मैला आँचल उपन्यास में लक्ष्मी का चरित्र

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मैला आँचल में नारी मैला आँचल उपन्यास में लक्ष्मी का चरित्र मैला आँचल उपन्यास में पाँच प्रमुख नारीपात्र हैं। लक्ष्मी, कमला, फुलिया, मंगलादेवी और डॉ. ममता श्रीवास्तव । लेकिन प्रधानता की दृष्टि से लक्ष्मी और कमला ही मुख्य नारी पात्र हैं। लक्ष्मी का परिचय हमें मेरीगंज मठ के अन्धे महन्त सेवादास की दासी या रखैल के रूप में प्राप्त होता है। लक्ष्मी पसराहा मठ के एक सेवक राम चरन की इकलौती बेटी थी।

मैला आँचल में नारी 


मैला आँचल उपन्यास  में पाँच प्रमुख नारीपात्र हैं। लक्ष्मी, कमला, फुलिया, मंगलादेवी और डॉ. ममता श्रीवास्तव । लेकिन प्रधानता की दृष्टि से लक्ष्मी और कमला ही मुख्य नारी पात्र हैं। लक्ष्मी का परिचय हमें मेरीगंज मठ के अन्धे महन्त सेवादास की दासी या रखैल के रूप में प्राप्त होता है। लक्ष्मी पसराहा मठ के एक सेवक राम चरन की इकलौती बेटी थी। 

गाँव में हैजा फैला और वह अनाथ हो गयी। बाद में उसे सेवादास मेरीगंज ले आया और किशोरावस्था में ही अपनी दासी बना लिया।लक्ष्मी जवान होने से पहले ही सेवादास की रखैल बन गयी है। बाद में महन्त अन्धे हो गये।गाँव के लोग उन्हें व्यभिचारी कहने लगे।बालदेव और लक्ष्मी का पहला साक्षात्कार महन्त के भण्डारे के अवसर पर हआ। उसे देखते ही वह लक्ष्मी की आँखों में समा गया। महन्त के निधनोपरान्त बालदेव लक्ष्मी का सहारा बन गया। लक्ष्मी बालदेव की ओर कुछ विशेष कारणों से आकृष्ट हुई थी।एक तो बालदेव बहुत सीधा व सरल युवक था। दूसरे वह स्वयंसेवक था।गाँव के हित के लिए वह सब कुछ करने को तैयार था। तीसरे वह देशभक्त था, देश के लिए उसने पुलिस के डण्डे खाये और जेल गया। सेवादास ने उसे शुद्ध विचारों वाला आदमी भी माना था। इन्हीं सब कारणों से लक्ष्मी बालदेव से प्रेम करने लगी थी। इस प्रकार लक्ष्मी का प्रेम सामने आता है। महन्त सेवादास की मृत्यु के बाद बेसहारा लक्ष्मी ने जब सहायता के लिए बालदेव जी की ओर अपना हाथ बढ़ाया और उसे इस बात का एहसास हुआ कि बालदेव उसकी रक्षा नहीं कर सकता तब वह कालीचरन की ओर आकर्षित हुई, लेकिन कालीचरन की दूरी देख लक्ष्मी को बड़ी निराशा हुई। वह बालदेव के आकर्षण के प्रति अपनी भूल महसूस करने लगी। वह सोचने लगी साधु सुभाव के पुरुष हैं, किसी का चित्त नहीं दुखाना चाहते।........ कहते हैं, वहमी दासिन ने हिंसावाद करवाया है मठ पर नहीं जायेंगे। 

बहुत सीधे हैं बालदेव जी। सच्चे साधु हैं, उनसे छिमा माँगना होगा।" लक्ष्मी ने यह निर्णय कर लिया जैसे भी हो बालदेव जी के शरीर की सेवा करेगी। लक्ष्मी अपने इस निश्चय को अन्त तक निभाती है। बालदेव को लेकर वह मठ छोड़ देती है और अपने बगीचे में रहने लगती है। वह बालदेव को गुसाईं कहकर पुकारती है। सेवादास जैसी पदवी देकर वह उसका शारीरिक सम्पर्क चाहती है, पर बालदेव उसकी प्रतीक्षा करते थे। 

ज्वाला विरह-वियोग की, रही कलेजा छाये। 
प्रेमी मन मानै नहीं, दरसन से अकुलाय। 
गृह आँगन बन गये पराये कि आहो सन्तो हो। 
तुम बिनु कन्त बहुत दुख पाये। 
एक गृहे, एक संग में, हौ विरहणि संग कन्त।  

अन्त में लक्ष्मी की यह अभिलाषा पूरी होती है और वह बालदेव जी की इसतरी बन जाती है। 

मैला आँचल में नारी
मैला आँचल में नारी 
वास्तव में लक्ष्मी चंचलमना तो थी, लेकिन दुश्चरित्र नहीं थी। उसका मन डॉ. प्रशान्त के लिए भी चंचल हुआ था। कालीचरन की न्यायवृत्ति ने भी उसे चंचल किया था, लेकिन वह चरित्रभ्रष्ट नहीं हुई थी। हृदय की चंचलता के बाद भी बालदेव के अतिरिक्त किसी अन्य पुरुष 'के साथ सहवास करने की चेष्टा उसके मन में नहीं हुई थी। सेवादास तथा रामनाथ ने उसके साथ नाजायज फायदा उठाया। अगर वह दुश्चरित्रणी होती, तो लरसिंह दास के साथ, नागासाधु के साथ, रामदास के साथ, वह अपना शारीरिक सम्बन्ध स्थापित कर चुकी होती। लेकिन यह सम्बन्ध उसने केवल बालदेव जी के साथ स्थापित  किया और उनकी इसतरी बनी। यही कारण था कि लक्ष्मी के चरित्र में स्वाभिमान की मात्रा बढ़ : थी। उदाहरण के लिए बालदेव जब उसके चरित्र पर शंका करता है और चन्ननपट्टी चले जाने के बाद कहता है। तो वह भी तमक उठती है। उसके नथुने फड़क उठते हैं 

"ऐसा क्यों बकते हैं ?........... क्या समझते हैं ?.......... बोलिये। क्या समझते हैं...... .... रंडी समझ लिया है क्या ?...... गोस्सा मत होइये गोसाई साहेब। करोध पाप का मूल! जाते-जाते देह को अकलंक लगाकर मत जाइए।" 

लक्ष्मी एक भारतीय नारी है, वह नारी धर्म जानती है, घर पर आये हुए मेहमान का स्वागत किस प्रकार किया जाता है। यह तथ्य बावनदास या विदियारथी जी के आने पर द्रष्टव्य होता है। बावनदास तथा बिदियारथी के प्रति उसके मन में श्रद्धाभाव था। वह गाँधी जी की भक्त थी। भण्डारा देने से पूर्व महन्त सेवादास ने गाँधीजी को सतगुरु साहेब का भगत कहा था। इसीलिए बावनदास को दिये चिट्ठियों के बण्डल को गाँधी जी की मृत्यु के पश्चात बड़ी श्रद्धा से रखती है। बावनदास की अमानत का खयाल उसे बना रहता है। यहाँ उसकी गाँधी जी के प्रति श्रद्धा आतिथ्य की भावना, अमानत को अमानत समझने जैसी प्रवृत्तियाँ सहज स्पष्ट हो जाती हैं। 

भारतीय पत्नी होने के कारण लक्ष्मी पति के सारे अवगुण, सारे दोष, सारे पाप कर्म भुलाकर भी उसके प्रति मन में कोई दुर्भावना नहीं लाती। बालदेव उसके चरित्र पर संदेह करता है। उसे आग में जलाने का वही दोषी है। किन्तु लक्ष्मी की सहनशीलता, उसकी चारित्रिक उदात्तता, उसका साहस और उसकी नम्रतायुक्त क्षमाशीलता, बालदेव का हृदय परिवर्तन कर देती है।भण्डार के पूर्व मठ पर जुड़ने वाली पंचायत में लक्ष्मी की स्पष्टवादिता देखते ही बनती है। गाँव के लोगों के लिए वह मार्गदर्शिका बन जाती है। उसके भक्तिन स्वरूप का विश्लेषण करना युक्तिसंगत इसलिए नहीं प्रतीत होता, क्योंकि आद्योपान्त वह सतगुरु साहिब की भक्तिन रही है।निष्कर्षतः लक्ष्मी एक आदर्श नारी-चरित्र के रूप में प्रस्तुत हुई है। 

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