डिग्रियां नहीं समझदारी चाहिए

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डिग्रियां नहीं समझदारी चाहिए एक बार की बात है ,एक गीदड़ सघन वन में घूम रहा था।अचानक उसकी मुलाकात एक भेड़िये से हुई।दोनों आपस में बातें करने लगे।म कम पढ़े -लिखे होने पर भी ज्यादा बुद्धिमान हो। "भेड़िये ने गीदड़ की बहुत प्रशंसा की। " कहानी से शिक्षा - मनुष्य का ज्यादा पढ़ा -लिखा होना आवश्यक नहीं है। मनुष्य को व्यावाहारिक और बुद्धिमान होना जरुरी है।

डिग्रियां नहीं समझदारी चाहिए


एक बार की बात है ,एक गीदड़ सघन वन में घूम रहा था।अचानक उसकी मुलाकात एक भेड़िये से हुई।दोनों आपस में बातें करने लगे। 

भेड़िया खुद को ज्यादा समझदार प्रदर्शित कर रहा था। उसने गीदड़ से पूछा - 

"गीदड़ ने जबाब दिया - "सच तो यह है कि मैं कम पढ़ा -लिखा हूँ। "

"मगर ,मैं तो काफी पढ़ा -लिखा हूँ। "भेड़िया अकड़कर बोला - "अतः तुम मुझे साहब कहकर संबोधित करो। "

अभी भेड़िया इतना ही कह पाया था कि तभी करीब की झाड़ियाँ से एक लम्बा शेर निकलकर सामने आ गया। 

उसे देखकर गीदड़ ने भेड़िये से पूछा - अब क्या करें साहब !"

मगर ,शेर को देखकर ही भेड़िया की हालत इतनी ख़राब हो गयी थी कि उसके मुंह से बोल भी नहीं फूटा।  

उसी पल ,शेर गरजा - "कहाँ जा रहे हो ?"
सघन वन
सघन वन

कहते ही वह उन पर छलांग लगाने की तैयारी करने लगा। 

"महाराज ! हम आपकी सलाह लेने के लिए आपके ही पास आ रहे थे। 

क्यों ?

गीदड़ ने तुरंत बात बनायीं - हम दोनों में झगड़ा हो गया था ,आप ही इसे निपटा सकते हैं। "

गीदड़ की बात सुनकर शेर बहुत खुश हुआ और बोला - मामला क्या है ?

गीदड़ ने कहा - मैंने दो ताजे मुर्गे पकड़े थे। मेरे इस मित्र का कहना है कि ये मेरे से ज्यादा पढ़े लिखा है। इसीलिए एक मुर्गा इसे भी मिलना चाहिए ,क्या ये ठीक है ?

"कितना पढ़ा है ये ?" शेर ने भेड़िये को सर से पाँव तक देखते हुए पूछा।  

मारे भय के भेड़िये के दांत बजने लगे। 

गीदड़ ने बताया - "इनका कहना है ,जितने इनके मुंह में दांत है ,इनके पास उतनी ही डिग्रियां हैं। 

अच्छा ! शेर बोला - "फिर तो मैं इससे कहीं ज्यादा पढ़ा लिखा हूँ। इतना कहकर उसने मुंह खोलकर अपने भयंकर दांत दिखाए। 

इस दृश्य ने भेड़िये को इतना डरा दिए कि वह लड़खड़ा कर गिर पड़ा.

"यह स्वीकार करता है कि आप इससे पढ़े -लिखे। "

गीदड़ ने समझदारी का परिचय देते हुए कहा - "इसीलिए इसने आपको दंडवत प्रणाम किया है। हमारा झगडा निपटाने में आपने बुद्धिमानी का परिचय दिया है ,इसीलिए मैं भी आपको प्रणाम करता हूँ। "

"तुम परस्पर लड़ते हो ,इसीलिए मुर्गे मुझे दे दो। "

"कृपया करके आप मेरे घर चलें। "गीदड़ बोला - मैं आपको दोनों मुर्गे दे दूंगा। 

शेर बहुत खुश हुआ। मुर्गे उसे कभी कभी खाने को मिलते थे। उसने मन ही मन सोचा - मुर्गे खाने के बाद मैं गीदड़ और भेड़िये को भी खा जाऊँगा। 

ठीक है ,मुझे वहां ले चलो। शेर ने कहा। 

गीदड़ उसे एक गुफा के मुहाने पर ले गया और बोला - यही मेरा घर है ,मेरा मित्र अन्दर जाकर मुर्गे ले आएगा। "

गुफा का द्वार बहुत ही छोटा था। मगर भेड़िये अपनी जान बचाने के लिए इतना उतावला था कि किसी अन्दर घुस ही गया। जब भेड़िया काफी देर हो जाने पर भी बाहर न निकला तो गीदड़ ने कहा - "आप यही ठहरिये मैं उसे जाकर देखता हूँ। "

ऐसा कहकर वह भी भीतर चला गया। जब शेर को उनका इंतज़ार करते करते काफी देर हो गयी तो वह समझ गया कि उसे मुर्ख बनाया गया है। 

उसे बहुत गुस्सा आया। वह गुफा में घुसने की कोशिस करने लगा। लेकिन गुफा का द्वार छोटा होने के कारण वह भीतर न जा सका। थककर शेर वापस चला गया। 

तब गीदड़ और भेड़िया गुफा से बहार आये। तब भेड़िये ने कहा - मैं बहुत शर्मिंदा हूँ क्योंकि तुम कम पढ़े -लिखे होने पर भी ज्यादा बुद्धिमान हो। "भेड़िये ने गीदड़ की बहुत प्रशंसा की। "

कहानी से शिक्षा - 
  • मनुष्य का ज्यादा पढ़ा -लिखा होना आवश्यक नहीं है। 
  • मनुष्य को व्यावाहारिक और बुद्धिमान होना जरुरी है। 

COMMENTS

Leave a Reply: 1
  1. बेहद उम्दा....

    आपका मेरे ब्लॉग पर स्वागत है|

    https://hindikavitamanch.blogspot.com/2019/11/I-Love-You.html

    जवाब देंहटाएं
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