हिंदू-एकता बनाम ज्ञान की राजनीति

SHARE:

रवीश कुमार ने कहा “‘हिंदू-एकता बनाम ज्ञान की राजनीति’ दो साल से परिश्रम और दिमागी संघर्ष का परिणाम है मुझे इसका अंदाजा था कि लेखक एक वैचारिक द्वन्द से गुजर रहे हैं और नए नए तथ्यों से टकरा रहे हैं. यह किताब एक गंभीर विमर्श की बात करती है।

हिंदू-एकता बनाम ज्ञान की राजनीति


नई दिल्ली :  प्रख्यात समाजशास्त्री अभय कुमार दुबे की समाज विज्ञान पर आधारित पुस्तक  ‘हिंदू-एकता बनाम ज्ञान की राजनीति’ का लोकार्पण इण्डिया इंटरनेशनल सेंटर में शनिवार शाम को हुआ । इस कार्यक्रम  में वक्ताओं में राज्य सभा सदस्य और संघ विचारक राकेश सिन्हा, समाजशास्त्री, दिल्ली स्कूल ऑफ़ इकॉनॉमिक्स,सतीश देशपांडे, मैगसेसे पुरस्कार विजेता और एनडीटीवी प्रबंध सम्पादक रवीश कुमार, गाँधीवादी चिंतक और लेखक सोपान जोशी,  इतिहासकार अपर्णा वैदिक एवं अरुण महेश्वरी,प्रबंध निदेशक वाणी प्रकाशन मौजूद थे।  

हिंदू-एकता बनाम ज्ञान की राजनीति
समाजशास्त्री अभय कुमार दुबे की इस रचना का मक़सद हिंदू-एकता की परियोजना और संघ परिवार के विकास-क्रम का ब्योरा देते हुए बहुसंख्यकवाद विरोधी विमर्श के भीतर चलने वाली ज्ञान की राजनीति को सामने लाना है। इसी के साथ यह पुस्तक इस विमर्श के उस हिस्से को मंचस्थ और मुखर भी करना चाहती है जिसे ज्ञान की इस राजनीति के दबाव में पिछले चालीस साल से कमोबेश पृष्ठभूमि में रखा गया है।  

राज्य सभा सदस्य और संघ विचारक राकेश सिन्हा 'प्रो. दुबे की इस पुस्तक में मुझे निहित जोखिम का अंदाज है,क्योंकि इस रचना में स्वाभाविक तौर पर संघ विरोधी खामिया उभर कर आयेंगी ,लेखक ने यह जोखिम उठाया है उसके लिए उन्हें बधाई । संघ को वामपंथियों को समझने में कठिनाई इसलिए होती है़ क्योंकि संघ को वामपंथी दूर से देखते हैं , संघ को समझना है़ तो संघ के  नजदीक आके समझना होगा।

मैगसेसे पुरस्कार पत्रकार रवीश कुमार ने कहा “‘हिंदू-एकता बनाम ज्ञान की राजनीति’ दो साल से परिश्रम और दिमागी संघर्ष का  परिणाम  है मुझे इसका अंदाजा था कि लेखक एक  वैचारिक द्वन्द से गुजर रहे हैं और नए नए तथ्यों से टकरा रहे हैं. यह किताब एक गंभीर विमर्श की बात करती है।

गाँधीवादी चिंतक और लेखक सोपान जोशी ने कहा “यह पुस्तक स्वागतयोग्य है इसमें चीजों को समझने का सलीका है। ज्ञान की राजनीति की सुंदर समीक्षा इस पुस्तक में मिलती है हम कह सकते हैं कि यह आँख की नमी का एक तरह का नियंत्रक है।”

हिंदू-एकता बनाम ज्ञान की राजनीति
हिंदू-एकता बनाम ज्ञान की राजनीति
इतिहासकार अपर्णा वैदिक ने इस मौके पर कहा” इस देश में हिंदुत्ववाद और मध्यमवाद दो विचारधाराएँ हैं .प्रो दुबे की यह पुस्तक तीसरी विचारधारा है़ जो हिंदुत्ववाद और मध्यमवाद दोनों  विचारधाराओं पर प्रहार करती है़।जब तक दलित और मुस्लिम क़ा प्रश्न राष्ट्र क़ा प्रश्न नही बनेगा तब तक ज्ञान की राजनीति नही हो सकती है।”

समाजशास्त्री, दिल्ली स्कूल ऑफ़ इकॉनॉमिक्स,सतीश देशपांडे ने इस मौके पर कहा “यह पुस्तक खास चुनौती को रेखांकित करती है विमर्श की दुनिया और व्यवहारिक राजनीति के विमर्श में गहरा फासला हैं। विमर्श की दुनिया को और पोषण की जरूरत है।”

‘हिंदू-एकता बनाम ज्ञान की राजनीति’ के लेखक अभय कुमार दुबे ने अपनी बात रखते हुए कहा “हिंदुत्ववाद जो आजादी के बाद हाशिए पर चला गया था वही  हिंदुत्ववाद आज अपने चरम पर है़ और मध्यमवाद आज हाशिए पर चला गया है़। इस पुस्तक का मकसद दो विमर्शों  ‘हिन्दू एकता का विमर्श’ और ‘वामपंथी,सेकुलरवादी (मध्यमार्गी विमर्श )’ क़ा विश्लेषण करना है।”

कार्यक्रम का आरंभ अरुण महेश्वरी,प्रबंध निदेशक वाणी प्रकाशन के वक्ततव्य से हुआ उन्होंने सीएसडीएस ( विकाशील समाज अध्यन पीठ )और वाणी प्रकाशन के बीच पिछले 18 वर्ष से चले आ रहे रचनात्मक सहयोग की प्रक्रिया पर प्रकाश डाला । यह कार्यक्रम वाणी प्रकाशन और सीएसडीएस द्वारा सयुक्त रूप से आयोजित किया था ।

किताब के बारे में 
पिछले कुछ वर्षों से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की विचारधारात्मक राजनीति हाशिये से निकल कर सार्वजनिक जीवन पर हावी होती जा रही है। दूसरी तरफ़, आज़ादी के बाद से ही उसकी आलोचना करने वाला वामपंथी, सेकुलर और उदारतावादी विमर्श केंद्र से हाशिये की तरफ़ खिसकता जा रहा है। इस परिवर्तन का कारण क्या है? यह पुस्तक विमर्श के धरातल पर इस यक्ष प्रश्न का उत्तर देने का प्रयास करती है। विमर्श-नवीसी (डिस्कोर्स मैपिंग) की शैली में लिखी गई इस रचना का मक़सद हिंदू-एकता की परियोजना और संघ परिवार के विकास-क्रम का ब्योरा देते हुए बहुसंख्यकवाद विरोधी विमर्श के भीतर चलने वाली ज्ञान की राजनीति को सामने लाना है। इसी के साथ यह पुस्तक इस विमर्श के उस हिस्से को मंचस्थ और मुखर भी करना चाहती है जिसे ज्ञान की इस राजनीति के दबाव में पिछले चालीस साल से कमोबेश पृष्ठभूमि में रखा गया है।  

लेखक अभय कुमार दुबे के बारे में 
विकासशील समाज अध्ययन पीठ (सीएसडीएस) में $फेलो और भारतीय भाषा कार्यक्रम के निदेशक। पिछले दस साल से हिंदी-रचनाशीलता और आधुनिक विचारों की अन्योन्यक्रिया का अध्ययन। साहित्यिक रचनाओं को समाजवैज्ञानिक दृष्टि से परखने का प्रयास। समाज-विज्ञान को हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं में लाने की परियोजना के तहत पंद्रह ग्रंथों का सम्पादन और प्रस्तुति। कई विख्यात विद्वानों की रचनाओं के अनुवाद। समाज-विज्ञान और मानविकी की पूर्व-समीक्षित पत्रिका प्रतिमान समय समाज संस्कृति के सम्पादक। पत्र-पत्रिकाओं में निरंतर लेखन और टीवी चैनलों पर होने वाली चर्चाओं में नियमित भागीदारी।  

  
आभार ,
संतोष कुमार  
M -9990937676

COMMENTS

Leave a Reply

You may also like this -

Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy बिषय - तालिका