रहस्यवाद Rahasyavad रहस्यवाद रहस्यवाद किसे कहते हैं रहस्यवाद के कवि एवं उनकी रचनाएं rahasyavad छायावाद और रहस्यवाद पर टिप्पणी rahasyavad ki visheshta रहस्यवाद की चार विशेषताएँ रहस्यवाद इन हिंदी रहस्यवादी के चिंतन छायावाद और रहस्यवाद में अंतर रहस्यवाद के कवि एवं उनकी रचनाएं chhayavad aur rahasyavad par tippani
रहस्यवाद Rahasyavad
रहस्यवाद रहस्यवाद किसे कहते हैं रहस्यवाद के कवि एवं उनकी रचनाएं rahasyavad छायावाद और रहस्यवाद पर टिप्पणी rahasyavad ki visheshta रहस्यवाद की चार विशेषताएँ रहस्यवाद इन हिंदी रहस्यवादी के चिंतन छायावाद और रहस्यवाद में अंतर रहस्यवाद के कवि एवं उनकी रचनाएं chhayavad aur rahasyavad par tippani - रहस्यवाद आत्मा में परमात्मा का स्वरुप ज्ञान है तथा विश्वआत्मा की प्राप्ति आनंद रस है। हिंदी में यह कोई नयी भावना नहीं है। इनका स्वरुप हमें वेदों तथा उपनिषदों में भी मिलता है। यदि वेदों और उपनिषदों की बात छोड़ दी भी जाए और केवल हिंदी की ही बात ली जाए तो यह कहना पड़ेगा कि हिंदी के प्रारंभिक युग से अर्थात सिद्ध तथा नाथ साहित्य से ही रहस्यवादी विचारधारा हिंदी में पायी जाती है। आधुनिक युग में इसका महत्व अधिक बढ़ा है।
छायावाद की तरह इसकी भी अनेक परिभाषाएँ दी गयी हैं।आचार्य शुक्ल जी के अनुसार - आत्मा और परमत्मा ,जीव और ब्रह्म की प्रणयानुभूति ही रहस्यवाद है।"
उक्त परिभाषा के आधार पर यह कहा जा सकता है कि रहस्यवाद एक काव्यधारा है ,जिसमें अलौकिक ब्रह्म और लौकिक साधक के प्रेम संबंधों की चर्चा की जाती है और जिसके विस्मयकारी रूप पर आश्चर्य व्यक्त किया जाता है। यह छायावाद से मिलती जुलती काव्यधारा है। छायावाद में प्रकृति से सम्बन्ध स्थापित किया जाता है और रहस्यवाद में प्रकृति के माध्यम से कवि परमत्मा से अपना सम्बन्ध स्थापित करता है। हिंदी काव्य में छायावाद के साथ ही साथ रहस्यवाद की भी प्रतिष्ठा हुई और जो छायावादी कविता के उन्नायक हुए वे ही रहस्यवाद के भी उन्नायक हुए।
रहस्यवाद को कुछ लोग अंग्रेजी मिस्टीसिज्म Mysticism का हिंदी रूपांतरण कहते हैं।यह सत्य है या असत्य ,यह नहीं कहा जा सकता पर इतना अवश्य कहा जा सकता है कि मिस्टिक साहित्य Mysticism की भाँती रहस्यवाद में भी अस्पष्टता पायी जाती है।
रहस्यवाद की विशेषताएँ
रहस्यवादी काव्य की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं -अलौकिक ब्रह्म के प्रति जिज्ञासा -
रहस्यवाद की पहली विशेषता यह है कि इस युग के कवियों ने सबसे पहले ब्रह्म को जानने की जिज्ञासा व्यक्त की है .जैसे -
हे अनंत रमणीय कौन तुम?
यह मैं कैसे कह सकता,
कैसे हो? क्या हो? इसका तो-
भार विचार न सह सकता।
अलौकिक ब्रह्म का अनुभव -
जिज्ञासा के बाद रहस्यवादी कवि इस अलौकिक ब्रह्म का अनुभव करने लगते हैं। उन्हें यह ब्रह्म प्रकृति के कण कण में विद्यमान दिखाई देता है।इनकी दृष्टि में जड़ चेतन हर जगह वह अलौकिक सत्ता की भव्य छटा दिखाई देती है। कवि अपने और ब्रह्म में अविछिन्न सम्बन्ध मानने लगते हैं।
निराला जी ने कहा है -
तुम तुंग - हिमालय - श्रृंग
और मैं चंचल-गति सुर-सरिता।
तुम विमल हृदय उच्छवास
और मैं कांत-कामिनी-कविता।
महादेवी वर्मा लिखती हैं -
बीन भी हूँ मैं तुम्हारी रागिनी भी हूँ!
नींद थी मेरी अचल निस्पन्द कण कण में,
प्रथम जागृति थी जगत के प्रथम स्पन्दन में,
प्रलय में मेरा पता पदचिन्ह जीवन में,
शाप हूँ जो बन गया वरदान बन्धन में,
कूल भी हूँ कूलहीन प्रवाहिनी भी हूँ!
ब्रह्म को जगत के सभी कार्यों में देखना -
इस धारा के कवियों ने अलौकिक सत्ता को जगत के सभी कार्यों में देखने का प्रयास किया है। नदी ,वन ,फूल ,पत्ते सभी उसी के संकेतों पर कार्यरत हैं।
अनुभव के बाद मिलन की तड़पन -
ब्रह्म का अनुभव प्राप्त हो जाने के बाद रहस्यवादी कवि उस ब्रह्म से मिलने के लिए व्याकुल हो उठते हैं। वे दुःख के आंसू रोने लगते हैं। जैसे -
ब्रह्म का अनुभव प्राप्त हो जाने के बाद रहस्यवादी कवि उस ब्रह्म से मिलने के लिए व्याकुल हो उठते हैं। वे दुःख के आंसू रोने लगते हैं। जैसे -
आह! वेदना मिली विदाई
मैंने भ्रमवश जीवन संचित,
मधुकरियों की भीख लुटाई
संगीतमय काव्य -
रहस्यवाद और छायावाद के कवियों का काव्य संगीतमय है। प्रत्येक कवि की कविता गेय है। संगीत के कारण यह काव्य भी प्रभावक बन गया है।महादेवी वर्मा के गीत यह सिद्ध करते हैं कि रहस्यवादी कविता संगीत तत्व युक्त है। जैसे -
रहस्यवाद और छायावाद के कवियों का काव्य संगीतमय है। प्रत्येक कवि की कविता गेय है। संगीत के कारण यह काव्य भी प्रभावक बन गया है।महादेवी वर्मा के गीत यह सिद्ध करते हैं कि रहस्यवादी कविता संगीत तत्व युक्त है। जैसे -
प्रिय चिरंतन है सजनि,
क्षण-क्षण नवीन सुहासिनी मै!
श्वास में मुझको छिपाकर वह असीम विशाल चिर घन
शून्य में जब छा गया उसकी सजीली साध-सा बन,
छिप कहाँ उसमें सकी
बुझ-बुझ जली चल दामिनी मैं।
सांकेतिकता -
रहस्यवादी काव्य सांकेतिक है। इस धारा के कवियों ने लौकिक रूप से जो बात कही है उसका अर्थ अलौकिक रूप से लगाया जाता है।
रहस्यवादी काव्य सांकेतिक है। इस धारा के कवियों ने लौकिक रूप से जो बात कही है उसका अर्थ अलौकिक रूप से लगाया जाता है।
आत्मा परमात्मा में एकता -
इस धारा का प्रत्येक साधक अपने और ब्रह्म में एकता स्थापित करता है। जैसे - हिमालय और उससे निकलने वाली सरिता में एकता की स्थिति होती है ,उसी प्रकार कवि और परमात्मा में अविभिन्न सम्बन्ध है। निराला जी इसे इस प्रकार व्यक्त किया है -
इस धारा का प्रत्येक साधक अपने और ब्रह्म में एकता स्थापित करता है। जैसे - हिमालय और उससे निकलने वाली सरिता में एकता की स्थिति होती है ,उसी प्रकार कवि और परमात्मा में अविभिन्न सम्बन्ध है। निराला जी इसे इस प्रकार व्यक्त किया है -
तुम विमल हृदय उच्छवास
और मैं कांत-कामिनी-कविता।
तुम प्रेम और मैं शान्ति,
तुम सुरा - पान - घन अन्धकार,
मैं हूँ मतवाली भ्रान्ति।
सुख और दुःख दोनों की अभिव्यक्ति -
रहस्यवाद के कवियों ने ब्रह्म की मिलन अनुभूति में सुख का अनुभव किया है तो उससे दूर रहने में विरह का। महादेवी जी ने तो विरह की स्थिति को ही श्रेष्ठ माना है क्योंकि इस स्थिति में साधना की तीव्रता बनी रहती है। पंथ रहने दो अकेला कहकर उन्होंने ऐसा ही भाव व्यक्ति किया है।
रहस्यवाद के कवियों ने ब्रह्म की मिलन अनुभूति में सुख का अनुभव किया है तो उससे दूर रहने में विरह का। महादेवी जी ने तो विरह की स्थिति को ही श्रेष्ठ माना है क्योंकि इस स्थिति में साधना की तीव्रता बनी रहती है। पंथ रहने दो अकेला कहकर उन्होंने ऐसा ही भाव व्यक्ति किया है।
प्रेम की अजस्र धारा -
रहस्यवादी रहस्यवादी कवियों का पथ प्रेमपथ है। उन्होंने प्रेम के आधार पर ही आत्मा और परमात्मा के मिलन एवं विरह की स्थितियों का वर्णन किया है।उन्होंने परमात्मा को प्रिय शब्द के संबोधित भी किया है।
रहस्यवादी रहस्यवादी कवियों का पथ प्रेमपथ है। उन्होंने प्रेम के आधार पर ही आत्मा और परमात्मा के मिलन एवं विरह की स्थितियों का वर्णन किया है।उन्होंने परमात्मा को प्रिय शब्द के संबोधित भी किया है।
प्रकृति में अलौकिकता के दर्शन -
इस धारा के कवियों ने प्रकृति के माध्यम से अलौकिक ब्रह्म का चित्रण किया है। उन्होंने प्रकृति के कण कण में उस अलौकिक सत्ता के दर्शन किये हैं। जैसे -
इस धारा के कवियों ने प्रकृति के माध्यम से अलौकिक ब्रह्म का चित्रण किया है। उन्होंने प्रकृति के कण कण में उस अलौकिक सत्ता के दर्शन किये हैं। जैसे -
शशि के दर्पण में देख देख,
सुलझाये मैंने तिमिर केश,
गूंथे चुन तारक पारिजात,
अवगुंठन कर किरणें अशेष
क्यों आज रिझा पाया ठसको ,
मेरा अभिनव श्रृंगार नहीं
Thanku so much
जवाब देंहटाएंHindi ka past bohat hi prernadayak he hindi ne prachin kal se hi jativad ko samapt karne ko kaha tha
जवाब देंहटाएंChanderbardai padmavati samaye ki katha pr Parkash daliye
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