यह भी कोई कहानी है ?

SHARE:

मुझमें उसकी बात काटने की हिम्मत न थी। चुपचाप निहायत ही नज़ाकत के साथ रेखा को ज़मीन पर उतार दिया। वह दौड़ती हुई घर के भीतर भाग गई। मैं एकटक उसी ओर देखता रहा। मोहन ने मेरे मन की अवस्था समझकर बात का रुख़ बदलते हुए कहा.‘पिताजी कहा करते थे, जब मक्खन था तब दाँत नहीं थे, अब दाँत हैं तो मक्खन नहीं है।’

यह भी कोई कहानी है ?  


मोहन ने मुझे अपने घर पर मिलने और उसके पास रात रहने की सलाह दी, और मैं फौरन रज़ामंद हो गया। 
एक ज़माना था जब हम दोनों का उठना, बैठना, खाना-पीना, घूमना-फिरना और लिखना-पढ़ना साथ में ही होता था। वह न सिर्फ़ मेरी उम्र का था, पर मेरा पड़ोसी भी था, बचपन से लेकर मैट्रिक तक दोनों साथ रहे थे। मैट्रिक पास करने के पश्चात् मैं जाकर कराची में कॉलेजी दुनिया में दाख़िल हो गया। उसका बाप दाल-रोटी वाला ज़रूर था, पर कॉलेज के कमर तोड़ते ख़र्च भर सके ऐसी उसकी हैसियत न थी! 
मोहन कुछ वक़्त बेरोज़गार रहने के बाद पी. डब्ल्यू.डी. में मुलाज़िम बन गया। हम एक दूसरे से जुदा होकर, न मिलने वाली राहों पर आगे बढ़ते रहे। सालों बाद हम एक दूजे के साथ गले मिले तो सिन्ध में नहीं, बल्कि अहमदाबाद के गाँधी चौक में मिले। हमारे बिछड़ने के लम्बे अरसे में दुनिया न जाने कितनी करवटें बदल चुकी थी। वह डिपार्टमेंटल परीक्षा पास करके ‘रोड डिवीज़न’ का हेड क्लर्क बन गया और मैं...मैं साहित्य और सेवा के चक्कर में फँसकर न घर का रहा न घाट का। 
उसका घर मणी नगर में था, उसने बस में मेरे बगल में बैठते हुए पूछा.‘तुमने शादी की है?’ 
मैंने हँसते हुए कहा.‘मैं ज़िन्दगी में अभी तक ख्षुद को बसा हुआ नहीं समझता। किसी की कन्या को राहों में भटकाना मुझे पसंद नहीं!’ 
वह विस्मय में पड़ गया, कुछ और मुझसे पूछे उसके पहले मैंने अपना सवाल उसके सामने रखा.‘तुमने तो ज़रूर शादी की होगी?’ 
उसके चेहरे पर एक अजीब ख्षुशी का भाव उभर आया। उसने मुस्कराते हुए कहा.‘मेरी एक बेटी भी है रेखा, जो पाँच-छः सालों की हुई है।’ बात ख़त्म होने के पश्चात् भी वह मुस्कराता रहा। 
कहानी
मैं तुम्हें शादी पर आने का निमंत्रण ज़रूर देता, पर देशांतर गमन के दौरान यह होश बरक़रार रखना कि कौन कहाँ है, ज़रा कठिन था।’
मैंने हैरत भरे अंदाज़ में पूछा.‘मतलब?’ 
‘तुम्हें लिखने और तक़रीरें करने से फ़ुर्सत ही कहाँ रहती है?’ वह हँसा और मैंने मुस्कराने की कोशिश की। 
हम उसके घर के बरामदे में दाख़िल होने को थे, तो रेखा आकर अपने पिता से लिपटते हुए कहने लगी.‘दादा, तुम पाकिस्तान से गाएँ लाए क्या? 
मोहन ने मेरी तरफ़ मुड़ते हुए कहा.‘हमारे पड़ोसी ने कल एक गाय ली है। रेखा ने कहा.मुझे भी गाय चाहिए। मैंने उसे टालने के लिये कहा.हमारी गायें पाकिस्तान में हैं। कहने लगी.पाकिस्तान से गायें ले आओ।’ 
मुझे हँसी आ गई। 
रेखा ने फिर सवाल दोहराया ‘तुम पाकिस्तान से गायें ले आए क्या?’ 
बाप ने नीचे बैठकर बेटी की बाहें अपने गले के चारों ओर मोड़ते हुए कहा.‘कल ज़रूर लाऊँगा। आज तुम अपने चाचा से मिलो, नमस्ते करो बेटे!’ 
रेखा ने अपनी नाज़ुक बाहें मोहन के गले से आज़ाद कराते हुए अपने कोमल हाथ मेरी ओर जोड़ते हुए कहा.‘चाचा नमस्ते!’ 
मेरे हाथ ख्षुद-ब-ख्षुद उसकी ओर बढ़े, मैंने उसे गोद में उठा लिया और स्नेह से पूछा.‘तुम्हारा नाम क्या है?’ 
उसने कहा.‘रेखा...मम्मी मुझे रेखा रानी कह कर बुलाती है।’ 
मैंने बेअख़्तियार ही उसका दायाँ हाथ अपने गले के पीछे मोड़ते हुए, खींचकर उसे छाती से लगाया। 
मोहन ने हँसते हुए कहा.‘लेखक महोदय, शादी बंधन सही, पर उसकी अपनी नियामतें हैं।’
मुझमें उसकी बात काटने की हिम्मत न थी। चुपचाप निहायत ही नज़ाकत के साथ रेखा को ज़मीन पर उतार दिया। वह दौड़ती हुई घर के भीतर भाग गई। मैं एकटक उसी ओर देखता रहा। 
मोहन ने मेरे मन की अवस्था समझकर बात का रुख़ बदलते हुए कहा.‘पिताजी कहा करते थे, जब मक्खन था तब दाँत नहीं थे, अब दाँत हैं तो मक्खन नहीं है।’ 
मैं अभी भी उसी दरवाज़े को ताक रहा था। पर मोहन ने जब मुझे भीतर चलने को कहा, तब मैंने ख्षुश्क आवाज़ में जवाब देते हुए कहा.‘मैं यहीं बैठता हूँ’ ऐसा कहते हुए मैं बरामदे में पड़ी सन की रस्सी से बुनी खाट की ओर बढ़ा। मैं खाट तक पहुँचा, उससे पहले घूँघट ओढ़े एक नारी चादर हाथ में थामे हुए खाट के पास पहुँची। 
मोहन ने उससे चादर लेते हुए कहा.‘मुँह क्यों ढक लिया है? यह मेरा दोस्त है, भाई से बढ़कर।’ 
नारी ने कोई जवाब नहीं दिया और न ही घूँघट ऊपर उठाया। चुपचाप मोहन को चादर बिछाने में मदद करती रही। और फिर मेरी ओर मुख़ातिब रेखा से तकिया लेकर खाट के सिरहाने रखा और फिर भीतर चली गई। 
रेखा को देखते ही मैं यह जान गया था कि मोहन की पत्नी सुडौल और अच्छे नयन-नक़्श वाली होगी। नारी के हाथ और पाँवों को देखकर जाना कि वह गोरी भी थी। 
मैं खाट पर बैठा और मोहन कपड़े बदलने अंदर चला गया। रेखा धीरे-धीरे, रुक-रुक कर मेरी ओर बढ़ी। मेरे पास पहुँचकर पूछा.‘मैं अपनी गुड़िया दिखाऊँ!’ 
मैंने झट से कहा.‘हाँ, हाँ ले आओ।’ 
रेखा जब वापस आई तो उसके हाथों में गुड़िया नहीं, मिठाई की प्लेट थी। घूँघट ओढ़े पीछे से उसकी माँ तिपाई ले आई। मोहन ने टावल मेरी ओर बढ़ाया। मैं हाथ-मुँह धोकर फिर खाट पर बैठा तो रेखा हाथ में गुड़िया ले, इठलाती बलखाती मेरे पास आई। मैंने उससे गुड़िया लेते हुए कहा.‘बहुत सुन्दर है।’ 
रेखा ने पूछा.‘मुझसे भी सुन्दर है?’ मैं एक पल के लिये तो लाजवाब हो गया। 
मैंने मिठाई का एक टुकड़ा उसकी ओर बढ़ाते हुए कहा.‘तुम उससे बहुत अच्छी हो।’ 
रेखा मिठाई न लेकर पीछे की ओर खिसकती रही। 
‘ले लो बेटे, यह तुम्हारा चाचा है ना?’ मोहन ने उससे कहा। 
रेखा ने मिठाई ली, गुड़िया मेरे पास ही छोड़कर घर के भीतर चली गई। 
जब वह बाहर आई तब दूर से ही पूछती आई.‘तुम मुझे कहानी सुनाओगे?’ 
मैंने उसका हाथ थामकर उसे अपनी तरफ़ खींचते हुए कहा.‘मुझे कहानी आती ही नहीं।’ 
‘मम्मी कहती है तुम्हें बहुत कहानियाँ आती हैं।’ 
‘तुम्हारी मम्मी को कैसे मालूम हुआ?’ मैंने आश्चर्य से पूछा। 
जवाब मोहन ने दिया.‘मेरी श्रीमती किताब पढ़ने का शौक रखती है। मैंने तेरी इतनी कहानियाँ नहीं पढ़ी होंगी, जितनी उसने पढ़ी हैं।’ 
मैंने हँसकर कहा.‘फिर भी मुझसे पर्दा करती है।’ 
‘कहती है, अगली बार ज़रूर घूँघट हटाएगी और आप से कहानियों के बारे में कुछ सवाल भी पूछेगी।’ मोहन ने उत्तर दिया। 
मेरी ज़बान से बेअख़्तियार निकल गया.‘आज क्यों नहीं पूछती?’ 
रेखा ने मेरा हाथ पकड़ते हुए कहा.‘कहानी सुनाओगे!’ 
‘ज़रूर!’ 
‘तो फिर सुनाओ।’ 
‘सोते वक़्त सुनाऊँगा।’ 
‘सोते वक़्त तो मम्मी मुझे कहानी सुनाती है, तुम अभी सुनाओ।’ 
‘आज तुम मम्मी की बजाय मुझसे कहानी सुनना।’ 
‘फिर मैं तुम्हारे साथ सो जाऊँ?’ 
मैं अब बगलें झाँकने लगा, पर मोहन मददगार बना.‘यह रोज़ माँ से कहानी सुनती है और फिर माँ के पास ही ढेर बनकर पड़ी रहती है।’ 
मैंने हँसते हुए रेखा के बालों पर हाथ फेरते हुए कहा.‘तुम मेरे साथ सो जाना।’ 
रह-रहकर रेखा मुझे कहानी सुनाने का वादा याद कराती रही। रेखा की माँ खाना खाते वक़्त मेरे सामने आई पर पहले से भी लम्बा घूँघट निकालकर। मुझे एक तरफ़ उसका घूँघट खटक रहा था कि उसमें छुपी एक सुन्दर नारी ...नहीं...एक श्रद्धालु पाठक से रू-ब-रू होने की आतुरता भी दूसरी तरफ़ बढ़ रही थी। पर ज़बान इतनी हिम्मत नहीं जुटा पा रही थी कि मैं उससे कुछ बतिया सकूँ! 
खाना खाने के पश्चात् मोहन ने कहा.‘खाना खाने के बाद, पान खाने की आदत तो ज़रूर अपनाई होगी?’ 
‘अभी नहीं!’ मैंने मुख़्तसर जवाब दिया। 
‘हमें तो आदत है, पान न खाएँ तो खाना हज़म नहीं होता।’ 
यूँ कहकर वह बरामदे से नीचे उतरने लगा। 
‘कहाँ जा रहे हो?’ मैंने पूछा। 
उसने उत्तर दिया, ‘चलो! तो पान भी खाएँ और दो चार क़दम भी चल आएँ।’ 
रेखा ने दौड़कर पिता की उँगली थामी और कहा.‘दादा मैं भी चलूँगी!’ 
मैंने बरामदे वाली खाट की ओर बढ़ते हुए कहा.‘तुम जाओ, मैं बैठा हूँ। रात के खाने के बाद मुझे घूमने की आदत नहीं।’ 
रेखा ने पिता को खींचते हुए कहा.‘तुम्हारे लिये पान लाऊँ?’ 
‘ज़रूर’! मैंने खाट पर बैठते हुए कहा। 
उनके जाने के बाद मेरा दिल उस श्रद्धालु पाठक का चेहरा देखने और दो शब्द बतियाने के लिए आतुर हो उठा। मैं खाट से उठकर, घर के भीतरी हिस्से की ओर बढ़ा, अचानक....पीछे से आवाज़ आई.‘मीठा पान खाओगे या सादा?’ 
मैंने चौंककर पीछे देखा, रेखा आधे रास्ते से दौड़ती, हाँफती आई थी। मैंने हड़बड़ाहट में कहा.‘मीठा... मीठा पान लाना।’ 
रेखा जैसे आई थी वैसे दौड़ती हुई चली गई। अब घर में भीतर जाने की मेरी हिम्मत जवाब दे गई। 
मैं बरामदे के पास ईंटों के बने चबूतरे पर टहलता रहा। 
रेखा की माँ एक बार फिर मेरे सामने आई, हाथ में दूध का गिलास लिये हुए। उसका घूँघट क़ायदे से क़ायम रहा। 
मैंने उसके हाथ से दूध का गिलास न लेते हुए कहा.‘मैं दूध नहीं पीता।’ 
वह मुड़कर लौटने को हुई। मैंने हँसते हुए कहा.‘भाभी, आपको मेरी कौन-सी कहानी पसंद है?’ 
‘भाभी’ लफ़्ज पर वह रुकी, पर और कुछ न सुनकर जवाब देने की बजाय वह जल्दी-जल्दी भीतर चली गई। 
सोते वक़्त रेखा मेरे बिस्तर पर आ बैठी। मैं हाथ के सिरहाने एक बाजू लेटा था। 
मेरी कमर पर चढ़ने की कोशिश करते हुए कहने लगी.‘चाचा, कहानी सुनाओ।’ 
‘फिर तुम मेरे साथ सो जाओगी?’ 
‘हाँ, मैं मम्मी से पूछकर आई हूँ!’ 
मैं सीधा होकर सो गया और वह कोहनियाँ मेरी छाती पर रखकर अपना चेहरा अपनी ही हथेलियों पर टिकाकर मेरा चेहरा तकने लगी। 
मैंने शुरू किया, ‘एक था राजा...’ 
‘फिर?’ 
‘खाता था काजू...’ 
उसने बात आधे में ही काटते कहा.‘ऊँहूँ, ये कहानी मैंने कई बार सुनी है।’ 
मैंने थोड़ा सोच-विचार करके कहा.‘एक था राजा, उसकी औलाद ही नहीं थी..!’ 
‘यह कहानी मम्मी ने मुझे सुनाई है!’ 
मैं फिर सोच में पड़ गया, उसने मुझे झंझोड़ते हुए कहा.‘चाचा कहानी सुनाओ ना।’ 
मैंने गला साफ़ करते हुए कहा.‘एक था राजा, उसकी सात बेटियाँ थीं।’ 
वह खफ़ा होते हुए बोली, ‘यह कहानी भी सुनी हुई है।’ 
मैंने हार मानते हुए कहा.‘मुझे और कोई कहानी नहीं आती।’ 
मम्मी तो कहती है.‘तुम कहानियाँ बनाते हो...।’ 
‘मुझे राजाओं की कहानियाँ नहीं आती हैं।’ 
अचानक उसने कहा.‘मैं कहानी सुनाऊँ?’ 
‘सुनाओ’ 
‘यह कहानी मम्मी ने आज मुझे सुनाई है।’ 
‘सुनाओ तो सही!’ 
‘पाकिस्तान के एक गाँव में एक लड़की रहती थी। चाचा, पाकिस्तान बहुत दूर है न?’ 
‘हाँ, तुम कहानी सुनाओ।’ 
‘वहाँ एक लड़का आया, उस गाँव में उसके नाना-नानी का घर था।’ 
थोड़ी देर रुककर उसने फिर कहा.‘वो दोनों साथ खेलते थे। अधड़न-दादड़न खेल खेला करते थे। अधड़न-दादड़न खेल क्या होता है चाचा?’ 
‘तुमने अपनी मम्मी से नहीं पूछा?’ 
‘उसने कहा अपने चाचा से पूछना!’ 
‘जैसे तुम गुड्डे-गुड़ियों के साथ खेला करती हो, वैसे ही पहले गाँवों में लड़के-लड़कियाँ गुड्डा-गुड्डी बना करते थे।’ 
‘लड़के-लड़कियाँ गुड्डा-गुड्डी बना करते थे? फिर क्या होता था?’ 
‘तुम अपनी कहानी सुनाओ...’ 
उसने कुछ पल रुककर कहा.‘लड़का लड़की का दूल्हा बना। लड़के ने लड़की से कहा मैं बड़ा होकर तुमसे शादी करूँगा। शादी क्या होती है चाचा?’ 
‘अपनी मम्मी से पूछकर आओ।’ 
‘मम्मी नहीं बताती है।’ 
‘तुम पहले अपनी कहानी सुनाओ, फिर बताऊँगा।’ 
‘लड़का जब वहाँ जाता था तब लड़की को ऐसे कहता था।’ 
मेरे मुँह से बे-अख़्तियार निकल गया.‘फिर क्या हुआ? 
‘वह कॉलेज में गया, कॉलेज क्या होता है?’ 
मैंने उतावलेपन में कहा.‘तुम कहानी सुनाओ।’ 
‘लड़के ने लड़की को भुला दिया।’ 
‘फिर?’ 
‘लड़की आस लगाए बैठी रही, आस क्या होती है चाचा?’ 
मेरे चेहरे पर पसीना तर आया। मैंने पसीना पोंछते हुए कहा.‘फिर आख़िर क्या हुआ?’
उसने लफ़्जों के उच्चारण पर ज़ोर देते हुए कहा.‘लड़का फिर नहीं लौटा, और लड़की के माँ-बाप ने उसकी शादी दूसरी जगह कर दी।’ 
मैं ठगा-सा रह गया, मेरी ज़ुबान को ताले लग गए। उसने शरारती अंदाज़ में कहा.‘कहानी ख़तम हुई, अब एक आना दो’ (आना रुपये का दसवां हिस्सा होता है) 
मैंने हँसने की कोशिश करते हुए कहा.‘ये भी कोई कहानी है?’ 
‘मैंने भी मम्मी को यही कहा, मम्मी ने पहली बार ऐसी कहानी सुनाई है जिसमें लड़के-लड़की की शादी नहीं हुई। मैंने मम्मी से पूछा.‘लड़के का क्या हुआ?’ 
‘क्या कहा?’ मैंने घुटन भरे आवाज़ में पूछा। 
‘कहा, पहले लड़का बहुत दूध पीता था, अब बिलकुल नहीं पीता।’ 
मैं बेअख़्तियार उठ बैठा, मेरी हालत उस आदमी की तरह थी जिसे सांप ने डसा हो और ज़हर उसकी रग-रग में फैलकर उसके सभी अंगों को पीड़ा दे रहा हो। 
उसी वक़्त मोहन बाहर निकला। मुझे परेशान देखकर कहा.‘रेखा ने तुझे काफ़ी परेशान किया है।’ 
मैंने रूमाल से चेहरा पोंछते हुए पूछा.‘गांधी चौक की तरफ़ बस चलती होगी?’ 
उसने घड़ी देखते हुए कहा.‘साढ़े दस बज गए हैं, बंद हो गई होगी, पर क्यों?’ 
मैंने खाट छोड़ी और उठकर खड़ा हो गया, कहा.‘टैक्सी मिलेगी? मुझे किसी से ज़रूरी मिलना है!’ 
मोहन ने गंभीर स्वर में कहा.‘तुम यहाँ रात रहने का वादा करके आए हो।’ 
‘सुबह वह बड़ोदा चला जाएगा।’ मैंने खड़े-खड़े कहा। 
रेखा ने रोती-सी आवाज़ में कहा.‘चाचा, तुम जा रहे हो? मेरे साथ नहीं सो पाओगे?’ 
मोहन ने कहा.‘लेखक होना भी मुसीबत है।’ 
मैंने रेखा से कहा.‘तुम मेरे साथ चलोगी?’ 
उसने बेधड़क होकर कहा.‘मम्मी चलेगी तो मैं भी चलूँगी।’
मेरा मन ख़राब हो गया, मोहन ने कहा.‘मैं कपड़े बदलकर आता हूँ। स्टेशन रोड से शायद कोई टैक्सी मिल जाए।’ कहते हुए वह भीतर चला गया। 
मैंने रेखा को गोद में लेते हुए कहा.‘मम्मी से कहना कि लड़की लड़के से शादी करके दुखी होती, अब वह बहुत सुखी है।’ 
बरामदे के दरवाज़े की ओट में से ज़नानी आवाज़ आई, गोया वह ख्षुद से बात करते हुए कह रही थी.‘स्त्री के सुख को नापने का अंदाज़ मर्दों का न्यारा है!’ 
मेरे पास कोई जवाब नहीं था। मोहन कपड़े बदल कर आया और साथ में मेरी वेस्टकोट भी लेता आया। मैं उसे पहनते हुए बरामदे से नीचे उतरा। 
मोहन ने हँसते हुए कहा.‘सुबह को उससे मिल न सकोगे।’ 
‘नहीं।’ कहते हुए मैं आगे बढ़ा, मेरे पीछे आते-आते मोहन कहता रहा.‘छुटपन वाली ज़िद की आदत आज भी तुम में मौजूद है।’ 
पीछे से रेखा की आवाज आई.‘चाचा, टाटा!! फिर कब आओगे?’ 
मैंने बिना मुड़े हाथ के इशारे से उसे अलविदा कर दी!

-लेखक: गोविंद माल्ही
अनुवाद: देवी नागरानी   


0
 गोविन्द माल्ही (१९२१-२००१)
ठारूशाह, सिंध (पाकिस्तान), तरक़ी पसंद दौर के एक विख्यात कथाकार, उपन्यास - २४, कहानी सं. - ४, एकांकी सं. - ३, अन्य ६ पुस्तकें । आत्मकथा, सफ़रनामा, लेख इत्यादि प्रकाशित । ‘उपन्यास-सम्राट’ के तौर पर ख्याति प्राप्त । विभाजन (१९४७) के पहले ही सिंध में लेखन कार्य । प्रगतिशील धारा के पक्के हिमायती । सिंधी गायन और संगीत को लोकप्रिय बनाने में बेजोड़ योगदान। ‘मुर्क’ पत्रिका के संपादक, ‘प्यार जी प्यास’ उपन्यास पर १९७६ साहित्य अकादमी एवं महाराष्ट्र सरकार द्वारा गौरव पुरस्कार से सम्मानित ।
0
 देवी नागरानी जन्म: 1941 कराची, सिंध (पाकिस्तान), 8 ग़ज़ल-व काव्य-संग्रह, (एक अंग्रेज़ी) 2 भजन-संग्रह, 8 सिंधी से हिंदी अनुदित कहानी-संग्रह प्रकाशित। सिंधी, हिन्दी, तथा अंग्रेज़ी में समान अधिकार लेखन, हिन्दी- सिंधी में परस्पर अनुवाद। श्री मोदी के काव्य संग्रह, चौथी कूट (साहित्य अकादमी प्रकाशन), अत्तिया दाऊद, व् रूमी का सिंधी अनुवाद. NJ, NY, OSLO, तमिलनाडू, कर्नाटक-धारवाड़, रायपुर, जोधपुर, महाराष्ट्र अकादमी, केरल व अन्य संस्थाओं से सम्मानित। साहित्य अकादमी / राष्ट्रीय सिंधी विकास परिषद से पुरुसकृत।
संपर्क 9-डी, कार्नर व्यू सोसाइटी, 15/33 रोड, बांद्रा, मुम्बई 400050॰ dnangrani@gmail.com  

COMMENTS

Leave a Reply: 1
  1. प्रिय आशुतोष जी,
    किसी के अधूरे प्यार को शब्दों में कोई कैसे पिरोये अगर ये सीखना है तो यह गोविन्द माल्ही जी से सीखना चाहिए । इस कहानी का अनुवाद कार्य भी देवी नागरानी द्वारा बेहतरीन ढंग से किया गया है। सच तो ये है कि कहानी पढ़ने में मजा आ गया। आपको भी उतना ही श्रेय जाता है क्योंकि आपने पाठको के सामने इस कहानी को प्रस्तुत किया । हिंदी कुञ्ज का भाविष्य उज्ज्वल है।
    राजेन्द्र कुमार शास्त्री' गुरु'

    जवाब देंहटाएं
आपकी मूल्यवान टिप्पणियाँ हमें उत्साह और सबल प्रदान करती हैं, आपके विचारों और मार्गदर्शन का सदैव स्वागत है !
टिप्पणी के सामान्य नियम -
१. अपनी टिप्पणी में सभ्य भाषा का प्रयोग करें .
२. किसी की भावनाओं को आहत करने वाली टिप्पणी न करें .
३. अपनी वास्तविक राय प्रकट करें .

नाम

अंग्रेज़ी हिन्दी शब्दकोश,3,अकबर इलाहाबादी,11,अकबर बीरबल के किस्से,62,अज्ञेय,36,अटल बिहारी वाजपेयी,1,अदम गोंडवी,3,अनंतमूर्ति,3,अनौपचारिक पत्र,16,अन्तोन चेख़व,2,अमीर खुसरो,7,अमृत राय,1,अमृतलाल नागर,1,अमृता प्रीतम,5,अयोध्यासिंह उपाध्याय "हरिऔध",7,अली सरदार जाफ़री,3,अष्टछाप,3,असगर वज़ाहत,11,आनंदमठ,4,आरती,11,आर्थिक लेख,8,आषाढ़ का एक दिन,22,इक़बाल,2,इब्ने इंशा,27,इस्मत चुगताई,3,उपेन्द्रनाथ अश्क,1,उर्दू साहित्‍य,179,उर्दू हिंदी शब्दकोश,1,उषा प्रियंवदा,2,एकांकी संचय,7,औपचारिक पत्र,32,कक्षा 10 हिन्दी स्पर्श भाग 2,17,कबीर के दोहे,19,कबीर के पद,1,कबीरदास,19,कमलेश्वर,6,कविता,1466,कहानी लेखन हिंदी,17,कहानी सुनो,2,काका हाथरसी,4,कामायनी,6,काव्य मंजरी,11,काव्यशास्त्र,31,काशीनाथ सिंह,1,कुंज वीथि,12,कुँवर नारायण,1,कुबेरनाथ राय,2,कुर्रतुल-ऐन-हैदर,1,कृष्णा सोबती,2,केदारनाथ अग्रवाल,4,केशवदास,6,कैफ़ी आज़मी,4,क्षेत्रपाल शर्मा,52,खलील जिब्रान,3,ग़ज़ल,139,गजानन माधव "मुक्तिबोध",15,गीतांजलि,1,गोदान,7,गोपाल सिंह नेपाली,1,गोपालदास नीरज,10,गोरख पाण्डेय,3,गोरा,2,घनानंद,3,चन्द्रधर शर्मा गुलेरी,2,चमरासुर उपन्यास,7,चाणक्य नीति,5,चित्र शृंखला,1,चुटकुले जोक्स,15,छायावाद,6,जगदीश्वर चतुर्वेदी,17,जयशंकर प्रसाद,34,जातक कथाएँ,10,जीवन परिचय,75,ज़ेन कहानियाँ,2,जैनेन्द्र कुमार,5,जोश मलीहाबादी,2,ज़ौक़,4,तुलसीदास,28,तेलानीराम के किस्से,7,त्रिलोचन,4,दाग़ देहलवी,5,दादी माँ की कहानियाँ,1,दुष्यंत कुमार,7,देव,1,देवी नागरानी,23,धर्मवीर भारती,6,नज़ीर अकबराबादी,3,नव कहानी,2,नवगीत,1,नागार्जुन,25,नाटक,1,निराला,39,निर्मल वर्मा,2,निर्मला,42,नेत्रा देशपाण्डेय,3,पंचतंत्र की कहानियां,42,पत्र लेखन,198,परशुराम की प्रतीक्षा,3,पांडेय बेचन शर्मा 'उग्र',4,पाण्डेय बेचन शर्मा,1,पुस्तक समीक्षा,138,प्रयोजनमूलक हिंदी,37,प्रेमचंद,41,प्रेमचंद की कहानियाँ,91,प्रेरक कहानी,16,फणीश्वर नाथ रेणु,4,फ़िराक़ गोरखपुरी,9,फ़ैज़ अहमद फ़ैज़,24,बच्चों की कहानियां,87,बदीउज़्ज़माँ,1,बहादुर शाह ज़फ़र,6,बाल कहानियाँ,14,बाल दिवस,3,बालकृष्ण शर्मा 'नवीन',1,बिहारी,8,बैताल पचीसी,2,बोधिसत्व,7,भक्ति साहित्य,143,भगवतीचरण वर्मा,7,भवानीप्रसाद मिश्र,3,भारतीय कहानियाँ,61,भारतीय व्यंग्य चित्रकार,7,भारतीय शिक्षा का इतिहास,3,भारतेन्दु हरिश्चन्द्र,10,भाषा विज्ञान,15,भीष्म साहनी,7,भैरव प्रसाद गुप्त,2,मंगल ज्ञानानुभाव,22,मजरूह सुल्तानपुरी,1,मधुशाला,7,मनोज सिंह,16,मन्नू भंडारी,5,मलिक मुहम्मद जायसी,9,महादेवी वर्मा,20,महावीरप्रसाद द्विवेदी,2,महीप सिंह,1,महेंद्र भटनागर,73,माखनलाल चतुर्वेदी,3,मिर्ज़ा गालिब,39,मीर तक़ी 'मीर',20,मीरा बाई के पद,22,मुल्ला नसरुद्दीन,6,मुहावरे,4,मैथिलीशरण गुप्त,14,मैला आँचल,7,मोहन राकेश,13,यशपाल,14,रंगराज अयंगर,43,रघुवीर सहाय,6,रणजीत कुमार,29,रवीन्द्रनाथ ठाकुर,22,रसखान,11,रांगेय राघव,2,राजकमल चौधरी,1,राजनीतिक लेख,21,राजभाषा हिंदी,66,राजिन्दर सिंह बेदी,1,राजीव कुमार थेपड़ा,4,रामचंद्र शुक्ल,3,रामधारी सिंह दिनकर,25,रामप्रसाद 'बिस्मिल',1,रामविलास शर्मा,9,राही मासूम रजा,8,राहुल सांकृत्यायन,2,रीतिकाल,3,रैदास,4,लघु कथा,124,लोकगीत,1,वरदान,11,विचार मंथन,60,विज्ञान,1,विदेशी कहानियाँ,34,विद्यापति,7,विविध जानकारी,1,विष्णु प्रभाकर,1,वृंदावनलाल वर्मा,1,वैज्ञानिक लेख,7,शमशेर बहादुर सिंह,6,शमोएल अहमद,5,शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय,1,शरद जोशी,3,शिक्षाशास्त्र,6,शिवमंगल सिंह सुमन,6,शुभकामना,1,शेख चिल्ली की कहानी,1,शैक्षणिक लेख,56,शैलेश मटियानी,2,श्यामसुन्दर दास,1,श्रीकांत वर्मा,1,श्रीलाल शुक्ल,1,संयुक्त राष्ट्र संघ,1,संस्मरण,32,सआदत हसन मंटो,10,सतरंगी बातें,33,सन्देश,42,समसामयिक हिंदी लेख,258,समीक्षा,1,सर्वेश्वरदयाल सक्सेना,19,सारा आकाश,19,साहित्य सागर,22,साहित्यिक लेख,82,साहिर लुधियानवी,5,सिंह और सियार,1,सुदर्शन,3,सुदामा पाण्डेय "धूमिल",10,सुभद्राकुमारी चौहान,7,सुमित्रानंदन पन्त,23,सूरदास,16,सूरदास के पद,21,स्त्री विमर्श,11,हजारी प्रसाद द्विवेदी,4,हरिवंशराय बच्चन,28,हरिशंकर परसाई,24,हिंदी कथाकार,12,हिंदी निबंध,415,हिंदी लेख,526,हिंदी व्यंग्य लेख,13,हिंदी समाचार,179,हिंदीकुंज सहयोग,1,हिन्दी,7,हिन्दी टूल,4,हिन्दी आलोचक,7,हिन्दी कहानी,32,हिन्दी गद्यकार,4,हिन्दी दिवस,91,हिन्दी वर्णमाला,3,हिन्दी व्याकरण,45,हिन्दी संख्याएँ,1,हिन्दी साहित्य,9,हिन्दी साहित्य का इतिहास,21,हिन्दीकुंज विडियो,11,aaroh bhag 2,14,astrology,1,Attaullah Khan,2,baccho ke liye hindi kavita,70,Beauty Tips Hindi,3,bhasha-vigyan,1,chitra-varnan-hindi,3,Class 10 Hindi Kritika कृतिका Bhag 2,5,Class 11 Hindi Antral NCERT Solution,3,Class 9 Hindi Kshitij क्षितिज भाग 1,17,Class 9 Hindi Sparsh,15,English Grammar in Hindi,3,formal-letter-in-hindi-format,143,Godan by Premchand,10,hindi ebooks,5,Hindi Ekanki,19,hindi essay,407,hindi grammar,52,Hindi Sahitya Ka Itihas,105,hindi stories,674,hindi-bal-ram-katha,12,hindi-gadya-sahitya,8,hindi-kavita-ki-vyakhya,19,hindi-notes-university-exams,43,ICSE Hindi Gadya Sankalan,11,icse-bhasha-sanchay-8-solutions,18,informal-letter-in-hindi-format,59,jyotish-astrology,21,kavyagat-visheshta,25,Kshitij Bhag 2,10,lok-sabha-in-hindi,18,love-letter-hindi,3,mb,72,motivational books,10,naya raasta icse,9,NCERT Class 10 Hindi Sanchayan संचयन Bhag 2,3,NCERT Class 11 Hindi Aroh आरोह भाग-1,20,ncert class 6 hindi vasant bhag 1,14,NCERT Class 9 Hindi Kritika कृतिका Bhag 1,5,NCERT Hindi Rimjhim Class 2,13,NCERT Rimjhim Class 4,14,ncert rimjhim class 5,19,NCERT Solutions Class 7 Hindi Durva,12,NCERT Solutions Class 8 Hindi Durva,17,NCERT Solutions for Class 11 Hindi Vitan वितान भाग 1,3,NCERT Solutions for class 12 Humanities Hindi Antral Bhag 2,4,NCERT Solutions Hindi Class 11 Antra Bhag 1,19,NCERT Vasant Bhag 3 For Class 8,12,NCERT/CBSE Class 9 Hindi book Sanchayan,6,Nootan Gunjan Hindi Pathmala Class 8,18,Notifications,5,nutan-gunjan-hindi-pathmala-6-solutions,17,nutan-gunjan-hindi-pathmala-7-solutions,18,political-science-notes-hindi,1,question paper,19,quizzes,8,Rimjhim Class 3,14,samvad-lekhan-in-hindi,6,Sankshipt Budhcharit,5,Shayari In Hindi,16,skandagupta-natak-jaishankar-prasad,5,sponsored news,10,Syllabus,7,top-classic-hindi-stories,44,UP Board Class 10 Hindi,4,Vasant Bhag - 2 Textbook In Hindi For Class - 7,11,vitaan-hindi-pathmala-8-solutions,16,VITAN BHAG-2,5,vocabulary,19,
ltr
item
हिन्दीकुंज,Hindi Website/Literary Web Patrika: यह भी कोई कहानी है ?
यह भी कोई कहानी है ?
मुझमें उसकी बात काटने की हिम्मत न थी। चुपचाप निहायत ही नज़ाकत के साथ रेखा को ज़मीन पर उतार दिया। वह दौड़ती हुई घर के भीतर भाग गई। मैं एकटक उसी ओर देखता रहा। मोहन ने मेरे मन की अवस्था समझकर बात का रुख़ बदलते हुए कहा.‘पिताजी कहा करते थे, जब मक्खन था तब दाँत नहीं थे, अब दाँत हैं तो मक्खन नहीं है।’
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhRQh95CU8K25bRMKvUbXjMBcBuU236C0823oWL-Vi8VyEtjjjZZssNjoZVEMEveNVyT1tiU-I-4RHaZfqXgn3Zi01wUoIqxgw44X3SBk_F4gJ7j_6NUB2zWYjmjwfaN41jTl4BBl9xdPIB/s1600/images.jpg
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhRQh95CU8K25bRMKvUbXjMBcBuU236C0823oWL-Vi8VyEtjjjZZssNjoZVEMEveNVyT1tiU-I-4RHaZfqXgn3Zi01wUoIqxgw44X3SBk_F4gJ7j_6NUB2zWYjmjwfaN41jTl4BBl9xdPIB/s72-c/images.jpg
हिन्दीकुंज,Hindi Website/Literary Web Patrika
https://www.hindikunj.com/2019/02/yah-bhi-koi-kahani.html
https://www.hindikunj.com/
https://www.hindikunj.com/
https://www.hindikunj.com/2019/02/yah-bhi-koi-kahani.html
true
6755820785026826471
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy बिषय - तालिका