हिंदी बोलने में शर्म हिंदी बोलने में शर्म नहीं गर्व महसूस करें हिन्दी बोलने में शर्म हिंदी बोलने में शर्म क्यों आनी चाहिए हिंदी बोलने में शर्म राष्ट्र भाषा से आशय उस भाषा से है जो किसी भी देश में अधिक बोली ,समझी व लिखी जाती है।
हिंदी बोलने में शर्म
हिंदी बोलने में शर्म नहीं गर्व महसूस करें हिन्दी बोलने में शर्म हिंदी बोलने में शर्म क्यों आनी चाहिए हिंदी बोलने में शर्म - राष्ट्र भाषा से आशय उस भाषा से है जो किसी भी देश में अधिक बोली ,समझी व लिखी जाती है। विश्व के प्रत्येक देश में अनेक जातियों ,धर्मों व भाषाओँ के बोलने वाले लोग निवास करते हैं। हर देश की राष्ट्रीय एकता को मजबूत एवं विकसित करने के लिए एक ऐसी भाषा का प्रयोग किया जाता है ,जिसे राष्ट्र के नागरिक सरलता से समझ सकें। साधारण शब्दों में राष्ट्रभाषा को जनता की भाषा कहा जाता है। इस प्रकार कि भाषा ही राष्ट्र भाषा कहलाती है।
भारत की राष्ट्रभाषा हिंदी -
हमारे देश भारत की राष्ट्रभाषा हिंदी है। हिंदी भारत के लगभग सभी क्षेत्रों में बोली जाती है। यह बहुत सरल तथा सुबोध है।इस भाषा का प्रयोग भारत के बहुसंख्यक नागरिकों द्वारा किया जाता है।
प्राचीन काल में भारत की राष्ट्रभाषा संस्कृत थी ,लेकिन धीरे धीरे अन्य प्रांतीय भाषाओँ की उन्नति के कारण संस्कृत ने अपनी पूर्व स्थिति को खो दिया था। मुग़लकाल में उर्दू भाषा के विकास पर जोर दिया गया। अंग्रेजों के शासन काल में अंग्रेजी का विकास हुआ। अंग्रेजी हुकूमत समाप्त होने के बाद हिंदी को हमारी राष्ट्रभाषा के रूप में स्वीकार किया गया।
हिंदी का महत्व -
हिन्दी संसार कि सबसे सरल ,सुकोमल ,मधुर एवं वैज्ञानिक भाषा है ,फिर भी आधुनिक युग में हिंदी का विरोध जारी है ,क्योंकि आज लोगों में अंग्रेजी बोलने का ज्यादा प्रचलन है। अधिकांशत: व्यक्ति हिंदी छोड़कर अंग्रेजी सीखने का प्रयत्न करते हैं परन्तु वे ये नहीं जानते कि जो भाषा हमारे देश में अधिक बोली जाती है वो ही हमारे देश के लिए बहुत महत्व रखती है।
महात्मा गाँधी के विचार हिंदी के लिए -
भारत के राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने हिंदी भाषा की आत्मा को पहचानकर ही उसका समर्थन करते हुए कहा था - "मैं हमेशा यह मानता रहा हूँ कि हमें किसी भी दशा में दूसरी भाषाओँ को समाप्त करने का कोई अधिकार नहीं है। हमारा आशय तो यह है कि जब हमारे देश की राष्ट्रभाषा हिंदी है तो हमें हिंदी बोलने में शर्म नहीं करनी चाहिए। हमें अंग्रेजी व दूसरी भाषाओँ को छोड़कर केवल हिंदी भाषा का ही प्रयोग करना चाहिए।"
हिंदी का प्रयोग -
कुछ व्यक्ति हिंदी के मामले में हीन भावना के शिकार रहते हैं। उनका भ्रम है कि यदि उन्होंने हिंदी भाषा का प्रयोग किया तो उनका प्रभाव कम हो जाएगा। दक्षिण भारत के राज्य रुकावटें भी हिंदी का विरोध करती नज़र आती है। वास्तव में हिंदी को राजनीति के कारण पीछे धकेला जा रहा है। यदि सरकार व नेता मजबूती के साथ काम करें तो हमारे देश में हिंदी भाषा का विकास होगा और देश के प्रत्येक नागरिक साधारण बोलचाल ,लिखा -पढ़ी तथा अन्य स्थिति में हिंदी का प्रयोग करेंगे। इस सम्बन्ध में भारतेंदु हरीशचंद्र के इस विचार को सदा ध्यान रखना चाहिए ,जो उन्होंने हिंदी के विषय में लिखा है -
'निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल,
बिन निज भाषा ज्ञान के, मिटन न हिय के सूल'।
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