मैला आँचल उपन्यास का नायक डॉ. प्रशांत

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मैला आँचल उपन्यास का नायक डॉ. प्रशांत maila anchal dr prashant मैला आँचल उपन्यास का नायक डॉ. प्रशांत डॉ. प्रशान्त के रूप में रेणु ने एक आदर्श डॉ. के चरित्र को प्रस्तुत किया है।उपन्यास के कथानक के अनुसार डॉ. प्रशान्त एक लावारिस सन्तान है। उसके पिता कौन थे, उसे नहीं मालूम। उसे अपनी माता का नाम मालूम है, जिसका नाम स्नेहमयी था, उसी ने उसे पाल-पोस कर बड़ा किया था।

मैला आँचल उपन्यास का नायक डॉ. प्रशांत


मैला आँचल उपन्यास का नायक डॉ. प्रशांत maila anchal dr prashant डॉ. प्रशान्त के रूप में रेणु ने एक आदर्श डॉ. के चरित्र को प्रस्तुत किया है। डॉ. प्रशान्त के चरित्र को प्रस्तुत करके उपन्यासकार ने यह सिद्ध किया है कि वास्तव में डॉ. वही है, जिसमें अपने देश के प्रति, देश की मिट्टी के प्रति, देशवासियों के प्रति और पिछड़े गाँवों के प्रति, जो निपट देहात है और जिनमें देश की अस्सी प्रतिशत जनता रहती है उसके प्रति प्रेम और सेवा  भावना हो और देशवासियों के हित के लिए अपने भविष्य को ठोकर मार सकता हो।डॉ. प्रशान्त रेणु की कल्पना के अनुसार वैसा ही डॉक्टर है, जिसमें त्याग, जनसेवा की भावना, कर्तव्यनिष्ठा, स्वस्थ मानवीयता, उत्साह, आत्मविश्वास जैसे गुण तो उसमें हैं ही। उसमें एक गुण ऐसा है, जा सर्वोपरि है- वह है देश की मिट्टी और देशवासियों के प्रति तीव्र आकर्षण की भावना। 

मैला आँचल
उपन्यास के कथानक के अनुसार डॉ. प्रशान्त एक लावारिस सन्तान है। उसके पिता कौन थे, उसे नहीं मालूम। उसे अपनी माता का नाम मालूम है, जिसका नाम स्नेहमयी था, उसी ने उसे पाल-पोस कर बड़ा किया था। डॉ. प्रशान्त के तथाकथित पिता का नाम अनिल कुमार बनर्जी था, जिसने अपनी पत्नी स्नेहमयी को त्यागकर एक नेपाली स्त्री से शादी कर ली थी। स्नेहमयी को यह बच्चा कोसी नदी में आयी बाढ़ के कारण एक उपाध्याय परिवार द्वारा हाड़ी में रखा प्राप्त हुआ। यही बालक प्रशान्त हुआ। बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से आई. यस. सी. परीक्षा पास करके माँ की इच्छानुसार प्रशान्त ने पटना मेडिकल कालेज में प्रवेश लिया। प्रशान्त की मा स्नेहमयी ने उसका साथ छोड़ दिया। बाद में मालूम हुआ कि प्रशान्त ने एक नेपाली से शादी कर लिया है। डॉक्टरी पास करने के बाद 1942 का आन्दोलन छिडा और उपाध्याय परिवार के साथ प्रशान्त भी पकड़ा गया। जेल प्रवास के समय प्रशान्त को राजनीतिक नेताओं के सम्पर्क में आने से देश की स्थिति का ज्ञान प्राप्त हुआ। 

सन् 1946 में कांग्रेस के मन्त्रिमण्डल के गठन होने पर उसने सरकारी प्रस्ताव को ठुकरा दिया और हेल्थ मिनिस्टर के सामने स्पष्ट किया कि वह पूर्णिया के पूर्वी अंचल में रहकर मलेरिया और कालाजार पर रिसर्च करना चाहता है। परिणामतः डॉ. प्रशान्त को मेरीगंज में तत्काल खोले गये मलेरिया एण्ड कालाजार इनवेस्टिगेशन स्टेशन पर नियुक्त कर दिया जाता है। प्रशान्त का यह निर्णय उसके देशप्रेम और समाज का द्योतक है। जिसका स्वरूप प्रशान्त के इन शब्दों में व्यक्त है -

"ममता! मैं फिर काम शुरू करूँगा- यहीं इसी गाँव में। मैं प्यार की खेती करना चाहता हैं। आँसू से भीगी हुई धरती पर प्यार के पौधे लहरायेंगे। मैं साधना करूँगा, ग्रामवासिनी भारत माता के मैले आँचल तले।" 

डॉ. प्रशान्त ने प्रेम, प्यार और स्नेह को बायोलॉजी के सिद्धान्त से ही हमेशा नापने की कोशिश की थी। वह हँसकर कहा करता था- "दिल नाम की कोई चीज आदमी के शरीर में है, हमें नहीं मालम।" वह औरत को केवल माँ रूप में ही देखता था, लेकिन कामपीड़ा से छटपटाती कमला ने बलात प्रशान्त को अपने सौन्दर्य से बाँध लिया। ममता यदि प्रशान्त की प्रेरणा थी, तो कमला के प्रेम में प्रशान्त की सेवाभावना ने मानवीयता और प्रेम का अद्भुत रस मिला दिया। ममता की प्रेरणा से ही प्रशान्त रिसर्च करने मेरीगंज आया था। प्रशान्त मेरीगंज के वातावरण और कमला के प्रेम में इस कदर खो गया कि वह चिकित्सा के क्षेत्र में विशेष कुछ न कर सका। मेरीगंज गाँव में जब मलेरिया फैला तो उसे घर-घर जाकर प्रेमवासियों को बहुत निकट से देखने का अवसर मिला। यही नहीं वह वहाँ के जीवन, वहाँ की संस्कृति, वहाँ की प्रकृति और वहाँ के लोकगीत नृत्यों में घुसता ही चला गया। उसने मेरीगंज से पूर्ण तादात्म्य स्थापित किया। 

डॉ. प्रशान्त कम्युनिस्ट तो पहले ही था, लेकिन इस धरती ने उसे पूर्णता प्रदान की। रूस और चीन की पुस्तकें पढने के अपराध में डॉ. प्रशान्त को गिरफ्तार करके पूर्णिया जेल में बंद कर दिया गया। छोटन बाबू कांग्रेसी नेता ने उसे पकड़वाया था। 

निष्कर्षतः प्रशान्त के माध्यम से उपन्यासकार ने मिट्टी और मनुष्य के प्रति प्रेम पैदा करने की कोशिश किया है। उसे उपन्यास का नायकत्व प्रदान नहीं किया है। प्रशान्त एक स्थिर चरित्र की भाँती मिटटी और मनुष्य के प्रति प्रेम उत्पन्न करने की कठपुतली बनकर रह गया है। उसमें न गति है और न विकास क्षमता। 


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