्रसारित किया जा चुका है। इसकी अभिनेयता का सबसे बड़ा प्रमाण और क्या हो सकता है।यही कारण है कि स्वातन्त्र्योत्तर ही नहीं, समस्त हिन्दी नाटकों 'आषाढ़ का एक दिन' नाटक उच्च स्थान का भागी है।नाटक के लेखक मोहनराकेश जी का रंगमंच का पर्याप्त अनुभव रहा है। जिसका उपयोग उन्होंने बहुत ही सफलतापूर्वक किया है। प्रस्तुत नाटक की रचना उन्होंने रंगमंच एवं अभिनय की समस्त सम्भावनाओं को ध्यान में रख करके की है। 

किसी भी नाटक के अभिनेयता का मूल्यांकन निम्नांकित बिन्दुओं के परिप्रेक्ष्य में किया जा सकता है। अर्थात् किसी भी नाटक की अभिनेयता के लिए आवश्यक शर्ते निम्नलिखित हैं- . 

(1) भाषा सरल एवं प्रवाहमयी हो। 
(2) कथोपकथन सरल, संक्षिप्त एवं सजीव हों। 
(3) कथानक की सरलता हो। 
(4) आकार संक्षिप्त तथा पात्र-संख्या सीमित हो। 
(5) दृश्य रंगमंच के अनुकूल हो। 
(6) गूढ़ता न हो। . 
(7) हास्य एवं व्यंग्य का भी समावेश हो।

उपर्युक्त सभी गुण जो किसी नाटक की अभिनेयता के लिए आवश्यक हैं, 'आषाढ़ का एक दिन' नाटक में
आषाढ़ का एक दिन
आषाढ़ का एक दिन 
पूर्णतया सन्निविष्ट हैं। इन बिन्दुओं के आधार पर समीक्षा करने पर यह नाटक खरा उतरता है।भाषा की सरलता एवं प्रवाहमयता की दृष्टि से 'आषाढ़ का एक दिन' नाटक बहुत सफल सिद्ध नहीं होता है। क्योंकि प्रस्तुत नाटक की भाषा में सुबोधता, स्वाभाविकता, रोचकता एवं प्रवाहपूर्णता तो है, किन्तु सरलता का सर्वथा अभाव है। मुहावरों और संस्कृत श्लोकों के प्रयोग के कारण भाषा एक विशिष्ट गरिमा से मण्डित हो जाती है। इस नाटक की भाषा सर्वथा पात्रानकल है और पात्रों की मनःस्थिति को चित्रित करने में सर्वथा सफल है।अभिनेय नाटकों की भाषा इतनी सरल-सरस भाव सम्प्रेष्य होनी चाहिए कि सामान्य स्तर का दर्शक उसे शीघ्रता से समझ सके और उसका पूर्णतया नाटकीय आस्वाद ले सके।

कथोपकथन की सजीवता, संक्षिप्तता एवं सरलता पर विचार करने से ज्ञात होता है कि आषाढ़ का एक दिन' नाटक के कथोपकथन संक्षिप्त सरल और सजीव हैं।अपने इसी गण के कारण यह नाटक दर्शकों को अपनी ओर अनायास आकर्षित, कर लेता है। संवादों से जहाँ नाटक में राचकता आयी है वहीं उसकी नाटकीयता में भी अभिवृद्धि हुई है। उदाहरणतः निम्नलिखित संवाद देखे जा सकते हैं - 

विलोम- छन्दों का अभ्यास मेरी वृत्ति नहीं है। 

कालिदास- मैं जानता हूँ तुम्हारी वृत्ति दूसरी है। इस वृत्ति से सम्भवतः छन्दों का अभ्यास सर्वथा छुड़ा दिया है। 

विलोम - आज निःसन्देह तुम छन्दों के अभ्यास पर गर्व कर सकते हो। 

'आषाढ़ का एक दिन' नाटक में जिस कथावस्तु को प्रस्तुत किया गया है, वह अत्यन्त सरल है।एक नारी के सात्विक प्रेम और एक अनिष्ठ व्यक्ति द्वारा उसके जीवन की दुर्गति करने की कथा को नाटककार ने बड़ी सरलता एवं मार्मिकता के साथ अभिव्यक्त किया है।प्रस्तुत नाटक का कथानक जटिल नहीं है, अपितु उसमें सरलता सन्निहित है। अभिनेयता की दृष्टि से 'आषाढ़ का एक दिन' नाटक का कथानक सर्वांश में खरा उतरता है। 

नाटक में वर्णित कथा अत्यन्त संक्षिप्त है और उनको दो ढाई घण्टों में ही रंगमंच पर अभिनीत किया जा सकता है। 'आषाढ़ का एक दिन' नाटक में प्रसाद जी के नाटकों की तरह न तो कथा का अत्यधिक विस्तार ही है और न जटिलता ही है।सम्पूर्ण नाटक- आदि मध्य और अन्त तीन अंकों में विभाजित है और उसकी दृश्य-योजना भी रंगमंच के सर्वथा अनुकूल है।सम्पूर्ण नाटक में न्यूनाधिक परिवर्तन के साथ एक ही दृश्य काम करता है। मल्लिका के प्रकोष्ठ का दृश्य जो एक बार निर्मित हो जाता है, वही थोड़े-बहुत परिवर्तन के साथ अन्त तक पड़ा रहता है। इससे नाटक के अभिनय में बड़ी सफलता मिली है। अपने इसी सरत दृश्य-विधान के कारण नाटक को किसी भी साधारण से . साधारण मंच पर भी सफलतापूर्वक अभिनीत किया जा सकता है। 

प्रस्तुत नाटक में किसी इस प्रकार की घटना का संयोजन भी नहीं किया गया है, जो अरुचिकर और रंगमंच पर प्रस्तुत करने के अयोग्य हो।सभी घटनाएँ सहज अभिनेय एवं रोचक हैं।अभिप्राय यह है कि नाटक में कोई भी प्रसंग इस प्रकार का नहीं है, जो नीरस, अरुचिकर एवं रंगमंच के प्रतिकूल दिखायी पड़ता है।सभी प्रसंग अभिनेयता के अनुकूल हैं।हास्य-व्यंग्य की दृष्टि से 'आषाढ़ का एक दिन' नाटक पर विचार करने से ज्ञात होता है कि इसमें अनुस्वार और अनुनासिक दो ऐसे पात्र हैं, जिनके प्रसंगों में नाटककार ने हास्य व्यंग्य की सुन्दर अवतारणा किया है। सबसे बड़ी बात यह है कि इन प्रसंगों का दुष्प्रभाव दर्शकों पर नहीं पड़ता है।यह हास्य अत्यन्त शिष्ट है।नाटक के संवादों में हास्य एवं व्यंग्य को स्थान मिला है,किन्तु दूसरी ओर मल्लिका के संवाद इतने संवेदनशील एवं गम्भीर हैं कि पाठक उसमें खो जाता है।मल्लिका के स्वगत-कथनों को कोई आलोचक दोष भले ही मानें, किन्तु उनमें जो गहरी नाटकीयता, भाव-सम्प्रेषणीयता और संवेदनशीलता है, उससे कथा का वास्तविक गरिम-गम्भीरता प्राप्त होती है।प्रस्तुत नाटक की कथा में किसी गूढ़ दार्शनिक रहस्य का उद्घाटन नहीं किया गया है।इसमें तो एक सीधी-सादी लड़की की कहानी वर्णित है। इस कारण से भी नाटक की अभिनेयता संपुष्ट होती है। 

उपर्युक्त विश्लेषण से स्पष्ट है कि 'आषाढ़ का एक दिन' नाटक अभिनेयता की दृष्टि से एक सफल नाट्य रचना है। अभिनेयता के मानक बिन्दुओं के आधार पर इसका मूल्यांकन करने पर यह खरा उतरता है।इसमें रंगमंच के समस्त गुणों की उपस्थिति पायी जाती है,जिससे यह सहजतापूर्वक रंगमंच पर खेला जा सकता है।पाश्चात्य समीक्षक एल्मर राइस का कथन 'आषाढ़ का एक दिन' नाटक के सन्दर्भ में अक्षरशः सत्य प्रतीत होता है- 'नाटक का मूलसार शब्द नहीं, वरन् क्रिया-कलाप है।नाटक खेलने के लिए ही लिखे जाते हैं।"अतः ‘आषाढ़ का एक दिन' नाटक मोहन राकेश की एक महत्त्वपूर्ण कृति है, जो अभिनेयता की दृष्टि से उत्कृष्टकोटि की है। 

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