विवाह की परिभाषा

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विवाह की परिभाषा विवाह के ऐसे प्रकार जैसे समाज में हर दूसरे दिन देखने को मिल जाते हैं ।कहीं विवाह से सपनों की दुनिया हकीकत में बदल जाती है तो कहीं जिन्दगी नर्क से भी बदतर हो जाती है। कुल मिलाकर भिन्न-भिन्न समाजों में विवाह के प्रकार भी भिन्न-भिन्न होते हैं ।

विवाह की परिभाषा


स्नातक में एक प्रश्न आया था।" विवाह की संक्षिप्त परिभाषा दीजिये ?अब विवाह जैसी  अत्यन्त प्राचीन,विस्तृत और सार्वभौमिक संस्था की संक्षिप्त और सटीक परिभाषा भला कैसे दी जाये ।कुछ पल के लिए मैं जरा ठिठक गई।इस प्रश्न का उत्तर तब मैने भले ही समाजशास्त्र के अनुसार दे दिया था पर समाज के अनुसार  ये प्रश्न आज भी मेरे लिए प्रश्न ही है !

क्या होता है विवाह ?? क्या वो जो समाजशास्त्र में पढ़ा या वो जो समाज में देखा ...??कैसे परिभाषित कर दूँ विवाह को चन्द शब्दों में .....! मैंने समाज में विवाह  के कई मोहक और वीभत्स रुप देखे हैं । मैंने समाजशास्त्र में नही पढ़े कभी विवाह के ऐसे प्रकार जैसे समाज में हर  दूसरे दिन देखने को मिल जाते हैं ।कहीं विवाह से  सपनों की दुनिया हकीकत में  बदल जाती है तो कहीं  जिन्दगी नर्क से भी बदतर हो जाती है। कुल मिलाकर भिन्न-भिन्न समाजों में विवाह के प्रकार भी भिन्न-भिन्न होते हैं ।

अब समाजशास्त्र में भले ही विवाह की निश्चित परिभाषा हो पर ये समाज हर परिभाषा की  भाषा ही बिगाड़ कर
विवाह
विवाह
रख देता है ।समाज में तो भिन्न -भिन्न स्थान और परिस्थिति के हिसाब से विवाह की परिभाषा भी बदल जाती है ।संस्कृतियों में भिन्नता होने के कारण समाज में विवाह के स्वरुप में विविधता पाया जाना स्वाभाविक है। विवाह प्रत्येक मानव समाज जिससे कि हम परिचित हैं की एक जटिल संस्कृतिक घटना है । यदि विवाह जैसी कोई संस्था समाज में न होती तो सम्भवतः परिवार का निर्माण ही न होता और न ही समाज का कोई विकास होता ।विश्व के सभी समाज चाहे वो सभ्य हो या असभ्य उन्हें परिवार की जरुरत होती है .परिवार व् समाज की निरंतरता बनाए रखने तथा संस्कृतियों का पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरण करने के लिये विवाह अनिवार्य धार्मिक संस्कार है ।।इस प्रकार समाज का निर्माण करने में विवाह के महत्त्व की उपेक्षा नही की सकती लेकिन विवाह की परिभाषा किताबों ,ग्रंथो,धर्मशास्त्रो,समाजशास्त्र  और समाज में अलग -अलग है।समाज में तो भिन्न-भिन्न स्थान और परिस्तिथि के अनुसार  विवाह की परिभाषा भी बदल जाती है।

कुछ संस्कृतियो में इसका  स्वरुप धार्मिक है तो कुछ में व्यापारिक .....""ग्रंथ कहते है विवाह दो आत्माओं का मिलन है जिससे समाज में एक नयी पीढ़ी की उत्पत्ति होती है दो परिवारों के मध्य प्रेम व सहयोग पनपता है जबकि सच इसके उलट है यहाँ विवाह दो समान हैसियत वाले परिवारों का मिलन है जो कि वर व वधू के गुणों व व्यक्तित्व से अधिक वर व वधु पक्ष की आर्थिक,सामाजिक संपन्नता को ध्यान में रखकर ही तय किया जाता है। कभी दहेज -> द+हेज(स्नेह) लड़की के परिवार द्वारा लड़की के लिए स्नेहवश दिया जाने वाला उपहार था विवाह की अनिवार्य शर्त नही ।ये समाज भी न कब साधन को साध्य बना लेता है पता भी नही चलता ।।

कुछ समाजों में विवाह का पर्याय औरत को खूंटे से बाँधना भर है कुछ परिवारों में तो मात्र औरत का खूँटा बदलना--!बचपन से किसी एक घर के कायदे कानूनों में बंधी हुई को बड़े होने पर खोलकर किसी दूसरे घर के कायदे-क़ानूनों में बांध देते हैं।। दोनों ही घरों में उसका कोई पृथक अस्तित्व नही होता।। मैंने कुछ ऐसे विवाह भी देखे हैं जहां श्रृंगार और मन के बीच कोई सम्बन्ध ही नही दिखता । मैने कई ऐसी दुल्हन भी देखी हैं जिनके लाल-हरी चूड़ियों से भरे हाथ, सिन्दूर भरी मांग , कजरारी आंखे और चेहरे की मुस्कान के बीच कोई तालमेल ही नही दिखता ! बस दिखता है तो उल्लासहीन चेहरे पर कुछ तलाशती सी आँखों में बिखरा नितान्त सूनापन....!कैसा है ये विवाह जहां श्रृंगार और मन के बीच कोई सम्बन्ध ही न दिखता हो ।कहते हैं मन तो आजाद होता है उसे बांधा नही जा सकता फिर भी ये समाज सदियों से बांधता आ रहा है औरत के मन को,,तन को, , कभी नाक का हवाला देकर तो कभी उसकी मजबूरी का फायदा उठाकर.. ! 

कभी -कभी औरत को जरा सा मुखर होने की सजा एक बेमेल विवाह के रुप में भी भुगतनी होती है तो कभी कुछ लोग समाज का हवाला देकर अपनी बेटियों के भविष्य को दाँव पर लगाकर कर्त्तव्य मुक्त हो जाते  हैं----!जिस समाज का हवाला देकर आप अपनी बेटियों के सपनों की नीलामी कर उन्हें बेमेल विवाह की सजा देते है  वही समाज मूकदर्शक बन जाता है जब वो बेमेल परिवार आपकी बेटी को प्रताड़ित करता है या कोई बेमेल पति जब पत्नी को जरा-जरा सी बातों पर गलियों में घसीटकर बेरहमी से पीटता है ,'ये समाज उस समय गूंगा और अपाहिज हो जाता है ।समाज मात्र तमाशबीन है इसके दवाव में कोई फैसला न करें ।।

ये समाज पुरुष के दोष कहां देखता है पर स्त्री को कदम-कदम पर अपनी निर्दोषता सिद्ध करनी होती है। 
मैने अपने आस -पास विवाह के कई मोहक और वीभत्स रुप देखे हैं , कहीं विवाह से सपनों की दुनिया हकीकत में बदलती है तो कही जिंदगी नर्क से बदतर बन जाती है विवाह के बाद , ,कैसे परिभाषित कर दूं विवाह को चंद शब्दों में..............!

कहते है विवाह से दो आत्माओं का मिलन होता है तो फिर कैसे जला देता है कोई पति अपनी पत्नी को तड़पा- तड़पाकर ---!विभिन्न विद्वानों ने इसे अपने -अपने अनुसार परिभाषित किया है--> 

Bronisław Kasper Malinowski (मैलिनोवस्की) ~~के अनुसार विवाह बच्चों की उत्पत्ति और पालन पोषन का एक अनुबंध है !

>> क्या ये सटीक परिभाषा है ??
मैने देखा है माँ को बच्चों के पालन पोषण के लिये पिता की मदद पाने के लिये लम्बी कानूनी लड़ाई लड़ते हुऐ, , ,

~~~>W.H .R Rivers--जिन साधनों द्वारा समाज यौन संबन्धों का नियंत्रित करता है उसे विवाह कहते हैं इसके द्वारा समाज में व्याभिचार नियंत्रित होता है!

~~~क्या आपको लगता है विवाह से व्याभिचार नियंत्रित होता है?

मजूमदार~~>विवाह का मुख्य उद्देश्य व्यक्ति को मानसिक शान्ति प्रदान करना है!क्या विवाह से मानसिक शान्ति मिलती है ??

विवाह की कोई परिभाषा समाज के आगे सटीक ही नही बैठती यहाँ तो हर दिन विवाह का एक अलग ही उद्देश्य 
अलग ही रुप देखने को मिलता है !इसीलिये ये प्रश्न आज भी मन में अनसुलझा ही है...!!



मीनाक्षी वशिष्ठ
जन्म स्थान ->भरतपुर (राजस्थान )
वर्तमान निवासी टूंडला (फिरोजाबाद)
शिक्षा->बी.ए,एम.ए(अर्थशास्त्र) बी.एड
विधा-गद्य ,गीत ,प्रयोगवादी कविता आदि।

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